BACHHON KI PRATIBHA KAISE UBHAREIN (Hindi)
70 pages
Hindi

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BACHHON KI PRATIBHA KAISE UBHAREIN (Hindi) , livre ebook

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Description

This book is the best measure of educating children’s talents in sports and other areas. Do you want to know how the children can be made self reliant and content? Do you want them to get a share in continuous education, sports and other areas? Have you been successful in finding their great and hidden capabilities? Do you want to imbibe in them ideals of fitness, energy, intelligence, golden character, manners and behaviours skills? Do you want to see your children the best, most healthy and the most beautiful? For all this, this book is a must read.


Sujets

Informations

Publié par
Date de parution 01 juin 2015
Nombre de lectures 0
EAN13 9789350573471
Langue Hindi

Informations légales : prix de location à la page 0,0500€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

चुन्नीलाल सलूजा






प्रकाशक

F-2/16, अंसारी रोड, दरियागंज, नयी दिल्ली-110002
23240026, 23240027 • फैक्स 011-23240028
E-mail: info@vspublishers.com • Website: www.vspublishers.com

क्षेत्रीय कार्यालय : हैदराबाद
5-1-707/1, ब्रिज भवन (सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया लेन के पास)
बैंक स्ट्रीट, कोटि, हैदराबाद-500015
040-24737290
E-mail: vspublishershyd@gmail.com
शाखा : मुम्बई
जयवंत इंडस्ट्रियल इस्टेट, 1st फ्लोर, 108-तारदेव रोड
अपोजिट सोबो सेन्ट्रल मुम्बई 400034
022-23510736
E-mail: vspublishersmum@gmail.com

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© कॉपीराइट:
ISBN 978-93-505734-7-1
 
 
 
 
डिस्क्लिमर
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गई पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या संपूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
पुस्तक में प्रदान की गई सभी सामग्रियों को व्यावसायिक मार्गदर्शन के तहत सरल बनाया गया है। किसी भी प्रकार के उदाहरण या अतिरिक्त जानकारी के स्रोतों के रूप में किसी संगठन या वेबसाइट के उल्लेखों का लेखक प्रकाशक समर्थन नहीं करता है। यह भी संभव है कि पुस्तक के प्रकाशन के दौरान उद्धत वेबसाइट हटा दी गई हो।
इस पुस्तक में उल्लीखित विशेषज्ञ की राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटाकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
पुस्तक में दिए गए विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जाएगा।

