NIRASHA CHHODO SUKH SE JIYO
66 pages
Hindi

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NIRASHA CHHODO SUKH SE JIYO , livre ebook

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Description

A person breaks from sudden disaster or nervous breakdown. It leads to the loss of many opportunities for him. So do not ever leave the door of hope and happiness and then you’ll see the entry of joy in your life. You strive to be like a continuous burning flame of hope for self-advancement. With this idea, the book is not only about quotes, themes and events, but it will guide you on every step of progress and will be helpful to you.


Sujets

Informations

Publié par
Date de parution 31 octobre 2013
Nombre de lectures 0
EAN13 9789352151257
Langue Hindi

Informations légales : prix de location à la page 0,0500€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

हाँ, तुम एक विजेता हो!
जीवन में सफल होने के उपाय
धैर्य एवं सहनशीलता
व्यवहार कुशलता
मन की उलझनें कैसे सुलझाएँ
खुशहाल जीवन जीने के व्यवहारिक उपाय
साहस और आत्मविश्वास
सार्थक जीवन जीने की कला
मानसिक शान्ति के रहस्य
सफल वक्ता एवं वाक प्रवीण कैसे बनें
खुशी के सात कदम
आत्म-सम्मान क्यों और कैसे बढ़ाएँ
 

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हरेन्द्र ‘हर्ष’
 
 




प्रकाशक

F-2/16, अंसारी रोड, दरियागंज, नयी दिल्ली-110002 23240026, 23240027 • फैक्स: 011-23240028 E-mail: info@vspublishers.com • Website: www.vspublishers.com
क्षेत्रीय कार्यालय : हैदराबाद
5-1-707/1, ब्रिज भवन (सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया लेन के पास)
बैंक स्ट्रीट, कोटि, हैदराबाद-500015
040-24737290
E-mail: vspublishershyd@gmail.com
शाखा : मुम्बई
जयवंत इंडस्ट्रियल इस्टेट, 1st फ्लोर, 108-तारदेव रोड
अपोजिट सोबो सेन्ट्रल मुम्बई 400034
022-23510736
E-mail: vspublishersmum@gmail.com
फ़ॉलो करें:
© कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स ISBN 978-93-814486-3-2
डिस्क्लिमर
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गई पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या संपूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
पुस्तक में प्रदान की गई सभी सामग्रियों को व्यावसायिक मार्गदर्शन के तहत सरल बनाया गया है। किसी भी प्रकार के उदाहरण या अतिरिक्त जानकारी के स्रोतों के रूप में किसी संगठन या वेबसाइट के उल्लेखों का लेखक प्रकाशक समर्थन नहीं करता है। यह भी संभव है कि पुस्तक के प्रकाशन के दौरान उद्धत वेबसाइट हटा दी गई हो।
इस पुस्तक में उल्लीखित विशेषज्ञ की राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटाकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
पुस्तक में दिए गए विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जाएगा।
मुद्रक: परम ऑफसेटर्स, ओखला, नयी दिल्ली-110020

