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Description
Sujets
Informations
Publié par | V & S Publishers |
Date de parution | 01 juin 2015 |
Nombre de lectures | 0 |
EAN13 | 9789350573624 |
Langue | Hindi |
Informations légales : prix de location à la page 0,0300€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.
Extrait
खुशी के
7 कदम
डॉ. पवित्र कुमार शर्मा
प्रकाशक
F-2/16, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-110002
23240026, 23240027 • फैक्स: 011-23240028
E-mail: info@vspublishers.com • Website: www.vspublishers.com
क्षेत्रीय कार्यालय : हैदराबाद
5-1-707/1, ब्रिज भवन (सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया लेन के पास)
बैंक स्ट्रीट, कोटि, हैदराबाद-500015
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E-mail: vspublishershyd@gmail.com
शाखा : मुम्बई
जयवंत इंडस्ट्रियल इस्टेट, 1st फ्लोर, 108-तारदेव रोड
अपोजिट सोबो सेन्ट्रल मुम्बई 400034
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© कॉपीराइट:
ISBN 978-93-505736-2-4
डिस्क्लिमर
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गई पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या संपूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
पुस्तक में प्रदान की गई सभी सामग्रियों को व्यावसायिक मार्गदर्शन के तहत सरल बनाया गया है। किसी भी प्रकार के उदाहरण या अतिरिक्त जानकारी के स्रोतों के रूप में किसी संगठन या वेबसाइट के उल्लेखों का लेखक प्रकाशक समर्थन नहीं करता है। यह भी संभव है कि पुस्तक के प्रकाशन के दौरान उद्धत वेबसाइट हटा दी गई हो।
इस पुस्तक में उल्लीखित विशेषज्ञ की राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटाकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
पुस्तक में दिए गए विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जाएगा।
मुद्रक: परम ऑफसेटर्स, ओखला, नई दिल्ली-110020
विषय-सूची
पहला कदम: खुशी को मिलकर बाँटिए
खुशी के स्रोत अथवा साधन
खुशी के प्रकार
खुशी: सबकी साझी
दुःख बाँटने से कम होता है: खुशी बढ़ती है
दूसरा कदम: ईर्ष्या न करें ।
कर्मफल के सिद्धान्त से ‘‘क्यों? क्या?’’ के चक्रव्यूह से मुक्ति
ईर्ष्या से हानियाँ
ईर्ष्या: एक स्त्री-संस्कार
ईर्ष्या से अपनी रक्षा कैसे करें?
ईर्ष्या को जड़ से समाप्त कैसे करें?
तीसरा कदम: सबको आदर: सबसे स्नेह
बड़ों को आदर दें
आदर देने से ही आदर और खुशी मिलती है
आदर भावना से लेकर खुशी तक की प्रक्रिया
स्नेह का चमत्कार
स्नेह: एक चुम्बक
स्नेह: सच्ची खुशी का स्रोत
स्नेह का अभाव: सारे अपराघों का मूल
स्नेहाभाव की पूर्ति करें: खुशहाल जीवन जियें
प्यार से ही उन्नति और सुख के रास्ते खुलते हैं
खुशी की लहरें (प्रकम्पन) पैदा कीजिए
आदर-सत्कार-विमर्श
सद्गुणों से स्नेह: सत्कर्मों से आदर-सम्मान की प्राप्ति
भगवान को भी आदर दें
चौथा कदम: आध्यात्मिकता में रुचि
सच्ची खुशी: (आत्मिक आध्यात्मिक) खुशी
आध्यात्मिकता के मायने
शरीर सिर्फ मुखौटा या बाहरी आवरण है: आत्मा ही सच्ची खुशी का आधार
आध्यात्मिक ज्ञान केवल साधु-संन्यासियों का विषय नहीं, जन-सामान्य का भी विषय
आध्यात्मिकता में रुचि रखने की उम्र
ईश्वर का आध्यात्मिक स्नेह
जहाँ आध्यात्मिकता: वहीं उन्नति
आध्यात्मिकता में रुचि जगाने के उपाय
सच्चा आध्यात्मिक व्यक्ति कौन?
