CHANAKYA NITI EVAM KAUTILYA ARTHSHASTRA (Hindi)
165 pages
Hindi

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CHANAKYA NITI EVAM KAUTILYA ARTHSHASTRA (Hindi) , livre ebook

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Description

Mahapandit Chanakya ek rachnatmak vicharak the. Veh sarvshreshth arthshastri ke saath-saath mahaan raajneetigya evam katuneetigya the. Veh samraajya vinaashak bhi the tatha samrajya nirmaata bhi the. Unki 3 anupam kritiyan - chanakya neeti, chanakya sutra tatha kautilya arthashastra hain. iss pustak mein inn teeno ki vistrit vyakhya lekhak dwara prastut ki gayi hai. yeh pustak chintak, lekhak, prabandhak, sevak, shasak, prashasak, raajneetigya se lekar samaanya jan sab hi ke liye laabhdaayi tatha upyukt hai.


Sujets

Informations

Publié par
Date de parution 01 juin 2015
Nombre de lectures 0
EAN13 9789350573525
Langue Hindi

Informations légales : prix de location à la page 0,0500€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

चाणक्य से लें प्रशासन-विधि, बनें सफल शासक और करें स्वयं से लेकर सब पर शासन
सर्वश्रेष्ठ अर्थशास्त्री; व्यावहारिक प्रशासनिक गुरु; साम्राज्य विनाशक राष्ट्र-निर्माता नीतिज्ञ और नीति-निर्धारक; कुशल निर्देशक और संचालक व्यूह-भेदक और शत्रु-हन्ता और प्रचण्ड राजनीतिज्ञ; सर्वत्र सफल चाणक्य से श्रेष्ठता और शासन हेतु ज्ञान, विज्ञान, कला और प्रणाली, सीखें।
प्रो.-श्रीकान्त प्रसून



प्रकाशक

F-2/16, अंसारी रोड, दरियागंज, नयी दिल्ली-110002
23240026, 23240027 • फैक्स 011-23240028
E-mail: info@vspublishers.com • Website: www.vspublishers.com

क्षेत्रीय कार्यालय : हैदराबाद
5-1-707/1 ब्रिज भवन (सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया लेन के पास)
बैंक स्ट्रीट, कोटी, हैदराबाद-500 095
040-24737290
E-mail: vspublishershyd@gmail.com

शाखा : मुम्बई
जयवंत इंडस्ट्रियल इस्टेट, 1st फ्लोर, 108-तारदेव रोड
अपोजिट सोबो सेन्ट्रल मुम्बई 400034
022-23510736
E-mail: vspublishersmum@gmail.com

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©कॉपीराइट :
ISBN 978-93-505735-2-5


डिस्क्लिमर
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गई पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या संपूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
पुस्तक में प्रदान की गई सभी सामग्रियों को व्यावसायिक मार्गदर्शन के तहत सरल बनाया गया है। किसी भी प्रकार के उदाहरण या अतिरिक्त जानकारी के स्रोतों के रूप में किसी संगठन या वेबसाइट के उल्लेखों का लेखक प्रकाशक समर्थन नहीं करता है। यह भी संभव है कि पुस्तक के प्रकाशन के दौरान उद्धत वेबसाइट हटा दी गई हो।
इस पुस्तक में उल्लीखित विशेषज्ञ की राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटाकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
पुस्तक में दिए गए विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जाएगा।
मुद्रकः परम ऑफसेटर्स, ओखला, नयी दिल्ली-110020


प्रकाशकीय


हमें अपने पाठकों की सेवा में यह अनमोल कृति ‘चाणक्य’ नीति एवं कौटिल्य अर्थशास्त्र भेंट करते हुए अपार हर्ष एवं गर्व का अनुभव हो रहा है। यह पुस्तक ज्ञान एवं शिक्षा का भण्डार है। इसे पढ़कर पाठक अपने दैनिक जीवन के रूप-रंग को बदल सकते हैं। इस पुस्तक में यथासाध्य आधुनिक व्यवस्था के अनुरूप शब्दों एवं विचारों को प्रस्तुत किया गया है। इसे पढ़कर पाठक आसानी से चाणक्य के पथ-निर्देशित विचारों एवं भावों को हृदयंगम कर सकेंगे।
प्रस्तुत पुस्तक में चाणक्य नीति, चाणक्य सूत्र तथा कौटिल्य अर्थशास्त्र दिया गया है। सभी की विशद व्याख्या सरल हिन्दी में किया गया है। वैसे ‘चाणक्य’ ‘नीति’ भारतीय इतिहास की एक अनमोल धरोहर है। इसमें सत्रह अध्याय हैं। ‘चाणक्य’ नीति, महापण्डित चाणक्य द्वारा उनके विशाल एवं विख्यात ग्रन्थ कौटिल्य अर्थशास्त्र से उन्हीं के द्वारा अलग किये गये सत्रह अध्यायों पर अधारित ग्रन्थ रचना है। जिसे चाणक्य ने अलग से ‘चाणक्य’ नीति नाम दिया।
महापण्डित चाणक्य द्वारा विरचित विश्वविख्यात ग्रन्थ कौटिल्य अर्थशास्त्र है। इस ग्रन्थ में वर्णित राज्य सिद्धान्तों के साथ-साथ राज्य प्रबन्ध सम्बंधी सूक्ष्म तत्त्वों को पिरोया गया है। इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें सिद्धान्त और व्यवहार का, आदर्श और यथार्थ का तथा ज्ञान और क्रिया का सुन्दर समन्वय है।
इस पुस्तक में चाणक्य का जीवन है, उनके जीवन में घटित महत्त्वपूर्ण घटनाएँ हैं। साथ-ही-साथ उनकी उपलब्धियाँ हैं और जीवन को सुखी एवं सम्पन्न बनाने के उनके विचार हैं, उनके बताये गये मार्ग हैं। शासक बनना, शासक बनाना, सत्ता स्थापित करना, उसे सुदृढ़ बनाना, उसकी समुचित व्यवस्था करना और धन की उत्तरोत्तर वृद्धि करना, सब कुछ भरा पड़ा है।
पुस्तक सरल और सुबोध हिन्दी में प्रस्तुत की गयी है कि प्रत्येक जन साधारण इसे पढ़कर लाभान्वित हो सके। आप जितनी अभिरुचि एवं मनोयोग से इसका अध्ययन करेंगे, उतना ही आपको आनन्द तथा ज्ञान में वृद्धि होगी।
-प्रकाशक


समर्पण


‘चाणक्य : प्रशासन-विधि और शासन-कला’
उन लोगों को समर्पित है
जो संकल्प और दृढ़ता से
निरन्तर श्रम और साधना करते हुए
उच्चतम् शिखर पर पहुँचना
और स्थायित्व ग्रहण कर
शिखर पर ही बने रहना चाहते हैं,
और ब्रीज के अपने दो निकटतम
भारतीय प्रशासनिक सेवा के प्रशासकों
श्री अमिताभ वर्मा
और
श्री ए के उपाध्याय को।

-प्रो-श्रीकान्त प्रसून


विषय सूची


भूमिका
चाणक्य की प्रार्थनाएँ
चाणक्य की अमरता
प्रथम खण्ड दृढ़प्रतिज्ञ, व्यक्ति, जीवन चरित्र
प्रशासन गुरु चाणक्य
जीवन, चिन्तन और उपलब्धियाँ
बहुमुखी प्रतिभा-सम्पन्न चाणक्य
चाणक्य की श्रेष्ठता और दृढ़ता
अर्थ और कौटिल्य अर्थशास्त्र
चाणक्य की नारी-चेतना
दूसरा खण्ड सुव्यवस्थित व्यक्ति और समाज, सम्पूर्ण चाणक्य नीति
अध्याय एक
अध्याय दो
अध्याय तीन
अध्याय चार
अध्याय पाँच
अध्याय छः
अध्याय सात
अध्याय आठ
अध्याय नौ
अध्याय दस
अध्याय ग्यारह
अध्याय बारह
अध्याय तेरह
अध्याय चौदह
अध्याय पन्द्रह
अध्याय सोलह
अध्याय सत्रह
तीसरा खण्डस्व, समय, साधन सुव्यवस्थित
चाणक्य-सूत्र
चौथा खण्डव्यवस्था चिन्तन, कौटिल्य अर्थशास्त्र
पहला अधिकरण : विनयाधिकारिक
दूसरा अधिकरण : अध्यक्ष प्रचार
तीसरा अधिकरण : धर्मस्थीय
चौथा अधिकरण : कण्टक शोधन
पाँचवाँ अधिकरण : योग-वृत्त
छठा अधिकरण : मण्डल योनि
सातवाँ अधिकरण : षाड्गुणय
आठवाँ अधिकरण : व्यसनाधिकारिक
नौवाँ अधिकरण : अभियास्यत्कर्म
दसवाँ अधिकरण : सांगग्रामिक
ग्यारहवाँ अधिकरण : संघवृत्त
बारहवाँ अधिकरण : आबलीयस
तेरहवाँ अधिकरण : दुर्ग-लम्भोपाय
चौदहवाँ अधिकरण : औपनिषदिक
पन्द्रहवाँ अधिकरण : तन्त्रयुक्ति
पाँचवाँ खण्डअमरता और निर्वाण शेष कथ्य
चाणक्य की निरन्तर सक्रियता
चाणक्य का प्रयाण और मुक्ति



