La lecture à portée de main
Vous pourrez modifier la taille du texte de cet ouvrage
Découvre YouScribe en t'inscrivant gratuitement
Je m'inscrisDécouvre YouScribe en t'inscrivant gratuitement
Je m'inscrisVous pourrez modifier la taille du texte de cet ouvrage
Description
Informations
Publié par | Diamond Books |
Date de parution | 10 septembre 2020 |
Nombre de lectures | 0 |
EAN13 | 9789390287819 |
Langue | English |
Informations légales : prix de location à la page 0,0158€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.
Extrait
मैनेजमेंट गुरु आचार्य महाप्रज्ञ
eISBN: 978-93-9028-781-9
© लेखकाधीन
प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II
नई दिल्ली- 110020
फोन : 011-40712200
ई-मेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइट : www.diamondbook.in
संस्करण : 2020
Management Guru: Acharya Mahapragya
By - Naresh Shandilya
समर्पण
पवित्र-पावन दिव्य आत्मा आचार्य महाप्रज्ञ जी को उनके जन्म शताब्दी वर्ष पर सादर अर्पित
अपनी बात
यह मेरा परम सौभाग्य है कि मुझे आचार्य महाप्रज्ञ जी जैसे परम संत व श्रेष्ठ साहित्यकार के साहित्य के आधार पर ‘मैनेजमेंट गुरु : आचार्य महाप्रज्ञ’ पुस्तक लिखने का अवसर प्राप्त हुआ।
जैसा कि पुस्तक के नाम से ही स्पष्ट है इसमें मैनेजमेंट व गुरु दो शब्द अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। इन दो शब्दों को जाने समझे बिना इस पुस्तक का पूरा लाभ नहीं लिया जा सकता। मैनेजमेंट शब्द का अर्थ है प्रबंधन। प्रबंधन किसी भी कार्य या क्षेत्र में हो सकता है। सही प्रबंधन के बिना किसी भी कार्य से श्रेष्ठतम परिणाम प्राप्त नहीं किये जा सकते। जीवन के प्रत्येक कार्य में सुनिश्चित सफलता के लिए सही प्रबंधन अति आवश्यक है। यदि हम विचार करें तो हम पायेंगे कि मनुष्य के लिए जीवन से अधिक महत्त्वपूर्ण व आवश्यक कुछ भी नहीं है। अतः जीवन को समझना, सही ढंग से उसे जीना सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। जब हमें जीवन के छोटे-छोटे कार्यों के लिए प्रबंधन की आवश्यकता होती है तो क्या सही जीवन जीने के लिए किसी प्रकार के प्रबंधन की आवश्यकता नहीं है? मैं समझता हूं कि यदि हम अपने जीवन को सार्थक करना चाहते हैं तो हमें अपने जीवन का भी सही प्रबंधन करना चाहिए।
अब प्रश्न उठता है कि यह सही प्रबंधन कैसे हो? इसकी सही जानकारी व मार्गदर्शन कैसे मिले? इस प्रश्न का उत्तर अगले शब्द गुरु में छिपा है। गुरु का अर्थ है अज्ञान से प्रकाश की ओर ले जाने वाला अर्थात् जीवन में सही मार्गदर्शन करने वाला।
इस पुस्तक में आचार्य महाप्रज्ञ जी ने गुरु की भूमिका निभाते हुए सफल व सार्थक जीवन जीने के लिए जीवन प्रबंधन के कुछ ऐसे उपाय बताए हैं जिनका पालन कर न केवल हम जीवन में भौतिक सफलताएं अर्जित कर सकते हैं अपितु आध्यात्मिक शिखर भी छू सकते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ जी ने अपने सुदीर्घ जीवन के अनुभवों व चिंतन मनन से अर्जित अनुभवों को सरल सहज शब्दों में कथाओं व प्रसंगों को आधार बनाते हुए जीवन प्रबंधन के ऐसे गुर बताए हैं जो किसी भी व्यक्ति के जीवन को बदल सकते हैं।
