Jeet ya Haar Raho Tayyar
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Jeet ya Haar Raho Tayyar , livre ebook

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Description

Dr. Patni says that we must believe that all odd situations will not continue for long and the change is definite. If you don't achieve success, you should not be restless, you should believe in yourself and you should not accept the defeat. You should analyses your work process and find out the mistakes so that you can restart with the required changes. You have to win over adverse consequences.

Informations

Publié par
Date de parution 01 juin 2020
Nombre de lectures 0
EAN13 9789352781546
Langue English

Informations légales : prix de location à la page 0,0198€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

जीत या हार
रहो तैयार

 
eISBN: 978-93-5278-154-6
© प्रकाशकाधीन
प्रकाशक: मेडिडेन्ट इंडिया बुक्सि .
X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II
नई दिल्ली-110020
फोन: 011-40712100, 41611861
फैक्स: 011-41611866
ई-मेल: ebooks@dpb.in
वेबसाइट: www.diamondbook.in
संस्करण: 2016
जीत या हार रहो तैयार
लेखक : डॉ. उज्जवल पाटनी
माँ तुम्हें प्रणाम
मैं "जीत या हार-रहो तैयार" को अपनी प्यारी माँ के स्वर्गसम चरणों में समर्पित करता हूँ । कम उम्र में पिता के देहावसान के बाद माँ ने ही मुझे इस काबिल बनाया कि मैं दूसरों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकूं और स्वयं के जीवन की जिम्मेदारी ले सकूँ । मैं अत्यंत दुर्भाग्यशाली दूँ क्योंकि मुझे उन्हें सुख के क्षण देने का अवसर ही नहीं मिला । जब मैं अपने पैरों पर खड़ा हुआ, वे अस्वस्थ हो गई और कुछ समय पहले उनका देहांत हो गया ।
मेरी माँ कहती थी कि जीत और हार मंजिल के सफर का एक हिस्सा है, हारने से कोई छोटा नहीं होता और जीतने से कोई बड़ा नहीं होता । महत्त्व इस बात का होता है कि आपने अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग किया या नहीं, महत्व इस बात का है कि आपने अपने सपनों को पाने के लिए पसीना बहाया या नहीं । मंजिल पर पहुँच कर जो आनंद मिलेगा, उसकी कल्पना करते हुए डटे रहिए, फिर चाहे पथ पर कैसी भी मुश्किलें हो ।
सीधा खरा और सच्चा
इस कृति के प्रथम संस्करण को पढ़ने के बाद मुझे ढेरों पत्र और ई-मेल आए । अधिकांश लोगों ने कृति की दिल खोलकर प्रशंसा की और आभार व्यक्त किया । ईश्वर से प्रार्थना है कि इस प्रशंसा को मैं अहंकार और घमंड आने के पहले ही भूल जाऊँ । खैर, कुछ पाठकों ने मुझे सलाह दी कि मैं अपनी लेखनी की तीखी धार और कड़वाहट थोड़ी कम करूं । मैं सोच में पड़ गया कि कड़वाहट कैसे क्रम करूं क्योंकि मैं तो सच लिखता हूँ, सीधा, स्पष्ट, बिल्कुल खरा और सच तो अधिकांशतः कड़वा होता है ।
सच तो यह है, कि दीवार में यदि कील ठोकनी हो तो हथौड़ा ही काम आता है, तकिये से काम नहीं चलेगा । बड़ी बीमारियां ठीक करनी हो तो कड़वी गोली और इंजेक्शन लेने ही पड़ते है, केवल मीठी गोली से बात नहीं बनती । उसी तरह मैं भी बिना लाग-लपेट के सीधी बात कहता हूँ क्योंकि मैं आपकी जिंदगी में सकारात्मक परिवर्तन चाहता हूँ ।
सच यह भी है कि मशीनी जिंदगी की भागमभाग में इंसान की संवेदना कम हो गई है, हल्की-फुल्की बातें तो चमड़ी को नहीं भेद पाती, मस्तिष्क को क्या भेदेंगी । अपनी कार्यशालाओं में शुद्ध थ्योरी से मैं परहेज करता हूँ । मैं वही कहता हूँ जिसे आप जीवन में अमल में ला सकें ।
इसलिए मैंने तय किया हैं जब तक लिखूंगा, सीधा, खरा और सच्चा लिखूंगा। आपको मेरे विचार ठुकराने का पूरा हक है क्योंकि जरूरी नहीं कि आप और हम हर बार सहमत हों । अच्छा लिखूं तो अमल करना और आहत करूं तो क्षमा कर देना ।
जीत या हार रहो तैयार