भूमिका


चाणक्य ने तब कुछ नहीं लिखा, जब युवा थे। पहले ऐसी परम्परा भी नहीं थी। प्राप्त या एकत्रित ज्ञान को अनुभव की कसौटी पर जाँच-परख कर ही लिखा जाता था। अमात्य पद से अपने को मुक्त करने के बाद चौथेपन में चाणक्य ने लिखना आरम्भ किया। नीतिशास्त्र लिखा, नीति सूत्र लिखा और अर्थशास्त्र लिखा। बहुत लिखा, सबके लिए लिखा और बहुत अच्छा लिखा। उन सबको आप तक पहुँचा देना इस पुस्तक ‘चाणक्य : प्रशासन-विधि और शासन-कला स्वयं से लेकर सब पर शासन करना चाणक्य से सीखें’ का उद्देश्य है।
चाणक्य ने एक स्थापित विशाल राष्ट्र को केन्द्र में रखकर लिखा सबके अस्तित्व की रक्षा और विकास के लिए लिखा, इसलिए यह पुस्तक चिन्तक, लेखक, प्रबन्धक, सेवक, शासक, प्रशासक, राजनीतिज्ञ, राजनयिक, व्यवस्था शिक्षक-प्रशिक्षक व्यवस्था-शिक्षार्थी, सरकारी अधिकारी और सामान्य पाठक सबके लिए है।
इसमें यथासाध्य आधुनिक व्यवस्था के अनुकूल शब्दों और विचारों को लिखा गया है कि आज का पाठक आसानी से समझ ले।
राजकीय व्यवस्था को व्यावसायिक व्यवस्था और प्रशासकीय व्यवस्था के साँचे में ढालकर प्रस्तुत किया गया है कि अन्तःदृष्टि अपने-आप विकसित हो।
इसमें चाणक्य का जीवन है उनके जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ हैं उनकी उपलब्धियाँ हैं और जीवन को सुखी और सम्पन्न तथा आनन्दमय बनाने के लिए उनके विचार हैं उनके बताये गये मार्ग हैं। शासक बनना, शासक बनाना, सत्ता स्थापित करना उसे विस्तार देना उसकी समुचित व्यवस्था करना और धन की उत्तरोत्तर वृद्धि करते जाना सब है।
अब यह पाठकों पर है कि वे कितनी अभिरुचि से इसका अध्ययन करते हैं कितने मनोयोग से आत्मसात् करते हैं और कितने परिश्रम से इसका उपयोग करते हैं, क्योंकि उनकी प्राप्ति चाणक्य की शिक्षाओं के चैतन्य प्रयोग व उपयोग पर ही निर्भर है।
सबके सर्वांगीण विकास; सम्यक् समृद्धि और अनुपम आनन्द के लिए।
सर्वे ‘शुभे’!
प्रो.-श्रीकान्त प्रसून


