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Description
This book Legendary Tales for Children makes a strong case that well-chosen stories give children good role models and increase their empathy for others. It doesn''t just hand children simplistic moral precepts, but give them the opportunity to think about and discuss moral choices.
Legendary Tales for Children is a compilation of 50 one-page short stories for children. Language used is elementary and simple. Each story comes with a caricature type illustration in black & white to retain interest of young readers. The moral at the end of the story summaries precisely what the child is supposed to learn!
These stories educate children about a family, tradition, ethos, social mores or share cultural insight or a combination of all these. Thoughtful stories not only provide enjoyment, they also shape and influence lives of children.
We have published following books in this series:
*Legendary Tales for Children
*Jungle Tales for Children
*Folk Tales for Children
*Interesting Tales for Children
Ramayana Tales for Children
These books don’t offer theoretical moral values or claim to preach to children. They show the way!!
Sujets
Informations
Publié par | V & S Publishers |
Date de parution | 19 novembre 2013 |
Nombre de lectures | 0 |
EAN13 | 9789352151370 |
Langue | Hindi |
Poids de l'ouvrage | 1 Mo |
Informations légales : prix de location à la page 0,0500€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.
Extrait
बच्चों के लिए
पौराणिक
कहानियाँ
प्रकाशक
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© कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स ISBN 978-93-505708-8-3
डिस्क्लिमर
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गई पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या संपूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
पुस्तक में प्रदान की गई सभी सामग्रियों को व्यावसायिक मार्गदर्शन के तहत सरल बनाया गया है। किसी भी प्रकार के उदाहरण या अतिरिक्त जानकारी के स्रोतों के रूप में किसी संगठन या वेबसाइट के उल्लेखों का लेखक प्रकाशक समर्थन नहीं करता है। यह भी संभव है कि पुस्तक के प्रकाशन के दौरान उद्धत वेबसाइट हटा दी गई हो।
इस पुस्तक में उल्लीखित विशेषज्ञ की राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटाकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
पुस्तक में दिए गए विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जाएगा।
मुद्रक: परम ऑफसेटर्स, ओखला, नयी दिल्ली-110020
प्रकाशकीय
