DHAIRYA EVAM SAHENSHILTA
127 pages
Hindi

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DHAIRYA EVAM SAHENSHILTA , livre ebook

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Description

Patience and Tolerance are the compass devices that show the correct way of progress. To find success and to become someone in life, by facing the oncoming problems with focus and determination of solving them, take help of this book and guide yourself to your utmost goal.


Sujets

Informations

Publié par
Date de parution 19 octobre 2011
Nombre de lectures 0
EAN13 9789352150632
Langue Hindi

Informations légales : prix de location à la page 0,0500€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

धैर्य एवं सहनशीलता

आज आदमी को ऐसी दुनिया के बीच रहना पड़ रहा है, जहां चौतरफा जटिल परिस्थितियां हैं, धैर्य पलायन कर गया है, बदहवासी और जल्दबजी का आलम है। उपभोक्ता संस्कृति, प्रतिस्पर्धा, आपाधापी और स्वार्थी भावनाएं चैन से जीने नही देतीं। इसके चलते परस्पर होड़ छिड़ गई है। हर कोई हर किसी को पीछे धकेल कर आगे बढ़ना चाहता है, ताकि जीवन में उन्नति करके सफल व्यक्ति बन सके, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। बौखलाहट, अस्तव्यस्तता, दिमागी खलल और तरह-तरह की रुकावटें उसके लिए सहज-सरल रास्ता नहीं बना पातीं। इसका कारण है, व्यक्ति में धैर्य और सहनशीलता का अभाव।
सहनशीलता मनुष्य को दिया हुआ ईश्वर का ऐसा दिव्य वरदान है, जो उसे सफल व्यक्ति ही नहीं, बल्कि आदर्श और इससे भी बढ़कर महान् बनाती है। गंभीर, शांत और सहज व्यक्ति ही हंसते-हंसते हर चोट को सहना जानता है और सहकर उन्नति के शिखर पर पहुंच जाता है।
अनुभवी लेखक पवित्र कुमार शर्मा द्वारा रचित 'धैर्य' एवं सहनशीलता' एक ऐसी पुस्तक है, जिसमें बताए गए 101 उपाय व्यक्ति में शील, संतोष, स्नेह मधुरता, संयम, साहस, विवेक, उदारता, सहिष्णुता, कोमलता और सहजता कूट-कूट भर देते हैं और इस तरह मनुष्य की उन्नति का रास्ता बिलकुल साफ हो जाता है। अत: इस दिव्य वरदान को अपने जीवन में अवश्य आत्मसात करें। आइए, सहनशीलता बनकर सच्चे और यथार्थ सपनों को साकार करें।


 
 
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पवित्र कुमार शर्मा
 
 
 



प्रकाशक

F-2/16, अंसारी रोड, दरियागंज, नयी दिल्ली-110002 23240026, 23240027 • फैक्स: 011-23240028 E-mail: info@vspublishers.com • Website: www.vspublishers.com
क्षेत्रीय कार्यालय : हैदराबाद
5-1-707/1, ब्रिज भवन (सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया लेन के पास)
बैंक स्ट्रीट, कोटि, हैदराबाद-500015
040-24737290
E-mail: vspublishershyd@gmail.com
शाखा : मुम्बई
जयवंत इंडस्ट्रियल इस्टेट, 1st फ्लोर, 108-तारदेव रोड
अपोजिट सोबो सेन्ट्रल मुम्बई 400034
022-23510736
E-mail: vspublishersmum@gmail.com
फ़ॉलो करें:
© कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स ISBN 978-93-814485-6-4
डिस्क्लिमर
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गई पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या संपूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
पुस्तक में प्रदान की गई सभी सामग्रियों को व्यावसायिक मार्गदर्शन के तहत सरल बनाया गया है। किसी भी प्रकार के उदाहरण या अतिरिक्त जानकारी के स्रोतों के रूप में किसी संगठन या वेबसाइट के उल्लेखों का लेखक प्रकाशक समर्थन नहीं करता है। यह भी संभव है कि पुस्तक के प्रकाशन के दौरान उद्धत वेबसाइट हटा दी गई हो।
इस पुस्तक में उल्लीखित विशेषज्ञ की राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटाकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
पुस्तक में दिए गए विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जाएगा।
मुद्रक: परम ऑफसेटर्स, ओखला, नयी दिल्ली-110020


 

जैसी परै सो सहि रहै, कहि रहीम यह देह।
धरती पर ही परत सब, शीत घाम अरु मेह।।
—रहीम
सहनशील होना अच्छी बात है, परन्तु अन्याय का विरोध करना उससे भी उत्तम है।
—जयशक्रंर प्रसाद
मनुष्य कटु उक्तियों को किसी प्रकार सह लेता है, परन्तु जब उसके ग्रंथों और धर्म नेताओं पर आक्रमण होता है, तब उसकी सहनशीलता की प्राय: समाप्ति हो जाती है।
—अयोध्या सिंह उपाध्याय
सहनशीलता स्रर्वोत्तम धर्म है।
—विक्टर ह्यूगो
जिसके पास धैर्य है, वह जो कुछ इच्छा करता है, उसे प्राप्त कर सकता है।
—बेंजामिन फ्रैंकलिन
शोक में, आर्थिक संकट में अथवा प्राणान्तकारी भय उपस्थित होने पर, जो अपनी बुद्धि से दु:ख निवारण के उपाय का विचार करते हुए धैर्य धारण करता है, उसे कष्ट नहीं उठाना पड़ता।
—बाल्मीकि रामायण
धैर्य का फल सदा मीठा होता है।
—रूसो



