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Description
Informations
Publié par | Diamond Books |
Date de parution | 01 juin 2020 |
Nombre de lectures | 0 |
EAN13 | 9789352787388 |
Langue | English |
Informations légales : prix de location à la page 0,0166€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.
Extrait
लोक व्यवहार
प्रभावशाली व्यक्तित्व की कला
डेल कारनेगी
eISBN: 978-93-5278-738-8
© प्रकाशकाधीन
प्रकाशक: डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि .
X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II
नई दिल्ली-110020
फोन: 011-40712100, 41611861
फैक्स: 011-41611866
ई-मेल: ebooks@dpb.in
वेबसाइट: www.diamondbook.in
संस्करण: 2016
लोक व्यवहार
लेखक : डेल कारनेगी
संशोधित संस्करण की प्रस्तावना
हा ऊ टु विन फ्रैंडस एंड इन्फ्लुएंस पीपुल का पहला संस्करण 1936 में छपा । इसकी केवल पाँच हजार प्रतियाँ छापी गईं । न तो डेल कारनेगी को, न ही प्रकाशकों साइमन एंड शुस्टर को उम्मीद थी कि इस पुस्तक की इससे ज्यादा प्रतियाँ बिकेंगी । उन्हें बहुत हैरानी हुई, जब यह पुस्तक रातों-रात लोकप्रिय हो गई और जनता ने इसकी इतनी माँग की कि इसके एक के बाद एक संस्करण छापने पड़े । हाऊ टु विन फ्रैंडस एंड इन्फ्लुएंस पीपुल पुस्तकों के इतिहास में सार्वकालिक अंतर्राष्ट्रीय बेस्टसेलर बन चुकी है । हम यह नहीं कह सकते कि इसकी लोकप्रियता का कारण यह था कि उस समय मंदी का दौर खत्म हुआ ही था । दरअसल इसने जनमानस की ऐसी नस को छुआ है, एक ऐसी इंसानी जरूरत को पूरा किया है कि यह आधी सदी बाद भी लगातार बिक रही है ।
डेल कारनेगी कहा करते थे कि दस लाख डॉलर कमाना आसान है, परंतु अंग्रेजी भाषा में एक वाक्यांश लोकप्रिय करना मुश्किल है । हाऊ टु विन फैंड्स एंड इन्फ्लुएंस पीपुल एक ऐसा ही वाक्यांश है, जिसे लोगों ने उद्धृत किया है, पैराफ्रैज किया है, पैरोडी किया है और राजनीतिक कार्टूनों से लेकर उपन्यासों तक अनंत संदर्भों में प्रयुक्त किया है । इस पुस्तक का अनुवाद लगभग सारी लिखी जाने वाली भाषाओं में हो चुका है । हर पीढ़ी ने इसे नए सिरे से खोजा है और इसकी प्रासंगिकता और इसके मूल्य को पहचाना है ।
अब हम तार्किक प्रश्न पर आते हैं : ऐसी पुस्तक को रिवाइज करने की जरूरत थी, जो इतनी लोकप्रिय और शाश्वत महत्व की है? सफलता के साथ छेड़छाड़ क्यों?
