Vyaktitav Vikas Evam Adhyatm
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Vyaktitav Vikas Evam Adhyatm , livre ebook

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Description

Kisee bhee manushy kee sapaphalata ya asapaphalata meen usakee vyaktitv kee aham bhuumika hootee hai. Samaaj meen sapaphal hoonee kee liee loog apanee vyaktitv koo nikhaarana caahatee hain. Vyaktitv hee unakee pahacaan hootee hai. Apanee vyaktitv kee dam par hee vyakti aam loogoon meen kuch khaas nazar aata hai. Pratyeek vyakti jeevan meen kuch khaas tatha kuch khaas banana caahata hai karana caahata hai. Aam aadamee kee aavashyakata koo dhyaan meen rakhakar yah pustak vyaktitv vikaas eevan adhyaatm manoovijnaan kee drshti meen prakaashit kee gayee hai.Prastut pustak meen aapaka vyaktitv vikaas kee 7 aadhyaatmik niyam manoovijnaan kee drshti meen ... Kee vishay meen vistaarapuurvak carca kee gaee hai.(Personality of a person plays a prominent role in his success or otherwise. People want to polish their personality in order to be successful in society. The book explains different aspects of personality such as body language, mental health, concepts of adjustment, fantasy, day dreaming, etc and means to enhance them. ) #v&spublishers

Informations

Publié par
Date de parution 07 avril 2016
Nombre de lectures 0
EAN13 9789350577097
Langue English
Poids de l'ouvrage 3 Mo

Informations légales : prix de location à la page 0,0225€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

प्रकाशक

F-2/16, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-110002
Ph. No. 23240026, 23240027• फैक्स: 011-23240028
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शाखाः हैदराबाद
5-1-707/1, ब्रिज भवन (सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया लेन के पास)
बैंक स्ट्रीट, कोटी, हैदराबाद-500 095
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शाखा: मुम्बई
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© कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स
ISBN 978-93-505770-9-7
संस्करण 2021
 
DISCLAIMER
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गयी पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या सम्पूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
पुस्तक में प्रदान की गयी सभी सामग्रियों को व्यावसायिक मार्गदर्शन के तहत सरल बनाया गया है। किसी भी प्रकार के उद्धरण या अतिरिक्त जानकारी के स्रोत के रूप में किसी संगठन या वेबसाइट के उल्लेखों का लेखक या प्रकाशक समर्थन नहीं करता है। यह भी संभव है कि पुस्तक के प्रकाशन के दौरान उद्धृत बेवसाइट हटा दी गयी हो। इस पुस्तक में उल्लिखित विशेषज्ञ के राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
पुस्तक में दिये गये विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जायेगा।
उचित मार्गदर्शन के लिए पुस्तक को माता-पिता एवं अभिभावक की निगरानी में पढ़ने की सलाह दी जाती है। इस पुस्तक के खरीददार स्वयं इसमें दिये गये सामग्रियों और जानकारी के उपयोग के लिए सम्पूर्ण जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं। इस पुस्तक की सम्पूर्ण सामग्री का कॉपीराइट लेखक / प्रकाशक के पास रहेगा। कवर डिजाइन, टेक्स्ट या चित्रों का किसी भी प्रकार का उल्लंघन किसी इकाई द्वारा किसी भी रूप में कानूनी कार्रवाई को आमंत्रित करेगा और इसके परिणामों के लिए जिम्मेदार समझा जायेगा।
मुद्रक : परम ऑफसेटर्स, ओखला, नयी दिल्ली- 110020
 
प्रकाशकीय
प्रत्येक प्रकाशक की इच्छा होती है कि अधिक से अधिक पाठक उनकी पुस्तकों को पढ़ें। वी एण्ड एस पब्लिशर्स अधिक टाइटल्स छापने की प्रतिस्पर्धा में शामिल होना नहीं चाहता। कारण यह है कि किसी भी पुस्तक को छापने से पहले हम खूब विचार - विमर्श करते हैं तथा यह निश्चित करना चाहते है कि पुस्तक समाज में प्रेरणा का आधार बने।
हमारी अधिकांश पुस्तकें जनरुचि और समय की माँग के अनुरूप होती हैं। शोध के आधार पर हमने महसूस किया कि अब पाठकों को आवश्यकता है सरल एवं सटीक पुस्तकों की जो सही जानकारी से परिपूर्ण हो। किन्तु इसका दुःखद पहलू यह है कि राष्ट्रभाषा हिन्दी में ऐसी पुस्तकों का प्रायः अभाव है। जीवनोपयोगी पुस्तकें प्रायः अंग्रेजी भाषा में ही उपलब्ध हैं, जिससे आबादी का बहुमत भाग इस प्रकार की पुस्तकें पढ़ने से वंचित रह जाता है और इससे वंचित हो जाना उनके जीवन में कठिनाई का कारण बन जाता है। प्रत्येक व्यक्ति की अपने व्यक्तित्व को निखारने की लालसा व बाजार में इस विषय पर उत्कृष्ट पुस्तकों के अभाव ने हमें 'व्यक्तित्व विकास एवं अध्यात्म मनोविज्ञान की दृष्टि में पुस्तक को प्रकाशित करने के लिए प्रेरित किया।
प्रस्तुत पुस्तक एक सरल एवं आधुनिक कोर्स है। पुस्तक के प्रत्येक भाग लेखन सामान्य व्यक्ति के सामर्थ्य और समय के अनुसार किया गया है जिससे उसके मस्तिष्क में स्थायी छवि बन सके और सम्पूर्ण आत्मविकास में सहायक हो सके। यह पुस्तक आपको समाज में परिपक्व पहचान बनाने में पूर्णरूप से सहयोग करेगी और जीवन में भागीदार बनेगी।
इस पुस्तक का लेखन व सम्पादन जानकार विशेषज्ञों द्वारा किया गया है। यथा सम्भव प्रयास किया गया है कि पुस्तक में कहीं कोई गलती न रह गयी हो, फिर भी यदि कोई त्रुटि रह गयी हो तो अपने सुझाव सहित हमें अवगत अवश्य कराएँ।
 
सूचना
सभी पाठकों को विनम्र रूप से यह सूचित किया जा रहा है कि पुस्तक में दी गयी विषय-वस्तु को शत्-प्रतिशत पत्थर की लकीर की भाँति न मानें। लेखक एवं प्रकाशक के सम्पूर्ण प्रयासों एवं विशेषज्ञों के सलाह के अनुसार पुस्तक का लेखन किया गया है, परन्तु पुस्तक में दी गयी सूचना के गलत प्रयोग या व्याख्या के लिए पाठक स्वयं ही जिम्मेदार होंगे।
पाठकों से एक विनम्र निवेदन यह है कि पुस्तक में दिये गये सलाह या उपाय लेखक के अपने व्यक्तिगत अनुभव एवं विचार हैं। इसके लिए न तो लेखक, न तो प्रकाशक को जिम्मेदार ठहराया जाये। पुस्तक आपके व्यक्तित्व विकास में सहयोग अवश्य करेगी किन्तु इसे रामबाण न समझें। यह एक मनोवैज्ञानिक पहलू है जो अलग-अलग लोगों पर अलग–अलग ढंग से प्रभाव डालेगा। आवश्यकतानुसार किसी व्यावसायिक विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लें।
-प्रकाशक


विषय-सूची
कवर
मुखपृष्ठ
प्रकाशक
प्रकाशकीय
सूचना
विषय-सूची
भाग-1 व्यक्तित्व विकास के 7 आध्यात्मिक नियम
लेन-देन का नियम
कर्म का नियम
कम प्रयास का नियम
विरक्ति का नियम
धर्म का नियम
निष्काम प्रेम प्राप्ति का नियम
ध्यान अथवा चिन्तन का नियम
भाग-2 क्या कहता है मनोविज्ञान व्यक्तित्व के बारे में
मानसिक स्वास्थ्य एवं समायोजन ( Mental Health and Adjustment)
मानसिक स्वास्थ्य के सिद्धान्त (Principles of Mental Health)
समायोजन की अवधारणा (Concept of Adjustment)
समायोजन के क्षेत्र (Spheres of Adjustment)
रक्षात्मक युक्तियाँ या मनोरचनाएँ ( Defence or Mental Mechanism)
कल्पना प्रवाह एवं दिवास्वप्न (Fantasy and Day Dreaming)
समाज विरोधी व्यक्तित्व (Anti-social Personality)
और अन्त में...

