JEEVAN ME SAFAL HONE KE UPAYE
98 pages
Hindi

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JEEVAN ME SAFAL HONE KE UPAYE , livre ebook

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Description

Through this book, identify the hidden powers of your stress and avoid disappointment, fear-free measures and respect actions. This book is to inspire, encourage and fill the person with confidence. The book is like a Beacon light guiding an individual through a route of obstacles.


Sujets

Informations

Publié par
Date de parution 30 octobre 2012
Nombre de lectures 0
EAN13 9789352151028
Langue Hindi
Poids de l'ouvrage 1 Mo

Informations légales : prix de location à la page 0,0500€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

जीवन में सफल होने के उपाय
 
 
मूल लेखक
स्वेट मार्डेन
 
रुपांतरकार
सुरेन्द्रनाथ सक्सेना
 
 



प्रकाशक

F-2/16, अंसारी रोड, दरियागंज, नयी दिल्ली-110002 23240026, 23240027 • फैक्स: 011-23240028 E-mail: info@vspublishers.com • Website: www.vspublishers.com
क्षेत्रीय कार्यालय : हैदराबाद
5-1-707/1, ब्रिज भवन (सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया लेन के पास)
बैंक स्ट्रीट, कोटि, हैदराबाद-500015
040-24737290
E-mail: vspublishershyd@gmail.com
शाखा : मुम्बई
जयवंत इंडस्ट्रियल इस्टेट, 1st फ्लोर, 108-तारदेव रोड
अपोजिट सोबो सेन्ट्रल मुम्बई 400034
022-23510736
E-mail: vspublishersmum@gmail.com
फ़ॉलो करें:
© कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स ISBN 978-93-814485-3-3
डिस्क्लिमर
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गई पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या संपूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
पुस्तक में प्रदान की गई सभी सामग्रियों को व्यावसायिक मार्गदर्शन के तहत सरल बनाया गया है। किसी भी प्रकार के उदाहरण या अतिरिक्त जानकारी के स्रोतों के रूप में किसी संगठन या वेबसाइट के उल्लेखों का लेखक प्रकाशक समर्थन नहीं करता है। यह भी संभव है कि पुस्तक के प्रकाशन के दौरान उद्धत वेबसाइट हटा दी गई हो।
इस पुस्तक में उल्लीखित विशेषज्ञ की राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटाकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
पुस्तक में दिए गए विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जाएगा।
मुद्रक: परम ऑफसेटर्स, ओखला, नयी दिल्ली-110020


