Ram Ki Ayodhya
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Ram Ki Ayodhya , livre ebook

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Description

The book "Ram Ki Ayodhya" is very relevant in today's context. The Supreme Court's decision has put an end to the controversy that was going on for many decades about the birth place of Ramlala, located in Ayodhya. Ayodhya of Shri Ram is a historical city of the Hinduism, which has also been mentioned in ancient literature around the world. Ayodhya is not only a religious significant but historical for, the philosophy of Indian culture, thoughts and the "Bhakti Dhara". This book is also very important on the context because this city creates the foundation of Religion, Salvation, etc. As you know that the first and most respectable ancestor of Shri Ram was Maharaj Manu, from the era of 'Satyug' to 'Tretayug'. The first was Maharaj Manu and Shri Ram was the 65th descendant. Maharaj Manu chose the banks of the river Saryu and did meditation and penance for a long time. He later established a city there and named it Ayodhya. This is the same Ayodhya that became the birth place of Shri Ram. The book truly does and rather gives a logical discussion of the history of various events. Based on the authenticity of the subject, Sudershan Bhatia has made the book very presentable and readable, this is Author's dedication. The book consists and full of diversified content that is very important for the readers. It also shows his passion towards all this. Bhatia ji has done full justice to the subject by describing it in a very easy to understand language . The book "Ram Ki Ayodhya" has become very practical. Also the dispute pertaining to "Ram Mandir" has been abolished by the Supreme Court, which has been going on for many decades. All the credit for this goes to the Prime Minister of the country, who has promised to build grand temple of Ramlala by establishing a 15 member "Ram Mandir Trust". Ram's Ayodhya is the historic city of Hindu religion, which revealed in the ancient literature of the World. Now Ayodhya is going to be developed as a symbol of the faith and culture of Hinduism, and also as a "Tourist" place and religious place to visit Shri Ramlala. Sudershan Bhatia has become a well known name on the basis of continuous writing for the last two decades,. This is also proved by the fact that he has devoted all his time in writing only, post retirement, and has written more than 600 books in 10-15 years, which has become a point of discussion everywhere. The book will help the readers to understand Shri Ram's Ayodhya in full.

Sujets

Informations

Publié par
Date de parution 19 juin 2020
Nombre de lectures 0
EAN13 9789389807875
Langue English

Informations légales : prix de location à la page 0,0156€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