 
क्रम
1. सहनशीलता: अर्थ की गहराईयाँ
2. सहनशीलता से लाभ
3. अहसनशीलता से हानियाँ
4. सहनशील व्यक्ति ही सबसे महान
5. सहनशीलता से प्रतिकूल परिस्थितियों में विजय
6. समभाव में रहना सीखें
7. अंतर्मुखी सदा सुखी
8. गंभीरता धारण करें
9. आत्मविश्वास अपना कभी न छोड़ें
10. विवेक पूर्वक लें निर्णय
11. स्वयं को देखें, किसी को दोष न दें
12. क्षमाभाव अपनाए
13. शुभ सोचें, शुभबोलें, शुभकर्म करें
14. व्यर्थ बातों के विस्तर में न जाए
15. ईर्ष्यातथा द्वेष भाव से मुक्त रहें
16. सदगुणों को धारण करें
17. हमेशा बड़ों का आदर करना सीखिए
18. रूखे न रहे, रुँठे न रहें, मिलनसार बनें
19. सदैव श्रेष्ठ लक्ष्य रखें
20. सबकी सुनें, करें मन की
21. छोटों को स्नेह तथा सम्मान दें
22. श्रम से तनिक न घबराए
23. विपत्ति में भी प्रसन्न रहमाक्षीखिए
24. आदर्श व्यक्ति का उदाहरण समाने रखें
25. शीघ्रता त्यागें, धैर्य धारण करें
26. अपने कर्म घर एवं ईश्वर पर भरोसा रखना सीखें
27. सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाए
28. मन को सदा प्रसन्न रखें
29. उदार सरल चित्र बनें
30. संतोषी स्वभाव अपनाए
31. ईमानदारी से चलना सीखें
32. सत्यता की शक्ति से आगे बढ़ें
33. सदैव उत्साह युक्त रहें
34. निर्भय रहना सीखें
35. आत्मचिंतन को महत्त्व दें
36. समय की धूप, चोट, कष्ट सहें
37. पराजय से शिक्षा लें, आगे बढ़ें
38. जीवननुभव मजबूत बनाए
39. गौतम बुद्ध की सहनशीलता
40. ईसामसीह की सहनशीलता
41. पैगम्बर मुहम्मद की सहनशीलता
42. महात्मा गाँधी की सहनशीलता
43. भीमराव अम्बेडकर की सहनशीलता
44. दयानंद सरस्वती की सहनशीलता
45. विवेकानंद की सहनशीलता
46. सहनशीलता रामकृष्ण परमंहस की
47. सहनशीलता श्री विष्णु की
48. सदा व्यस्त और मस्त रहिए
49. पराई वस्तु पर आँखें न जमाए
50. उग्ररुप कभी न धारण करें
51. सदा ठण्डे दिमाग एवं शान्ति से काम लें
52. गर्मियों में शीतत पदार्थ का सेवन करें
53. सदा सात्विक आहार करें
54. व्यायाम में रुचि लें
55. सुबह-शग्म टहलने या घूमने जाए
56. अपनी मनन-शक्ति को बढ़ाए
57. ज्ञानवान बनें तथा त्रिकालदर्शी बनकर हर कर्म करें
58. संवेदनशील एवं समझदार बनें
59. सहानुभूतिपूर्ण रखें ह्रदय
60. हर कार्य दृढ़ता के साथ करें
61. शुभ संकल्प लें तथा सही दिशा में सोच
62. सदैव अपने को आशावादी बनाए
63. सदैव निर्माणकारी संकल्प लें
64. स्वार्थ भावना त्यागें, परमार्थ की बात सोचें
65. परोपकार के कार्यों में लगे रहें
66. अनर्थ कर्मों से किसी बददुआ न लें
67. माया के सारे चक्रों से बचें
68. मोह-आसक्ति को मिटाते जाए
69. अपना आत्मबल बढ़ाए
70. योगाभ्यास एवं सतसंग में रुचि लें
71. ईश्वर-चिंतन करें
72. समझें इस संसार-नाटक के रहस्य को
73. स्वयं को निमित्त (ट्रस्टी) समझकर चलें
74. सबको परिधारी मानकर चलें
75. यश-प्राप्ति की अत्यधिक इच्छा न रखें
76. किसी भी बात पर व्यग्र एवं उत्तेजित न हों
77. मानसिक-तनाव से बचें
78. फील करना फेल होने की निशानी
79. हिम्मत के साथ जीवन का सफर तय करें
80. नींव की ईंट से शिक्षा लें
81. पेड़-पौधों से सीखें सहनशीलता का पाठ
82. सहनशील कृषक एवं मजदूर के जीवन का अवलोकन करें
83. जीवननुओं से सहनशीलता का पाठ पढ़े
84. प्राकृतिक सौंदेर्य का अवलोकन करें
85. जल सा भृदुल और नम्र बनाए अपना जीवन
