Shabar Mantra
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Description

Shabar Mantra is the most popular and most accepted Mantra in the world, which is practiced in different languages in different parts of the world. What is Shabar mantra? What is the uniqueness of Shabar Mantras? When did these mantras begin to prevail? You will get the right answers to many such unresolved questions for the first time through this book. Enlightened readers often complain that mantras are not effective even after taking many measures. In this context, the mentality of 'seekers who pronounce' Mantras and about disciple without guru 'has been blocked'. The mantra A'SadhanaA' highlights the importance of various postures. Where posture, place, rosary are important in the success of mantra practice, the importance of initiation is paramount. Mantra initiation with true faith, devotion and perseverance towards the Guru rejuvenates the human body. Through initiation, the 'Sadhana Marg' is paved and illuminated. Lord Shiva is the originator of Shabar mantras. Lord Shankar also performed tough penance being in the guise of Shabar, Kirat and Bhil. His wife Parvati, who wandered in the mountains, also took the guise of Bhilani many times. All the couplets and chaupaias are counted in the Siddha Shabar-mantras, belonging to Lord Shankar's Anshavatar 'Shri Hanuman Ji'. Apart from this, there are many Shabar mantras in the Jain community, in the name of Mahavir Swami, in the Muslim community, in the name of Memdapir. Many such famous and popular mantras have been compiled in this book. Apart from many ancient manuscripts, assistance has also been taken by compiling material from Kalyan's specials and other voluminous books.

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Informations

Publié par
Date de parution 19 juin 2020
Nombre de lectures 0
EAN13 9789352617753
Langue English

Informations légales : prix de location à la page 0,0132€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

शाबर मंत्र
दुर्लभ, दुष्प्राप्य, गोपनीय मंत्रों पर अनमोल जानकारी

 
eISBN: 978-93-5261-775-3
© लेखकाधीन
प्रकाशक: डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि .
X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II
नई दिल्ली-110020
फोन: 011-40712100, 41611861
फैक्स: 011-41611866
ई-मेल: ebooks@dpb.in
वेबसाइट: www.diamondbook.in
संस्करण: 2016
शाबर मंत्र
लेखक : पं. रमेश द्विवेदी
 
 
 
