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Description
Informations
Publié par | Diamond Books |
Date de parution | 10 septembre 2020 |
Nombre de lectures | 0 |
EAN13 | 9789390287536 |
Langue | English |
Informations légales : prix de location à la page 0,0132€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.
Extrait
सफलता की कुंजी
संसार प्रसिद्ध विचारक और लेखक श्री स्वेट मार्डेन की पुस्तकों ने करोड़ों लोगों के जीवन में क्रांति ला दी है, भटक रही मानवता को नयी दिशा दी है। प्रस्तुत पुस्तक “सफलता की कुंजी” भी इसी महान विचारक की महान कृति का हिन्दी रूपांतर है।
सफलता की कुंजी
eISBN: 978-93-9028-753-6
© प्रकाशकाधीन
प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II
नई दिल्ली- 110020
फोन : 011-40712200
ई-मेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइट : www.diamondbook.in
संस्करण : 2020
Safalta Ki Kunji
By - Swett Marden
अनुक्रम अपने को पहचानो उदासीनता सपने और इच्छाएं आत्मविश्वास आत्मज्ञान का प्रभाव आत्मविश्वास का फल आत्म-प्रेरणा अन्तः प्रेरणा विश्वास का चमत्कार सफलता का रहस्य जो चाहें, वह पायें
1. अपने को पहचानो
ऊंची इच्छा, उद्यम, आक्रोश, आत्मा की पहचान, प्रबल कार्यक्षमता, तन्मयता यही आपके गुण होने चाहिए। जब आप इन गुणों के साथ किसी भी कार्य को करेंगे तो निश्चय ही सफलता मिलेगी।
एक मनोवैज्ञानिक का कथन है, प्रत्येक मनुष्य में एक आलौकिक गोपनीय शक्ति है। इसकी कल्पना न तो स्वयं वह इन्सान कर सकता है और न ही कोई और पर यदि इस शक्ति का कोई मापक यंत्र या एक्सरे जैसा कुछ निकल आये जो इस शक्ति का स्वरूप दिखला सके तो हम सब हैरान रह जायें। वास्तव में यह कथन सर्वथा सत्य है। हर इन्सान इस बात को महसूस करता है कि उसमें कुछ आंतरिक छिपी हुई शक्तियां हैं, पर कठिनाई यह है कि वह इस आंतरिक शक्ति का कैसे उपयोग करे, किस वक्त पर करे, कहां पर करे, इस बात को कोई नहीं जानता। इसलिए इनका उचित समय पर उपयोग न कर पाने के कारण इन आंतरिक शक्तियों से मिलने वाली उपलब्धियों से वह वंचित रह जाता है। इसी विडम्बना के कारण केवल वही व्यक्ति सफल हो पाते हैं, जो इसकी विधि जान लेते हैं।
दर्पण में केवल हम अपना चेहरा देख सकते हैं, पर इस शक्ति की पूरी पहचान कभी नहीं हो पाती। तो भी थोड़ा-बहुत जो भी पहचान लिया जाये, पर्याप्त है। उससे भी बहुत कुछ हो सकता है। हर मनुष्य, स्त्री या पुरुष अपनी कोई न कोई विशेषता या गुण रखता है, भले ही वह न पहचाने उसे, पर उसमें होता है। जिस प्रकार प्रत्येक मनुष्य का चेहरा, उसकी रेखाएं एक-दूसरे से नहीं मिल पाती हैं, उसी प्रकार हर एक की आदतें व गुण एक-दूसरे से नहीं मिल पाते हैं। इन गुणों का समुचित विकास न होने के कारण वह सब झुंझलाकर रह जाया करते हैं।
हीरा जब जमीन से निकलता है, तो उसे हीरा कह पाना या पहचान पाना तक मुश्किल होता है। जब उस पर पॉलिश हो जाती है, वह तराश दिया जाता है, तो फिर अपने आप लोग उसको पहचानने लगते हैं और उसकी कीमत बढ़ जाती है। इसी प्रकार, जब तक मनुष्य के गण तराशे नहीं जाते, उन पर पॉलिश नहीं की जाती, तब तक उनका मूल्य नहीं बढ़ सकता है। कई बार आपसे अचानक ऐसे कार्यों की सिद्धि हो जाती है कि आप स्वयं आश्चर्य में पड़ जाते हैं और खुद से पूछने लगते हैं, ऐसा कैसे हो गया? आपने सचमुच इस प्रकार का कार्य कैसे कर डाला? इसमें घटित होने की बात को नहीं समझ पायें, यह बात अलग है। इसमें चकित होने की बात नहीं है। इस दुनिया का कोई भी कार्य चाहे वह कितना भी ऊंचा, महान व कठिन क्यों न हो, सब मनुष्य द्वारा सम्पन्न किये गये हैं।