इस पुस्तक को लिखते समय मैंने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि विषय की सारगर्भिता, संक्षिप्तता व संपूर्णता बनी रहे। पुस्तक को अधिक सुगम पठनीय व संग्रहणीय बनाने के लिए इसे 27 अध्यायों व अनेक उपखण्डों में विभक्त किया गया है।
मेरा विश्वास है कि यह पुस्तक प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक पथ प्रदर्शक का काम करेगी और सार्थक जीवन जीने के लिए प्रेरक बनेगी। यदि यह पुस्तक किसी एक पाठक के जीवन को भी सही दिशा देने में सहायक बनी तो मैं अपना श्रम सार्थक समझूंगा। इस पुस्तक के प्रकाशन हेतु जैन श्वेतांबर तेरा पंथी सभा, दिल्ली के अध्यक्ष श्री तेजकरण सुराणा एवं महामंत्री श्री विजय चोपड़ा का सार्थक सहयोग रहा। पुस्तक में मार्गदर्शन के लिए मैं श्रद्धेय मुनि श्री जय कुमार और वांछित सहयोग के लिए कविमित्र श्री राजेश जैन ‘चेतन’ और श्री इन्द्र बैंगानी को भी साधुवाद देता हूं।
नरेश शांडिल्य सत्य सदन, ए-5, मनसाराम पार्क, संडे बाजार रोड, उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059 मो. 9868303565, 9711714960 ईमेल : nareshhindi@yahoo.com , nareshshandilya007@gmail.com
श्रद्धाप्रणमना प्रस्तुति
मनुष्य के पास विचारों की अभिव्यक्ति की जो शक्ति है वो किसी अन्य जगत के प्राणी को नहीं है। अपने चिंतन को व्यक्त करने की क्षमता केवल मनुष्य के पास है क्योंकि उसके पास बौद्धिक क्षमता है। विचारों के अभिव्यक्ति का माध्यम या तो लेखनी है अथवा वाणी है।
आचार्य महाप्रज्ञ ने इस मानवता को अनेकों अवदान दिए हैं, उनके साहित्य ने, उनकी वाणी ने लाखों लोगों के विचारों को, उनकी सोच को परिवर्तित किया है। अनेकों समस्याओं का समाधान आचार्य महाप्रज्ञ के विलक्षण चिंतन में समाहित है। मनुष्य के व्यवहार में कैसे परिवर्तन हो, यह उनके विचारों में परिलक्षित होता था। आज मनुष्य के व्यवहार का विश्लेषण किया जा रहा है। मनुष्य के व्यवहार की तीन मुख्य बातें हैं- प्रवृत्ति, निवृत्ति और उपेक्षा। इन तीनों का मर्म अगर इंसान समझ जाए तो जीवन की समस्याओं का निराकरण सहज हो जाता है। विचारों का मूल्यांकन, समस्याओं का समाधान तभी निहित है जब अभिव्यक्त करने वाला अंतर प्रेरणा से प्रेरित होकर, सम्यक् ज्ञान के साथ वाणी व लेखनी से दूसरे के व्यवहार व चिंतन को मोड़ने में सक्षम हो तभी किसी ग्रंथ की उपयोगिता सार्थक होती है।।
श्री नरेश शांडिल्य द्वारा लिखित यह पुस्तक ‘मैनेजमेंट गुरु महाप्रज्ञ’ व्यापक परिदृश्य में दिव्यद्रष्टा आचार्य महाप्रज्ञ के समग्र प्रबंधन कौशल को लिप्यांतरण कर प्रकाशित करना एक भागीरथी प्रयास है। पश्चिम का प्रबंधन कौशल सांख्य पर आधारित है और पूर्वी प्रबंधन कौशल में दर्शन व धर्म समाहित है, वहीं आचार्य महाप्रज्ञ के प्रबंधन में पूर्व की नीतियाँ आगम व दर्शन सम्मिलित हैं, वहीं पर पश्चिम का वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी व्यवहार में परिलक्षित होता है।