 
भाग-1 व्यक्तित्व विकास के 7 आध्यात्मिक नियम
 



1
व्यक्तित्व विकास में आध्यात्मिकता की अहम भूमिका होती है। जब हम आध्यात्मिक दृष्टि से अपना सूक्ष्म अवकोलन करते हैं, तो हमें हमारी असली तस्वीर दिखायी देने लगती है, जो हमारे गुण-दोषों को भी हमारे सामने रख देती है। जब हम अपने गुणों को जान लेते हैं, तब हम अपनी शक्तियों को सही दिशा में लगा पाने में सफल हो जाते हैं। जब हम अपने अवगुणों को जान लेते हैं, तो हम उनसे मुक्ति पाने के सशक्त उपाय करते हैं।
आध्यात्मिकता का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू यह भी है कि इसके द्वारा हमें ईश्वर की सत्ता का भी बोध होता है। हममें श्रद्धा और विश्वास उत्पन्न होता है। श्रद्धा से जहाँ विनम्रता उत्पन्न होती है, वहीं विश्वास से आत्मबल जन्म लेता है, जो हमारे भावात्मक पक्ष को मज़बूत बनाता हैं, जिससे व्यक्तित्व विकास में सहायता मिलती है।
आध्यात्मिकता द्वारा हम अपने गुण-दोषों का सूक्ष्म निरीक्षण कैसे करें और कैसे इन्हें अपने सामने लाए, इसके लिए हमें आध्यात्मिकता के 7 नियमों का पालन करना पड़ेगा। ये नियम हैं-
लेन-देन का नियम
कर्म का नियम
कम प्रयास का नियम
विरक्ति का नियम
धर्म का नियम
निष्काम प्रेम प्राप्ति का नियम
ध्यान अथवा चिन्तन का नियम
इन नियमों का पालन करके हम अपना सूक्ष्म निरीक्षण कर सकते हैं। कैसे? आइए जानते हैं। व्यक्तित्व विकास का पहला नियम है-
लेन-देन का नियम
कई शताब्दियों से मनुष्य इस बात को समझ चुका है कि उसका सामाजिक जीवन आदान-प्रदान यानि कि लेन-देन के नियम पर आधारित है। उसे उसके अनुभव ने सिखाया है कि जीवन को इसी शर्त पर निभाया जा सकता है कि प्रत्येक व्यक्ति को लेना और देना पड़ता है और यह जीवन के प्रत्येक स्तर पर लागू होता है- भौतिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक। यह लेन-देन का नियम ही 'न्याय' कहलाता है। आप अपने लिए कुछ लेते हैं तो बदले में आपको उसके बराबर ही कुछ देना पड़ता है। यदि आप जो लेते हैं और जो देते हैं उसके बीच सही सन्तुलन बनाये रख सकते हैं, तो आपने 'न्याय किया है।