पाँचवा कदम: स्वाध्याय में रुचि
पुस्तकें हमारी सच्ची दोस्त
पुस्तकें: एक मार्ग-प्रदर्शक या गुरु
स्वाध्याय के साथ-साथ चिन्तन करना भी जरूरी
पुस्तक से लाभ कैसे लें ?
खुशी प्रदान करने वाली पुस्तकें पढ़िए
पुस्तकालय से जुड़िए
पुस्तकालय जीते-जागते मन्दिर
स्वाध्याय में आलस्य न करें
स्वाध्याय से जीवन की उन्नति
पुस्तक से चरित्र का निर्माण
स्वाध्याय में मगन रहिए
पुस्तकीय ज्ञान और व्यवहार
स्वाध्याय का आध्यात्मिक सन्दर्भ
छठा कदम: मन का सामंजस्य
सामंजस्य से ही सारी समस्याओं का समाधाान
स्वभाव-संस्कारों का टकराव उचित नहीं
कुण्ठा और निराशा कैसी ?
खुशियों के रास्ते की प्रमुख रुकावटें
मन का सामंजस्य: जीवन की उन्नति
सामंजस्यपूर्ण जीवन: खुशहाल जीवन
सातवाँ कदम: सहनशीलता
सहन करने वाला ही सहनशाह (शहंशाह) अथवा सम्राट
सबसे बड़ी सहनशील हस्ती: ईश्वर या परमपिता परमात्मा
सहनशीलता कैसे आयेगी ?
सहनशीलता कायम रखने के विभिन्न उपाय
सहनशीलता से पत्थर भी देवतुल्य
सहनशीलता: महापुरुषों का लक्षण
सागर की तरह सहनशील, गम्भीर और महान बनें
वृक्ष की सहनशीलता और महानता
प्रतिपल अपनी मुस्कान बिखेरिये
खुशी के हर कदम पर गौर करें
पहला कदम: खुशी को मिलकर बाँटिए
खुशी, प्रेम, दया और मन की शान्ति- ये सभी मानव को ईश्वर की ओर से मिले हुए अनमोल उपहार हैं। संसार का प्रत्येक आदमी अपनी जिन्दगी में मन की प्रसन्नता चाहता है, जिन्दगी भर खुश रहना चाहता है, लेकिन मन की सच्ची खुशी पाने के लिए प्रयास भला कितने लोग कर पाते हैं?
खुशी कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसे बाजार में पैसा देकर खरीदा जा सके। बाजार से आप विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ खरीद सकते हैं, खुशी नहीं। यह बात दूसरी है कि उनमें से कुछ वस्तुएँ आपको मन की खुशी दिलाती हैं, लेकिन अमीरी में पले हुए व्यक्तियों के साथ या सुविधासम्पन्न लोगों के साथ ऐसा नहीं होता। उनको बाजार की बनावटी चीजों, भौतिक साधनों या महँगे उपहार-खिलौनों के जरिये नहीं बहलाया जा सकता।
खुशी के स्रोत अथवा साधन
खुशी किन-किन चीजों या साधनों से प्राप्त की जा सकती है, आइए इस पर जरा विचार करते हैं.
