Hinduon Ke Teej -Tyohar
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Hinduon Ke Teej -Tyohar , livre ebook

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Description

Hinduu jan-maanas kee aavashyakata tatha unakee ruci koo dhyaan meen rakhatee huee is pustak ka prakaashan kiya gaya hai. Pustak meen hinduu dhrm-granthoon kee aadhaar par aavashyakataanusaar praamaanik jaanakaaree dee gaee hai. Vrat, parv eevan tyoohaaroon kee aadhyaatmik paksh koo vaijnaanik tathyoon dvaara yathaasthaan pusht kiya gaya hai. Is pustak kee upaj kaee sampaadakoon, sameekshakoon eevan vidvatjanoon dvaara kiee gaee shoodheen ka eek parinaam hai.Teej tyoohaar bhaarateey sanskrti eevan sabhyata kee dhroohar hain. Dhrm-praan bhaarat meen parv eevan tyoohaaroon kee manaee jaanee ka mukhy uddeeshy hai manushy aur manushy kee beec, manushy aur prakrti kee beec saamannjasy sthaapit karana. Yee maanav man meen navoonmeesh leekar aatee hain, look kee saath paralook sudharanee kee preerana deetee hain. Jeevan koo santulit rakhatee huee khaaleepan koo koosoon duur lee jaatee hain. Yee manushy koo tapoobhuut kar usee shubh kaaryoon kee taraph agrasarit karatee hain. Bhaarateey janamaanas koo samay-samay par eekata kee suutra meen piroonee ka kaary vrat, parv eevan tyoohaar hee karatee hain.Vratoopavaas aatmashoodhn ka eek sarvashreeshth upaay hai, shakti ka uttam sroot hai. Brahmacary, eekaantavaas, maun eevan aatmanireekshan aadi kee vidh sampann karanee ka sarvashreeshth maarg hai. Jeevan kee utthaan aur vikaas kee adbhut shakti, aatmavishvaas aur anushaasan kee bhaavana bhee vastutah paalan see hee aatee hai vrat niyam kee. Veedoon kee mataanusaar vrat aur upavaas kee niyam paalan see shareer koo tapaana hee tap hai. Isasee maanav jeevan sapaphal hoota hai.Pustak kee visheeshata yah hai ki bhaaratavarsh meen saikaroon varshoon see manaee jaanee vaalee tyoohaar jaisee - hoolee, deepaavalee, dashahara, rakshaabandhn, shivaraatri, ganga snaan aadi parvoon ka bhee sacitra varnan hai.(Hindu religious festivities and rituals have been occasions for rejoice since thousands of years as a spiritual process of purification. They are observed for penitence, family & social ceremonies, mourning, sacrifice and union with God. Their conductance nourishes both the physical and spiritual needs of the person. This book explains the reasons, importance and methods behind the celebrations the Hindu community enjoins each year on festivals such as, Holi, Dussehra, Deepawali, Raksha bandhan, Janmashtami, Navratri, Chath Parva, Mahashivaratri, Vasant Panchami, Kartik Purnima, Karva Chauth, Bhaiya Dooj etc. The Arti ritual recited to connect with gods and goddesses such as, Ganesh, Shiva, Ram, Krishna, Saraswati, Parwati, Bajrangbali, etc are included. ) #v&spublishers

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Informations

Publié par
Date de parution 06 février 2016
Nombre de lectures 0
EAN13 9789350576489
Langue English
Poids de l'ouvrage 4 Mo

Informations légales : prix de location à la page 0,0300€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

प्रकाशक

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Ph. No. 23240026, 23240027• फैक्स: 011-23240028
E-mail: info@vspublishers.com Website: https://vspublishers.com
Online Brandstore: https://amazon.in/vspublishers
शाखाः हैदराबाद
5-1-707/1, ब्रिज भवन (सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया लेन के पास)
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Ph. No 040-24737290
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© कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स
ISBN 978-93-505764-8-9
संस्करण 2021
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इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गयी पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या सम्पूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
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उचित मार्गदर्शन के लिए पुस्तक को माता-पिता एवं अभिभावक की निगरानी में पढ़ने की सलाह दी जाती है। इस पुस्तक के खरीददार स्वयं इसमें दिये गये सामग्रियों और जानकारी के उपयोग के लिए सम्पूर्ण जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं।
इस पुस्तक की सम्पूर्ण सामग्री का कॉपीराइट लेखक/प्रकाशक के पास रहेगा। कवर डिजाइन, टेक्स्ट या चित्रों का किसी भी प्रकार का उल्लंघन किसी इकाई द्वारा किसी भी रूप में कानूनी कार्रवाई को आमंत्रित करेगा और इसके परिणामों के लिए जिम्मेदार समझा जायेगा।
 