प्राचीन लोकमान्यता के अनुसार 'शबर ऋषि' द्वारा प्रणीत सभी मंत्र 'शाबर मंत्र' कहलाते हैं। शबर ऋषि किस काल में हुए? शाबर मंत्रों का प्रचलन कब (किस काल) से प्रारंभ हुआ यह बताना मुश्किल है।
इन मंत्रों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें संस्कृत के ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। शाबर मंत्र में विनियोग, न्याय, छंद, ऋषि वगैरह नहीं होते। इन मंत्रों में व्यक्ति की इष्ट साधना व गुरु की शक्ति प्रधान होती है। गुरु की कृपा एवं गुरु मुख से ग्रहित किए बिना शाबर मंत्र सिद्ध नहीं होते। शाबर मंत्रों में साधक को स्वयं की साधना भक्ति पर स्वाभिमान विशेष होता है। जिसको साधक गुरु की शक्ति के साथ जोड़ देता है तथा गुरु कृपा का सहारा पग-पग पर लेता है।
पुस्तक के बारे में
शा बर मंत्र विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रचलित व सर्वमान्य मंत्र हैं, जो बोलचाल की विभिन्न भाषाओं में विश्व के प्रत्येक भूभाग में प्रचलित है। शाबर मंत्र क्या है? शाबर मंत्रों की विशेषता क्या है? इन मंत्रों का प्रचलन कब से प्रारंभ हुआ? ऐसे अनेक अनसुलझे प्रश्नों का सही समाधान आपको इस पुस्तक के माध्यम से पहली बार प्राप्त होगा। प्रबुद्ध पाठकों की कई बार शिकायतें आती हैं कि अनेक उपाय करने पर भी मंत्र सिद्ध क्यों नहीं होते? इस प्रसंग में मंत्रचोर साधक व गुरुमार शिष्यों की मनोवृत्ति का पटाक्षेप किया गया है। मंत्र साधना में विभिन्न मुद्राओं के महत्त्व पर सचित्र प्रकाश डाला गया है। मंत्र साधना की सफलता में जहां आसन, स्थान, माला व गणवेश का महत्त्व है, वहां दीक्षा का महत्त्व सर्वोपरि है। गुरु के प्रति सच्ची आस्था, भक्ति व दृढ़ता के साथ मंत्र-दीक्षा ही मनुष्य के शरीर का कायाकल्प करती है। दीक्षा से साधना मार्ग प्रशस्त व प्रकाशित होता है।
शाबर मंत्रों के प्रणेता भगवान् शंकर हैं। शंकर शबर, किरात व भील का वेश धारण करके भी कठोर तपस्या की थी। पर्वतों में विचरण करने वाली उनकी पत्नी पार्वती ने भी अनेक बार भीलनी का वेश धारण किया था। भगवान् शंकर के ही अंशावतार श्री हनुमान जी से संबंधित सभी दोहे-चौपाइयों की गिनती सिद्ध शाबर-मंत्रों में होती है। इसके अलावा जैन सम्प्रदाय में महावीर स्वामी, मुस्लिम सम्प्रदाय में मेमदापीर के नाम से भी कई शाबर मंत्र प्रचलित हैं। इस पुस्तक में ऐसे अनेक प्रसिद्ध व प्रचलित मंत्रों का संकलन किया गया है। अनेक प्राचीन पांडुलिपियों के अलावा कल्याण के विशेषांकों एवं अन्य ग्रंथों से भी सामग्री का संकलन कर सहायता ली गई है।
प्रबुद्ध पाठकों की सुविधा की दृष्टि से प्रस्तुत पुस्तक चार खंडों में विभाजित है। 