राम
की
अयोध्या

 
eISBN: 978-93-8980-787-5
© लेखकाधीन
प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II
नई दिल्ली- 110020
फोन : 011-40712200
ई-मेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइट : www.diamondbook.in
संस्करण : 2020
Ram Ki Ayodhya
By - Sudershan Bhatia
प्रकाशकीय
राम की अयोध्या हिन्दू धर्म की ऐतिहासिक नगरी है जिसका जिक्र दुनिया भर के प्राचीन साहित्य में भी आया है। अयोध्या न सिर्फ धार्मिक रूप से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि भारतीय संस्कृति दर्शन तत्व, चिंतन एवं भक्ति धारा के लिए ऐतिहासिक है।
यह पुस्तक इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि धर्म, अर्थ, कर्म, मोक्ष, इत्यादि की आधारशिला भी यह नगरी करती है। जैसा कि आप जानते हैं कि सतयुग से त्रेतायुग तक श्री राम के प्रथम पूजनीय पूर्वज थे, महाराज मनु। इस पीढ़ी में प्रथम थे महाराज मनु तथा श्री राम थे 65वें वंशज। महाराजा मनु ने ही सरयु नदी के तट को चुना और वहां पर लम्बे समय तक तप किया। उन्होंने ही बाद में वहां पर एक नगरी बसाई और नाम दिया अयोध्या। यह वही अयोध्या है जो श्री राम की जन्म भूमि बनी।
यह पुस्तक आस्था एवं विश्वास को ही रेखांकित नहीं करती, बल्कि विविध घटनाओं के इतिहास का तार्किक विवेचन भी करती है। विषय की प्रामाणिकता के आधार पर सुदर्शन भाटिया जी ने प्रस्तुत पुस्तक को पठनीय बनाया है, यह लेखक की लगन का परिचायक है। पुस्तक विविध सामग्री से भरी हुई है, जो पाठकों के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। भाटिया जी ने विषय को सहजता से विषय के साथ पूरा न्याय किया है।
पुस्तक ‘राम की अयोध्या’ आज अत्याधिक प्रासंगिक हो गई है। राम मंदिर विवाद जो कई दशकों से चल रहा था, उसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खत्म कर दिया है। इसका सारा श्रेय देश के प्रधानमंत्री जी को जाता है, जिन्होंने पन्द्रह सदस्यीय “राम मंदिर ट्रस्ट” का निर्माण कर रामलला का एक भव्य मन्दिर बनाने का वादा किया है।
हिन्दू धर्म की आस्था और संस्कृति का प्रतीक अयोध्या में श्री रामलला के दर्शन करने के लिए यह एक धार्मिक स्थान और पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। यह पुस्तक राम की अयोध्या को सम्पूर्ण रूप से समझने में पाठकों की मदद करेगी।
नरेन्द्र कुमार वर्मा nk@dpb.in
राम लला के सन्दर्भ में एक रोचक एवं ज्ञानप्रद कृति
गत दो दशकों में अपने तात्कालिक त्वरित लेखन के बल पर श्री सुदर्शन भाटिया एक जाना पहचाना नाम हो गया है। यह इस बात से भी सिद्ध हो जाता है कि इन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद अपना सारा समय लेखन को लगा दिया और दस-पन्द्रह वर्षों में 600 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं, जिनकी यत्र-तत्र सर्वत्र चर्चा हुई है।
प्रस्तुत पुस्तक ‘राम की अयोध्या’ इसलिए भी आज प्रासंगिक है कि भले ही भारतीय संस्कृति को गंगा-यमुनी संस्कृति स्वीकार किया जाता है, परन्तु फिर भी अयोध्या में स्थित रामलला की जन्मभूमि एवं बाबरी मस्जिद को लेकर विभिन्न संगठनों, पक्षकारों में एक लम्बे समय तक विवाद की स्थिति बनी रही है, जिसका चरम सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से संभव दिखाई देने लगा है। अनेक विद्वानों ने समय-समय पर रामलला के जन्म स्थल को लेकर अपने-अपने मत व्यक्त किए हैं। दोनों पक्षों में उदारवादी लोग भी बहुत हैं, जो अब चाहते हैं कि शान्ति एवं सौहार्द से सह-अस्तित्व बना रहे और विवादों को भुला कर अयोध्या में रामलला का भव्य मन्दिर बनने दें और किसी अन्य स्थल पर भव्य मस्जिद भी बन जाए।
यह विषय आस्था एवं विश्वास का भी है, विविध घटनाओं के इतिहास का भी है। विवादास्पद विषय की प्रामाणिक छानबीन के आधार पर सुदर्शन भाटिया जी ने प्रस्तुत पुस्तक का प्रणयन किया है, जो उनकी लगन का परिचायक है। ग्रन्थ सामग्री से सरासर भरा है और पाठकों के लिए एक ही स्थान पर विविधतापूर्ण सामग्री सुनियोजित ढंग से एकत्रित कर दी है। भाटिया किसी भी विषय को सहजता के साथ वर्णित करने में सिद्धहस्त हैं और प्रस्तुत पुस्तक में भी उन्होंने अपने विषय से पूरा न्याय किया है और खोद-खोद कर सामग्री का संचयन किया है। पूरी सामग्री को रोचक तथ्यों से लैस करते हुए सुदर्शन भाटिया ने औपन्यासिक आनन्द के साथ इसे चित्रित किया है। समकालीनता की दृष्टि से भी ग्रन्थ का भरपूर स्वागत होगा, ऐसा विश्वास है। श्रमपूर्वक लिखी गई यह पुस्तक नये कीर्तिमान स्थापित करे, यही कामना है।