महान् कथन उपवास से बढ़कर तप नहीं है।
महाभारत, अनुशासन पर्व उपवास करने से चित्त अन्तर्मुख होता है, दृष्टि निर्मल होती है और देह हलकी बनी रहती है।
काका कलेलक/ जीवन सा 25 उपवास सभी रोगों में सुधार की सबसे प्रभावशाली विधि है।
डॉ. एडाल्फ मेयर व्रत में अपार शक्ति होती है, क्योंकि उसके पीछे मनोवैज्ञानिक दृढ़ता होती है। कोई भी व्रत लेना बलवान का काम है, निर्बल का नहीं।
महात्मा गांधी बिना श्रद्धा से किया हुआ शुभ कर्म असत् कहलाता है। वह न तो इस लोक में लाभदायक होता है, न मरने के बाद परलोक में।
श्रीमद्भगवद्गीता 17/28 नेत्र, कोष्ठ, प्रतिश्याय, ज्वर आदि की अवस्थाओं में आहार का पूर्ण परित्याग करने अथवा स्वल्प आहार लेने से आशातीत लाभ मिलता है, दोनों का पाचन हो जाता है।
-चरक संहिता उपवास विजय एवं वासना के विकारों से निवृत्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन है।
-श्रीमद्भगवद्गीता 2/59 कार्तिक मास में जो कोई भी मानव प्रातः काल में सूर्योदय से पूर्व नित्यस्नान किया करता है, वह इतना पुण्य का भागी हो जाता है, जैसा कोई संपूर्ण तीर्थ स्थानों में स्नान करने वाला हुआ करता है।
-पद्म पुराण कार्तिक माहात्म्य/ 11 -हजारों घड़े अमृत से नहलाने पर भी भगवान् श्री हरि को उतनी तृप्ति नहीं होती है, जितनी वे मनुष्यों के तुलसी का एक पत्ता चढ़ाने से प्राप्त करते हैं।
-ब्रम्हावैवर्त पुराण/ प्रकृति खण्ड 21/ 40 कोई अपवित्र हो या पवित्र किसी भी अवस्था में क्यों न हो, जो कमलनयन भगवान् का स्मरण करता है, वह बाहर और भीतर से सर्वथा पवित्र हो जाता है "
-ब्रम्हावैवर्त पुराण/ ब्रम्हाखण्ड 17/ 17
 
