HOMEOPATHY CHIKITAS
107 pages
Hindi

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Description

Aaj kee aadhunik jeevanashailee jaane anajaane kaee rogon ko janm de rahee hai, jinamen madhumeh, raktachaap, hrdayarog, kainsar aadi pramukh hain. ye sabhee tanaav janit rog hai. jin rogon ka sthaayee samaadhan elopaithee mein nahin hai, usaka samaadhan homiyopaithee ke ilaaj dvaara sambhav hai. homiyopaithee chikitsa any chikitsa pa (tiyon kee apeksha kam kharcheelee aur aasaan hai. suvidh aur suraksha kee drshti se bhee homiyopaithee aam aadamee ke lie anukool hai. aaj ke daaktar mareejon ke ilaaj mein kharcheele test likhate hain, kintu homiyopaithee chikitsa mein aisee jaanchon ko vishesh mahattv nahin diya jaata hai. is pa (ti mein said ipaphekts kee sambhaavana bhee na ke baraabar hai. elopaithee mein chhote se chhote ilaaj bhee mahange aur jatil hain. aap kisee bhee aspataal mein jaayen, santoshajanak upachaar ke abhaav mein aapako niraash hona pad sakata hai, lekin homiyopaithee ke ilaaj mein sabhee rogon ka upachaar kam kharch mein hee sambhav haiai.

Prastut pustak mein sardee-jukaam, bukhaar aadi se lekar asaadhy rogaane ke upachaar se sambandhti homiyopaithee ke 77 pramukh aushadhyion ke vivaran saral evan aasaan hindee bhaasha mein diye gaye hain. homiyopaithee aushadh ika prayog badon ke saath-saath shishurog ke nidaan mein atyant prabhaavashaalee hai. homiyopaithee ne kaee jatil beemaariyon jaise bavaaseer, masse aadi rogon mein rogiyon ko sarjaree se sthaee mukti de dee hai. yah sabhee ilaaj achook tatha aajamae hue hain.

Homiyopaithee chikitsa ke lekhak svaamee aar. see. shukl kee do pustaken shlvahanendane ndak chtandanlanunsh evan shtmapaap ndak .sajamatadanjapam jeematanchapamesh hamaare prakaashan dvaara pahale hee prakaashit kee ja chukee hai. jise paathakon dvaara bharapoor saraahana milee hain.


Sujets

Informations

Publié par
Date de parution 28 janvier 2015
Nombre de lectures 0
EAN13 9789352150908
Langue Hindi
Poids de l'ouvrage 1 Mo

Informations légales : prix de location à la page 0,0500€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

लेखक रमेश चन्द्र शुक्ल
 
 
 
 



प्रकाशक

F-2/16, अंसारी रोड, दरियागंज, नयी दिल्ली-110002 23240026, 23240027 • फैक्स: 011-23240028 E-mail: info@vspublishers.com • Website: www.vspublishers.com
क्षेत्रीय कार्यालय : हैदराबाद
5-1-707/1, ब्रिज भवन (सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया लेन के पास)
बैंक स्ट्रीट, कोटि, हैदराबाद-500015
040-24737290
E-mail: vspublishershyd@gmail.com
शाखा : मुम्बई
जयवंत इंडस्ट्रियल इस्टेट, 1st फ्लोर, 108-तारदेव रोड
अपोजिट सोबो सेन्ट्रल मुम्बई 400034
022-23510736
E-mail: vspublishersmum@gmail.com
फ़ॉलो करें:
© कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स ISBN 978-93-505718-9-7
डिस्क्लिमर
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गई पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या संपूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
पुस्तक में प्रदान की गई सभी सामग्रियों को व्यावसायिक मार्गदर्शन के तहत सरल बनाया गया है। किसी भी प्रकार के उदाहरण या अतिरिक्त जानकारी के स्रोतों के रूप में किसी संगठन या वेबसाइट के उल्लेखों का लेखक प्रकाशक समर्थन नहीं करता है। यह भी संभव है कि पुस्तक के प्रकाशन के दौरान उद्धत वेबसाइट हटा दी गई हो।
इस पुस्तक में उल्लीखित विशेषज्ञ की राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटाकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
पुस्तक में दिए गए विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जाएगा।
मुद्रक: परम ऑफसेटर्स, ओखला, नयी दिल्ली-110020