एक नन्हे से बीज से जब वृक्ष जैसी विशाल वस्तु निकल सकती है, इसकी क्या कल्पना भी की जा सकती है। एक अत्यन्त सूक्ष्मतम अणु अपने विस्फोट के द्वारा महा-विनाश कर सकता है। इसी प्रकार, आपके शरीर की सूक्ष्मतम शक्ति भी, आपका एक छोटा-सा विचार भी कितनी शक्ति रखता है, इसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। आप इस बात को कदापि न भूलें कि आपकी वर्तमान शक्ति से सैंकड़ों गुना शक्ति आपके अन्तःकरण में विद्यमान है। आप वर्तमान में जो कुछ हैं, उससे कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। आप इस बात को जानकर भी अनजान रहेंगे तो इसमें दोष किसका है। आप जीवन-लक्ष्य का ध्रुवतारा निश्चित कर लें। आपका निश्चय आपको चुम्बक के समान खींचेगा।
अतःकरण को जानिए:
ऊंची इच्छा, उद्यम, आक्रोश, आत्मा की पहचान, प्रबल कार्यक्षमता, तन्मयता यही आपके गुण होने चाहिएं। जब आप इन गुणों के साथ किसी भी कार्य को करेंगे तो निश्चय ही सफलता मिलेगी। आपके भीतर यह सब गुण हैं बशर्ते कि आप उनको पहचान लें। जब तक आप अपने को पहचान न लें, तब तक आप कुछ नहीं कर सकते हैं। अन्तःकरण को समुद्र की तरह गहरा और गम्भीर तथा पर्वत के समान महान बनाने पर ही आप किसी विशेष कार्य की सिद्धि कर सकते हैं। आप आन्तरिक शक्ति को पहचानकर अपना कार्य शुरू कर दें। सम्भव है बहुत से लोगों को इस बात पर विश्वास न आये कि उनमें एक महान शक्ति छिपी है। इस शक्ति के द्वारा वह विश्व के महान कार्य कर सकते हैं। इसमें अविश्वास की जरा भी शंका नहीं है। अपनी शक्ति को आप महत्त्वहीन न मानें। अपने को पहचान पाने के कारण ही आप इस प्रकार का जीवन व्यतीत करते हैं। ईश्वर ने आपको सारे अंग दिये हैं। आप उनका उपयोग कीजिए। ईश्वर ने आपका कोई भी अंग बेकार नहीं बनाया है। तब आप उनका क्यों नहीं उपयोग करते हैं? इसमें तब गलती किसकी है? अगर आप अपंग या विकलांग हैं, तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता है।
अदम्य साहसः
एक नवयुवक की गाथा है। वह विवाहित था। जवान था। खूबसूरत था। एक दिन आकस्मिक उसके दोनों हाथ क्रेशर से कट गये। डाक्टर बड़ा परिश्रम कर उसको बचा पाये, पर दोनों कटे हाथों की वजह से उसकी जिंदगी एक बोझ बन गयी। दोनों हाथ कटकर कंधों के पास केवल ठूंठ के समान रह गये थे। वह उद्विग्न हो गया। किसी प्रकार के काम के लायक न रहा। भाईयों की रोटी के टुकड़ों पर पलने लगा। वह उसकी उपेक्षा कर भिखमंगों के समान उसके साथ व्यवहार करने लगे। उसने अपनी पत्नी को भी लातों से पीटना शुरू कर दिया। जिसे कल तक बहुत प्यार करता था, वह दुश्मन हो गई। एक दिन भाईयों ने उसका बड़ा अपमान किया। उसे दो दिन तक खाना न दिया। खूब जली-कटी सुनाई। भाभियों ने भी खूब सुनाई। उसके मन को गहरी ठेस लगी। वह इतना निराश हो गया कि वह आत्महत्या करने पर उतारू हो गया। जब वह रेलवे-लाईन पर कटने के लिए लेट गया, तभी यकायक उसकी आत्मा ने ललकार दिया, “अरे तू यह क्या कर रहा है! अरे तू यह क्या कर रहा है, अरे कुछ दिखा करके दिखा।” वह उठ गया। घर की ओर चल पड़ा। पास एक पैसा नहीं। भूखा पेट। वह एक ग्वाले के पास गया। कमीशन पर उसका दूध बेचने की पेशकश की। उसने पूछा, “ले कैसे जाओगे?”
