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Description
: Universal herbs, fruits, vegetables, grains and spices with the help of effective treatment of Diseases and Common Ailments. According to your budget and comfort, cheap, easy and universal treatment. Details of classical and patent medicines.
Sujets
Informations
Publié par | V & S Publishers |
Date de parution | 03 avril 2013 |
Nombre de lectures | 0 |
EAN13 | 9789352151592 |
Langue | Hindi |
Informations légales : prix de location à la page 0,0500€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.
Extrait
सफल घरेलू इलाज
डॉ. आर.पी. पाराशर (आयुर्वेदर विशेष-ज्ञ एवं मनोचिकित्सक)
योग और भोजन द्वारा रोगों का इलाज 96/-
योगासन एवं साधना 96/-
रोग पहचानें उपचार जानें 96/-
स्वस्थ रहने के 51 सुझाव 96/-
स्वास्थ्य संबंधी गलतफ़हमियां 96/-
सफल घरेलू इलाज 96/-
सर्वसुलभ जड़ी-बूटियों द्वारा रोगों का इलाज 135/-
हृदय रोग : क्या है, क्यों होता है और कैसे बचें 96/-
न्यू लेडीज हैल्थ गाइड 150/-
एक्युप्रेशर चिकित्सा 96/-
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© कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स ISBN 978-93-814486-6-3
डिस्क्लिमर
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गई पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या संपूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
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इस पुस्तक में उल्लीखित विशेषज्ञ की राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटाकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
पुस्तक में दिए गए विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जाएगा।
मुद्रक: परम ऑफसेटर्स, ओखला, नयी दिल्ली-110020
पेट संबंधी रोग
अजीर्ण
(Dyspepsia)
कारण
भोजन और नींद में अनियमितता होने, भारी (गरिष्ठ) व चिकनाई युक्त भोजन अधिक मात्रा में कुछ दिनों तक लगातार करते रहने, शारीरिक श्रम का अभाव होने तथा ईर्ष्या, भय, चिंता, क्रोध आदि मानसिक कारणों से यह रोग उत्पन्न होता है।
लक्षण
शरीर के पाचक रसों की उत्पत्ति में गड़बड़ी होने तथा आमाशय की प्रेरक गति प्रभावित होने से जब भोजन ठीक प्रकार से नहीं पचता है, तो पेट में भारीपन और बेचैनी-सी रहती है। दिन में कई बार शौच जाने के बावजूद पेट साफ नहीं हो पाता। इससे ऐसी अवस्था उत्पन्न हो जाती है कि हलका एवं समय पर किया हुआ भोजन भी नहीं पच पाता है।
घरेलू चिकित्सा
अदरक का एक-एक चम्मच रस दिन में दो बार नमक या गुड़ के साथ भोजन के पूर्व लें।
सोंठ का आधा चम्मच चूर्ण दिन में दो बार गर्म पानी के साथ लें।
एक नीबू का रस दिन में तीन बार भोजन के बाद गर्म पानी से लें।
छोटी हरड़ का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में दिन में दो बार गुड़ या नमक के साथ भोजन से पहले लें।
काली मिर्च एवं नमक, दो-दो चुटकी, कटे हुए आधे नीबू पर रखकर आंच पर गर्म करके भोजन के बाद दिन में तीन बार चूसें।
भोजन से पहले 100 ग्राम खुबानी खाएं।
आंवलों का रस पांच से छह चम्मच, एक चम्मच पानी मिलाकर दिन में तीन बार लें।
भोजन के बाद चुटकी भर अजवायन पीस कर लें।
काला नमक व देसी अजवायन 1 : 4 के अनुपात से किसी शीशे या चीना मिट्टी के बरतन में डालकर, नीबू का इतना रस निचोड़ें कि दोनों वस्तुएं उसमें डूब जाए। इस बरतन को छाया में रखकर सुखाएं। सूखने पर नीबू के रस में पुन: डुबो दें। यह क्रिया सात बार करें। यह मिश्रण 2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम भोजन के बाद गुनगुने पानी के साथ लें। अजीर्ण के अतिरिक्त पेट के अन्य रोगों, उल्टियां आने और जी मिचलाने में भी यह मिश्रण अत्यंत लाभदायक है।