प्रकाशकीय

वी एंड एस पब्लिशर्स अनेक वर्षों से समाज के प्रत्येक वर्गों के लिये आत्मविकास, सामान्य ज्ञान, साहित्य तथा चिकित्सा सस्बन्धी पुस्तकें प्रकाशित करते आ रहे हैं। इसी क्रम में जब हमारा ध्यान होमियोपैथी चिकित्सा की ओर गया तो हमने ‘होमियोपैथी एक चमत्कारिक चिकित्सा' नामक पुस्तक प्रकाशित किया है।
आज की आधुनिक जीवनशैली वास्तव में कई तनावजनित रोगों को जन्म दे रही है। होमियोपैथी में इन रोगों का ईलाज अपेक्षाकृत आसान और कम खर्च में संभव होने के कारण यह आम लोगों के ज्यादा अनुकूल भी है। यों तो बाजार में होमियोपैथी चिकित्सा की कई पुस्तकें उपलब्ध हैं, मगर प्रस्तुत पुस्तक में सर्दी जुकाम, बुखार, मधुमेह रक्तचाप ,हृदय रोग, कैंसर, चर्म रोगों, मुहाँसे, फोड़े-फुन्सियाँ, एवं शिशु रोगों सम्बन्धी चिकित्सा के लिये विशेषतौर पर चुने हुये 77 प्रमुख औषधियों के विवरण सहज और आसान हिन्दी भाषा में दिये गये हैं। होमियोपैथी के बारे में सभी के लिये यह जानना आवश्यक है, कि यह चिकित्सा पद्धति एलोपैथी चिकित्सा से बिलकुल ही भिन्न है। होमियोपैथी ईलाज में एलोपैथी की तरह न तो किसी प्रकार का साइड इफेक्ट होता और न ही इसके इलाज के पहले किसी रोगी को किसी महँगे टेस्ट की आवश्कता पड़ती है। इसलिए होमियोपैथी आमजनों के लिये अधिक सुविधाजनक एवं उपयोगी है।
होमियोपैथी के लेखक स्वामी रमेश चंद्र शुक्ल की दो पुस्तकें Yogasanas and Pranayams एवं Reiki and Alternative Therepies हमारे प्रकाशन द्वारा पूर्व में प्रकाशित की जा चुकी हैं, जिसे पाठकों की ओर से भरपूर सराहना मिली है।
हमारी ओर से प्रस्तुत पुस्तक को त्रुटिरहति रखने का यथासंभव प्रयास किया गया है। फिर भी किसी प्रकार की भूल-सुधार के लिये आप हमारे ई मेल पर इसकी सूचना दे सकते हैं, तकि आगामी संस्करण में भूल-सुधार किया जा सके।
नोट : पाठकों को हमारा सुझाव है कि पुस्तक में बताये गये किसी भी दवा को प्रयोग में लाने के पूर्व होमियोपैथी के किसी योग्य एवं अनुभवी चिकित्सक से इसके बारे में अवश्य सलाह लें।


विषय-सूची
भूमिका
खण्ड : 1
1. होमियोपैथी एक परिचय
2. जहरीले तत्त्वों से बने मूलार्क के लिए आवश्यक निर्दश
3. सामान्य निर्देश तथा परहेज
4. होमियोपैथी के इलाज में सावधानी
5. औषधि प्रयोग विधि
6. होमियोपैथिक औषधियाँ
खण्ड : 2 चिकित्सा प्रकरण
1. बुढ़ापे में वरदान होमियोपैथिक चिकित्सा
2. पेट सम्बन्धी रोग
3. मुख के रोग
4. गला (Neck)
5. नाक (Nose)
6. दाँत (Tooth)
7. कान (Ear)
8. आँख (Eye)
9. सिर (Head)
10. ज्वर (Fever)
11. फेफड़ा
12. मूत्र रोग
13. त्वचा के रोग
14. मोटापा (Obesity)
15. पुरुष प्रजनन अंगों के रोग
16. स्त्री रोग (Female Diseases)
17. हडि्डयों के रोग और जोड़ों के दर्द (Bones, Jonts and Muscular Pains)
18. हृदय रोग (Heart Diseases)
19. मधुमेह (Diabetes)
20. बच्चों के रोग (Diseases of Children)
21. मानसिक रोग (Mental Diseases)
22. अन्य विभिन्न रोगों में सहायक होमियोपैथी दवायें