इसका जवाब जानने के लिए हमें यह एहसास होना चाहिए कि डेल कारनेगी स्वयं जीवन-भर अपनी पुस्तकों को रिवाइज करते रहे हाऊ टु विन फ़्रेंड्स एंड इन्फ्लुएंस पीपुल एक पाठ्यपुस्तक के रूप में लिखी गई थी, इफेक्टिव स्पीकिंग एंड सूमन रिलेशन्स के कोर्सेज की पाठ्यपुस्तक के रूप में । यह पुस्तक आज भी इसी रूप में प्रयुक्त हो रही है । 1955 में अपनी मृत्यु तक वे लगातार कोर्स को सुधारते और रिवाइज करते रहे, ताकि बदलती हुई दुनिया की बदलती हुई जरूरतों का बेहतर ध्यान रखा जा सके । वर्तमान दुनिया के बदलते हुए स्वरूप के प्रति डेल कारनेगी से ज्यादा संवेदनशील कोई नहीं था । उन्होंने अपने शिक्षा देने के तरीकों को भी लगातार सुधारा । उन्होंने इफैक्टिव स्पीकिंग की अपनी पुस्तक को कई बार अपडेट किया । अगर वे कुछ समय और जीवित रहते, तो उन्होंने खुद ही हाऊ टु विन फैंड्स एड इन्फ्लुएंस पीपुल को रिवाइज किया होता, ताकि यह बदलती हुई दुनिया में अधिक प्रासंगिक हो सके ।
पुस्तक में दिए गए कई महत्त्वपूर्ण लोगों के नाम इसके प्रथम प्रकाशन के समय जाने-पहचाने थे, परंतु आज के पाठक उन्हें नहीं पहचान सकते । कुछ उदाहरण और वाक्यांश अब पुराने लगते हैं, उसी तरह से जिस तरह हमें किसी विक्टोरियन उपन्यास का सामाजिक माहौल पुराना लगता है । इस पुस्तक का महत्त्वपूर्ण संदेश और संपूर्ण प्रभाव उस हद तक कमजोर हो गया था ।
इस रिवीजन में हमारा उद्देश्य इस पुस्तक को आधुनिक पाठक के लिए स्पष्ट और सुदृढ़ करना है, इसके मूल भाव से छेड़छाड़ किए बिना । हमने हाऊ टु विन फैंड्स एंड इन्फ्लुएंस पीपुल को ‘बदला' नहीं है, हमने इसमें से छिटपुट चीजें हटाई हैं और कुछ समकालीन उदाहरण जोड़े हैं । कारनेगी की उतावली, जोशीली शैली अब भी बरकरार है, यहाँ तक कि तीस के दशक का सलैंग भी मौजूद है । डेल कारनेगी ने उसी तरह लिखा, जिस तरह वे बोलते थे, उत्साही, बातूनी, चर्चा करने वाली शैली में ।
तो उनकी आवाज में, इस पुस्तक में अब भी उतना ही दम है, जितना पहले था । दुनिया-भर में लोग कारनेगी कोर्सेज में प्रशिक्षित हो रहे हैं और इनकी संख्या हर साल बढ़ रही है और लाखों लोग हाऊ टू विन फैड्स एड इन्फ्लुएंस पीपुल को पढ़कर अपने जीवन को सुधारने के लिए प्रेरित हो रहे हैं । उन सभी के सामने हम यह रिवाइज्ड पुस्तक प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसमें हमारा योगदान सिर्फ इतना-सा है कि हमने एक सुंदर उपकरण को थोड़ा-सा चमका दिया है और तराश दिया है ।
-डोरोथी कारनेगी (मिसेज डेल कारनेगी)
पुस्तक क्यों और कैसे लिखी गई ?
बी सवीं शताब्दी के प्रारंभिक पैंतीस वर्षों में अमेरिका में दो लाख से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हुईं, लेकिन अधिकतर प्रभावहीन एवं नीरस थीं, इसीलिए ब्रिकी के हिसाब से भी वे लाभ का सौदा नहीं थीं । यह केवल मेरा ही विचार नहीं था, अपितु एक बड़े प्रकाशन समूह के अध्यक्ष ने भी इस बात को स्वीकार किया था ।
लेकिन अब सवाल यह उठता है कि यह सब जानने के बाद भी मैं यह पुस्तक क्यों लिख रहा हूँ और आप इसे पढ़ने की भूल क्यों कर रहे हैं?