5 दिसम्बर
(डॉ. सुशील कुमार फुल्ल) साहित्येतिहासकार एवं कथाकार पुष्पांजलि, राजपुर (फलमपुर) 178067
भूमिका
राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद के लंबित विवाद को सुलझाने में 490 वर्ष का लंबा समय लगा। इसमें राम भक्त हिन्दू तथा बाबरी मस्जिद के पक्षकार निरंतर प्रयासरत रहे कि निर्णय उनके पक्ष में ही आए। दोनों पक्ष सौ प्रतिशत फैसला अपने हक में चाहते थे। कोई भी पक्ष ‘उन्नीस’ होने को तैयार नहीं था। वे अपने-अपने तौर पर ‘इक्कीस’ की उम्मीद लगाए बैठे थे। दोनों पक्षों ने अपने हितों की पैरवी करने की पूरी कोशिशें कीं। कई उतार-चढ़ाव देखे। कभी उम्मीद लगती, फिर यह ना उम्मीदी में बदल जाती। मुगलों नवाबों, अंग्रेजों, मध्यस्थों तथा छोटे-बड़े न्यायालयों तक अपना पक्ष सुरक्षित रखने के हर संभव प्रयास किए जाते रहे, किंतु सर्वमान्य हल नजर नहीं आ रहा था। अंततः देश की शीर्ष अदालत मतलब सुप्रीम कोर्ट ने लगातार 40 दिनों की सुनवाई के बाद जो निर्णय दिया, उस खूबसूरत फैसले की किसी को उम्मीद न थी। तरह-तरह की अटकलें लग रही थीं। सभी को असमंजस से शानदार तरीके से निकालने का काम संविधान पीठ के पांच जजों ने 9 नवम्बर, 2019 को ऐसा किया जिसने सबको प्रसन्न कर दिया। दोनों पक्षों को चिंता मुक्त हो जाने का सुअवसर प्राप्त हो गया। दोनों पक्षकारों की आंखों में चमक देखने को मिली। दोनों फरीक संतुष्ट हो गए। वकीलों ने केस को परिणाम तक पहुंचाने के लिए पुरातन काल के लिखे धार्मिक ग्रंथ, बाद में आने वाले न्यायालयों के निर्णय, विद्वानों के दिखाए मार्गों का खूब अध्ययन किया। इन पर अपनी बुद्धि लगाई और शीर्ष न्यायालय के पांच विद्वान तथा अनुभवी जजों के सम्मुख अपनी टिप्पणियों के साथ रखा कि संविधान पीठ को एक अच्छे, सर्वमान्य तथा ऐतिहासिक निर्णय पर पहुंचने में सुगमता हो गई। निर्णय ऐसा आया कि जिसने सब को अचम्भित कर दिया। किसी को कहीं कोई कमी नजर न आई। यह बात अलग है कि आगे चल कर कुछ ऐसे बिंदु ढूंढ निकाले, जिनके बल पर उन्नीस पुनर्विचार याचिकाएं न्यायालय के सम्मुख पहुंची। उनमें जजों को कोई भी नया तथा मजबूत कारण दिखाई नहीं दिया और उन्होंने सभी की सभी पुनर्विचार याचिकाएं निरस्त कर दीं। उन्हें जब खारिज किया गया, तो भी याचिकाकर्ता वास्तविकता को समझते हुए मौन हो गए। उनमें निराशा भाव तो आया ही नहीं।
इतिहास साक्षी है कि विदेशी लुटेरों ने भारत के सभी धनी नगरों तथा चोटी के मंदिरों पर आतंकवादी गतिविधियों से इतनी लूट-पाट तथा विध्वंस किया कि अनेकानेक राजों-राणों ने एक जुट न होकर, बल्कि अपने-अपने तौर पर उनका सामना किया। कभी नुकसान झेला तो कभी बचाव भी कर पाए। बाद में न्यायालयों के चक्कर काटते हुए राम भक्तों के पांवों में छाले पड़ गए। श्री राम से उत्तम न्याय की आस बंधी रही। और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से उन्हें मनभावन फैसला मिल गया। अब अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण अवश्य हो जाएगा, जो कि हर भारत वासी की प्रार्थना, कामना, इच्छा थी जो पूरी हुई।
श्री राम के प्रथम पूर्वज वैवस्वत मनु, जो मनु महाराज कहलाए। उन्होंने लंबा तप किया। सृष्टि को आगे बढ़ाने के लिए वह सब किया जो फलीभूत भी होता गया। उन्होंने सरयू नदी को अपनी तपस्थली चुना। जहां पर वे सौ वर्षों तक कठोर तप करते जीवन व्यतीत करते रहे। यह तप एकपाटीय था, सफल हुए और उन्हें प्रभु-कृपा से इक्ष्वाकू नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। इस वंश में जो संतानें पैदा होती रहीं उनमें से कुछ नाम ये थे- विकुक्षि, रिपुजय, कुकुत्स्थ, अनेनास तथा पृथु। आदि... आदि।