आचार्य महाप्रज्ञ के आलेखों में तेईस सौ वर्ष पूर्व के आचार्य विष्णु गुप्त कौटिल्य चाणक्य अर्थशास्त्र, वृहद चाणक्य, चाणक्य राजनीति शास्त्र, चाणक्य नीति के श्लोकों का बहुत ही सुंदरता से विषय को प्रवाहमान रूप देने के लिए उपयोग किया गया है, वहीं आचार्य महाप्रज्ञ के वृहस्पति नीति व श्री कृष्ण की भगवद् गीता के श्लोकों को कथानक के रूप में प्रस्तुत कर नया रूप दिया है, वहीं पर जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर के उपदेशों में वर्तमान के संदर्भ में अर्थनीति पर प्रासंगिक विश्लेषण कर एक नया स्वरूप समाज व राष्ट्र के समक्ष प्रस्तुत कर प्रबंधन कौशल से जोड़ा है। आचार्य महाप्रज्ञ के प्रबंधन कौशल का उत्कृष्ट उदाहरण इससे बेहतर हो ही नहीं सकता कि प्रकारांतर में देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के साथ अध्यात्म और विज्ञान के अंतर संबंधों पर संयुक्त रूप से ग्रंथ की रचना कर ‘सुखी परिवार समृद्ध राष्ट्र कैसे हो’ विषय पर सूक्ष्मता के साथ विवेचन कर कौशलता का परिचय दिया।
आचार्य महाप्रज्ञ का जीवन यथा नाम तथा गुण और यथा दृष्टि तथा सृष्टि को साकार करता है। उन्होंने व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और विश्व को नवजीवन प्रबंधन का विचार दिया। उनके प्रबंधन में संकल्प की शक्ति, मन की एकाग्रता, दृढ़-विश्वास, न्यूनतम आवश्यकता, साधना संसाधनों की कमी को ही अपनी शक्ति बनाना, ज्ञान की सार्वजनिनता, ज्ञान को लौकिक स्वरूप देने, आचार की शुद्धता, कार्य क्रियान्वयन में सभी बाधाओं-समस्याओं को प्रारंभ के समय से ही ध्यान रखना, सहकर्मियों, अधीनस्थों से प्रेम व वात्सल्यपूर्ण व्यवहार, समय की पाबंदी, एक-एक पल का सदुपयोग, अपनी ऊर्जा का विस्तार, श्वान निद्रा, अनुयायियों यान, काक चेष्टा आदि तो उन्होंने अपने जीवन में चरितार्थ कर अपने अनुयाइयों को प्रबंधन के सूत्र दिए। विरोध के विचार को शांति से सुनना और अंतर्चेतना से मानसिक अवसाद व तनाव से मुक्त होकर उद्देश्य प्राप्ति के लिए सतत् प्रयासरत रहना उनके प्रबंधन का एक महत्त्वपूर्ण पहलू रहा।
आचार्य महाप्रज्ञ ने नव प्रबंधन योग को प्रचलित किया इससे ही वे एक ही साथ अनेक परियोजनाओं पर क्रियाशील रहते। यही वजह है कि उनकी दृष्टि सभी पर समान रहती। कहते हैं कि उनका तृतीय नेत्र जाग्रत था, तभी तो वो अनंत शक्ति के ऊर्जा स्रोत से स्वयं को संबद्ध कर ही महा ऊर्जावान होकर हर क्षेत्र में हर विषय पर घंटों प्रवचन देने में सक्षम थे।
महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी के अवसर पर अल्प समय में यह पुस्तक प्रकाशित होना अपने आपमें एक आश्चर्य है। मेरा विश्वास है श्री नरेश शांडिल्य की लेखनी से उस कालजयी ऋषि के अनुभवों, अवदानों व अनुभूतियों के माध्यम से जो यह प्रयास किया गया है वो जन-जन के आत्मोत्थान के साथ-साथ व्यवहारिक जीवन की सफलता हेतु एक मील का पत्थर साबित होगा।
इस पुस्तक के प्रकाशन हेतु डायमंड बुक्स के चेयरमैन श्री नरेंद्र कुमार वर्मा ने सहर्ष स्वीकृति प्रदान की उनके प्रति हार्दिक धन्यवाद।
श्री शांडिल्य ने आचार्य महाप्रज्ञ के प्रति श्रद्धा भाव रखते हुए इस पुस्तक का लेखन कर पुण्यों का अर्जन किया, उसके लिए कृतज्ञता व साधुवाद। अस्तु उनकी यह कृति निश्चित ही पाठकों के लिए प्रेरणास्पद बनेगी, शिक्षाप्रद होगी। पाठक इस पुस्तक को पढ़कर अपने जीवन को सृजनात्मकता प्रदत्त करने में एक सशक्त आलम्बन को आभासित करेंगे।