अध्याय 1
मत हो उदास, मत हो निराश

मन की उमंगें आशा के सागर में हिलोरें लेकर अवसाद भरी उदासीन निराशा को जड़ से नष्ट कर देती हैं। यही है आशा का चमत्कार।
म नुष्य आज निराश और दुखी क्यों है? हैं जबकि उसके पास सुख-साधनों के अंबार लगे हैं। वह वैभवशाली जीवन व्यतीत कर रहा है। बटन दबाते ही हर कार्य पूर्ण हो जाता हैं। इसके विपरीत सतयुग में हमारे ऋषि-मुनि संतुष्ट और सुखी क्यों और कैसे थे? जबकि वे वनों में रहकर कंद-मूल फल खाकर अभावों से भरी जिंदगी जीते थे, फिर भी वह मस्त व सुखी रहते थे। आखिर कैसे से हैं अगर इस रहस्य को हम जानना चाहते हैं, तो हमें बहुत गहराई में उतरकर इसके मूल स्रोत पर ध्यान केंद्रित करना होगा। हमारे सुख-दुख का मूल कारण है, हमारे विचार करने की शैली। वैज्ञानिक प्रगति के कारण सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं के रहते हुए भी जिदगी में नीरसता, अशांति, दुख, उद्धिग्नता आदि का मुख्य कारण है कि हमने परिस्थितियों को तो बदला है, परन्तु अपने चिंतन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। मानव कैसा है और कैसा उसका भविष्य होगा, यह सब बातें उसकी विचार शैली पर ही निर्भर करती है। अंग्रेजी भाषा में सुप्रसिद्ध कवि इलियट अपने प्रत्येक जन्म-दिन पर काले व भद्दे कपड़े पहन कर शोक मनाया करते थे। तथा कहते थे, "अच्छा होता यह जीवन मुझे न मिलता, मैं दुनिया में न आता।" जबकि ठीक इसके विपरीत अंधे कवि मिल्टन का कथन था, "भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि उसने मुझे जीने का अमूल्य वरदान दिया।" अत: जिन्दगी में दुख, क्लेश, अशांति, पश्चाताप, उद्विग्नता, सुख, शांति, खुशी, प्रसन्नता आदि का मूल स्रोत हमारे विचार ही हैं, अन्य कोई कारण नहीं है।
विचार में अपार शक्ति होती है। वे हमेशा कर्म करने की प्रेरणा देते है। विचार-शक्ति यदि अच्छे कर्मों में लग जाए, तो अच्छे और यदि बुरे कर्मों में लग जाए, तो बुरे परिणाम प्राप्त होते है। विचार अच्छे हों या बुरे, किन्तु यह निश्चित है कि विचार मनुष्य का अनिवार्य पहचान है। सामान्यत: मनुष्य विचारविहीन नहीं हो सका। विचारविहीन मनुष्य की कल्पना निरर्थक है। हां, विशेष यौगिक क्रियाओं द्धारा विचार शून्यता की स्थिति प्राप्त की जा सकती है और इस स्थिति का मुख्य उद्देश्य होता है व्यर्थ के विचारों को त्यागकर लोक मंगल के विचारों को प्रधानता देना और इतिहास साक्षी है कि आज तक समस्त भूमंडल पर जितने भी सर्वश्रेष्ठ कार्य हुए हैं, यह व्यक्ति अथवा समाज के उत्कृष्ट विचारों के कारण ही कार्य रूप में परिणित हो पाए हैं।
अब प्रश्न उत्पन्न होता है कि जब इतनी शक्तिशाली और वेशकीमती धरोहर हमें प्रकृति द्धारा नि:शुल्क प्रदत्त है और हम जब चाहे तब उसका उपयोग भी कर सकते हैं, तो फिर आज हम अकारण ही इतने निराश, चिंतित, दुखी अथवा हतोत्साहित क्यों है? इतनी विशाल शक्तिशाली संपदा का स्वामी होने के बाबजूद भी अपने को इतना निरीह असहाय क्यों समझने लगते हैं? क्यों नहीं अपने द्वारा ही अपने भाग्य जोर सुखद भविष्य का निर्माण करते हैं? क्यों नहीं स्वयं को भी महामानवों की श्रृंखला में सम्मिलित करते?