भूमिका
ओरीसन स्वेट मार्डेन अमरीका के विश्व प्रसिद्ध विचारक और लेखक थे। उन्होंने 'व्यक्तिगत सफलता पाने का विज्ञान है' (science of Personal Achievement) का विकास किया। वे प्रभावशाली वक्ता और आध्यात्मिक शक्तियों में विश्वास करने वाले महापुरुष थे। उन्होंने अपने तथा लाखों अन्य व्यक्तियों के जीवन में घटित होने वाले मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक नियमों का सूक्ष्म अध्ययनकर स्वास्थ्य, सुख तथा सफलता पाने के रहस्यों का पता लगाया। इन रहस्यों को स्वेट मार्डेन ने अपनी पुस्तकों में अत्यंत प्रभावशाली रीति से प्रस्तुत किया। उनकी इन प्रेरणापूर्ण पुस्तकों को पढ़कर संसार के असंख्य निराश व्यक्तियों ने अपने जीवन को सुख एंव सफलता से पूर्ण किया।
प्रस्तुत पुस्तक स्वेट मार्डेन द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तक To Succeed In Life का हिंदी रूपांतर है। रूपांतरकार सुरेंद्रनाथ सक्सेना ने इसे भारतीय पाठकों के लिए अधिक प्रभावपूर्ण बनाने के लिए उचित स्थानों पर भारतीय दार्शनिकों के विचारों और घटनाओं को भी प्रस्तुत किया है, इस बात का पूरा ध्यान रखते हुए कि लेखक के विचार-प्रवाह में कोई अवरोध न आने पाये।
यह प्रेरणा और प्रोत्साहन से भरी ऐसी पुस्तक है, जो आप में नया उत्साह तथा आत्मविश्वास का संचारकर जीवन में सुख तथा सफलता पाने के महान रहस्यों से परिचित करायेगी। यह चमत्कारिक पुस्तक आपके जीवन में नयी सरसता और साहस की ताजगी घोल देगी।
—प्रकाशक
विषय सूची
1. सफलता की और पहला कदम
जब अपनी समस्या न सुलझे
क्षतिपूर्ति का सिद्धांत
दुर्भाग्य में सौभाग्य का बीज
बीज और फल अलग-अलग नहीं
कर्म में ही सच्चा आनंद है
भय: सफलता में सबसे बड़ी बाधा
जलन से बचिए
वैज्ञानिक-सी सोच
एक सच्चा व्यवहारिक दार्शनिक
2. मानसिक तनाव का सामना
मौन: सभी प्रश्नों का समाधान
रचनात्मक आध्यात्मिक मौन
शक्ति का प्रयोग: कब और कितना
धर्मग्रन्थों के शब्द: आपके सच्चे साथी
अपराधबोध और तनाव
घृणा और हीनता की भावना
3. अमृतत्व की ओर
हिंदू घर्म में आत्मा की नित्यता का सिंद्धांत
पराशक्तियों को जानने का प्रयास
स्वर्गवासी मां के हाथों का स्पर्श
मृत्यु एक कृपा है
मृत्यु एक वैज्ञानिक की दृष्टि में
मृत्यु से संघर्ष और उसके लिए समर्पण
सफलता का मूलमंत्र: उपकरणों पर विश्वास
4. आपके कष्ट और पीड़ाएं
विश्वास से सब संभव
जब सहने के अलावा दूसरा कोई उपाय न हो
पंगु चढ़ई गिरिवर गहन
अनूठी अलौकिक शांति
प्रार्थना ही रेकेट है
स्वास्थ्य के लिए सदभावनाएं जरूरी
पवित्र भावनाओं के मूलस्रोत
जब कोई दवा असर न करे
आध्यात्मिक चमत्कार: भौतिक दृष्टि से परे का रहस्य
5. सदाबहार स्वास्थ्य का रहस्य
शरीर तनाव का सामना कैसे करता है
धर्म और स्वास्थ्य का गहरा संबंध
रोग: बीमार इच्छाओं के फल
निरंतर साधना प्रार्थना और आत्मविश्लेषण
6. अपने जीवन को आनंदमय बनाइए
तालमेल: जीवन का संगीत
‘लेट भी कॅाल यू स्वीट हार्ट'
जैसा बनना चाहते हैं, वैसा ही लगातार सोचिए
आपके तौर-तरीके: प्रसन्नत्ता व सक्रियता का तालमेल
जैसा कर्म वैसा फल: एक निश्चित सिद्धांत
अपने काम का सम्मान
खुशी का बंटवारा, प्रसन्नता का उत्तम उपाय
परोपकार: सभी धर्मों का सार
7. उदासी छोड़ने और उत्साह पाने के उपाय
आशा अवसाद की औषधि
विमान में पर विमान से ऊपर
पानी में कमल की तरह
डॉक्टर की नहीं, परमात्मा की आवश्यकता
शरीर पर विचारों का प्रभाव: एक मनोवैज्ञानिक प्रयोग
विश्वास ही सबसे बड़ा चमत्कार है
उदासी से छुटकारे के नियम
परेशानी की कोई बात नहीं
8. स्वस्थ अहम् का विकास
ऐसे करें स्वस्थ अहम् का विकास
अहम् को जानने के उपाय
पोशाक और अहम्
सेल्समेन और अहम्
आपका अहम् और समृद्धि
आत्मविश्वास: अपनी क्षमताओं की जानकारी
साधनों की खोज
9. जो बीत गया, उसे भूल जाइये
भला ही भला हैं
मेरी प्रेमकथा
अंतरात्मा की आवाज
सफलता और मानसिक शांति का संबंध
धनवान पर गरीब से बदतर
उन्नति की सही राह
अतीत के दरवाजों को बंद ही रखिए
लाशों को न ढोयें
आप और आपके कार्य दोनों ही महान हैं

1. सफलता की ओर पहला कदम....