1. जिज्ञासा खंड 2. कतिपय चुनिन्दे शाबर मंत्र 3. नक्षत्र-कल्प 4. हनुमत्साधना पर विशेष सामग्री। जिज्ञासा खंड में शाबर मंत्रों के संबंध में सभी जानकारियां दी गई हैं। कतिपय चुनिन्दे शाबर मंत्रों में लगभग पचास से अधिक विविध मंत्रों का प्रयोग बतलाया गया है। ‘नक्षत्र कल्प' में वनौषधियों का नक्षत्र से संबंध पर विभिन्न प्रयोग विशेष दृष्टव्य हैं। यह एक प्रकार का तंत्र है। विभिन्न नक्षत्रों के सहयोग से औषधियों के गुणधर्म बदल जाते हैं। प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथों में ‘माधवीय निदान' जैसे ग्रंथों में लिखा है कि अमुक वार, अमुक नक्षत्र के दिन औषध ग्रहण करने से साधारण औषधियां, दिव्य औषधियों में बदल जाती हैं। मंत्र युक्त औषधियों में ही चमत्कार होता है। शाबर मंत्रों के प्रयोग में व्याकरण व भाषा की अशुद्धियों का कोई महत्त्व नहीं, यहां भाव व आत्मबल की प्रधानता रहती है। पुस्तक के चौथे खंड में अजेय योद्धा परम पराक्रमी श्री हनुमान जी की सरलतम उपासना पर विशेष प्रकाश डाला गया है। श्री हनुमत्सहस्रनाम स्तोत्र पहली बार प्रकाशित हो रहा है। यह प्रयोग अनुभूत है। भगवान् श्री राम के द्वारा निर्मित यह प्रयोग गोपनीय भी रहा है, जिसको प्रकट करना अनिवार्य है। अतः प्रकाशक ने इस स्तोत्र को प्रकाशित कर बड़े पुण्य का कार्य किया है।
मंत्र साधना के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए साधना क्षेत्र में सफलता हेतु दिव्य दीक्षा की प्राप्ति के निमित्त अनेक जिज्ञासु सज्जनों के पत्र व टेलीफोन आते हैं कि क्या आपके कार्यालय में मंत्र-साधकों हेतु दीक्षा की व्यवस्था है? गुरु पूर्णिमा पर परम गुरुदेव डॉ. भोजराज द्विवेदी के सान्निध्य में मंत्र-दीक्षाएं दी जाती हैं। अनेक धार्मिक अनुष्ठान भी समय-समय पर आयोजित किए जाते हैं। विशेष अवसरों पर मंत्र-दीक्षा के लिए पाठकों को ‘समर्पण पत्र' भरकर विशेष दीक्षा हेतु प्रार्थना-पत्र भेजने चाहिए। भारतीय दिव्य विद्याओं के प्रचार-प्रसार हेतु हमारा कार्यालय सदैव सजग है। अभिमन्त्रित यंत्र व रत्न, परिमार्जित यंत्र उपलब्ध कराना हमारे कार्यालय की प्रथम प्राथमिकता है, पर उसके लिए उत्कट जिज्ञासा, हृदय की शुद्ध समर्पण भावना अति अनिवार्य है। आप अपने अनुभव भी हमें लिख, मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं। परन्तु मार्गदर्शन हेतु टिकट लगा जवाबी लिफाफा ही आपके कार्य को गति दे पाएगा। धन्यवाद।
दिनांक- 20-4-2006
पं. रमेश द्विवेदी अध्यक्ष श्रीविद्या साधक परिवार 130, ए रोड, मरुदीप अपार्टमेंट सरदारपुरा, जोधपुर (राज.) दूरभाष 0291 2637359 कार्या. 0291-5520513 कार्या. 09314713513 मोबाइल
अनुक्रमणिका पुस्तक के बारे में शाबर मंत्र क्या है? अलौकिक व सर्वाधिक चमत्कारी संसार का पहला शाबर मंत्र मंत्र शक्ति में छिपा रहस्य मंत्र सिद्ध क्यों नहीं होते मंत्र साधना में प्रवेश करने वाले साधक के लक्षण मंत्र साधन की विधि शाबर मंत्र-जाप का क्रमानुसार महत्त्व शाबर प्रयोगों में षटकर्मों का महत्त्व मंत्र साधना में माला का महत्त्व मंत्रों में ओंकार का महत्त्व गायत्री उपासना में प्रयुक्त वैदिक मुद्राएं दिगम्बरी जैन सम्प्रदाय के अनुसार मंत्र-साधना हेतु विभिन्न मुद्राएं मंत्र-शास्त्र में दीक्षा का महत्त्व शाबर मंत्र के कुछ सिद्ध एवं अनुभवगम्य प्रयोग नजर दोष दूर करने के लिए नजर नाशक सिद्ध यंत्र शादी के सिद्ध यन्त्र तंत्राधिकार - रुद्राक्ष कल्प संकट दूर करने के लिए सिद्ध मंत्र श्रीरामकृतं श्रीहनुमत्सहस्रनामस्तोत्रम्
 