भूमिका

होमियोपैथी के आविष्कारक जर्मनी के डाक्टर सैमुएल हैनिमैन थे। हालाँकि होमियोपैथी का आविष्कार हुए लगभग 250 वर्ष हो चुके हैं, फिर भी इस चिकित्सा पद्धति की लोकप्रियता दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है। इस चिकित्सा पद्धति के लोकप्रिय होने के अनेक कारणा हैं। सबसे प्रमुख कारण यह है कि अन्य चिकित्सा पद्धतियों की अपेक्षा होमियोपैथी कम खर्चीली है। आज के डाक्टर मरीजों को बड़ी खर्चीली मेडिकल जाँच (टेस्ट) लिखते हैं, किन्तु इस चिकित्सा पद्धति में ऐसी जाँचों को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता है। इसके अलावा इस पद्धति के अतिरिक्त परिणामों (साइड इफेक्ट्स) की स्रम्भावना भी नहीं के बराबर है। सुविधा और सुरक्षा की दृष्टि से होमियोपैथी एक साधारण आदमी के लिए अत्यन्त अनुकूल है, इतना की नहीं तीव्र या शल्यचिकित्सकीय स्थितियों से बचने के लिए इस चिकित्सा पद्धति का उपयोग बड़ा ही उपयोगी माना गया है। होमियोपैथिक औषधियाँ सुरक्षित, सस्ती, व्याधिनाशक और आसानी से उपलब्ध होने के साथ-साथ छोटे शिशुओं के लिए भी बड़ी ही प्रभावशाली है। इसमें एलोपैथिक दवाओं के विपरीत प्रभावों को भी ठीक करने की अद्भुत क्षमता है।
होमियोपैथी का सम्बन्ध मनुष्य की आंतरिक शक्तियों से है। मनुष्य के स्थूल शरीर पर उसके विचारों, मनोभावों और अन्य सूक्ष्म तत्वों का भी बहुत प्रभाव पड़ता है, हमारे स्थूल शरीर में जो अस्वस्थता आती है, उसका सूत्रपात हमारे सूक्ष्म मन में होता है और रोग का आरम्भ स्थूल शरीर में ही नहीं बल्कि सूक्ष्म मन में तथा हमारी आंतरिक जीवनी शक्ति में भी होता है। इसी को आधार मानकर होमियोपैथी में सूक्ष्म औषधियों का भी प्रयोग किया जाता है, इसीलिए होमियोपैथी एलोपैथी की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली तरीके से काम करती है।
होमियापैथी के बारे में यह भी जानना आवश्यक है कि यह चिकित्सा पद्धति एलोपैथी से पूर्णत: भिन्न है। इसे किसी भी प्रकार से एलोपैथी चिकित्सा के पूरक के रूप में नहीं देखना चाहिए। आज का मानव अनेक असाध्य और कठिन रोगों से ग्रस्त है। उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह, कैंसर, अस्थमा आदि अनेक रोग बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं, जिनका एलोपैथी के डाक्टरों के पास कोई निश्चित और स्थायी समाधान नहीं है। ऐसी स्थिति में होमियोपैथी चिकित्सा की उपयोगिता और भी बढ़ जाती है। आज के प्राय: अधिकतर रोग तनाव जनित हैं। इन परिस्थितियों में मेरा मानना है कि होमियोपैथी चिकित्सा से इस दिशा में प्रयोग करने से अद्भूत परिणाम देखने को मिलेंगे। मैं स्वयं हीलिंग के क्षेत्र में वर्ष 1997 से कार्यरत हूँ तथा योग की भाँति होमियोचिकित्सा से भी मेरा बड़ा लगाव रहा है। मैं होमियोपैथी की दवाइयों का स्वत: प्रयोग करता आया हूँ और इसके परिणाम स्वयं देखे हैं। मैं अपने प्रिय होमियोपैथी के चिकित्सक डा. बन्सल, (सोनीपत) तथा डा. चन्द्रभूषण त्रिपाठी जी का बहुत ही आभारी हूँ, जो वर्षों से होमियोपैथी का इलाज करते आ रहे हैं तथा मेरा इस चिकित्सा पद्धति में मार्गदर्शन किया है। डा. कल्पना माथुर तथा डा. श्रीमती मधु त्रिपाठी जो होमियोपैथी चिकित्सा में बाल एवं स्त्री रोगों की विशेष चिकित्सिका हैं, मैं मार्गदर्शन हेतु उनका भी आभारी हूँ।
मैंने 24 जून 2013 से 29 जून 2013 तक सोनीपत जिले में स्थित ओशाधारा केन्द्र में देश के जाने-माने होमियोपैथी के अनेक विशेषज्ञों के साथ होमियोप्रज्ञा कार्यक्रम सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ के सानिध्य में किया है, जिसमें मुझे इस चिकित्सा पद्धति के सम्बन्थ में अद्भुत ज्ञान प्राप्त हुआ है, मैं उनके प्रति भी आभार प्रकट करता हूँ।
इस पुस्तक के लेखन का मुख्य उद्देश्य सस्ती, सुलभ और प्रभावकारी चिकित्सा को जन-जन तक पहुँचाना है।
स्वामी रमेश चन्द्र शुक्ल
अध्यक्ष
रेकी कुण्डलिनी योग थिरेपी सेन्टर