अपने जीवन-उद्देश्य को जानना और उसे प्राप्त करने के लिए दृढ़ आत्मविश्वास रखना, यही है सफलता की ओर पहला कदम। यह अदम्य विचार कि मैं अवश्य सफल होऊंगा और इस पर पूरा विश्वास ही सफलता पाने का मूल मंत्र हैं। याद रखिए! विचार संसार की सबसे महान शक्ति है। यही कारण हैं कि सफलता पाने वाले लोग पूर्ण आत्मविश्वास रखते हुए अपने कर्मों को तो पूरी कुशलता से करते ही हैं, दूसरों की सफलता के लिए भी वे सदा प्रयत्नश्लील रहते हैं।
प्रत्येक विचार, प्रत्येक कर्म का फल अवश्य मिलता है। अच्छे का अच्छा और बुरे का बुरा। यही प्रकृति का नियम है। इसमें देर हो सकती है पर अंधेर नहीं। इसलिए अगर आप सफल होना चाहते हैं, तो अच्छे विचार रखिये; सद्कर्म करिये और जरूरतमंदों की नि:स्वार्थ भाव से सहायता तथा सेवा करिये। मार्ग में आने वाली कठिनाइयों बाधाओं और दूसरों की कटु आलोचनाओं से अपने मन को अशांत न होने दीजिये।
मैं आपको एक सच्ची और रोचक कहानी कई भागों में सुनाना चाहता हूं। यह मेरी आप बीती है।
दूसरों की तरह मुझसे भी गलतियां हुई हैं और मैं अनेक बार गलत भावनाओं के कोहरे में गुम हुआ हूं। मैंने अपनी गलतियों से शिक्षा ली है और यदि ऐसा न होता,तो में दूसरों को सलाह देने के योग्य नहीं हो पाता। मैंने अपनी भूलों और गलतियों से जो ज्ञान बड़े परिश्रम से पाया है, उसी के आधार पर अपनी मानसिक शांति और सफलता का निर्माण किया है।
यह घटना उन दिनों की है जब मैं एक ऐसे व्यक्तिगत संकट में फंस गया था, जिसमें अपना लगभग सभी कुछ गंवा बैठा था और तब मैंने अनुभव किया था कि मुझे एक बार फिर से आर्थिक, मानसिक व आध्यात्यिक उन्नति के लिए प्रयत्न करना होगा।
मैं तब अटलांटा जिले के जोर्जिया नामक स्थान पर था। वहां मध्यवर्गीय आय के लोग रहते थे। एक दिन मैं अपने पुराने व्यापारिक साथी और मित्र मार्क वूडिंग से मिलने गया। उसने नगर के व्यापारिक केंद्र के बीच में एक बड़ा अल्पाहार गृह हाल ही में खोला था।
भेंट के दौरान मेरे दोस्त ने बतलाया कि वह गंभीर कठिनाई में था। वहां का बाजार हर शाम जल्दी बंद हो जाता था। उसके बाद वह जगह श्मशान की तरह शांत हो जाती थी।
इसका नतीजा यह होता था कि लंच टाइम के समय तो काफी ग्राहक आ जाते थे पर शाम को और रात्रिभोज के समय गिनती के ही लोग आते थे। इससे उसे अपने अल्पाहार गृह से पर्याप्त आमदनी नहीं हो रहीं थी। उसे कोई ऐसा उपाय नहीं सूझ रहा था, जिससे लोगों को रात्रिभोज पर आने के लिए प्रेरित किया जा सके।
जब अपनी समस्या न सुलझे
मेरा मस्तिष्क अपनी समस्याओं में व्यस्त था। लेकिन मैंने यह पाठ अपने जीवन में बहुत पहले सीख लिया था कि जब कोई अपनी समस्याओं को हल नहीं कर सके तो उसके लिए सबसे अच्छा तरीका एक ऐसे व्यक्ति की खोज करना है जिसके पास उससे भी अधिक समस्याएं हो, और तब वह उन्हें हल करने में उसकी सहायता करे। मैं अपने दोस्त की समस्या का हल निकालने के लिए अपने विचारों को केंद्रित करने लगा।

चारों ओर नजर दौड़ाने पर मैंने उसके अल्पाहारगृह में एक बड़ा डायनिंग हॉल देखा। उसमें कई सौ व्यक्ति बैठ सकते थे। वहां का फर्नीचर बहुत अच्छा था। उसके अल्पाहारगृह के पास पार्किंग की जगह थी। वहां तक आने-जाने के लिए वाहन की सुविधा भी थी। लोग उस स्थान तक आसानी से आ सकते थे और स्वादिष्ट भोजन का भरपूर म़जा ले सकते थे। लेकिन वास्तविक समस्या लोगों को वहां तक लाने की थी। मैंने दोस्त को अपनी सलाह बिना किसी फीस लिये देने का निश्चय किया-वैसे मुझे फीस वसूल करने के बाद ही सलाह देने की आदत है। उसकी समस्या का हल अचानक एक चमक की तरह मेरे दिमाग में कौंधा। मैंने मार्क को सुझाव दिया कि अगर वह चाहे, तो मैं हर रात उसके डाइनिंग रूम में ‘व्यक्तिगत रूप से कैसे सफलता पायी जाए' विषय पर वैज्ञानिक रीति से भाषण देना शुरू कर सकता हूं। इन भाषणों की मैं कोई फीस नहीं लूंगा और वे केवल उन लोगों के लिए होंगे, जो वहां रात्रिभोज करने आएंगे। भोजन करने के लिए वे कीमत चुकाएंगे।
स्थानीय समाचारपत्रों और इश्तिहारों द्वारा हमने अपनी खोजना का खूब प्रचार किया।
पहली ही रात इतने अधिक ग्राहक-श्रोता आये कि अनेक को हमें निराश लौटाना पड़ा, क्योंकि हॅाल में जगह नहीं थी। उसके बाद से हर रात इतने ग्राहक-श्रोता आने लगे कि कुछ को वापस लौटाना पड़ता। इस तरह मेरे मित्र मार्क वूर्डिंग को रात में भोजन करने वाले ग्राहकों से बहुत अच्छी आमदनी होने लगी।
इस सारी सफलता पर कितनी लागत आयी? केवल विज्ञापन पर व्यय होने वाली धनराशि। मैं अपने व्याख्यानों पर सदैव फीस लेता हूं लेकिन अपने जरूरतमंद मित्र की सहायता के लिए मैंने अपनी सेवाएं निशुल्क दीं। मेरे इस सद्भावना प्रेरित कार्य से कुछ अदृश्य शक्तियां सक्रिय होनी प्रारंभ हो गयीं।
क्षतिपूर्ति का सिद्धांत
उन पुरानी घटनाओं पर विचार करने के बाद में इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि उपरोक्त नि:स्वार्थ कार्य का मुझे बहुत अच्छा फल मिला। मैं अपनी इस रोचक कथा को आगे सुनाऊं उससे पहले इस तथ्य पर बल देना चाहूंगा कि अपने मित्र की नि:स्वार्ध सहायता कर मैंने अपनी समस्याओं का हल कर लिया। भारत के एक लोकप्रिय और पवित्र ग्रंथ रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने ठीक ही लिखा है-
परहित बस जिनके मन माहीं, तिन्ह कहुं जग दुर्लभ कछू नाहीं ।
यहां कुछ क्षण के लिए रुकिए और विचार कीजिए कि दूसरों की नि:स्वार्थ सेवा या सहायता करने के महान सिद्धान्त को आप कैसे अपना सकते हैं? इसको अपना कर आप धन ही नहीं, वरन् बहुत कुछ उपलब्ध कर सकते हैं। भारतीय मनीषी इसे ही सच्चा धर्म मानते हैं। भारत के संत कवि तुलसीदास जी के शब्दों में-
परहित सरिस धरम नहिं भाई, परपीड़ा सम नहिं अधमाई ।
और धर्मशास्त्र इसी बात को बड़

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