मुद्रक: परम ऑफसेटर्स, ओखला, नयी दिल्ली-110020


स्वकथन
ब च्चे राष्ट्र का भविष्य होते हैं। इस भविष्य की आधारशिला वर्तमान में ही रखी जाती है। यही कारण है कि सरकार और समाज बच्चों के भविष्य के प्रति उदासीनता नहीं बरतता। भारत के संविधान में भी इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि बच्चों के व्यक्तित्व विकास में किसी भी स्तर पर उपेक्षा न बरती जाए। अनिवार्य और निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा के पीछे भी लक्ष्य यही है कि व्यक्तित्व विकास के वे सभी अवसर उपलब्ध कराए जाएं, जो उनके लिए आवश्यक हैं। सरकार व्यापक स्तर पर व्यक्तित्व विकास के लिए पर्याप्त प्रयास करती है, लेकिन यह एक शाश्वत सत्य है कि इस में जो घटक काम करते हैं, उनकी जानकारी के बिना व्यक्तित्व विकास संभव नहीं है। अभिभावकों की देखभाल, पारिवारिक वातावरण द्वारा उनमें निहित क्षमताओं का विकास, प्रतिभा को निखरने के अवसर, प्रोत्साहन, वर्जित व्यवहारों पर अंकुश, मनोवैज्ञानिक व्यवहार, संवेगों का शमन आदि ऐसे कार्य-व्यवहार हैं, जिनके द्वारा बच्चों के व्यक्तित्व को नई दिशा दी जा सकती है।
अभिभावकों, शिक्षकों की भूमिका कुम्हार के समान होती है। जिस प्रकार से कुम्हार कच्चे घड़े को ठोंक-ठोंक कर उसके दोष निकालता है, लेकिन चोट मारते समय अंदर अपने हाथ का सहारा दिए रहता है। बस, कुछ ऐसी ही सोच अभिभावकों, शिक्षकों, समाज सुधारकों की होनी चाहिए। वास्तव में बच्चों में पड़े हुए ऐसे अच्छे संस्कार ही उन्हें उत्तम नागरिक होने का गर्व, गौरव दिलाते हैं और वे संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को प्रभावित कर उनके दिल में स्थान पाते हैं। व्यावहारिक जीवन में ये छोटी-छोटी बातें ही उनकी सफ़लता का आधार बनती हैं और उनके व्यक्तित्व को प्रभावी बनाती हैं।
इस पुस्तक के माध्यम से अभिभावकों, शिक्षकों, समाज सुधारकों और समाज सेवियों के सामने कुछ ऐसे ही व्यवहार, जानकारियां और मनोवैज्ञानिक तथ्य प्रस्तुत कर बच्चों के व्यक्तित्व विकास पर प्रकाश डाला गया है। वास्तव में यह पुस्तक अभिभावकों, शिक्षकों और समाज-सुधारकों के लिए एक ऐसा ग्रंथ है, जिससे न केवल वे बच्चों को पारिवारिक अपेक्षाओं के अनुरूप बना सकेंगे, बल्कि उनमें जीवन के प्रति व्यावहारिक सोच भी पैदा होगी। अनुशासित, शिष्ट और सदाचारी बच्चे आज की सबसे बड़ी आवश्यकता हैं। राजनीति के छेत्रों में नैतिकता और चारित्रिक बिखराव जहां राष्ट्र के सामने एक गंभीर चुनौती बन गया है, उसके लिए आवश्यक है कि बच्चे की सोच व्यावहारिक हो, वह प्रतिभाशाली हो, ताकि इस दिशा में अपनी सोच को प्रदूषण से बचा सकें। बच्चों की यौन इच्छाओं को भड़का कर जिस अपसंस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है, उससे मुक्ति दिलाने के लिए भी आवश्यक है कि हम उनके व्यक्तित्व विकास में स्वयं रुचि लें और उन्हें गुमराह होने से बचाएं, ताकि वे अंधेरे में न भटवें।
बच्चों के प्रतिभा विकास और संतुलित विकास के लिए इस पुस्तक में जो छोटी-छोटी बातें कही गई हैं, यदि वे अभिभावकों के काम आएं और उनसे बच्चों के व्यक्तित्व और प्रतिभा में निखार आए, तो मैं समझूंगा कि मेरा प्रयास सफल हुआ, मेरे विचार काम आए। इस विषय में अभिभावकों का धैर्य, संयम, साहस, विवेक और सूझबूझ ही उनका ज्ञान है। यह पुस्तक तो एकमात्र दिशा-निर्देश है, जो मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखकर दिया गया है।
पुस्तक को इस रूप में प्रस्तुत करने के लिए मैं अपनी पत्नी श्रीमती शीला सलूजा, जो एक ख्याति प्राप्त लेखिका हैं, के प्रति कृतज्ञ हूं, जिनके आधुनिक विचार इस पुस्तक में समाविष्ट हैं। बचपन से आज तक मेरे लेखन को प्रेरित करने वाले मेरे मित्र वीरेन्द्र कुमार जैन, जो दिल्ली में रहते हुए भी अपनी दिव्य दृष्टि से मुझे प्रेरित करते हैं, के प्रति भी मैं हृदय से आभारी हूं।
मैं अपनी पौत्री सलोनी का यहां उल्लेख इसलिए करना चाहता हूं कि वह मेरे सामने हमेशा बच्चे के रूप में बनी रही, उसने मुझे हमेशा बाल मनोविज्ञान की सच्चाइयों को देखने का अवसर दिया। शिवपुरी (म.प्र.) -चुन्नीलाल सलूजा