दोनों ही प्रश्न एकदम सटीक हैं तथा इन दोनों ही प्रश्नों के जवाब देने का मैं पूरा-पूरा प्रयास करूँगा ।
सन् 1912 से मैं न्यूयॉर्क में व्यापार से जुड़े व्यक्तियों एवं व्यावसायिक लोगों के लिए अपना शैक्षणिक पाठ्यक्रम चला रहा हूँ । प्रारम्भिक दिनों में मैं लोगों को सार्वजनिक रूप से बोलने की कला सिखाता था, लेकिन फिर मुझे महसूस हुआ कि प्रभावी ढंग से बोलने की कला के साथ-साथ यह भी जरूरी है कि हर व्यक्ति यह जान जाये कि प्रतिदिन के व्यापारिक तथा सामाजिक जीवन में लोगों के साथ किस प्रकार व्यवहार किया जाये ।
हर व्यक्ति के लिए अपने क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति को प्रभावित करना सबसे बड़ी चुनौती होती है, फिर चाहे वह इंजीनियर हो, डॉक्टर हो या फिर मामूली-सा धोबी या दर्जी ही क्यों न हो ।
अब क्या आपको नहीं लगता कि इस कीमती कला को सिखाने के लिए दुनिया के प्रत्येक कॉलेज में विशेष पाठ्यक्रम चलाये जाने चाहिए, लेकिन मैंने तो आज तक ऐसे किसी पाठ्यक्रम या कॉलेज का नाम नहीं सुना।
चूँकि आज तक लोकव्यवहार की कला से सम्बन्धित कोई भी पुस्तक नहीं लिखी गयी है, इसलिए इस पुस्तक को तैयार करने में मैंने अथक परिश्रम किया है । मैंने अखबारों व पत्रिकाओं के लेख, पारिवारिक अदालतों के रिकार्ड तथा नये पुराने सभी दार्शनिकों को पढ़ डाला । अकेले थियोडोर रूजवेल्ट की ही मैंने सौ जीवनियाँ पड़ी ।
मैंने कितने ही सफल व्यक्तियों, जैसे मार्कोनी तथा एडीसन जैसे आविष्कारक, फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट तथा जेम्स फार्ले जैसे राजनीतिज्ञ, ओवेन डी. यंग जैसे बिजनेस लीडर, क्लार्क गेबल तथा पिकफोर्ड जैसे मूवी स्टार्स तथा मार्टिन जॉनसन जैसे खोजी लोगों के व्यक्तिगत साक्षात्कार ले डाले ।
यह पुस्तक उस तरह नहीं लिखी गयी है, जैसे आमतौर पर पुस्तकें लिखी जाती हैं । यह तो उसी तरह धीरे-धीरे बड़ी हुई है, जैसे कोई बच्चा माँ-बाप की छत्रछाया में बड़ा होता है । यह एक प्रयोगशाला में बड़ी हुई है और इसमें अनगिनत वयस्कों के अनुभवों का जीवन्त निचोड़ है ।
यहाँ जो नियम दिये गये हैं, वे कोरे सिद्धान्त या अँधेरे में छोड़े गये तीर नहीं हैं, वरन् वे तो जादू की भाँति मंत्रमुग्ध कर देने वाले हैं ।
इस पुस्तक का एकमात्र लक्ष्य यही है कि आप अपनी सोई हुई क्षमताओं तथा शक्तियों से भली भाँति परिचित हों, ताकि आपका जीवन सुखमय बन सके । प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी के भूतपूर्व अध्यक्ष डी. जॉन जी. हिब्बन का मत था- ‘शिक्षा जीवन की स्थितियों का सामना करने की योग्यता है ।'
यदि प्रथम तीन अध्याय पढ़ने के पश्चात् आपको लगे कि आपने कुछ भी नहीं सीखा है या फिर आप जीवन की स्थितियों का सामना करने के योग्य नहीं बन पाये हैं, तो मैं समझ लूँगा कि आपको समझाने में यह पुस्तक सफल नहीं हुई है, क्योंकि जैसा हरबर्ट स्पेंसर ने लिखा है- ‘शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान नहीं, बल्कि कर्म है ।'
यह पुस्तक कर्म के बारे में लिखी गई है ।
— डेल कारनेगी
अनुक्रम संशोधित संस्करण की प्रस्तावना पुस्तक क्यों और कैसे लिखी गई ?