इस कृति से में बेहद प्रभावित हूँ। मुझे पूरा विश्वास है कि जिस तरह से मुझे फायदा हुआ है, उसी तरह से यह कृति हर किसी को जबरदस्त प्रेरणा देगी.....
डॉ. किरण बेदी प्रख्यात लेखिका, मैठसेसे पुरस्कार विजेता, भा.पु.से. महानिदेशक

जीत या हार रहो तैयार एक बेहतरीन कृति है। मैं आपके लिखे हर शब्द से सहमत हूँ....
जोगिन्दर सिंह प्रख्यात लेखक, पूर्व निदेशक -सी.बी.आई.

मैंने आपकी कृति पढ़ी इतनी सरल भाषा में इतनी जबरदस्त कृति के लिए आपको बधाई देती हूँ। मुझे पूरा विश्वास है कि यह लोगों के लिए बेहद उपयोगी और पथप्रदर्शक होगी.....
मल्लिका साराभाई प्रख्यात नृत्यांगना एवं समाजसेवी

 
“कड़वे प्रवचनों” के लिए प्रशिद्ध क्रन्तिकारी राष्ट्रसंत मनुश्री तरुण सागर के “जीत या हार रहो तैयार” हेतु उदगार
अनुक्रम प्रेरक और पुस्तक दोनों का कोई मोल नहीं असफल होने का अर्थ जीवन का अंत नहीं वरदान कहे या अभिशाप साथ छोड़िए, साथ चुनिए तनाव है तो जिंदगी है स्वयं की मार्केटिंग कीजिए क्या आपका भी जुमला है-टाईम नहीं है ताकत के साथ दिशा भी जरूरी है जिंदगी की प्राथमिकताएं तय कीजिए अतीत से मुक्ति जल्दी है ऊपर वाला कर्मवीरों को चाहता है जैसा नजरिया, वैसा संसार थोड़ा सा एक्स्ट्रा सकारात्मक लोग नकारात्मक लोग आपके पास कैसे लोग हैं मेरी श्रद्धांजलि कैसी होगी जापानी अद्भुत गाथा गर्व जरूरी है -अहंकार और दिखावा नहीं नानूगिरी के 3 नियम यह सफलता क्या बला है लक्ष्य बिना सब दूर अंधेरा उत्साह नहीं, तो मुर्दा हो पेंसिल से जानिए सुखी जीवन के पांच नियम अस्वीकार किए जाने का भय बहानों की अर्थी या सफलता का जनाजा गुणी लेखकों, मुझे क्षमा करना जो चाहिए वो बाँटों क्या आप स्वयं पर विश्वास करते है क्या आप भी अवसर का रोना रोते है मेरा सबसे प्यारा गुरुमंत्र लोड मत लो- LML परिवार प्रथम है परिणाम चाहिए फोकस कीजिए सफल बोलचाल के छः शक्तिशाली नियम कछुआ और खरगोश गुडविल बनाने के 25 मंत्र कुछ वादे जो निभाने है आपका यू.एस.पी क्या है? इन वाक्यों को तलाक दे दीजिए दूसरे प्रोत्साहन नहीं देते, की फरक पैदा
प्रेरक और पुस्तक दोनों का कोई मोल नहीं
ढेरों व्यक्तित्व विकास और जीवन प्रबंध की पुस्तकें पढ़-पढ़कर लोगों को अब ये केवल किताबी बातें लगती है । उन्हें लगता है कि ऐसी पुस्तकों से किसी को कुछ हासिल नहीं होता, कोरी फिलॉसफी है ये । इन पुस्तकों के अधिकांश सिद्धान्त ऐसे होते है, जिनका वास्तविक जीवन में कोई मोल नहीं होता ।
बुद्धिमान लोग यह भी कहते है, कि प्रकाशक किताबें बेचकर कमाता है, लेखक रॉयल्टी से कमाता है और ज्ञान की दुकान चलती रहती है ।
मैं शत प्रतिशत आपसे सहमत हूँ कि कोई भी प्रेरक किसी की जिंदगी नहीं बदल सकता । कोई भी किताब किसी की उलझन नहीं सुलझा सकती । कोई भी सारपूर्ण कहानी किसी को राह नहीं दिखा सकती । कोई भी सलाह किसी की गलत आदत नहीं सुधार सकती और कोई भी सिर्फ किताब पढ़कर आज तक करोड़पति नहीं हुआ क्योंकि सबसे महत्त्वपूर्ण उस पुस्तक को पढ़ने वाला व्यक्ति है । यदि पाठक बदलना नहीं चाहता, अपनी कमजोरियों और असफलता के साथ बीना चाहता है, तो प्रेरक और पुस्तक, दोनों का कोई मोल नहीं ।
यदि पाठक अपनी समस्या नहीं सुलझाना चाहता, तकलीफ में जीना चाहता है, मुश्किलों में और गहरे फंसना चाहता है तो आखिर किताब क्या कर सकती है । यदि पाठक अपनी गलत आदत नहीं बदलना चाहता, यह जानते हुए भी कि वह आदत बदलते ही जिंदगी कदम चूसने लगेगी, तो इसमें निर्जीव पुस्तक का क्या दोष है ।