अनेक वर्षों से जन विकास सम्बन्धी पुस्तकें प्रकाशित करने के पश्चात् वी एण्ड एस पब्लिशर्स ने बच्चों के मनोरंजन के लिए कहानियों की कुछ चुनिंदा पुस्तके प्रकाशित करने का निश्चय किया है। ये पुस्तकें बाजार में बिक रही कहानी की साधारण पुस्तकों से थोड़ी अलग हटकर है जो बच्चों का भरपूर मनोरंजन करने के साथ उनका ज्ञानवर्ध्दन भी करेगी। हम गोपू बुक्स सीरीज के तहत पंचतंत्र की कहानियाँ पहले ही प्रकाशित कर चुके हैं । गोपू बुक्स को बाजार से भरपूर सराहना मिली है। पाठकों से मिल रही निरंतर प्रशंसा से उत्साहित होकर हम अपने पाठकों के लिए कहानियों की दूसरी विशिष्ट श्रृंखला प्रकाशित कर रहे हैं ।
प्रस्तुत पुस्तक 'बच्चों के लिए पौराणिक कहानियाँ' में उस काल के दिलचस्प घटनाओँ पर आधारित कहानियों का अनूठा संकलन है। कहानी लेखन के द्वारा लेखक ने इस बात का विशेषतौर पर ध्यान रखा है कि कोई भी कहानी एक पेज से अधिक नहीँ हो। इस श्रृंखला में कहानियों की पाँच पुस्तके है। सभी पुस्तकों में पचास-पचास बेजोड़ कहानियों का अनूठा संग्रह है।
पुस्तक की भाषाशैली अत्यन्त सहज तथा भावपूर्ण होने के कारण ये पुस्तकें बच्चों के बीच अवश्य लोकप्रिय होगी। प्रत्येक कहानी के अन्त में कहानी से मिलने वाली सीख की जानकारी भी दी गयी है, जिसे बच्चे पढ़कर ज्ञान अर्जित कर सकतें हैं ।
हमें पूर्ण विश्वास है कि ये छोटी-छोटी कहानियाँ कम समय में बालमन को गुदगुदाने के साथ अभिभावकों का भी मनोरंजन करेगी ।
विषय-सूची
1. फकीर की चुप्पी
2. सच्ची अमरता
3. अधिकार और कर्तव्य
4. राजा की बुद्धिमानी
5. चन्दन वन
6. साधु की सीख
7. दान का पुण्य
8. आँखों वाले अंधे
9. बीरबल ने पकड़ा चोर
10. तेनालीराम का घोड़ा
11. अकबर का सपना
12. तेनालीराम की चतुराई
13. सबसे बड़ा रत्न
14. मुल्ला नसरुद्दीन और दावत
15. गरीब का झोला
16. मुल्ला नसरुद्दीन और सिक्का
17. बादशाह का न्याय
18. खलीफा का न्याय
19. राजा की सूझबूझ
20. तमाचा
21. सम्राट की कर्तव्यपरायणता
22. सिकन्दर का अहंकार
23. पाप की जड़
24. मुल्ला नसरुद्दीन का गधा
25. अनोखी अँगूठी
26. दगा किसी का सगा नहीं
27. बरतन
28. राजकुमारी का दूटा घमण्ड
29. राह की बाधा
30. बेमन के काम का परिणाम
31. सच्ची सुन्दरता
32. ऊँट की गर्दन
33. ईश्वर की खाज
34. राजा चन्द्रसेन और किसान
35. रूप और घमण्ड
36. जब आवे सन्तोषधन
37. वरदान
38. भाग्य का भोजन
39. निरपराध को दण्ड
40. नाम बड़े पर दर्शन छोटे
41. नदी का पानी
42. रुपनगरी का कलुष
43. हर काम अच्छे के लिए
44. नकल में भी अकल चाहिए
45. गम खाना बड़ी बात है
46. जीवन का आनन्द
47. तलवारबाज
48. झगड़णी बुआ
49. पतिव्रता का पुण्य
50. दूबाँ की कथा
1
फकीर की चुप्पी
एक दिन अकबर ने अपने दरबारियों से एक प्रश्न पूछा, 'अगर आपके सामने कोई नालायक और बदतमीज व्यक्ति आ जाये, तो उसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? किसी ने कहा- उसे पीट कर भगा देना चाहिए, तो किसी ने कहा, उसे जेल में बन्द कर देना चाहिए। बातचीत चल ही रही थी कि इतने में बीरबल आ गये। बादशाह ने अपना प्रश्न उनके सामने भी रखा। बीरबल ने कहा- ‘बादशाह सलामत! यह प्रश्न बहुत गम्भीर है, इसलिए मैं सोच-समझकर कल जवाब दूँगा।' बादशाह ने उसकी बात मान ली।