भाग -एक लोगों को प्रभावित करने के अचूक नुस्खे 1. शहद इकट्ठा करने के लिए मधुमक्खी के छत्ते पर लात नहीं मारते 2. व्यवहार-कुशल होने के सफल उपाय 3. नया करने के लिए दुनिया सबसे अलग बनना पड़ता है ।
भाग -दो लोगों के दिल में जगह बनाने के छः आसान तरीके 1. प्रत्येक स्थान पर सम्मान कैसे कराएँ 2. लोगों को प्रभावित करने का सरल तरीका 3. यदि आप यह नहीं कर सकते, तो आप मुसीबत में हैं 4. सफल वक्ता बनने का तरीका 5. लोगों में रुचि पैदा करें 6. लोगों को तत्काल प्रभावित कैसे करें
भाग -तीन क्या करें कि दूसरे आपकी बात मान जायें 1. बहस से किसी का कोई लाभ नहीं 2. अपने दुश्मन को जाने और समझे 3. गलती स्वीकारने में परहेज नहीं होना चाहिए 4. शहद की एक बूँद ही काफी है 5. सुकरात का रहस्य 6. शिकायतों से मुक्ति संभव 7. दूसरों का सहयोग कैसे लिया जाये 8. बेहतर तकनीक चमत्कार भी कर सकती है 9. मनुष्य क्या चाहता है? 10. वह जो हर व्यक्ति पसंद करता है 11. जब फिल्मों में हो सकता है तो हकीकत में क्यों नहीं 12. जब काम न बने, तो ऐसा करें
भाग -चार बिना ठेस पहुँचाये लोगों को कैसे बदला जाये 1. गलतियों का पता कैसे लगाएं 2. मरीज को बचाने के लिए आलोचना करे 3. दूसरों की गलतियों से पहले अपनी गलतियाँ बताये 4. किसी पर हुक्म चलने से बचे 5. सामने वाले को सम्मान बचाने का अवसर दें 6. सफलता हासिल करने की कारगर तकनीक 7. बुरे को भी अच्छा ही नाम दें 8. गलती सुधारना मुश्किल नहीं 9. सही तकनीक वही जिससे लोग आपका काम करने लगे
भाग — एक
लोगों को प्रभावित करने के अच्छे नुस्खे
1
शहद इकट्ठा करने के लिए मधुमक्खी के छत्ते पर लात नहीं मारते
स न् 1931 की सात मई को न्यूयार्क में एक बड़ी मुठभेड़ हो रही थी । यह मुठभेड़ उस समय अपने अन्तिम पड़ाव पर थी, इसलिए लोगों के बीच इसका बहुत रोमांच था । महीनों तक लुका-छिपी का खेल खेलने के बाद अन्त में हत्यारे क्रॉले को चारों ओर से घेर लिया गया था । वहाँ पर वह ‘दुनाली बंदूक' नाम से मशहूर था । जो हत्यारा इस समय चारों ओर से घिरा हुआ था और वेस्ट एवेन्यू में अपनी प्रेमिका के घर छिपा हुआ था, वह हत्यारा न तो सिगरेट पीता था, न शराब को हाथ तक लगाता था ।
वह ऊपर की मंजिल में छिपा हुआ था और 150 से अधिक पुलिसवाले और जासूस धरती से लेकर छत तक उसे चारों ओर से घेरे हुए थे । पुलिस वालों ने छत में छेद करके तथा टियरगैस को इस्तेमाल करके ‘इस पुलिस वालों के कुख्यात हत्यारे को निकालना चाहा । आस-पास की इमारतों पर भी मशीनगनें तैनात थीं तथा एक घण्टे तक न्यूयॉर्क के इस इलाके में मशीनगनों तथा बन्दूकों से गोलियों की बरसात होती रही । क्रॉले एक कुर्सी के पीछे छिपकर पुलिस पर लगातार गोलियाँ बरसा रहा था । हजारों लोग पुलिस और हत्यारे की इस मुठभेड़ का रोमांचक आनंद ले रहे थे । शायद ही इससे पहले न्यूयॉर्क शहर में ऐसा दृश्य सामने आया हो ।
अन्त में क्रॉले को पकड़ लिया गया । पुलिस कमिश्नर ई. पी. मलरूनी ने बताया कि वह न्यूयॉर्क के इतिहास में अब तक के सबसे खतरनाक अपराधियों में से एक था । कमिश्नर ने कहा- ‘वह इतना चौकन्ना और चुस्त था कि पंख फड़फड़ाने की आहट पर ही किसी को भी मार देता था ।'
लेकिन ‘दुनाली बन्दूक' खुद अपनी नजरों में क्या था? हमें इस बात की जानकारी इसलिए मिल सकी, क्योंकि जब पुलिस उस पर गोलियों की बौछार कर रही थी, उस समय क्रॉले ने एक चिट्ठी लिखी । चिट्ठी लिखते समय उसके घावों से लगातार बहते खून के निशान उस चिट्ठी पर भी लग गये थे । इस चिट्ठी में क्रॉले ने लिखा था- ‘मेरी कमीज के नीचे एक अत्यन्त ही दयालु, परन्तु दुखी दिल है, एक ऐसा कोमल दिल, जो किसी को भी नुकसान नहीं पहुँचाना चाहता ।'
पत्र लिखने के कुछ समय पहले की यह बात है, एक बार क्रॉले लीग आइलैण्ड पर गाँव की सुनसान सड़क पर अपनी प्रेमिका के साथ मौजमस्ती कर रहा था । अकस्मात् ही एक पुलिस वाला उसकी कार के पास आकर उससे लाइसेंस दिखाने के लिए कहने लगा । इतनी-सी