तुलसी के दस पत्ते पीसकर इसमें नमक मिलाकर शरबत की तरह पिएं।
रोगी को मोठ की दाल खिलाएं।
कचरी के चूर्ण से सेंधा नमक मिलाकर गर्म पानी या मट्ठे के साथ दें।
फलों में पपीता या अमरूद अथवा दोनों मिलाकर इसमें काला नमक, काली मिर्च व इलायची मिलाकर भोजन से पहले लें। भोजन इतना करें कि पेट कुछ खाली रहे।
सब्जियों में टमाटर अजीर्ण में बहुत लाभदायक है। प्रात:काल खाली पेट, कटे हुए टमाटरों पर काला नमक व काली मिर्च डालकर लें।
गाजर अथवा टमाटर का रस प्रात: व सायं लेने से भी इस रोग में बहुत लाभ मिलता है। दोनों का रस मिलाकर भी ले सकते हैं। यह रस सुबह के समय खाली पेट व शाम को भोजन से एक घंटा पहले लें।
टमाटर के रस की जगह इसका सूप भी लिया जा सकता है। इसी प्रकार कच्चे प्याज के पत्तों से बना सूप भी लिया जा सकता है। रस या सूप दोनों में काली मिर्च व काला नमक डालकर लें।
फलों में अनार या फालसे का रस भी पेट के रोगों में अच्छा कार्य करता है। लंबे समय तक प्रयोग करने के लिए अनार का शरबत बनाकर रखा जा सकता है।
भोजन एवं परहेज
अजीर्ण में हलका भोजन लें। चावल व मुंग की दाल की 1 और 2 के अनुपात में बनी खिचड़ी रोगी को लेनी चाहिए। रोटी के साथ मूंग की दाल या हरी सब्जी (घिया, तोरी, टिंडा, पालक आदि) का प्रयोग किया जा सकता है।
रोटी बनाते समय उसमें 7-8 दाने अजवायन के डाल लें।
अजीर्ण के रोगी को तला हुआ व गरिष्ठ भोजन नहीं करना चाहिए। घी या तेल की मात्रा भोजन में न्यूनतम हो।
उड़द की दाल, दही आदि का प्रयोग भी रोगी को नहीं करना चाहिए।
मूंगफली व केले जैसे फलों का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए।
भोजन के बाद एक गिलास छाछ (मट्ठा) का प्रयोग अजीर्ण में विशेष रूप से फायदेमंद है, किन्तु छाछ में से मक्खन पूरी तरह निकाल लिया गया हो, अन्यथा मक्खन पाचकाग्नि को और मंद कर देगा। छाछ में अजवायन, भुना व पिसा जीरा तथा काला नमक डालकर लें। यदि छाछ मिलना संभव न हो, तो भोजन के बाद गर्म पानी पिएं। यह पानी उबालने के बाद इतना ठंडा कर लेना चाहिए कि उसे घूंट-घूंट कर आसानी से पीया जा सके।
आयुर्वेदिक औषधियां
अजवायन का अर्क 15 से 20 मि.ली दिन में दो-तीन बार बराबर की मात्रा में गर्म पानी मिला कर दें। भोजन के बाद कुमारी आसव या रोहितकारिष्ट 15 से 20 मि.ली. तीन बार लें। अजीर्ण के साथ यदि यकृत की कार्यप्रणाली ठीक न हो, तो आरोग्यवर्धनीवटी का प्रयोग ताप्यादिलौह अथवा यकृदारि लौह के साथ कराएं। आंवला चूर्ण, लवण भास्कर चूर्ण, हिंग्वाष्टक चूर्ण या शिवक्षार पाचन चूर्ण भोजन के बाद एक-एक चम्मच गर्म पानी के साथ दें। रात को सोते समय एक चम्मच त्रिफला का चूर्ण लें।
पेटेंट औषधियां
सीरप ओजस (चरक), वज्रकल्क, पाचक पिप्पली (धूतपापेश्वर), पंचारिष्ट (झंडु) या पंचासव (बैद्यनाथ) या जिमनेट सीरप व गोलिया (एमिल), गैसोल गोलियां व सैन. डी. जाइम सीरप (संजीवन) का प्रयोग भी अजीर्ण में लाभदायक है।