छोटे बच्चों का मन-मस्तिष्क पूर्णतः परिपक्व नहीं हो पाता है, इसलिए वे खेल-खिलौने जैसे भौतिक साधनों या कृत्रिम उपकरणों से जीवन की खुशी प्राप्त करते हैं। चूँकि पढ़ाई के बजाय खेल में तन और मन की अधिक स्वतन्त्रता रहती है, उसमें मस्तिष्क और बुद्धि की निर्णयशक्ति की भी स्वतन्त्रता रहती है, इसलिए बच्चे पढ़ाई-लिखाई की अपेक्षा खेलना-कूदना ज्यादा पसन्द करते हैं। बच्चों की भोली मानसिकता को रंग-बिरंगे खिलौने प्रसन्नता प्रदान करते हैं।
बच्चों के अलावा संसार के अधिकांश बड़ी आयु के स्त्री-पुरुषों के मन की खुशी का आधार कृत्रिम उपकरण या भौतिक साधन ही होते हैं। बँगला, मोटरकार, टेलीविजन, कम्प्यूटर, फ्रिज, ए.सी., उत्तम प्रकार का स्वादिष्ट भोजन तथा सुख-सुविधाओं की अन्य अनेक वस्तुएँ भला किसे अच्छी नहीं लगतीं और कौन इन सबको नहीं चाहता ? लेकिन दुनिया में सभी को ऐसी मानवनिर्मित वस्तुएँ भला कहाँ उपलब्ध हो पाती हैं ? हमारे देश में तो लाखों लोग आज भी ऐसे हैं, जिन्हें इस तरह की सुविधाजनक वस्तुओं को प्राप्त करने की बात तो छोड़िये, दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं हो पाता है। उनके लिए तो भरपेट भोजन ही सुख और खुशी का सबसे बड़ा साधन है।
धन-सम्पत्ति से मिलने वाली खुशी भी उन्हीं के पास होती है, जिनके पास पर्याप्त धन होता है। जब आदमी की जेब में धन होता है, तो उसे एक तरह का सन्तोष और मानसिक आनन्द अन्दर ही अन्दर प्राप्त होता रहता है, जब तक कि धन खर्च या समाप्त नहीं हो जाता। चुँकि धन से ही खाने-पीने की, पहनने-ओढ़ने की, दैनिक उपयोग की विभिन्न वस्तुएँ खरीदी जाती हैं, इसलिए जब इन सब चीजों को खरीदने में व्यक्ति की जेब का पैसा खर्च हो जाता है, तो उसे चिन्ता होने लगती है। धन पास में होने से उसके मन को जितनी खुशी और तसल्ली मिलती थी, उनकी ही चिन्ता, उतना ही असन्तोष उसे धन खत्म होने पर सताने लगता है।
यह बात ठीक है कि रुपया-पैसा मनुष्य के हाथ की मैल है और आदमी ही रुपये को जन्म देता या कमाता है। लेकिन धन या लक्ष्मी का स्वभाव चंचल अथवा अस्थिर प्रकार का होता है। वह कभी किसी एक व्यक्ति के पास टिककर नहीं रहती। जब आदमी के पास धन या रुपया-पैसा होता है, तो उसका मन करता है कि विभिन्न प्रकार की वस्तुओं में धन को खर्च किया जाये। सुखपूर्वक या आराम से जीने के लिए आदमी अपने ऊपर तथा अपने घर वालों पर रुपया खर्च भी करता है।
विभिन्न वस्तुओं की खरीद-फरोख्त में धन खर्च करने के बाद भी आदमी के मन की कई इच्छाएँ अधूरी रह जाती हैं। दुनिया में किसी के पास भी इतना रुपया-पैसा या धन नहीं है, जिससे वह अपने मन की सारी इच्छाओं या जरूरतों को पूरा कर सके। दुनिया की लाखों प्रकार की भौतिक वस्तुओं की तरह मनुष्य की इच्छाएँ भी अनन्त हैं। एक ही समय पर आदमी अपने मन की सारी इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर पाता। आदमी की जो इच्छाएँ अधूरी रह जाती हैं, वे उसके मन को दुःख या कष्ट पहुँचाती हैं।
