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Description
Informations
Publié par | Diamond Books |
Date de parution | 01 juin 2020 |
Nombre de lectures | 0 |
EAN13 | 9789352789511 |
Langue | English |
Informations légales : prix de location à la page 0,0166€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.
Extrait
चिंता छोड़ो सुख से जियो
eISBN: 978-93-5278-951-1
© प्रकाशकाधीन
प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II
नई दिल्ली- 110020
फोन : 011-40712100
ई-मेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइट : www.diamondbook.in
संस्करण : 2018
Chinta Chhodo Sukh Se Jiyo
By - Dale Carnegie
विषय सूची
भाग-1 चिंता के मूलभूत तथ्य
1. आज को कैसे जिएं
2. चिंताजनक स्थितियों से निबटने के उपाय
3. चिंता से तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ सकता
भाग -2 चिंता के विश्लेषण की मूलभूत तकनीकें
4. चिंता का विश्लेषण और समाधान
5. बिजनेस की चिंताएं कैसे दूर करें
भाग -3 चिंता आपको समाप्त करे, आप चिंता को समाप्त कर दें
6. चिंता दूर कैसे करें?
7. कहीं चिंता आपको खोखला न कर दे
8. चिंताओं को मिटा देने वाला नियम
9. जो बीत गया उसे भूल जाओ
10. चिंता पर लगाएं ‘स्टॉप लॉस’
11. बुरादे पर आरी चलाना व्यर्थ है
भाग-4 सुख-शांति बनाए रखने के सात तरीके
12. वे शब्द जो जिंदगी बदल सकते हैं
13. बदला लेना एक महंगा सौदा है
14. कृतघ्नता के बारे में सोचना बंद कर दें
15. क्या आपको दस लाख डॉलर चाहिए ?
16. इस दुनिया में आपके जैसा कोई नहीं
17. नींबू को शर्बत में बदला जा सकता है
18. निराशा को कैसे दूर करें?
भाग-5 चिंता को कैसे जीता जाएं?
19. चिंता को कैसे जीता जाए
भाग-6 आलोचना से कैसे बचा जाए
20. अनुचित आलोचना से कैसे बचें
21. आलोचना के प्रति कैसा व्यवहार करें
22. मेरी मूर्खताएं
भाग-7 चिंता रोकने तथा जोश व ऊर्जा बढ़ाने के तरीके
23. प्रत्येक दिन एक घंटा कैसे बढ़ाएं
24. आप थकते क्यों हैं?
25. युवा दिखने के लिए क्या करें
26. अच्छी आदत चिंता को दूर करती है
27. बोरियत को दूर कैसे करें?
28. अनिद्रा कैसे दूर करें?
भाग-8 ‘मैंने चिंता को कैसे जीता’ इकतीस सच्ची कहानियां
प्रस्तावना
यह पुस्तक क्यों और कैसे लिखी गई
कृपया इस पुस्तक के खंड एक और दो पढ़ लें। अगर उस समय तक आपको यह न लगे कि चिंता छोड़ने और सुख से जीने के लिए आप में नई शक्ति और प्रेरणा जाग गई है - तो इस पुस्तक को दूर फेंक दें। यह आपके कार्य की नहीं है।
- डेल कारनेगी
मैं 1909 में न्यूयॉर्क के सबसे दुखी युवकों में से एक था। तब मोटर-ट्रक बेच कर अपनी रोजी-रोटी चलाता था, पर मैं नहीं जानता था कि मोटर ट्रक को कौन-सी चीज चलाती है। यही नहीं, मैं यह जानना भी नहीं चाहता था और अपने कार्य से नफरत करता था। मैं वेस्ट फिफ्टी सिक्थ स्ट्रीट पर मामूली से सजे कमरे में रहने से नफरत करता था- वह कमरा जिसमें कॉकरोच भरे थे। मुझे अब भी याद है, कमरे की दीवार पर मेरी टाइयों का ढेर टंगा रहता था और जब एक सुबह मैंने नई टाई निकालने के लिए वहां हाथ डाला, तो कॉकरोच हर दिशा में भागे। मैं उन गंदे, सस्ते होटलों से नफरत करता था, जहां मुझे भोजन करना पड़ता था, क्योंकि शायद वहां भी कॉकरोच भरे होंगे।
प्रत्येक रात को अपने सूने कमरे में लौटते समय, मेरे सिर में दर्द होता था और यह सिरदर्द निराशा, चिंता, कड़वाहट और विद्रोह की वजह से होता था। मैं इस लिए दुखी था, क्योंकि कॉलेज के जमाने में मैंने जो खुशनुमा सपने संजोए थे, वे अब बुरे सपनों में बदल गए थे। क्या यही जिंदगी थी? क्या यही वह रोमांचपूर्ण और महत्त्वपूर्ण कार्य था, जिसके लिए मैं इतने उत्साह से आगे बढ़ रहा था? क्या मेरे लिए जीवन का यही मतलब रहेगा - एक सड़ी-सी नौकरी करना, जिससे मैं नफरत करता था, कॉकरोचों के साथ रहना और घटिया भोजन करना और भविष्य में कुछ बेहतर होने की आशा न होना? मेरी हसरत थी कि मेरे पास किताबें पढ़ने और लिखने की फुरसत हो, जिसका सपना मैंने कॉलेज के दिनों में देखा था। मैं जानता था कि जिस कार्य से मैं नफरत करता था, उसे छोड़ने से मुझे हर तरह से फायदा होगा और किसी तरह से नुकसान नहीं होगा। ढेर सारा पैसा कमाने में मेरी रुचि नहीं थी, परंतु ढेर सारा जीवन जीने में मेरी बहुत रुचि थी। लेकिन अब, फैसले की घड़ी आ गई थी, जो उन अधिकांश युवाओं के सामने आती है, जो अपने जीवन की शुरुआत करते हैं। लिहाजा मैंने अपना निर्णय लिया और उस निर्णय ने मेरे भविष्य को बदल दिया। इससे मेरी बाकी जिंदगी इतनी ज्यादा खुशहाल और सुखद हो गई, जितनी मैंने सपने में भी कल्पना नहीं की थी।
मेरा निर्णय : मैं अपना वह कार्य छोड़ दूंगा, जिससे मैं नफरत करता था। वैसे भी मैंने चार साल तक वारेन्सबर्ग, मिसूरी के स्टेट टीचर्स कