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Description
Sujets
Informations
Publié par | V & S Publishers |
Date de parution | 01 juin 2015 |
Nombre de lectures | 1 |
EAN13 | 9789350573822 |
Langue | English |
Poids de l'ouvrage | 3 Mo |
Informations légales : prix de location à la page 0,0225€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.
Extrait
प्रकाशक
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© कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स
ISBN 978-93-505738-2-2
DISCLAIMER
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गयी पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या सम्पूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
पुस्तक में प्रदान की गयी सभी सामग्रियों को व्यावसायिक मार्गदर्शन के तहत सरल बनाया गया है। किसी भी प्रकार के उद्धरण या अतिरिक्त जानकारी के स्रोत के रूप में किसी संगठन या वेबसाइट के उल्लेखों का लेखक या प्रकाशक समर्थन नहीं करता है। यह भी संभव है कि पुस्तक के प्रकाशन के दौरान उद्धृत बेवसाइट हटा दी गयी हो। इस पुस्तक में उल्लिखित विशेषज्ञ के राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
पुस्तक में दिये गये विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जायेगा।
उचित मार्गदर्शन के लिए पुस्तक को माता-पिता एवं अभिभावक की निगरानी में पढ़ने की सलाह दी जाती है। इस पुस्तक के खरीददार स्वयं इसमें दिये गये सामग्रियों और जानकारी के उपयोग के लिए सम्पूर्ण जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं। इस पुस्तक की सम्पूर्ण सामग्री का कॉपीराइट लेखक / प्रकाशक के पास रहेगा। कवर डिजाइन, टेक्स्ट या चित्रों का किसी भी प्रकार का उल्लंघन किसी इकाई द्वारा किसी भी रूप में कानूनी कार्रवाई को आमंत्रित करेगा और इसके परिणामों के लिए जिम्मेदार समझा जायेगा।
मुद्रक : परम ऑफसेटर्स, ओखला, नयी दिल्ली- 110020
विषय-सूची
कवर
मुखपृष्ठ
प्रकाशक
तांत्रिक सिद्धियां
मन की बात
पत्नी के नाम डॉ. श्रीमाली के पत्र
डॉ. श्रीमाली का पत्र ऋतु के नाम
पत्र - डॉ. श्रीमाली के नाम
साधनाएं और सिद्धियां
बगलामुखी साधना
तारा साधना
कर्ण पिशाचिनी साधना
अष्ट लक्ष्मी साधना
सम्मोहन साधना
अघोर गौरी - साधना
काल ज्ञान मंत्र
अनंग साधना
दत्तात्रेय साधना
तांत्रिक सिद्धियां
लब्ध प्रतिष्ठित तांत्रिक सम्राट डॉ. नारायणदत्त श्रीमाली के जीवन के महान् अनुभव, सिद्धियां और साधनाएं
क्या तांत्रिक सिद्धियां मानव कल्याण के निमित्त उपयोग में लाई जा सकती हैं? जब मंत्र मनुष्य जीवन को सुखी, समृद्ध और उज्ज्वल बना सकते हैं... जब यंत्र व्यक्ति को स्वस्थ, सुंदर, चिंता रहित और खुसहाल बना सकत हैं... तो निश्चय ही तंत्र भी काल की ऐसी ही देन हैं, जो कल्याणकारी और इस पुस्तक में अपने समय के युगपुरुष ने इन तथ्यों को पुरी तरह उद्घाटित कर दिया है
मन की बात
बात प्रारंभ करता हूं, कामाख्या के तांत्रिक सम्मेलन से। इस सम्मेलन की काफी कुछ चर्चा हम लोगों के बीच थी; विशेषकर जो तंत्र में विश्वास रखते थे या तांत्रिक क्रियाएं जानते थे, उनके लिए यह एक अभूतपूर्व अवसर था। जबकि तंत्र की आराध्य कामाख्या स्थान पर तांत्रिक सम्मेलन होने जा रहा था। यद्यपि इसकी चर्चा पत्-पत्रिकाओं में नहीं थी, परंतु तंत्र के जानने वालों के लिए यह सूचना अनुकूल थी और इसमें भारत के ही नहीं, कुछ विदेशों के भी तांत्रिकों के भाग लेने के बारे में समाचार सुनने को मिले थे
यह भी सुना था कि इसमें पूरे भारत से विशिष्ट तांत्रिक भाग ल.गे और उन तांत्रिकों के भाग लेने की भी यह शर्त थी कि इसमें केवल वे ही तांत्रिक भाग ले सकते हैं जो कि दस महाविद्याओं में से कोई एक महाविद्या सिद्ध की हो। तंत्र के क्षेत्र में यह काफी ऊंचे स्तर की बात होती है। यह शर्त इसलिए रख दी थी, जिससे कि विशिष्ट तांत्रिक ही भाग ले सक, सामान्य तांत्रिकों से प्रांगण भर जाए और व्यर्थ में ही समय बीत जाए, आयोजक ऐसा नहीं चाहते थे।
यह आयोजन न तो राजनीतिक स्तर पर था और न सामाजिक स्तर पर। इसके पीछे न किसी सेठ साहूकार का धन था और न कौतूहल आदि। इसका एकमात्र उद्देश्य यही था कि बदलते हुए परिवेश में तांत्रिकों से समाज को क्या योगदान हो सकता है, और समाज उनसे किस प्रकार से लाभ उठा सकता है?
इसके अलावा यह भी ज्ञात करना था कि वास्तव में उच्चकोटि के कितने तांत्रिक हैं। इसके लिए उन माध्यमों को चुना था, जिनका संपर्क सुदूर हिमालय स्थित योगियों से और तांत्रिकों से भी था।
यहां जब मैं 'तांत्रिक' शब्द का प्रयोग कर रहा हूं तो इसका तात्पर्य केवल तांत्रिक ही नहीं अपितु मंत्र शास्त्र के जानने वाले व्यक्तियों या विद्वानों से भी है। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि इस सम्मेलन में उच्च कोटि के मंत्र शास्त्री और तंत्र शास्त्रियों को बुलाना था और परस्पर विचार-विमर्श करना था।
साल भर से इसके बारे में चर्चा चल रही थी और हम सब लोग इसमें भाग लेने के लिए उत्सुक थे। अधीरता से उस तारीख की प्रतीक्षा कर रहे थे, जब यह तांत्रिक सम्मेलन होना था। कुल 10 दिन का यह सम्मेलन था और उन सभी तांत्रिकों से संपर्क स्थापित किया जा चुका था, जो इस क्षेत्र में विशिष्ट थे या अति विशिष्ट थे। इसके साथ-ही-साथ उन मंत्र शास्त्रियों या मंत्र के जानने वालों और विद्वानों को भी बुलाया था, जिन्होंने उस क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य किया हो, मंत्रों के माध्यम से जो कुछ भी करने में समर्थ हों।
उन सभी योगियों और साधकों से संपर्क किया जा चुका था, जिन्होंने अपने जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा उस विशिष्ट साधना में बिताया हो, और यह प्रसन्नता की बात थी कि भारत के अति विशिष्ट मंत्र - मर्मज्ञों और तांत्रिकों ने भाग लेने की स्वीकृति दी थी। इनमें पगला बाबा, स्वामी चैतन्य मूर्ति, कृपालु स्वामी, बाबा भैरवनाथ, स्वामी प्रेत बाबा, अघोरी गिरजानंद, अघोरी खर्परानंद भारती, त्रिजटा अघोरी, आदि कई ऐसी विशिष्ट विभूतियां थीं, जिनके बारे में लाखों करोड़ों बार सुना था, इनके साथ आश्चर्यजनक कहानियां जुड़ी हुई थीं, जो विशिष्ट सिद्धियों के स्वामी थे। इस प्रकार के तांत्रिकों, मांत्रिकों और अघोरियों का सम्मेलन एक स्थान पर हो, यह हम जैसों के लिए आश्चर्यजनक था।
इस सम्मेलन में निर्णय यही था कि इसमें वाम मार्गी और दक्षिण मार्गी साधना से संपन्न साधक एक स्थान पर एकत्र हों और अपनी सिद्धियों का प्रदर्शन करें। सिद्धियों को प्राप्त करने में जो बाधाएं आ रही हैं, उनका निराकरण किस प्रकार से हो तथा इन साधनाओं और सिद्धियों का लाभ जनमानस को किस प्रकार से मिल सके, इसका निर्णय और विचार इस सम्मेलन में होना था।
इसके अलावा पिछले पांच हजार वर्षों में यह पहला अवसर था, जबकि इस प्रकार के अति विशिष्ट योगी, साधक, तांत्रिक और मांत्रिक एक स्थान पर एकत्रित हुए। इसके लिए कुछ विशिष्ट योगियों ने जो प्रयत्न किया था, वह वास्तव में ही सराहनीय था, और उनके ही प्रयत्नों से यह असंभव कार्य संभव हो सका था। उनके प्रयत्नों से ही सुदूर हिमालय स्थित साधकों से संपर्क हो सका था और उनको उस सम्मेलन में भाग लेने के लिए तैयार किया जा सका था।
प्रयत्न यह था कि इस सम्मेलन की चर्चा ज्यादा न हो, क्योंकि इससे पूरे भारत से लोग दर्शनों के लिए या मिलने के लिए एकत्र हो जाते और इससे अव्यवस्था-सी उत्पन्न हो जाती; फलस्वरूप जिस उद्देश्य के लिए यह सम्मेलन बुलाया जा रहा था, वह उद्देश्य ही अपने आप में समाप्त हो जाता। इसके अलावा साधकों ने भी यह शर्त लगा दी थी कि हम जन-साधारण के सामने न तो जाना चाहते हैं और न अपना या अपनी सिद्धियों का प्रदर्शन करना चाहते हैं।