कोई भी पाठक किताब पढ़कर सफल और धनवान नहीं हो सकता क्योंकि पुस्तक कोई एटीएम मशीन तो है नहीं, जिसमें बटन दबाओ और पैसे बाहर आ जाए । पुस्तक केवल आपको धन कमाने के स्रोत और रास्ते में आने वाली मुश्किलें बता सकती है, आप अपने बिस्तर से बाहर निकलकर पसीना ही नहीं बहाना चाहेंगे तो कुछ भी नहीं बदलेगा ।
मित्रों! यदि आप किसी शहर के लिए यात्रा करने वाले हो तो उस यात्रा के लिए आपको उपयुक्त ट्रेन का चुनाव करना होगा । रिजर्वेशन कराना होगा, नियत दिन और नियत समय पर पहुँचकर सही ट्रेन में बैठना होगा । अंत में यह भी ध्यान रखना होगा कि आप मंजिल पर पहुँचने के पहले ट्रेन से न उतरें । आपको यदि घर पर ट्रेन की सारी जानकारी सही टिकट के साथ भी पहुँचा दी जाएगी तो भी आपको मंजिल पर पहुँचने के लिए घर से निकलकर स्टेशन पहुँचना होगा और ट्रेन पर चढ़ना होगा । बिना मेहनत के जब एक छोटी सी ट्रेन यात्रा संभव नहीं है तो जीवन यात्रा कैसे होगी ।
ठीक इसी प्रकार इस किताब में आपको ऐसे अनेक विचार मिलेंगे जो आपको सोचने पर मजबूर करेंगे, लेकिन सकारात्मक परिवर्तन तभी होगा जब आप पूरी ताकत और योजना से उस विचार पर कार्य करेंगे । एक श्रेष्ठ विचार में इतनी शक्ति होती है कि वो अमल में लाने वाले के जीवन में जबरदस्त परिवर्तन ला सकता है । उस कार्य को शुरू करने से भी ज्यादा जरूरी है, अंत तक मंजिल प्राप्त करने के लिए डटे रहना । यदि आपने आलस्य या निराशा की वजह से अधूरे मन से प्रयास किया तो कुछ भी हासिल नहीं होगा ।
यह किताब एक शानदार प्रीतिभोज के मीनू की तरह है, जो भी पसंद आए ग्रहण कर लेना, जो पसंद ना आए उसे छोड़ देना । एक ही बार में ज्यादा ग्रहण मत करना नहीं तो अपच ही वजह से तकलीफ हो सकती है । यदि उपवास रखकर प्रीतिभोज में आओगे, तो मेजबान की कोई गलती नहीं, दोष उसके कंधे पर मत डालना ।
यदि इस किताब का असली मजा लेना है तो "मैं ज्ञानी हूँ" इस धारणा को निकाल फेंको, दिमाग के बंद दरवाजों को खोलो और मेरे विचारों को अपने अंदर प्रवेश करने दो । क्योंकि दिमाग एक पैराशूट की तरह होता है वो तभी काम करता है जब वो खुलता है । अक्सर किताबों में लिखे बेहतरीन प्रेरणादायी विचार भी लोगों को उद्वेलित नहीं कर पाते, झंझोड़ नहीं पाते, क्योंकि लोग उन विचारों को दिमाग में प्रवेश ही नहीं करने देते है । कुछ अति बुद्धिमान लोग, थ्योरिटिकल बात, सुनी सुनाई बात, बहुत जगह पढ़ा है, जैसे शब्दों के माध्यम से इन क्रांतिकारी विचारों को गौण कर देते है, महानायकों की उपलब्धियों और संघर्षों को सामान्य बना देते है । यदि आप सीखने की प्रक्रिया आरंभ करना चाहते है, तो ‘ सब कुछ जानते है ' को हटाना पड़ेगा क्योंकि जानना महत्त्वपूर्ण नहीं है, मानना महत्त्वपूर्ण है ।
गुस्सा संबंधों को नष्ट कर देता है, सब जानते है लेकिन...
दो नंबर का कार्य करने पर फंस सकते है, सब जानते हैं लेकिन,..
तेज गाड़ी चलाने से एक्सीडेन्ट होता है, सब जानते है लेकिन...
जल्द सोना, जल्द उठना अमृत तुल्य है, सब जानते है लेकिन...
दूसरी स्त्रियों को गलत निगाह से नहीं देखना चाहिए, सब जानते है लेकिन...
कोई भी इंसान मृत्यु के बाद दौलत साथ नहीं ले जाता, सब जानते है लेकिन
सिगरेट, तंबाकू, शराब, गुटका जानलेवा हो सकता है, सब जानते है लेकिन
इसी तरह की हजारों बातें है, जिन्हें हम जानते हैं, परन्तु उनके प्रति गंभीर नहीं होते, उन्हें अमल में नहीं लाते और अंत में उनकी कीमत चुकाते है । क्या सिर्फ जानना महत्त्वपूर्ण है, या जानने के साथ जीवन में भी उतारना पड़ेगा । जो जानता नहीं इसलिए पालन नहीं कर पाता, बह अज्ञानी है, लेकिन जो जानते है फिर भी पालन नहीं करते, वे मूर्ख है । आप अपनी श्रेणी स्वयं चुनिए अज्ञानी, मूर्ख या बुद्धिमान...