लेकिन व्यक्ति इस तरफ ध्यान नहीं देता कि जो उसने किसी से लिया है, उसके बदले में उसने क्या दिया है। वे लेते तो बहुत कुछ हैं, परन्तु देने की बहुत कम आदत है। क्या वे इस बात को नहीं समझ पाते कि उनका उधार उनके खाते में लिखा जा चुका है तथा उस छोटे से कैमरे में कैद हो चुका है, जो हर समय हमारे साथ रहता है, जिसे हम देख नहीं पाते और जो हमारी एक-एक हरकत को रिकार्ड करता रहता है। एक दिन उन्हें अपना उधार चुकाना होगा और यह उन्हें मिलने वाले कष्टों का कारण बनेगा। उन्होंने बहुत मात्रा में खाया और पिया है, किसी का प्यार चुराया तथा लूटा है, किसी के साथ छल और विश्वासघात किया है, और बाद में, वे किसी भी तरह उसका भुगतान किये बिना ही चलने बनने में सफल हो गये हैं, वे सोचते हैं कि वे कभी पकड़े नहीं जायेंगे। यहीं पर वे बहुत बड़ी ग़लती कर रहे हैं और इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे अपना नाम और पता बदल दें, यहाँ तक कि राष्ट्रीयता भी बदल दें। कर्म का ईश्वर, जो बहुत ऊँचाई पर रहता है, उसके पास उनके हर लेन-देन का बहीखाता है। वो उन्हें कहीं से भी ढूँढ़ लेगा और उनका बही खाता उनके सामने खोल देगा, फिर अपना उधार चुकता करने को कहेगा। यदि वे अपना उधार चुकता नहीं करेंगे, तो उन्हें सजा भुगतनी होगी। वो भी इसी जन्म में | वे सज़ा से बच सकेंगे, ऐसे कभी नहीं हुआ। उन्हें सज़ा तो भुगतनी ही होगी, इसकी कोई माफी भी नहीं है। हाँ, आप एक ही शर्त पर बच सकते हैं, आपने जो लिया है, वो वापस कर दो।
मनुष्य का अपने समाज या राष्ट्र के प्रति भी ऋण होता है, जिसने उसको संस्कृति एवं सभ्यता का ज्ञान कराया - विद्यालयों, अजायबघरों, वाचनालयों, प्रयोगशालाओं, और सिनेमाघरों आदि के द्वारा। समाज ने उसे उसकी आवश्यकता के अनुसार- रेलगाड़ियाँ, वायुयान, आने-जाने के साधन दिये, देखभाल के लिये डॉक्टर दिये, अच्छी शिक्षा के लिए अध्यापक तथा व्याख्याता दिये, और उसकी सुरक्षा के लिए पुलिस और यहाँ तक सेना बल भी।
यही नहीं, मनुष्य इस धरती का भी ऋणी है, जिसने उसे जन्म दिया, उसका पालन-पोषण किया। वह सौरमण्डल का भी ऋणी है (क्योंकि सूर्य और अन्य ग्रहों ने उसे जीवित तथा सजीव रखा है)। मनुष्य समस्त ब्रह्माण्ड और अन्त में, ईश्वर का भी ऋणी है।
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनका यह कहना होता है कि उन्होंने किसी से कुछ नहीं लिया, सिर्फ दिया ही दिया है। यक़ीनन ऐसे लोग झूठ बोलते हैं। प्रकृति ऐसे लोगों को कभी माफ़ नहीं करती, वो उन्हें एक दिन उनके इस झूठ पर सज़ा ज़रूर देती है। प्रकृति अपने प्रति अपमानजनक व्यवहार को कभी सहन नहीं करती। वह ऐसे लोगों को कई बार चेतावनी देती है कि वे संभल जाये, और जब ऐसे लोग नहीं समझते, तो वह एक दिन उनका सर्वनाश कर देती है।
एक अनुशासित मनुष्य, जो न्याय के नियम के महत्त्व को समझता है, उसे मानता है, वह सबसे पहले अपने अभिभावकों से प्यार करेगा। जिससे कि उनका ऋण चुकाया जा सके, वह इस बात की बहुत सावधानियाँ रखता है कि उनके लिए क्या सही है, क्या ग़लत? बेहद सोच विचार के बाद वह वही करता है, जो सही होता है। वह अपने अभिभावकों का ही नहीं, अपने समाज, देश मानवता और ब्रह्माण्ड का भी ऋण चुकाता है। ऋण के बदले में वह जो मुद्रा देता है वह है उसका कार्य, उसके विचार, उसकी भावनायें एवं उसका विशाल हृदय। वह अपने कार्यों से निरन्तर ब्रह्माण्ड से सम्पर्क बनाये रखता है और सही मायने में यही एक तरीक

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