दूसरे दिन बीरबल दरबार में आये, तो उनके साथ एक आदमी और था। नंगे पेर, नंगे सिर ओर शरीर पर मामूली-सी चादर ओढ़े हुए। बीरबल ने कहा- 'हुजूर, ये बहुत पहुँचे हुम फकीर हैं। आपके प्रश्न का उत्तर ये देगें।' बादशाह ने अपना प्रश्न उस फकीर के सामने रखा। लेकिन फकीर ने कोई उत्तर नहीं दिया। बादशाह ने सोचा शायद फकीर को मेरा प्रश्न समझ नहीं जाया। उन्होंने फिर अपना प्रश्न दोहराया। फिर भी फकीर ने कोई उत्तर नहीं दिया। बादशाह ने सोचा, शायद फकीर को कम सुनायी देता होगा, उनहोंने जोर से अपना प्रश्न दोहराया। तब बीरबल बोले- 'बादशाह सलामत! इनका जवाब इनकी चुप्पी ही है। ऐसे लोगों के मुँह नहीं लगना चाहिए। उसे चुप रहना चाहिए।" बीरबल की बात सुनकर अकबर बहुत खुश हुआ, उसने बीरबल की बहुत प्रशंसा की।
2
सच्ची अमरता
राजा प्रताप राय का एक ही ध्येय था कि उसके राज्य में कोई दु:खी न रहे। अपनी प्रजा की सुरक्षा एवं देखभाल में वह कोई कसर नहीं छोड़ता। प्रजा भी राजा के प्रति आभार प्रकट करने का कोई मौका नहीं चुकती। एक बार नगर में साधुओं की एक मण्डली आयी। राजा की सहृदयता से प्रभावित होकर मण्डली के प्रधान साधु ने तय किया कि वह इक्कीस दिवसीय यज्ञ करेंगे, जिससे राजा अमर हो जायेंगे। यज्ञ में सभी प्रजाजनों को आहूतियाँ देनी थीं। इक्खीसवें दिन यज्ञ में अन्तिम आहुति देने के लिए राजा को खुद आना था। राजा से अनुमति लेने के बाद बड़ी निष्ठा और धूमधाम से यज्ञवेदियाँ बना ली गयी और यज्ञ प्रारम्भ हुआ।
चूँकि ऐसा यज्ञ एक बार ही हो सकता था। इसलिए इस पुनीत कार्य में योगदान देने से कोई पीछे नहीं हटना चाहता था। सभी प्रजाजनों ने बड़ी श्रृद्धा से अपनी आहुति दी। अन्तिम दिन भी आया। सभी को राजा प्रताप राय का इन्तजार था, जिनकी अन्तिम आहुति देने के साथ ही वे अमर हो जाते। राजा पहुंचे भी लेकिन तब तक मुहूर्त को तले काफी समय हो चूका था। राजा ने प्रजा से क्षमायाचना करते हुए कहा, 'अचानक पड़ौसी राज्य ने आक्रमण कर दिया था। मुझे शत्रु को पराजित करने युद्ध में जाना पड़ा। अपनी अमरता के लोभ में मैं अपनी प्रजा के प्राणों को संकट में नहीं डाल सकता था।' राजा की जयध्वनि से आकाश गूँजने लगा। प्रजा के हितैषी ऐसे शासकों की कीर्ति हमेशा अमर रहती है।
3
अधिकार और कर्तव्य
राजा यशोवर्मन खुद वेश बदल कर प्रजा का हालचाल जानने निकलता था। कई दिन बाद राजा बहुरूपिया बनकर राज्य में भ्रमण करने निकला। बाजार में उसने देखा एक व्यक्ति को कुछ लोग पीटते हुए ले जा रहे थे। राजा ने किसी को रोककर पूछा कि इस व्यक्ति की पिटाई क्यों की जा रही है? जवाब मिला कि उसने चोरी की है और उसे इसकी सजा दी जा रही है। राजा ने फिर पूछा, चोरी किस चीज की हुई है और सजा देने वाले कौन है? उसे बताया गया कि पिटने वाला एक गरीब व्यक्ति है, जिसने एक दुकान से खाने की वस्तु बिना दाम चुकाये उठाकर खा ली थी और उसे पीटने वाले दुकानदार ही है। राजा का अगला सवाल था कि उसे कहाँ ले जाया जा रहा है? उसे बताया गया कि उसे शहर के कोतवाल के पास ले जाया जा रहा है, जो कोतवाली में आराम कर रहे हैं। इतना सुनने के बाद राजा ने अपना साधारण वेश छोड़ा और अपने असली रूप में आ गया। राजा को पहचानते ही पीटने वालों के हाथ रुक गये और वह गरीब राजा के चरणों में जा गिरा। राजा ने उसे उठाया और कहा, 'मित्र! तुमने गरीबी के कारण चोरी की, इसका मतलब मैं तुम्हारा ख्याल नहीं रख पाया, कोतवाल गश्त के बजाय आराम कर रहा था, इसका मतलब यह है कि में तुम्हें सुरक्षा देने में असफल रहा। दुकानदारों ने तुम्हें पीटा इसका मतलब कि वे न्याय को अपने हाथ में ले रहे थे...। मैं अपनी सभी भूलों के लिए तुमसे क्षमा-याचना करता हूँ।'