हिन्दू पंचांग के अनुसार
विक्रमी संवत् और उनके समानान्तर ईसवी सन् के माह
विक्रमी संवत्
ईसवी सन्
विक्रमी संवत्
ईसवी सन्
1. चैत्र
मार्च/अप्रैल
7. आश्विन/ क्वार
सितंबर-अक्टूबर
2. वैशाख/ बैसाख
अप्रैल-मई
8. कार्तिक
अक्टूबर-नवंबर
3. ज्येष्ठ
मई-जून
9. मार्गशीर्ष/ अगहन
नवंबर-दिसंबर
4. आषाढ़
जून-जुलाई
10. पौष
दिसंबर-जनवरी
5. श्रावण/ सावन
जुलाई-अगस्त
11. माघ
जनवरी-फरवरी
6. भाद्रपद/ भादों
अगस्त-सितंबर
12. फाल्गुन/फागुन
फरवरी-मार्च
कृष्ण पक्ष तथा शुक्ल पक्ष
हिन्दू पंचांग के अनुसार हर माह के 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं। पहले 15 दिन के पक्ष को कृष्णपक्ष तथा दूसरे 15 दिन के पक्ष को शुक्लपक्ष कहते हैं। क्रमानुसार दोनों पक्षों के दिनों को निम्नलिखित नाम दिए गए हैं-
1. प्रतिपदा
: प्रथम दिन
(कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष दोनों का )
2. द्वितीया/ दूज
: दूसरा दिन
(कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष दोनों का )
3. तृतीया/ तीज
: तीसरा दिन
(कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष दोनों का )
4. चतुर्थी/चौथ
: चौथा दिन
(कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष दोनों का )
5. पंचमी
: पांचवां दिन
(कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष दोनों का )
6. षष्ठी/ छठ
: छठा दिन
(कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष दोनों का )
7. सप्तमी
: सातवां दिन
(कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष दोनों का )
8. अष्टमी
: आठवां दिन
(कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष दोनों का )
9. नवमी
: नौवां दिन
(कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष दोनों का )
10. दशमी
: दसवां दिन
(कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष दोनों का )
11. एकादशी/ ग्यारस
: ग्यारहवां दिन
(कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष दोनों का )
12. द्वादशी/ बारस
: बारहवां दिन
(कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष दोनों का )
13. त्रयोदशी/ तेरस
: तेरहवां दिन
(कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष दोनों का )
14. चतुर्दशी/चौदस
: चौदहवां दिन
(कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष दोनों का )
15. अमावस्या/अमावस
: पंद्रहवां दिन
(कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष दोनों का )
16. पूर्णिमा/ पूनम
: पंद्रहवां दिन
(कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष दोनों का )
 