उनकी बात अपने स्थान पर सही भी थी और यह उचित ही था कि जिस उद्देश्य के लिए यह अभूतपूर्व सम्मेलन हो रहा है, उसकी गरिमा बनी रह सके, साथ-ही-साथ इसमें जो महापुरुष या विशिष्ट साधक भाग ले रहे हैं, उनकी प्रतिष्ठा में किसी प्रकार की आंच न आए तथा किसी प्रकार की न्यूनता न रहे।
पिछले बीस वर्षों में मैंने तंत्र के क्षेत्र में घुसने का प्रयत्न किया है और तारा साधना को, जो कि दस महाविद्याओं में से एक है सिद्ध किया है और सफलतापूर्वक प्रयोग भी किया है, इससे मैं अपने आपको कुछ समझने लग गया था। सही कहूं तो अपने आपको बहुत कुछ समझने लग गया था, परंतु इस सम्मेलन में भाग लेने पर ज्ञात हुआ कि मैं कुछ भी नही हूं या यूं कहूं कि भाग लेने वाले साधकों के पास जो सिद्धियां हैं, उनके सामने मैं नगण्य हूं, धूल के कण जितना भी मेरा महत्त्व नहीं है। यदि मैं सैकड़ों वर्षों तक उनके चरणों में बैठकर ज्ञान प्राप्त करूं तब भी उनकी थाह नहीं पाई जा सकती।
इस तारा साधना की कड़ी परीक्षा देने के बाद ही मुझे इस सम्मेलन में भाग लेने की अनुमति मिली थी। मैं सोचता हूं कि पिछले बीस वर्षों में भी मैं जो नहीं जान सका था, वह इस सम्मेलन से जान पाया। यह मेरे पूर्व जन्म और इस जन्म का पुण्य प्रभाव ही था, जिससे कि मैं इस सम्मेलन में भाग लेने का अधिकारी माना गया। यह मेरी पीढ़ी का सौभाग्य है कि इस पीढ़ी में इस प्रकार का अभूतपूर्व सम्मेलन हो सका और हम अपनी आंखों से इस सम्मेलन को देख सके। वह मेरे पुण्यों का उदय था, जिससे कि मैं उन विशिष्ट साधकों को देख सका, जिनके दर्शन ही दुर्लभ हैं। यदि तंत्र और मंत्र इस देश में जीवित हैं तो केवल इस प्रकार के विशिष्ट साधकों के बल पर ही। ये साधक नहीं, मंत्र-तंत्र के जीवंत रूप हैं।
जीवन के प्रारंभ में मैं कानून का विद्यार्थी रहा था और मैंने उच्च श्रेणी में कानून की परीक्षा पास की थी, पर मेरे द्वारा एक बार एक गलत फैसला हो जाने के कारण एक निर्दोष को फांसी की सजा मिल गई। यह मेरी गलती थी। उस गलती से मैं इतना अधिक दुखी रहा कि मैंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया और हमेशा के लिए नौकरी छोड़ दी। इसके बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में मैंने भाग लिया और अपनी पैनी दृष्टि तथा निर्मम लेखनी से मैं शीघ्र ही पत्रकारों के बीच लोकप्रिय हो गया और पत्रकार संघ का अध्यक्ष भी कई वर्षों तक रहा, अंग्रेजों का जमाना होने के कारण मुझ पर उनकी क्रुद्ध दृष्टि शुरू से ही थी, अतः उन्होंने मेरे चारों तरफ घेराबंदी प्रारंभ की। इस घेरा बंदी में मैं जकड़ा जाऊं, इससे पहले ही मैंने संसार छोड़ दिया, शादी मैंने की नहीं थी, इसलिए घर - बार की चिन्ता थी नहीं। निश्चय यही कर लिया था कि आगे का पूरा जीवन साधना में ही व्यतीत करना है और अज्ञात रहस्यों की खोज में जीवन बिता देना है।
प्रारंभ से ही मैं तार्किक बुद्धि का रहा हूं, सहज ही मैं किसी से प्रभावित होता नहीं, बातचीत में मेरी पत्रकारिता तुरंत सामने आ जाती है और जिस व्यक्ति से बातचीत करता हूं, अपने पैने प्रश्नों से उसके व्यक्तित्व की चीरफाड़ इस प्रकार से कर लेता हूं कि वह सहज ही मेरे सामने नंगा हो जाता है, भीतर में जो नकलीपन होता है सामने आ जाता है और इस प्रकार मैं उसके व्यक्तित्व से प्रभावित होने की अपेक्षा वह मेरे व्यक्तित्व से प्रभावित हो जाता है।
साधु जीवन धारण करने के बाद मैंने इस आदत के कारण