86. चोट सहकर पूज्य बनी पाषाण-प्रतिमा भी
87. बालक समान न रोते रहें
88. किसी को देखकर जलें नहीं
89. सदा सबको आगे बढ़ाना सीखें
90. दर-दर भटकने से बचें
91. क्रोधी व्यक्ति के ऊपर रहमभाव रखिए
92. मनोभावों को पढ़ने से क्या फायदा?
93. अनुचित कर्म कोई भी न करें
94. सादगी से जीवन जीना सीखें
95. कुसंग से बचकर अपना चरित्र उज्जवल बनाए
96. शारीरिक शक्ति का दुरुपयोग मत कीजिए
97. सदा अपने मन को मंदिर मानकर चलें
98. प्रत्येक कर्म निष्ठा एवं लगन के साथ करें
99. जीवनदर्श अपनाकर सिद्धान्तवादी बनें
100. भेड़चाल की तरह न चलें
101. जग के धोखों से स्वयं को बचाए
102. तेल-मालिश से शरीर और मास्तिष्क दुरुस्त रखें
103. अपनी श्रेष्ठ क्षमता, सामर्थ्य या गौरव का स्मरणकर कर पुन: आम्बल प्राप्त करें
104. त्यागवान बनना सीखें
105. परिग्रह एवं लोभवृत्ति से बचें
106. अभिमान से दूर रहें
107. स्वभाव को कोमल एवं हर्षित बनाए
108. व्यवहार एवं स्वभाव में मधुरता अपनाए
109. समय के मुताबिक अपने को मोड़ लें
110. अपनी चैकिंग स्वयं करें।
111. अपनी अंतरात्मा में ज्ञान-प्रकाश फैलाईए
112. साधनों का आसरा छोड़ साधना करना सीखें
113. प्रभु को सोंप दें अपने जीवन की नैया
114. हच्छा-मात्रम-अविधा की स्थिति में रहें
115. आत्माभिमान या स्वाभिमान बनाए रखें
116. शरीर को यंत्र समझकर कार्य करें
117. संसार की समस्त भौतिक वस्तुओं को नश्वर मानकर चलें
118. एकांत के महत्त को समझें एवं एकाग्रता को अपनाए
119. प्रकृति के विविध रूपों से शिक्षा लें
120. अपने सहायक स्वयं बनें
122. संसार में अपने को अकेला ना समझें
123. अपने को कभी अनाथ समझकर कार्य करें
124. संसार की समस्त भौतिक वस्तुओं को नश्वर मानकर चलें
125. एकांत के महत्त्व का समझें एवं एकाग्रता को अपनाए
126. प्रकृति के विविध रूपों से शिक्षा लें
127. अपने सहायक स्वयं बनें
128. संसार में अपने को अकेला न समझें
129. अपने को कभी अनाथ समझकर दु:खी न हों
130. रोग की स्थिति में भी आनंदपूर्वक रहें
131. केवल दु:खी न हों
132. रोग की स्थिति में भी आनंदपूर्व रहें
133. केवल दु:ख हतो परमेश्वर से अपने दर्द कहें
134. शान्तिसागर परमात्मा से मन की शान्ति तथा धीरज प्राप्त करें
135. सप्ताह में एक दिन मौन्व्रत रखें
136. अधिक वाचाल होने से बचें
137. व्यर्थचितंन एवं परदर्शन से मुक्त रहें
138. विकृत कामवासना त्यागे, मन-वचन-कर्म से पवित्र रहें
139. सूर्य चाँद-सितारे तथा पृथ्वी से सीखें सहनशीलता का पाठ
140. सदैव साक्षी भख में रहें तथा हृदय विशाल बनाए

 
 
 

आ ज के दौर में सहनशीलता की मनुष्य को पग-पग पर आवश्यकता पड़ती है। परिस्थितियों की प्रतिकूलता एवं मनुष्यों के कड़े स्वभाव के कारण आज हर आदमी का सहनशील बनना आवश्यक हो गया है।
यदि आप अपने जीवन में सहनशील नहीं रहेंगे, तो परिस्थितियों के आगे हार जाएंगे तथा हर कोई आपको परेशान करने की कोशिश करेगा। मनुष्य की सहनशीलता के ऊपर गंभीर रूप से विचार करने के बाद मैंने ऐसी सौ से भी अधिक युक्तियाँ पाठकों के लिए इस पुस्तक में सुझाई हैं, जिन्हें अपना कर आप सदैव शांत एवं प्रसन्नतापूर्वक जीवन यापन कर सकते हैं।
इस पुस्तक में क्या है; इसे तो आप पढ़कर ही जानेंगे, बहरहाल मैं गुप्ता साहब और उनके मण्डल को इस बात की बधाई देता हूँ

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