4
राजा की बुद्धिमानी
राजा विक्रमजीत की बुद्धिमानी के बार में सुनकर देवताओं के राजा इन्द्र ने उसकी परीक्षा लेने की सोची। इन्द्र ने विक्रमजीत के दरबार में तीन मनुष्यों के सिर भिजवाये और कहलवाया कि यदि राजा इनका सही मूल्य बता देगा, तो उसके राज्य में सोने की वर्षा होगी। यदि नहीं बता सका, तो सारा राज्य नष्ट हो जायेगा। राणा ने राज पुरोहित से कहा, 'यदि तुम दो दिनों में इन सिरों का सही मूल्य बता दोगे, तो हम तुम्हें मुँह माँगा पुरस्कार देंगे, वर्ना फाँसी पर लटका देंगे।'
पत्नी ने सोचा पति की मौत अपनी आँखों से देखने से तो अच्छा है, में आत्महत्या कर लूँ। यह सोचकर वह कुएँ की ओर चल दी। उसे सियार की बातें सुनायी दीं। पुरोहित की पत्नी एक पेड़ की ओट में खड़ी हो गयी। सियार सियारिन से बोला, 'तुम्हें पता है, इन्द्र ने राजा की परीक्षा लेने के लिए तीन सिर भेजें है। यदि वह उनका सही मूल्य बता देगा, तो उसके राज्य में सोने की वर्षा होगी अन्यथा सारा राज्य नष्ट हो जायेगा। यह बात मैं सिर्फ तुम्हें बता रहा हूँ। तीनों सिरों के कान में से एक सोने की सलाई डालें। जिस सिर के मुँह, कान, आँख में से सलाई न निकले वह अमूल्य है। जिसके मुँह में से सलाई निकल जाये, उसका मूल्य दस हजार रुपये है ओर जिसके हर अंग में से सलाई निकल उसका मूल्य दो कौड़ी का है।" सियार की बात सुनकर पुरोहित की पत्नी घर पहुंची। दुसरे दिन पुरोहित ने दरबार में तीनों सिर मँगवाये। उसने एक सिर के कान में सलाई डाली। चारों ओर हिलायी लेकिन वह कहीं से नहीं निकली। पुरोहित ने कहा, 'यह आदमी बड़ा गम्भीर है, इसका भेद नहीं मिलता। इसलिए यह अमूल्य है।' उसने दुसरे सिर के काने में सलाई डाली। सलाई मुँह से बाहर निकल आयी। वह कहने लगा, 'यह आदमी कान का कच्चा है, जो सुनता है, वह कह डालता है। इतका मूल्य दस हजार रुपये है।' पण्डित ने तीसरे सिर के कान में सलाई डाली, तो बह मुँह, नाक, आँख सभी जगह से पार हो गयी। पुरोहित ने कहा, "यह आदमी कोई भेद नहीं छिपा सकता। इसका मूल्य दो कौड़ी का है।' राजा ने तीनों सिरों पर उनका मूल्य लिखकर इन्द्र के दरबार में पहुँचा दिये। इन्द्र जवाब से प्रसन्न हुए और राज्य में सोने की वर्षा होने लगी।
5
चन्दन वन
एक राजा जंगल में शिकार खेलते-खेलते बहुत दूर निकल गया। वापसी में वह रास्ता भूल गया। अन्धेरा भी हो चला था। उसे थोड़ी दूर एक झोंपडी दिखायी दी। उसने झोंपडी के बाहर जाकर आवाज लगायी। अन्दर से एक निर्धन व्यक्ति बाहर निकला। राजा ने उससे एक रात के लिए उसके यहाँ शरण माँगी। उस व्यक्ति से जितना सम्भव हो सका राजा का आदर-सत्कार किया। सुबह लौटने से पहले राजा ने उसकी आजीविका का साधन पूछा। उस व्यक्ति ने जवाब दिया, 'महाराज! मैं लकड़ीयाँ काटकर लाता हूँ और उनका कोयला बनाकर बेचता हूँ उससे जो भी धन मिलता है बस, उसी