भौतिक जगत में मनुष्य धन के जरिये ही अपनी इच्छाओं की पूर्ति करता है लेकिन धन को पाने और खर्च करने की एक सीमा होती है। धन का वितरण सब लोगों में एक समान नहीं होता। भारत के अधिकांश लोग गरीबी के माहौल में पलते हैं। जी-तोड़ परिश्रम या मेहनत-मजदूरी करने के बाद भी वे ज्यादा रुपया-पैसा अथवा साधन नहीं कमा पाते। उनकी स्वयं की तथा उनके बीबी-बच्चों की कई इच्छाएँ अपूर्ण रह जाती हैं। अपनी जरूरतों को धनाभाव के कारण पूरा करने में वे असमर्थ होते हैं।
इस अध्याय में खुशी को बढ़ाने वाले उपायों पर चर्चा की गयी है। अपने मन की खुशी बढ़ाने का सबसे अच्छा साधन यह है कि आप अपनी खुशी को सबके साथ बाँटकर चलें। अगर आप अन्य किसी के साथ अपनी खुशी न बाँट सकें, तो कम से कम अपने घर-परिवार के लोगों के साथ खुशी को जरूर बाँटें।
घर-परिवार की खुशीयाँ मनुष्य के जीवन की सबसे नजदीकी खुशियाँ हुआ करती हैं। आदमी जिस माहौल के अन्दर रहता है, उसे ‘घर’ या ‘परिवार’ कहते हैं। परिवार में उसके माता-पिता, भाई-बहन और बीबी-बच्चे आदि सभी होते हैं। खुशियों का पूरा एक समूह होता है घर के अन्दर। जब व्यक्ति किसी बात को लेकर परेशान, निराश या चिन्तित होता है, तो परिवार में रहने वाले लोग उसकी चिन्ता या परेशानी से दुःखी होकर उसकी परेशानी को दूर करने का प्रयत्न करते हैं। जो लोग अपने घर के लोगों से मिलकर चलते हैं और परिवार वालों की सलाह से काम करते हैं, वे अपनी जिन्दगी में प्रायः कम ही समस्याओं से घिरे हुए पाये जाते हैं। अगर उनके पास कोई समस्या या परेशानी आ भी जाती है, तो उनके घर-परिवार के लोग मिलकर उनकी समस्या या मुसीबत को हल करने का प्रयास करते हैं।
परिवार में यह जरूरी नहीं है कि सभी को बड़ी-बड़ी, खुशियाँ ही प्राप्त हों। परिवार की छोटी-छोटी खुशियाँ ही कभी-कभी आदमी को बहुत बड़ी खुशी दिला देती हैं, लेकिन हमें अपने परिवार की छोटी-छोटी खुशियों को प्रकट करने का तरीका आना चाहिए। घर में यदि कोई बच्चा अपनी परीक्षा में अच्छे अंक ले आता है या किसी प्रतियोगिता में प्रथम आकर पुरस्कार प्राप्त करता है, तो घर के सभी सदस्यों को बहुत प्रसन्न होना चाहिए। भले ही उस बच्चे के जीवन की खुशी का आपके जीवन से कोई गहरा सम्बन्ध न हो, लेकिन घर में अगर हम किसी एक व्यक्ति के मन की खुशी को बढ़ाने में सफल हो जाते हैं, तो इससे सारे घर के अन्दर खुशी के प्रकम्पन या बायब्रेशन फैलते देर नहीं लगती। अगर आप अपने घर के बच्चों की छोटी-छोटी खुशियों को, उनकी इच्छा या अभिलाषाओं को नजरअन्दाज कर देंगे, तो आपकी खुशी के मौके पर तथा आपकी हार्दिक अभिलाषा के प्रकट होने पर आपको भी बच्चों से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पायेगा।
घर में जब कोई नया बच्चा पैदा होता है, तो घर में खुशी आती है। जब किसी बालक का जन्मदिन मनाया जाता है, तो परिवार में खुशी आती है। जब घर में किसी की शादी या विवाह होता है, तो भी घर खुशियों से झूम उठता है। इस तरह के अवसरों पर परिवार के सभी लोगों की खुशियों में वृद्धि होती है।
अपने घर-परिवार की खुशियों को हमें साथ-साथ मिलकर मनाना चाहिए। परिवार में किसी एक व्यक्ति की खुशी केवल उसके अपने जीवन की खुशी नहीं होती, बल्कि सभी की साझी खुशी होती है। इसी प्रकार अगर हम अपनी खुशी को सिर्फ अपना मानकर चलते हैं, तो यह हमारी भूल है। उस खुशी से हमारे