पंच तत्वों से निर्मित इस काया में जीवन ऊर्जा हेतु मानसिक शक्ति की अपार क्षमता है, किन्तु अधिकांशत: लोग इसका अपव्यय ही करते हैं। निरर्थक और निरुद्देश्य बातों-बातों में व्यर्थ समय नष्ट करते हैं। वे नहीं जानते कि इस प्रकार से वे अपनी कितनी शक्ति नष्ट कर रहे हैं? सतर्कता बरतकर इसी शक्ति को उपयोगी कार्यों में लगाकर बड़ी सफलता प्राप्त की जा सकती है। क्या अपने संबंध में आपने भी कभी विचार किया है अथवा अपने अंतर्मन में झांकने का प्रयत्न किया है। यदि नहीँ तो अपने विषय में भी प्रमुखता के साथ विचार करें। हम दर्पण में अपना चेहरा निहारते हैं तथा उस पर जमी मलिनता को प्रयत्न पूर्वक विभिन्न साधनों द्वारा साफ कर उज्ज्वल तीर चमकदार बना देते हैं। वह सुंदर नजर आने लगता है और हमारा प्रतिबिंब भी अधिक स्पष्ट दिखता है। इसी प्रकार अंत:करण के दर्पण में अपने आपको देखने और बारीकी से परखने पर उसकी मलिनताएं भी स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगती हैं, और गंदगी हमारे अंदर की वास्तविक सुंदरता को छिपाए रहती है। अपनी कमियों को दूर करने, मलिनता को मिटाने और आत्म परीक्षण एवं निरीक्षण द्वारा गंदगी की पर्तों को हटाना ही आत्मा के अनन्त सौंदर्य को बढ़ाना है।
संसार में दो प्रकार के लोग होते हैं। प्रथम तो जो कल्पना और दर्शन में जीते हैं, द्वितीय प्रकार के मनुष्य यथार्थ और सत्य में जीने वाले होते हैं। कल्पना में अद्भुत आकर्षण होता है, परंतु यह वैसा ही है, जैसे मरुस्थल की मरीचिका में भटकता हुआ मनुष्य। हमें इसी मृग मरीचिका को भेदकर निकलना है। कल्पना के जंजाल को तोड़कर यथार्थ का स्पर्श करना है। संसार की हर वस्तु में अच्छाई और बुराई होती है। कुछ बातें, वस्तुएं आदि हमें इसलिए प्रिय लगती हैं क्योंकि उनसे हमेँ सुख की प्राप्ति और आनंदानुभूति होती है। दूसरी अन्य वस्तुएं और बातें हमें इसलिए बुरी अथवा खराब प्रतीत होती हैं, क्योंकि वे हमारी इच्छाओं एवं आकांक्षाओं के विपरीत हैं और आनंद में बाधक हैं। परंतु वास्तविकता ठीक इसके विपरीत है। वह हर वस्तु जिसमें हमें मात्र अच्छाई ही दृश्यमान होती है, वह अपने अंदर ना जाने कितनी बुराइयों और कमियों को छिपाए रहती है। जब कि हर बुराई भी अपने अदंर कोई-न-कोई अच्छाई अथवा गुण छिपाए रहती है।
सफलता सबको प्यारी लगती है और असफलता सबको उदास और निराश कर देती है, परंतु हमें असफलता से उदास और निराश होने की आवश्यकता नहीं है। जीवन के इस महत्वपूर्ण सोपान पर हमें अपनी दृढ़ता और आत्म-विश्वास को कठोरता प्रदान करनी है और सोचना है कि किन परिस्थितियों, कमियों अथवा भूलों के कारण हमें असफलता प्राप्त हुई है, तभी हम अपनी भूलों को सुधारने का प्रयास कर सकते हैं। वास्तव में असफलता ही सफलता का पथ प्रशस्त करती है। सफलता के लिए अनुकूल परिस्थितियों की प्रतीक्षा नहीं की जाती। अपनी संकल्प शक्ति को जाग्रत तथा विकसित किया जाता है। प्रतिकूलताओं से टकराकर निराशा को आशा में बदला जाता है। आत्मविश्वास के बल पर यह कार्य आसानी से किया जा सकता है। यहीं ऐसे ही कुछ विश्व प्रसिद्ध व्यक्तियों के जीवन चरित्र प्रस्तुत हैं-