चाणक्य की प्रार्थनाएँ

प्रणम्य शिरसा विष्णुं त्रैलोक्याधिपतिं प्रभुम्। नानाशास्त्र उद्धृतं वक्ष्ये राजनीतिसमुच्चयम्।
तीनों लोकों, पृथ्वी, अन्तरिक्ष और पाताल के स्वामी सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक परमेश्वर विष्णु को सिर झुकाकर नमन करने के पश्चात् अनेक शास्त्रों से एकत्र किये गये इस राजनीतिक ज्ञान का वर्णन करता हूँ।
अधीत्येदं यथाशास्त्रं नरो जानाति सत्तमः। धर्मोपदेश विख्यातं कार्याकार्य शुभाशुभम्।
श्रेष्ठ पुरुष इस शास्त्र का विधिवत् अध्ययन करके धर्मशास्त्रों के करणीय, अकरणीय तथा ‘शुभ’ या अशुभ फल देने वाले कर्मों को समझ जायेंगे।
तदहं सम्प्रवक्ष्यामी लोकानां हित-काम्यया। यस्य विज्ञान मात्रेण सर्वज्ञत्वं प्रपद्यते।
इसलिए मैं मानव के कल्याण की कामना से इस ज्ञान का वर्णन कर रहा हूँ कि जिससे मनुष्य सर्वज्ञ हो जाये।
नमः शुक्र-बृहस्पतिभ्याम्।
देवों के गुरु बृहस्पति और दानवों के गुरु ‘शुक्राचार्य’ लिखना आरम्भ किया है कि किस प्रकार धरती में और धरती पर उपलब्ध सम्पदा पर अधिकार किया जाये किस प्रकार उसमें अनवरत वृद्धि होती रहे किस प्रकार उसे सुव्यस्थित और सुरक्षित रखा जाये ताकि शासन स्थापित हो ताकि सुख मिले ताकि शान्ति रहे ताकि सम् वृद्धि हो ताकि अनन्त काल तक सन्तति आनन्द से रहे ताकि सम्मान और प्रतिष्ठा बनी रहे और अन्त में मोक्ष की प्राप्ति हो।
वैदिक प्रार्थनाएँ अभयं मित्राद् अभयं अमित्राद् अभयं ज्ञाताद् अभयं पुरो यः। अभयं नक्तं अभयं दिवा नः सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु। हे देव! हमें न मित्र से भय लगे, न शत्रु से! हमें परिचितों के भय से मुक्त करो! और सभी चीजों के भय से मुक्त करो! हम दिन में और रात्रि में भय से मुक्त रहें! किसी भी देश में भय का नहीं रहे कोई कारण! हमें हर जगह मित्र और केवल मित्र ही मिलें!
भद्रं नो अपि वातय मनो दक्षमुत कर्तुम्। ओ देव! दयाद्र हृदय दें सर्वहितैषी कार्य दें! प्रचुर दानशील शक्ति दें!
वैश्वानरज्योतिः भूयासम्। ओ देव! अपने उदार प्रकाश में हमें निमग्न होने दें!



चाणक्य की अमरता



धन सचंय, सरुक्षा के व्यावहारिक, संसारिक गुरुचाणक्य का चिन्तन था उत्कृष्ट। भावपूर्ण सुसंस्कृत ‘शब्द’ सभी गरिमापूर्ण और भाषा थी परिपक्व तथा संश्लष्टि। हम भले हट गये हों दूर अपनी सम्पदा, संस्कृति, ज्ञान-परम्परा, दृढ़ आधार से; पर चाणक्य के विचार हैं शीर्ष पर रखने वाले, बनाने वाले ज्ञानी प्रशासक बलष्टि।

तक्षशिला का छात्र, अध्यापक, आचार्य, समुन्नत, सिद्ध और प्रसिद्ध।
पहुँचा पाटिलपुत्र देखता, आँकता, देश; मनसा, वाचा, कर्मणा शुद्ध।
अंकेक्षण, विश्लेषण करता, भावी कर्म सुनिशचित करता आया चाणक्य;
पर घनानन्द से अपमानित, प्रण विनाश का किया होकर अतिशय क्रुद्ध ।

ऋषि चणक का आचार्य-पुत्र अपमान, अनाचार क्यों सहता?
क्यों रहता वह मौन, शान्त? क्यों न सत्य, शुद्ध ही कहता?
नहीं लोभ, ना लिप्सा कोई, बुझाता क्यों जो लगी आग थी?
क्यों न उखाड़ता सड़े शासन को? क्यों चुप वह रहता?

रहा

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