उसने अपने कंधों के पास के ठूंठ दिखलाये, “इन पर टांग कर।” उसका साहस देखकर ग्वाला मान गया।
इस प्रकार ग्वाले ने दूध के दो डिब्बे लटका दिए। उनको लेकर चार किलोमीटर दूर पैदल वह शहर में बेचने ले गया। उसका सारा दूध बिक गया। उसका उत्साह देखकर लोग भी उसके ग्राहक बन गये। वह दिन में दो फेरे लगाने लगा। आमदनी बढ़ती गयी। उसने पैसा जोड़ा और उसमें एक भैंस खरीद ली। अपनी भैंस का दूध बेचना शुरू किया। उसकी पत्नी सहायता करने लगी। वह दुधारू पशुओं की संख्या बढ़ाता गया। अच्छी-खासी डेयरी बन गई। देखते-देखते उसकी आमदनी बढ़ती गई। उसने अपना मकान बनवा लिया। वह सुख से रहने लगे। उसके भाईयों की हालत खराब हो गयी। तब वह उनके परिवारों का भी पालन-पोषण करने लगा। उसने अपना जीवन सुखमय बना लिया। बिना हाथों के वह एक सफल, सुखी व्यक्ति बन गया।
जब बिना हाथ वाला इतनी प्रगति कर सकता है, तो फिर आपके तो दोनों हाथ सही सलामत हैं। आप उससे ज्यादा ही प्रगति कर सकते हैं। आप नहीं कर पा रहे हैं, तो फिर इसमें दोष किसका है? इस हथकटे ने अपने आपको पहचान लिया था। इस तरह वह आगे बढ़ गया। आपने अपनी गुप्त शक्तियों को नहीं पहचाना है। आप अपनी शक्तियों को न पहचान पाने के कारण जीवन के महान कार्य से वंचित रह जाते हैं। आपको क्या मालूम कि आपके भीतर गुणों, विशेषताओं व योग्यताओं का भंडार भरा पड़ा है। अपनी शक्तियों और वास्तविक स्वरूप से अनिभज्ञ रह कर आप कभी भी अपने जीवन के उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकते। अन्धकार का परदा हमारे सामने बराबर पड़ा रहता है।
जब तक कोलम्बस अमेरिका नहीं पहुंचा था, तब तक वहां के लोगों को इस बात का एहसास न था कि एक दुनिया और है। इसी प्रकार, जब तक आपके ज्ञान का कोलम्बस, आपके अन्तःकरण के अमेरिका तक नहीं पहुंचता है, तब तक आपको इस बात का एहसास न होगा कि “एक दुनिया और है।” प्रसिद्ध विचारक और दार्शनिक इमर्सन का कहना है कि संसार में बहुत कम मनुष्य होते हैं, जो मरने से पहले आत्मपरिचय प्राप्त कर पाते हैं। अधिकतर लोग अपना कार्य सम्पन्न किये बिना ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। उनको अपनी कार्यक्षमता का ज्ञान नहीं हो पाता। सच्चाई है इमर्सन की इस बात में। प्रायः आदमी दूसरे को देखकर कहता है, काश! उसमें भी उसके समान शक्ति होती, तो वह मनुष्य भी उस कार्य को कर सकता था। अपनी इस बात को कहते हुए मनुष्य इस सत्य को भूल जाता है कि जिस व्यक्ति की वह चर्चा कर रहा है, जिसकी शक्ति के लिए वह लालायित है, उससे कहीं अधिक शक्ति उसके पास स्वयं है। वास्तव में इस प्रकार का कथन उस व्यक्ति की हीनता का परिचायक है। वास्तविकता यह है कि हीनता की भावना ही मनुष्य को कुंठित करती है। जब आप स्वयं को किसी के समक्ष हीन समझते हैं, तो आपकी शक्तियां उस व्यक्ति से प्रबल होने के बावजूद खामोश होकर निष्क्रिय होकर बैठ जाती हैं। यही गलत भावना आपको छोटा बनाये रखती है।