अंदर के पृष्ठों में
1. परिवार में बच्चों की स्थिति
2. परिवार और वातावरण
3. प्रतिभा विकासः क्या, क्यों और कैसे?
4. प्रतिभा विकसित करने वाले तत्त्व
5. बच्चों का विकास कैसे हो?
6. व्यक्तिगत भिन्नताएं और व्यक्तित्व विकास
7. हीनता
8. प्रतिभा और संवेग
9. जवाब दें बच्चे की क्यों’ का
10. व्यवहार संबंधी समस्याएं
11. योग और बच्चों में प्रतिभा विकास
12. आर्थिक संपन्नता और जेब खर्च
13. प्रतिभा कुंठित न हो
14. दायित्व बोध
15. अभिरुचियां
16. अभिभावकों की नज़र
17. बच्चों का स्कूल से भागना
18. जब बच्चे स्कूल से वापस आएं
19. रुचियां
20. प्रेरणा का प्रभाव
21. प्रतिभाशाली बच्चे और आप
22. प्रतिभा विकास के 21 टिप्स




परिवार में बच्चों की स्थिति?
बच्चों में प्रतिभा परिवार की देन है । परिवार वह संस्था है जो बच्चों को जन्म देती है, उसका पालन—पोषण कर उसे मनोवैज्ञानिक संरक्षण प्रदान करती है, उसे समाज और राष्ट्र के योग्य बनाती है । परिवार से जन्म लिया हुआ बच्चा ही सामाजिक संबंधों, व्यवस्थाओं और मान्यताओं को प्रतिष्ठा देकर अपने आपको उसकी अपेक्षाओं के अनुरूप ढालता है । यही संस्कृति है, जीवनचर्या है और यही प्रतिभा का उचित कार्य भी है ।
ब च्चा परिवार की आकांक्षा और अपेक्षाओं का केंद्र होता है। परिवार की सुख— स्मृद्धि, सफलता का आधार होता है। वह चाहे भारत हो अथवा पश्चिम का कोई अन्य देश, हमारी संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था का आधार बच्चा ही है और इसी बच्चे के लिए हम जीवन—भर संघर्ष करते हैं। संघर्ष के व्यवहार में अभिभावकों की दो ही इच्छाएं होती हैं, एक बच्चे की सुरक्षा व संरक्षण और दूसरी उसका मानसिक विकास। पालन—पोषण के लिए अभिभावक रात—दिन परिश्रम करते हैं, ताकि वे अपने इन बच्चों का भरण—पोषण सरलता से कर सकें। पशु—पक्षी, यहां तक कि हिंसक जानवर भी अपने इस कर्तव्य का यथाशक्ति पालन करते हैं। चिड़ियां भी चोंच में चुग्गा भर कर लाती हैं और अपने बच्चों को खिलाती हैं। चूंकि मनुष्य प्रकृति का विकसित प्राणी है, इसलिए वह अपने बच्चों को पोषण के साथ—साथ मानसिक रूप से भी विकसित करता है, साथ ही उसका यह भी प्रयास रहता है कि वह बच्चों के ज्ञान व प्रतिभा का भी विकास करे। यह प्रतिभा ही उसे समाज कल्याण के योग्य बनाती है। वह अपनी इसी प्रतिभा और योग्यता से समाज में अपना स्थान बनाता है। कल्पना करें कि यदि कोई बहुत योग्य सर्जन है, लेकिन वह किसी व्यक्ति का उपचार नहीं करता, तो उसकी योग्यता अथवा प्रतिभा किस काम की।
योग्यता अथवा प्रतिभा का लाभ समाज को मिले, इसीलिए योग्यता और प्रतिभा विकसित की जाती है। मनुष्य का प्रत्येक कार्य, उसके स्वभाव, आदत और मानसिक सोच से प्रभावित होता है। उसकी इस आदत व व्यवहार की छाया ही उसके परिवार और बच्चों पर पड़ती है। वह अपने तथा सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर यह प्रयत्न करता है कि वह अपने बच्चों को अपने से अधिक योग्य, प्रतिष्ठित, प्रभावशाली, संपन्न व प्रतिभावान बनाए। यही चाहत उसे प्रेरित करती है कि वह अपने बच्चों की प्रतिभा के विकास के लिए अधिक से अधिक मेहनत करे, ताकि बच्चे भविष्य में समाज के प्रति समर्पित हों तथा सामाजिक मान्यताओं का पालन करें और बच्चों के व्यक्तित्व विकास में सहयोगी बनें।