स्वयं मनु महाराज ने सरयू नदी के आस-पास के रमणीक क्षेत्र को एक सुंदर नगरी का रूप देते हुए बहुमंजिले भवन बनवाएं। स्वयं महाराज के रूप में प्रजा का पालन करते रहे। वही अयोध्या जो बाद में कई बार गिरी तथा पुनः नए-नए ढंग से निर्मित होती रही। अनेक आक्रमण तथा लूटपाट झेली, किंतु हर बार नया रूप लेकर उभरी।
मनु महाराज के एक वंशज हुए हैं, महाराजा अनरण्य। उनकी लंबी वंशावली में यह एक नाम है- जिन्होंने अट्ठाईस सहस्र वर्ष तक सम्मानजनक राज किया था। माना जाता है कि यह महाराजा सतयुग के द्वितीय चरण में बड़े प्रभावशाली शासक थे।
द्वितीय पाद की समाप्ति पर बहुत आगे चलकर महाराज सगर हुए, जिनका नाम बहुत प्रसिद्ध हुआ। सगर सतयुग के तृतीय चरण के मध्य में एक उत्तम प्रजा पालक तथा अत्यंत शूरवीर, सफल राजा हुए। उनके पुत्रों को सागर कहा जाने लगा- जो सभी भगवान शिव के अनन्य भक्त थे।
सतयुग, चौथे चरण में वैष्णव धर्म को मानने वाले मनु-वंशज राजा हुए। वंश विस्तार की लंबी कहानी से बचते हुए बता दें कि महाराज दशरथ 64वें तथा श्री राम 65वें वंशज माने गए हैं।
महाराजा दशरथ तथा श्री राम और इनके कुछ पूर्वज त्रेता युग के शासक थे। महाराज मनु द्वारा सर्वप्रथम निर्मित अयोध्या इस परिवार की राजधानी थी, जिसे राम भक्तों ने बाबरी मस्जिद से मुक्त कराने के लिए एक लंबा संघर्ष किया तथा समय-समय पर अनेक पापड़ बेले। महाराज दशरथ तथा श्री राम आदि को अपने राज गुरु महर्षि वशिष्ठ का जो मार्ग दर्शन मिलता रहा, वह राज-काज तथा प्रजा के सदैव हित में रहा।
आपकी जानकारी के लिए-सतयुग के चारों चरणों में मनु महाराज की 41 पीढ़ियां राज करती रहीं। इसके बाद के राजा त्रेता युग में हुए अर्थात् श्री राम भी त्रेता युग के मर्यादा पुरुषोत्तम थे, जिनकी जन्मस्थली पर लगभग पांच शतक (490 वर्ष) तक बाबरी मस्जिद का अनचाहा कब्जा रहा। इसी को छुड़ाने में राम भक्तों को सैकड़ों वर्षों का लंबा, संघर्षपूर्ण समय लग गया। यह श्री राम कृपा ही है जो उनकी जन्मस्थली उनके भक्तों को सुप्रीम फैसले से प्राप्त हुई और जहां दो-अढ़ाई वर्षों में एक भव्य राम मंदिर निर्मित हो जाने की आस बंधी है। एक ट्रस्ट के माध्यम से यह निर्माण होने वाला है- इसे सुप्रीम कोर्ट का आदेश मानें। लंबा संघर्ष कर, निर्णय तक पहुंचाने वाले भक्तों को नमन।
कोई 490 वर्ष पूर्व तक राम जन्म भूमि के बारे में जरा भी विवाद नहीं था। यह तो तत्कालीन मुगल बादशाह बाबर था, जिसने सुन रखा था कि अयोध्या नगरी पर कई आक्रमण हुए तथा बहुत बार लूटपाट भी होती रही। अयोध्या का जीर्णोद्धार भी होता रहा, वह बादशाह इसे समझ चुका था। उसे यह भी मलूम हो चुका था कि राम भक्तों की, वैष्णव धर्म ही नहीं, सर्व धर्म को मानने वालों की अगाध श्रद्धा है राम मंदिर में, राम जन्म भूमि में तथा उस स्थान में जहां बालक राम अपने अन्य तीन भाइयों भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न के साथ खेला करते। वह इस पवित्र स्थली के भव्य भवन को गिरा कर वहां मस्जिद बनाने के सपने लेने लगा। मकसद था हिंदुओं की पवित्र भावनाओं को ठेस पहुंचाना। वरना अयोध्या जैसी बड़ी नगर में ही सही, वह कुछ दूरी पर मस्जिद बनवा सकता था। ऐसा न कर, वह केवल और केवल राम जन्मभूमि पर ही मस्जिद बनवाने के सपने लेने लगा। यह भी सोचा करता कि उसे कोई क्रूर साथी मिल जाए जो उसकी इस मंशा को पूरा कर दे। तलाश शुरू हो गई ऐसे व्यक्ति की।
बाबर बादशाह को दिल्ली में अपने सिंहासन पर बैठे-बैठे अपने सेनापति मीर बाकी का ध्यान आ गया। उसे तुरंत बुला लिया गया। सारी बात सुन कर मीर ने राम मंदिर गिरा कर, राम जन्म भूमि का नामो निशान मिटा कर बाबरी मस्जिद बना देने की जिम्मेदारी ले ली। वह जानता था कि सरकारी खजाना मंशा पूरी करने में मदद करेगा।
उपलब्ध रिकॉर्ड से पता चला कि बाबर की आज्ञा का पालन करते हुए उसके सेनापति मीर बाकी ने राम जन्म भूमि मंदिर आदि को अपने द्वारा चलवाए गोलों से ध्वस्त कर, पूरे भवन को धराशायी करते हुए हंस-हंस कर आनंद किया। यह दिन था 21 मार्च, 1528 का। स्वयं तो गोले चलाए ही, अपने सैनिकों से तोपों की मदद से राम मंदिर को गिरा कर वहां मस्जिद

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