 
 
 
 
 
खण्ड : 1
 
 
 
 
 

होमियोपैथी एक परिचय

जर्मनी के सैक्सनी प्रदेश के मेसेन नामक ग्राम में सन् 1755 ई. में होमियोपैथी के विज्ञान के आविष्कारक महात्मा हैनिमैन का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। उन्होंने सन् 1779 ई. में 24 साल की अवस्था में एम.डी एलोपैथी की डिग्री प्राप्त की तथा लगभग 10 वर्षों तक एलोपैथी की प्रैक्टिस भी करते रहे, किन्तु उन्होंने इस उपचार को अपूर्ण तथा दोषपूर्ण समझकर इसका परित्याग कर दिया तत्पश्चात् वे पुस्तक प्रणयन तथा रसायन शास्त्र के अध्ययन एवं उन्नति की ओर आकृष्ट हुए। अनेक भाषाओं में पुस्तकों के अनुवाद करने से आपकी प्रसिद्धि बढ़ने लगी। 1790 में डाक्टर कालेन की लिखी हुई अंग्रेजी 'मेटेरिया मेडिका' का जर्मन भाषा में अनुवाद करते समय 'सिनकोना' नामक दवा की व्याख्या देखकर उन्होंने यह दवा स्वयं सेवन की, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें कम्प ज्वर को गया। उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि किसी भी दवा में रोग उत्पन्न करने और उसका नाश करने की शक्ति होती है। इस दृष्टि से उन्होंने बहुत सी दवाओं का अपने ऊपर भी प्रयोग किया और अपनी चिकित्सा के आविष्कार का मूल सूत्र निर्धारित किया जो निम्न है।
किसी स्वस्थ शरीर में किसी एक दवा का बार-बार प्रयोग करते रहने पर दवा के कुछ लक्षणों से कितने ही रोग सदृश्य लक्षण प्रकट होते हैं यदि किसी बीमारी में वे सब लक्षण प्रकट हो, तो उस रोग में उसी दवा की सूक्ष्म मात्रा प्रयोग कर जो चिकित्सा की जाती है उसे ही होमियोपैथी चिकित्सा कहते हैं।
सिद्धान्त : Simla-Simibus Curantur अर्थात् सम: सम शमयति। 'सदृश विधान' शब्द कहने से यह बोध होता है कि स्वस्थ शरीर में यदि विष की मात्रा में कोई दवा सेवन कर ली जाये तो रोग बताने वाले कितने ही लक्षण पैदा हो जाते हैं और ये ही लक्षण उस दवा के भी हैं। जब किसी रोग में ये सब लक्षण दिखायी दे तो उसमें शक्तिकृति की हुई दवा प्रयोग करने पर उस रोग में आराम मिल जाता है। होमियोपैथिक विज्ञान स्वीकार करता है कि रोग स्थूल शरीर में नहीं, बल्कि सूक्ष्म जीवनी शक्ति में होता है। स्थूल शरीर में जो रोग के लक्षण दिखायी देते हैं, वे मूल रोग का परिणाम होते हैं। मूल रोग के स्तर तक पहुँचने के लिए सूक्ष्म औषधि का होना आवश्यक है, यदि औषधि स्थूल होगी तो वह सूक्ष्म रोग को नियन्त्रित नहीं कर सकती है।
रोग का विकास अन्दर से बाहर की ओर होता है , अत: रोग की निवृत्ति का क्रम भी इसी दिशा में होना चाहिए।
यदि बाह्य औषधियों के प्रयोग से स्थूल शरीर पर स्थित लक्षणों को दूर करने का प्रयास किया गया तो रोग निवृत्ति का अप्राकृतिक क्रम हो जायेगा इससे रोग के बढ़ने की ही सम्भावना बनी रहेगी।
इस प्रकार होमियोपैथी का मूल सिद्धान्त यह है कि जो दवा स्वस्थ व्यक्ति में विकृतियाँ उत्पन्न कर सकती है, वही किसी रोग के कारण अस्वस्थ व्यक्ति में दिखायी दे तो उसी दवा को सक्षम बनाकर देने से उन विकृतियों की निवृत्ति की जा सकती है। इसका अर्थ यह हुआ कि जो दवा शरीर को बिगाड़ने की सामर्थ्य रखती है, वही शरीर को पूर्ण

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