प्रस्रिद्ध अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को कौन नहीं जानता? ने न्याय और समानता की खातिर अपने प्राणों' की आहुति दे दी। लेकिन वास्तविक जीवन में लिंकन और असफलताएं एक दूसरे के लिए पूरक थे। यदि लिंकन के जीवन के सभी कार्यों का हिसाब लगाया जाए तो उन्हें सौ में' से निन्यानवे बार अपने जीवन में असफलताओं का मुंह देखना पड़ा है। उन्होंने जिस कार्य में हाथ डाला, उसी में असफल सिद्ध हुए प्रतिदिन के जीवन निर्वाह हेतु एक दुकान में नौकरी की, तो कुछ ही समय पश्चात मालिक एवं दुकान का दिवाला ही निकल गया। यह फिर सड़क पर आ गए। जैसै-तैसै जुगाड़ कर मित्र की साझेदारी में दुकान की, तो दुकान भी डूब गई। कर्ज चढ़ गया काफी परिश्रम एवं मेहनत द्धारा इस परेशानी को दूर किया, मुश्किलों एवं परेशानियों के बीच रहकर वकालत की भी बात कर ली, परंतु' यह प्रयत्न भी बेकार ही गया, क्योंकि कोर्ट में बैठने पर मुकदमे ही नहीं मिलते थे, तो क्या करते? असफलताओं के इस दौर के बीच मे ही शादी भी असफल ही सिद्ध हुई। अपने जीवन मे उन्होंने जिस औरत से शादी की उससे जिंदगी भर ना निभ सकी।
बुलदं इरादों और कठोर हौसले के धनी लिंकन ने फिर भी हिम्मत का दामन नहीं छोड़ा। साहस के साथ कठिन परिस्थितियों का मुकाबला कर बुरे दिनों की जंजीरों को काटकर सुखमय जीवन को प्राप्त किया। जिंदगी की सबसे मह्रत्वपूर्ण महत्वाकांक्षा तब पूर्ण हुई, जब उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया, इतना ही नहीं अपनी विचारधारा द्वारा उन्होंने देश में एक विशाल राष्ट्र की स्थापना कर समाज में फैले काले-गोरे के भेद-भाव की मिटाकर विश्व इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित करा दिया और अमर हो गए।
विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक मैडम क्यूरी का बचपन का नाम मार्जास्वली दोवास्का था। उनका बचपन बड़ी गरीबी और बदहाली में गुजरा। 19 वर्षीया मार्जास्वली दोवास्का अपना पेट भरने के लिए एक पैसै वाले के यहाँ घर की सफाई और बच्चों की देखभाल का कार्य करने लगी। उसकी सुंदरता पर आकर्षित होकर उस परिवार के एक युवक ने जब मार्जास्वली से विवाह की आकांक्षा व्यक्त की, तो घरवालों ने बेटे को डाट-फटकार कर चुप करा दिया तथा मार्जा को भी नौकरी से निकाल दिया। नौकरी छूट जाने के बाद उसने पढ़ाई आंरभ कर दी और छोटे-मोटे कार्य करके अपना पेट भरकर गुजारा करने लगी। समय के बदलाव के साथ ही आगे चलकर उसने पीयरे क्यूरी से विवाह कर लिया। मार्जा" और क्यूरी ने अपनी विज्ञान प्रयोगशाला में दिन-रात मेहनत कर लगातार चार वर्षों के प्रयत्न के पश्चात रेडियम नामक ऐसे तत्व की खोज निकाला जो मानव सभ्यता के आधुनिक विकास में' मील का पत्थर सिद्ध हुआ तथा मैडम क्यूरी को इस सफलता के लिए विश्व प्रसिद्ध नोबल पुरस्कार से विभूषित किया गया।
स्वामी विवेकानंद के नाम से कौन परिचित नहीं है। अपनी प्रबल विचार शक्ति के द्धारा ही उन्होंने शिकागो के सम्मेलन में भारत की अध्यात्मिक शक्ति एवं दर्शन को सारे संसा

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