आत्म विवेचनः
अपनी शक्तियों का सूक्ष्म निरीक्षण कीजिए। उनको जागृत कीजिए। उन्हें एकाग्रचित्त से कार्य में लगाईये। तब देखिये कि कैसे आपका कार्य पूरा नहीं होता है और आपको सफलता नहीं मिलती है! प्रायः मनुष्य दूसरों की सफलता, शक्ति देखने में ही अपना बहुमूल्य समय खो देता है। इस ईर्ष्या-द्वेष के कारण भी अपना कार्य नहीं कर पाता है। यह सब न कर मनुष्य को अपने पर भरोसा करना चाहिए। उसमें सब गुण होते हैं। आवश्यकता पड़ने पर अपने आप आ जाते हैं।
एक गरीब आदमी को राजा बना दिया जाए अथवा उसको अच्छा पद दे दिया जाए, तो आप क्या यह समझते हैं कि वह अपना यह कार्य न कर पायेगा! अवश्य करेगा। उसे अवसर मिलना चाहिए। अवसर न मिलने के कारण मनुष्य की सारी प्रतिभाए दबी रह जाती हैं। बाहर का कोई आपको अवसर न देगा। आपको खुद अवसर तलाशना होगा। आज आप स्वयं को असहाय, दुर्बल, अकर्मण्य और अपना जीवन व्यर्थ समझते हैं। इसी कारण आप इस प्रकार हैं। अपने को पहचान कर आप पूरी ताकत से अपना काम करें तो फिर देखिए क्या चमत्कार होता है!
कुछ लोगों से यह पूछने पर, “कैया चल रहा है, भई। क्या हालचाल है?” जवाब मिलता है, “बस! दिन कट रहे हैं। जीवन काट रहा हूं।” इस प्रकार के उत्तर अत्यन्त निराशजनक होते हैं। इससे आदमी की दुर्बलता जाहिर होती है। अपने आपको पहचान लेना, ईश्वर को पहचान लेना है। इस आत्मदर्शन में बड़ी प्रेरणा मिलती है। इस प्रकार की प्रेरणा मानव जीवन को उच्च से उच्चतम और महान से महानतम बनाती है। प्रेरणा हमेशा आगे बढ़ाती है। यही जीवन का मूल मंत्र है। अपनी शक्तियों की पहचान आप किनारे पर बैठकर नहीं कर सकते। जिस प्रकार, सागर तट पर खड़े होकर आप उसकी गहराई का अनुमान नहीं लगा सकते, इसी प्रकार आन्तरिक शक्तियों की दशा है।
प्रायः कई बार ऐसा होता है कि कर्मक्षेत्र के कष्टों या संकट आने पर अचानक हमारी गुप्त शक्ति जाग उठती है और हम उस कष्ट या संकट का मुकाबला करने में समर्थ हो जाते हैं। इस प्रकार की शक्ति हमारे पास है, इसका आभास हम पहले नहीं कर पाते हैं। जीवन में इस प्रकार की अनेक घटनाएं देखी गयी हैं।
प्रसिद्ध व्यंग्यकार बर्नार्ड शॉ ने अपनी पहली रचना प्रकाशन के लिए भेजी, तो वह लौट आयी। शॉ को ठेस लगी। ठेस बहुत गहरी थी, पर शॉ ने ठान लिया कि वह लेखक बनकर रहेंगे। जार्ज बर्नार्ड शॉ लेखक बनकर रहे। जब उनको ठेस लगी तो उनकी आंतरिक शक्ति जाग उठी। उसी के बल पर वह महान लेखक बने। कुछ लोगों की आन्तरिक शक्तियां इतनी गहरी छिपी होती हैं कि कोई विशेष घटना ही उनको जगा पाती है साधारण कार्य, दुःखों या सामान्य जीवन चर्या उनकी शक्ति नहीं जगाती है, पर गहरी ठेस लगती है, तो वह प्रलय कर देते हैं। तब वह इस प