स्वकथन
किसी ने गांधीजी से पूछा - 'हमारे यहां इतने अधिक व्रत, त्योहार मनाए जाते हैं, फिर भी लोग सुखी से क्यों नहीं हैं?' इस पर गांधीजी ने कहा 'लोग व्रत, त्योहार नहीं मनाते, लकीर पीटते हैं। हमारे व्रत और त्योहारों में से अगर कोई एक भी व्रत की अच्छी तरह मना ले, तो उसका जीवन धन्य हो जाए और समाज का भी बेड़ा पार हो जाए। '
इसमें कोई संदेही नहीं कि मनुष्य का भगवान् की ष्टारण लेना, उसके सामने मनौतियां मानकर उसकी पूजा व आराधना करना, व्रत रखना, उनका गुणगान करना और सुनना, इन सबके पीछे उसके जीवन को सुख-दुःख का मिश्रण मानना ही है। चूंकि प्रत्येक व्रत एवं त्योहार का संबंध किसी-न-किसी देवी देवता से अवश्य होता है, इसलिए भक्तों के मनोरथ तभी सफलतापूर्वक पूर्ण होते हैं, जब वे उन्हें विश्वासपूर्वक श्रद्धा-भक्ति के साथ विधि-विधान से संपन्न करते हैं। मात्र दिखावे के लिए किए गए व्रत का असफल होना यही दर्शाता है।
हमारे तत्त्ववेत्ता, ऋषि-महर्षियों ने प्राचीनकाल से व्रत त्योहारों की रचना इसी प्रयोजन के लिए की थी कि समाज को समुन्नत और सुविकसित करने के लिए लोगों में जागृति, सद्भावना, सामूहिकता, ईमानदारी, एकता, कर्त्तव्यनिष्ठा, परमार्थ परायणता, लोकमंगल, देशभक्ति जैसी सत्प्रवृत्तियों का विकास हो और वे सुसंस्कृत, शिष्ट व सुयोग्य नागरिक बन सकें। इस प्रकार देखें तो इनके पीछे समाज निर्माण की एक अति महत्त्वपूर्ण प्रेरक प्रक्रिया शामिल है। भारत और भारतीयों को भी एक सूत्र में बांधने का श्रेय इन्हें ही दिया जाता है।
यूं तो वैदिककाल से ही आत्मिक उन्नति और मानसिक शांति के लिए व्रत का विधान प्रचलित है, ऋषियों ने भी आत्मकल्याण और लोकमंगल के लिए व्रत रखे। व्रत करने से मनुष्य की आत्मा तो शुद्ध होती ही है, आत्मबल भी सुदृढ़ होता है। धार्मिक व्रतों का अनुपालन करने से जहां व्यक्ति अनेक सामान्य रोगों से मुक्त होकर अपने को स्वस्थ महसूस करता है, वहीं मानसिक तनाव से छुटकारा पाकर ईश्वर की प्राप्ति का सहज सुलभ साधन भी पा सकता है।
भारतीय व्रतों व त्योहारों के पीछे अनगिनत रोचक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक कथाएं छिपी हुई हैं, जो हमारी संस्कृति और संस्कारों की अनुपम मिसाल हैं। इन कथाओं को पढ़ने से अचूक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है, जिससे व्रती की मानसिक दशा सुधर जाती है। कथाओं की लोकप्रियता के कारण ही ये लोकजीवन में उत्तरोत्तर प्रसिद्धि प्राप्त कर रही हैं, क्योंकि ये कथाएं व्रतों का सोदाहरण व्याख्यान हैं। इन कथाओं में अत्याचार, अन्याय, अनीति का विरोध करने, पापियों, दुराचारियों को पतित सिद्ध करके उन्हें दंडित करने एवं सामाजिक आचार-विचार की पवित्रता का महत्त्व दर्शाया गया है। दुष्कर्मों का दंड किस प्रकार भुगतना पड़ता है और किस प्रकार सत्कर्मों का लाभ मिलता है, इसकी शिक्षा बखूबी मिलती है। सभी कथाओं का मुख्य भाव यही है कि सबका कल्याण हो। जैसे उनके दिन फिरे (लौटे), उसी तरह सबके फिरें, यही मांगलिक भाव हर कथा में होता है।
भारत के त्योहार देश की एकता और अखंडता के प्रतीक हैं, सभ्यता और संस्कृति के दर्पण हैं, राष्ट्रीय उल्लास, उमंग और उत्साह के प्राण हैं, प्रेम और भाईचारे का संदेश देने वाले हैं। यहां तक कि जीवन के शृंगार हैं। इनमें मनोरंजन और उल्लास स्वतः स्फूर्त होता है। त्योहारों के माध्यम से ही युवा पीढ़ी में सात्विक गुणों का विकास होकर आत्मबल बढ़ता है। कर्त्तव्य - पथ पर बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। दुष्कर्मों को छोड़कर अच्छे कर्म करने की शिक्षा मिलती है।
विविध संस्कृतियों, भाषाओं, भावनाओं वाले हमारे देश में प्राकृतिक एवं भौगोलिक कारणों से हर प्रदेश अपनी-अपनी विशिष्टताओं के लिए विविध मेले, यात्रा, उत्सव आदि का आयोजन आज भी अपनी परंपरागत तरीकों से कर रहे हैं, जो लोगों में उत्साह, उमंग और उल्लास का संचार करते हैं।
निश्चय ही इनके बिना हमारा जीवन नीरस बन सकता है, इसलिए इनको जारी रखना हमारा कर्त्तव्य। अंत में, इस पुस्तक को लिखने के लिए मैंने जिन अनेक ग्रंथों से संदर्भित सामग्री उद्धृत की है, उनके रचयिताओं और प्रकाशकों के प्रति मैं अपना आभार प्रकट करता हूँ।
भोपाल, मध्य प्रदेश –
डॉ. प्रकाशचंद्र गंगराड़े
 
विषय सूची
 
कवर
मुखपृष्ठ
महान् कथन
विषय सूची
व्रत प्रकरण
तीज एवं त्योहार: परंपरा एवं प्राचीनता
बारह महीनों के तीज त्योहार
जेष्ठ मास
गंगा दशहरा
श्रावण मास
नाग पंचमी
रक्षाबंधन पर्व
भाद्रपद मास
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
आश्विन मास
दशहरा/ विजयादशमी
शरद पूर्णिमा
नवरात्र/ दुर्गा पूजन व्रत
कार्तिक मास
करवा चौथ/ करक चतुर्थी
अहोई अष्टमी
धन तेरस
दीपावली/ लक्ष्मी पूजन
अन्नकूट/ गोवर्धन पूजन
भैया दूज/ यम द्वितीया
सूर्य उपासना का महापर्व: छठ पर्व
तुलसी विवाह उत्सव
कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान
माघ मास

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