कई बार किसी वस्तु विशेष का अधिक मात्रा में सेवन करने से भी अजीर्ण की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। रसोईघर में विद्यमान निम्नलिखित वस्तुओं के प्रयोग से ऐसे अजीर्ण से तुरंत फायदा होता है : अजीर्णकारी द्रव्य अजीर्णनाशक द्रव्य 1. अमरूद काला नमक, काली मिर्च व लौंग पीसकर चुसना। 2. आम 1 ग्राम सोंठ और गुड़ मिलाकर चूसना। 3. इमली गुड़ 4. उड़द की दाल शक्कर या गुड़ में हींग मिलाकर, गोली बनाकर दो घूंट गर्म पानी से लें। 5. केला दो छोटी इलायची चबाकर खाएं। 6. खरबूजा मिसरी अथवा चीनी मिलाकर 7. खीर काली मिर्च 8. गन्ना बेर (4 से 6) 9. घी काली मिर्च व काले नमक वाली चाय 10. चने की दाल सिरका 11. चावल अजवायन या गर्म दूध 12. जामुन नमक 13. तरबूज लौंग व काला नमक 14. दही काला नमक व पिप्पली 15. पनीर गर्म पानी 16. पूरी/कचौड़ी गर्म पानी/चाय (नमक से बनी) 17. बाजरा/मकई छाछ 18. बेर सिरका/गन्ना 19. मटर सोंठ, काली मिर्च 20. मूंगफली गुड़ 21. मूली मूली के पत्ते 22. लड्डू पिप्पली, लौंग 23. शकरकंदी गुड़ 24. नारियल चावल का धोवन 25. अधिक भोजन जमीरी नीबू का रस 26. गेहूं की रोटी ककड़ी
कब्ज
(Constipation)
कारण
फल, हरी सब्जियों, सलाद आदि में विद्यमान रेशा मल त्याग हेतु आंत की प्रेरक गति के लिए आवश्यक है। भोजन में लगातार इनका सर्वथा अभाव या बिल्कुल कम मात्रा, कब्ज का मुख्य कारण है। इसी प्रकार अन्न के चोकर में विद्यमान विटामिन बी भी इस क्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और छिलकारहित अनाज जैसे मैदा, बिना चोकर का पतला आटा, मशीन का पालिश किया हुआ चावल यदि लंबे समय तक भोजन में लिए जाएं, तो कब्ज़ उत्पन्न करते हैं। यकृत से निकलने वाला पाचक पित्त भी आंत की इस क्रिया में सहायक होता है और यकृत का कोई रोग होने पर भी कब्ज हो सकता है। आलस्य, शारीरिक श्रम का अभाव, मोटापा, पीलिया, कमजोरी, मधुमेह, क्षयरोग, बुढ़ापा आदि अन्य ऐसे कारण हैं, जिनसे आंतें निर्बल हो जाती हैं। आंतों की निर्बलता के कारण उनकी क्रियाशीलता और कार्यशीलता प्रभावित होने से कब्ज़ हो सकता है। बराबर अजीर्ण के कारण तथा पेट में गैस अधिक बनने के कारण भी मल का निष्कासन भली-भांति नहीं हो पाता। तंबाकू व अन्य नशीले पदार्थों के सेवन, प्रोस्टेट ग्रंथि में सूजन, आंत में कैंसर या टी.बी. होने से भी कब्ज़ बना रहता है। किसी स्थान का पानी भारी होना भी कब्ज़ का कारण बन सकता है। चिंता, शोक, क्रोध, विक्षुब्धता, उदासी, अवसाद, अप्रसन्नता, तनाव आदि मानसिक कारणों से भी पाचक रसों और आंतों की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है, जो अंतत: कब्ज़ का कारण बनती है। पेट में कीड़े होने के कारण भी कब्ज़ हो सकता है।
लक्षण
मल त्याग कठिनता से होता है, कई बार शौच जाने के बावजूद पेट साफ नहीं होता। पेट में भारीपन बना रहता है, मल चिकनाईयुक्त रहता है, शरीर में स्वाभाविक स्फूर्ति नहीं रहती, पेट में गैस बनी रहती है व भूख में क्रमश: कमी आती है। लंबे समय तक कब्ज़ बने रहने की स्थिति में पेट में दर्द, खट्टी डकारें व पेट में जलन शुरू हो जाती है।
घरेलू चिकित्सा
कब्ज़ की चिकित्सा भी उसके कारण के अनुसार करनी चाहिए :
भोजन और खाने की आदतों में सुधार लाना आवश्यक है। यदि भोजन में फल, हरी सब्जियों, सलाद आदि रेशे युक्त पदार्थों की कमी है, तो इनकी पर्याप्त मात्रा लेनी चाहिए।
मैदा का प्रयोग भोजन में बंद कर चोकरयुक्त आटे की रोटी खाना शुरू करें, मशीन का साफ किया हुआ चावल या पालिश किए हुए अनाज का प्रयोग बंद कर दें।
पानी दूषित या भारी होने की स्थिति में उबाल कर पिएं। गरिष्ठ भोजन का त्याग कर हलका व सुपाच्य भोजन लें।
मरीज को चिंता, शोक, भय, अवसाद आदि मानसिक भावों का त्याग कर प्रसन्नचित रहने की आदत डालनी चाहिए।
सुबह खाली पेट एक सेब छिलके सहित खाएं।
सुबह खाली पेट पपीते की फांक पर काला नमक, काली मिर्च व नीबू डाल कर लें। दोपहर व रात के भोजन में भी पपीते का प्रयोग करें।
नाश्ते में एक चम्मच गुलकंद को एक गिलास संतेरे के रस के साथ लें।
सुबह-शाम नारियल का एक-एक गिलास पा