शाबर मंत्र क्या है?
प्रा चीन लोकमान्यता के अनुसार ‘शबर ऋषि' द्वारा प्रणीत सभी मंत्र ‘शाबर मंत्र' कहलाते हैं। शबर ऋषि किस काल में हुए? कब हुए? शाबर मंत्रों का प्रचलन कब (किस काल) से प्रारंभ हुआ, यह बताना बहुत मुश्किल है।
ब्राह्मण ग्रंथों में ऐतरेय ब्राह्मण (अ. 7-18 -2) में विश्वामित्र ऋषि के ज्येष्ठ पचास पुत्र उसी के शाप से आंध्र, पुण्डु, शबर, पुलिन्द एवं मूतिब आदि म्लेच्छ कहलाने लगे। ये लोग दक्षिण भारत में पेन्नार नदी के प्रदेश में रहते थे। महाभारत में 95/38 के अनुसार ये लोग पहले क्षत्रिय थे किन्तु बाद में हीन आचारों के कारण म्लेच्छ बन गए। महाभारत युद्ध में ये लोग कौरवों के पक्ष में शामिल थे जहां सात्यकि ने इनका संहार किया।
शबर एक जातिसूचक शब्द भी है। प्राचीन चरित्रकोश पू. 944 के अनुसार शबर जाति ‘दक्षिण पथवरसिन' कहा गया है। जंगल में रहने वाले अनपढ़, अविकसित समाज व भील जाति के लोगों को प्राचीन काल में शबर कहते थे। कथा प्रसिद्ध है शबरी नामक भीलनी के जूठे बेर भगवान् श्रीराम ने खाए थे। लोकमान्यता के अनुसार जंगली इलाकों व ग्रामीण क्षेत्रों में बोलचाल की भाषा में प्रचलित मंत्र ही शाबर मंत्र कहलाते हैं।
यजुर्वेद एवं अथर्ववेद के कई कांड अनेक प्रकार के अभिचार, वशीकरण, मारण, उच्चाटन, आकर्षण, विद्वेषण एवं चमत्कारिक मंत्रों से भरा हुआ है। यद्यपि इन वैदिक मंत्रों की प्रभावोत्पादक शक्ति से इंकार नहीं किया जा सकता तथापि शाबर मंत्रों की भी अपनी एक अलग ही प्रभावोत्पादक शक्ति है, अपना अलग वैशिष्ट्य व चमत्कार है। हमारे केंद्र द्वारा किए गए अन्वेषण व शोध के आधार पर निम्नलिखित तथ्य प्राप्त हुए हैं -
स्कन्दपुराण 3.3.17 के अनुसार कीकट देश में रहने वाला एक शिवभक्त शबर ऋषि के नाम से विख्यात था जो अन्त्यज था। शबर नामक वह ऋषि चिता भस्म की प्राप्ति के लिए स्वयं को दग्ध करने के लिए प्रवृत्त हुआ।
पद्मपुराण में वर्णित एक विष्णु भक्त का नाम शबर था, जो अन्त्यज था तथा तुलसी पत्र के प्रसाद से वह अन्त्यज यमदूतों के पंजे से मुक्त हुआ।
शाबर मंत्रों की विशेषता शाबर-मंत्र संस्कृत निष्ठ नहीं होते। इसमें संस्कृत के ज्ञान की आवश्यकता नहीं। शाबर मंत्रों में व्याकरण शुद्धि नहीं होती। इसमें व्याकरण के ज्ञान की आवश्यकता नहीं। शाबर-मंत्र में विनियोग, न्यास, छन्द, ऋषि वगैरह नहीं होते। शाबर मंत्र बोलचाल की भाषा, ग्रामीण किवां जंगली भाषा में होते हैं। शाबर मंत्र में देह शुद्धि, आंतरिक व बाह्य शुद्धि पर भी विचार नहीं किया जाता। शाबर मंत्र में व्यक्ति की इष्ट साधना व गुरु की शक्ति प्रधान होती है। गुरु की कृपा एवं गुरुमुख से ग्रहित किए बिना शाबर मंत्र सिद्ध नहीं होते। शाबर मंत्र में अपने आराध्य देव अथवा मंत्र में निर्दिष्ट देवता को वांछित कार्य की पूर्ति हेतु नाना प्रकार की सौगंध दिलाई जाती है। शाबर मंत्रों में साधक को स्वयं की साधना, भक्ति पर स्वाभिमान विशेष होता है। जिसको साधक गुरु की शक्ति के साथ जोड़ देता है तथा गुरुकृपा का पद-पद पर सहारा लेता है। वैदिक मंत्र प्राय : स्तुतिपरक होते हैं, अपने इष्टदेव या मंत्रानुसार विशिष्ट देवता की ओर उदृिष्ट होकर साधक अपना अमुक कार्य करने के लिए देवता से अनुनय विनय व प्रार्थना करता है तथा देवता प्रसन्न होकर साधक का कार्य करते हैं जबकि शाबर मंत्र एकदम उलटे होते हैं। शाबर मंत्रों में आराध्य देव को सेवक व नौकर की भांति आज्ञा दी जाती है, इसमें मंत्रज्ञ, साधक देवताओं पर हावी बना हुआ रहता है तथा लक्षित देवता से चुनौतीपूर्ण भाषा में बात करता है यथा उठ रे हनुमान, चौंसठ जोगिनी चलो, अरे नारसिंह वीर, डाकण का नाक काट, भंवरवीर तू चेला मेरा, देखूं रे अजयपाल तेरी शक्ति, देखूं रे भैरव तेरी शक्ति इत्यादि। शाबर मंत्रों के प्रयोग में नक्षत्र-कलाप की प्रधानता देखी गई है। जहां वैदिक व अन्य मंत्रों की भाषा शिष्ट, सभ्य व सुसंस्कृत होती हैं वहीं शाबर-मंत्रों में एक प्रकार की गाली गलौच या भद्दी भाषा का इस्तेमाल होता है तथा साधक अपने आराध्य देव को बड़ी से बड़ी सौगन्ध देता है कि मेरे इस कार्य को हर हाल में करो। एक शिष्ट व सज्जन व्यक्ति अपने पूज्य व आराध्य देव के प्रति ऐसी भावना भी नहीं रख सकता वैसे इन मंत्रों को जानने वाले बेझिझक बोल जाते हैं यथा-उठ रे हनुमान जति, मेरा यह काम नहीं करे तो माता अंजनी का दूध हराम। सति की सेज पर पांव धरे। महादेव की जटा पर घाव करे, मेमदा पीर थी आन। सुलेमान पैगम्बर की दुहाई। पार्वती की चूड़ी चूके, सूलेमान पीर की पूजा पांव ठेली, गुरु गोरखनाथ लाजे वगैरह-वगैरह। शाबर मंत्र हिन्दी भाषा के अलावा बंगाली, गुजराती, आसामी, उर्दू, पंजाबी, नेपाली व अनेक बोलचाल की भाषा में पाए जाते हैं।
* * *

 
अलौकिक व सर्वाधिक चमत्कारी संसार का पहला शाबर मंत्र 1. अ इ उ ण् 2. ऋ लृ क् 3. ए ओ ङ् 4. ऐ औ च् 5. ह य व र ट् 6. ल ण् 7. ञ म ङ ण न म् 8. झ भ ञ् 9. घ ढ ध ष् 10. ज ब ग ड द श् 11. ख फ छ ठ थ च ट त व् 12. क प य् 13. श ष ल र् 14. ह ल्
सृष्टि के आदिकाल में तांडव-नृत्य के समय भगवान् शिवजी ने डमरू बजाया। यह डमरू कुल 14 बार बजा। उनमें से जो शब्दों की ध्वनि निकली वे ‘माहेश्वर-सूत्र' कहलाए। संस्कृत व्याकरण एवं बारहखड़ी का आविष्कार यहीं से हुआ। इसलिए ये सूत्र बड़े महत्त्वपूर्ण हैं।
विद्वानों ने इन सूत्रों को शाबर मंत्र का दर्जा दिया। इसका एक-एक अक्षर एक दिव्य मंत्र का काम कर रहा है। इन सूत्रों को 18 बार बोलते हुए जलधारी से

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