हमारे देश में आज भी किसानों, मजदूरों की संख्या अधिक है, गरीबी और अभाव भी अधिक है,फिर भी जिस वर्ग में आर्थिक संपन्नता बढ़ी है, वे अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाने में गर्व व गौरव अनुभव करते हैं। आजकल गरीबी, अभावों आदि के होते हुए भी मध्यवर्गीय और उच्च मध्यवर्गीय बच्चों और उनके अभिभावकों में जागरुकता आई है। आज देश के कोने—कोने में अच्छे उच्च विद्यालयों की संख्या बढ़ी है। महानगरों और छोटे शहरों के संपन्न परिवारों के बच्चे, एल.के.जी., यू.के.जी. और नर्सरी, प्री—नर्सरी वाले स्कूलों में प्रवेश पाने के लिए उत्सुक रहते हैं। सरकारी स्कूलों को लोग खैराती का स्कूल समझने लगे हैं। बड़े—बड़े स्कूल आज शिक्षा के क्षेत्र में उद्योग की भूमिका निभा रहे हैं। अच्छे और महंगे स्कूलों में प्रवेश दिलाना अभिभावक प्रतिष्ठा की बात मानने लगे हैं। ऐसे स्कूलों में प्रवेश के लिए जहां उन्हें एक बड़ी रकम देनी पड़ती है, वहीं इन स्कूलों के अन्य कई नखरे भी सहने पड़ते हैं।
इन सभी के पीछे अभिभावकों का एक ही उद्देश्य है और वह है, उनके बच्चों की प्रतिभा का विकास और समय के साथ दौड़ने की इच्छा, ताकि वे और उनके बच्चे इस दौड़ में कहीं पीछे न रहें। इन सारी बातों के बाद भी अधिकांश अभिभावक अपने ही बच्चों की उच्छृंखलता से परेशान व दुखी हैं। वास्तव में सिनेमाई संस्कृति और ग्लैमर ने बच्चों की मानसिक सोच को इतना अधिक प्रभावित किया है कि इस प्रदूषण से अभिभावक भी हताश और निराश होते जा रहे हैं। निराशाओं के घेरों में यद्यपि आशाओं का प्रकाश विद्यमान है, इसलिए इस विषय में अभिभावकों को रचनात्मक सोच से काम लेना चाहिए।
सामाजिक तौर पर विवाहित युगल से पैदा हुए बच्चे ही सामान्य होते हैं और मां—बाप की इच्छाओं और अपेक्षाओं के केन्द्र होते हैं। इसलिए इन बच्चों को पालने, पढ़ाने और उनकी प्रतिभा के विकास के लिए रुचि लेना मां—बाप का दायित्व होता है। वे नैतिक और सामाजिक दृष्टि से भी अपने बच्चों के प्रति समर्पित होते हैं। यदि पति—पत्नी में इच्छा नहीं होती और बच्चे पैदा हो जाते हैं, तो ऐसे बच्चे अभिभावकों से वह स्नेह प्राप्त नहीं कर पाते, जिसकी वे अपेक्षा करते हैं। ऐसी अवांछित संतानें परिवार में पलती जरूर हैं, लेकिन उनमें प्रतिभा की हमेशा कमी बनी रहती है। झुग्गी—झोंपड़ी में रहने वाले परिवारों के बच्चे, गरीबी रेखा से नीचे जीवन—यापन कर रहे परिवारों के बच्चे, घुमक्कड़ जातियों के परिवारों के बच्चे, खदानों

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