पुण्यशाली एवं त्रिकालिक ध्रुव आत्मा के प्रति साष्टांग प्रणति।
- तेजकरण सुराणा ‘जैन’
परिकल्पना
बचपन से ही मुनि नथमल का पाठक रहा, क्या पता था एक दिन स्वयं ही आचार्य महाप्रज्ञ के रूप में जाने जाएँगे। आचार्य महाप्रज्ञ का दिल्ली चातुर्मास था, मैं भी जब दर्शन के लिए गया तो यहाँ कवि हृदय मुनि जय कुमार जी से परिचय हुआ। परिचय क्या हुआ, आपने तो मुझे पकड़ ही लिया। भिवानी छोड़ने के बाद तेरापंथ धर्मसंघ से लगभग दूर हो गया था परंतु इस परिचय के बाद पुनः धर्मसंघ में लौट आया। मुनि जय कुमार जी के माध्यम से परिचय हुआ युवक श्री इंद्र बैंगाणी से, जो बन गए मेरे धर्मसंघ पर्यवेक्षक।
डायमंड पॉकेट बुक्स के चेयरमैन श्री नरेंद्र वर्मा को एक बार आचार्य महाप्रज्ञ के दर्शन करने का आग्रह किया, जो आपने सहर्ष स्वीकार कर लिया। नरेंद्र जी ने आचार्य महाप्रज्ञ से निवेदन किया कि आपका साहित्य केवल धर्मसंघ की बुक स्टॉल पर मिलता है, ओशो की तरह आपका साहित्य भी हर बुक स्टॉल पर मिलना चाहिए। इस मुलाकात के बाद तेरापंथ का कुछ साहित्य धर्मसंघ से बाहर प्रकाशित होना आरंभ हुआ और डायमंड से भी कुछ पुस्तकें आई।
एक बार मैं इंद्र बैंगाणी के साथ डायमंड के ऑफिस गया, वहाँ पर मैनेजमेंट गुरु पुस्तकों की एक पूरी श्रृंखला देखकर हमारे मन में विचार आया कि इस श्रृंखला में आचार्य महाप्रज्ञ जी का नाम नहीं है और उसी दिन मैनेजमेंट गुरु महाप्रज्ञ पुस्तक का अंकुर हमारे मन में उपजा। आचार्य महाप्रज्ञ ने न सिर्फ स्वयं सुव्यवस्थित जीवनचर्या के साथ जीवन जिया अपितु जन-मानस के लिए भी मैनेजमेंट के वो सूत्र प्रदान किए जो कि निश्चित ही व्यक्ति के जीवन की दिशा एवं दशा को रूपांतरित कर सकते हैं।
अब जब आचार्य महाप्रज्ञ का जन्म शताब्दी वर्ष चल रहा है तब ये विचार हमने मुनिवर जय कुमार जी और तेरापंथी सभा, दिल्ली के यशस्वी अध्यक्ष श्री तेजकरण सुराणा और महामंत्री श्री विजय चौपड़ा के सामने रखा तो इस विचार को पंख लग गए।
सबने मिलकर लेखन के लिए अनेक नामों पर विचार करने के बाद अंत में देश के प्रख्यात लेखक एवं कवि श्री नरेश शांडिल्य का नाम चयनित किया, नरेश जी मेरे प्रिय मित्र हैं और आचार्य महाप्रज्ञ साहित्य के मर्मज्ञ हैं, जब आपसे ये आग्रह किया आपने इसे तुरंत स्वीकार कर लिया।
श्री नरेश जी ने बहुत श्रम से इस पुस्तक को तैयार किया है और श्री नरेंद्र वर्मा ने श्रद्धापूर्वक इस पुस्तक का प्रकाशन किया है। यह पुस्तक अब आपके हाथ में है और अंतिम निर्णायक आप हैं।
- राजेश चेतन
विषय सूची गुरु अर्थात जीवन का मैनेजमेंट जीवन का अहम गुण है वाणी अहंकार: सफल जीवन का दुश्मन व्यवहार कुशल बनें लक्ष्य बिना कैसे मिलेगा मुकाम! समय और कर्म का नियोजन अनुशासन: सफलता के ताले की चाबी संगति गढ़ती है व्यक्ति का व्यक्तित्व नैतिकता से ही जीवन का प्रबंधन संस्कार बिना संभव नही जीवन का मैनेजमेंट कैसे करें एकाग्रता मैनेजमेंट अभ्यास की राह से मिलती है सफलता जरूरी है आत्मविश्लेषण का मैनेजमेंट महाप्रज्ञ जी ने दिए व्यक्तित्व निर्माण सूत्र सकारात्मक दृष्टिकोण: जीवन का दर्पण भौतिकतावाद के इस युग में जरूरी है स्व-प्रबंधन कैसे करें स्व का नियोजन? असफलता वही मिलती है, जहां