मैं यह तो दावा नहीं कर सकता कि आप इसको पढ़ते ही सफल हो जाएंगे या धनी हो जाएंगे, लेकिन आप एक बार अवश्य सोचने पर मजबूर हो जाएंगे । यदि सोचने की प्रक्रिया शुरू हो गयी तो सीखने की स्वतः शुरू हो जाएगी । मैं राह दिखा सकता हूँ अच्छा-बुरा बता सकता हूँ लेकिन राह पर चलना तो स्वयं को पड़ेगा । अच्छे बुरे में किसको चुने, यह निर्णय आपका अपना होगा ।
एक शक्तिशाली विचार ने एक ऐसे छात्र को डाक्टर बना दिया जो बड़ी मुश्किल से पास होता था और जो ग्यारहवीं कक्षा में दो विषयों में फेल हो गया था । एक दूसरे शक्तिशाली विचार ने उस सफल डाक्टर को एक व्यक्तित्व विकास प्रशिक्षक बना दिया और स्पीच गुरु का उपनाम दे दिया । एक तीसरे शक्तिशाली विचार ने उस ट्रेनिंग एक्सपर्ट को लोकप्रिय लेखक बना दिया और उसकी किताब देश-विदेश में धड़ाधड़ बिकने लगी । यदि मुझ जैसा औसत से भी कम स्तर का विद्यार्थी विचारों से दोलित होकर उपलब्धियाँ हासिल कर सकता है तो यकीन मानिए, आप भी हासिल कर सकते हैं । शर्त सिर्फ एक है, विचारों को अपने दिमाग में प्रवेश करने दे और बिना अति बुद्धिमानी लगाए, पूरी शिद्दत के साथ कार्य करें ।
मैं आपके जैसा ही आम आदमी हूँ, आपका दोस्त हूँ, कभी जीतता, कभी हारता, कभी गिरता, कभी उठता लेकिन उम्मीदें जिंदा है डटा हुआ हूँ...

डॉ. उज्जवल पाटनी Email: traning@ujjwalpatni.com website: www.ujjwalpatni.com
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असफल होने का अर्थ जीवन का अंत नहीं
यह अध्याय लिखते हुए कुछ महत्त्वपूर्ण सवाल मेरे दिमाग में कौंध रहे है । किसी भी व्यक्ति को असफल बनाने के लिए कौन जिम्मेदार होता है, दूसरे लोग या वह स्वयं? कोई अवसर का लाभ नहीं उठा पाया तो इसकी जिम्मेदारी किसकी है, दूसरों की या स्वयं की? कोई योग्यता होते हुये भी सामान्य जिंदगी जी रहा हो तो कौन इसका जिम्मेदार है, दूसरे या वह स्वयं? कोई आधे मन

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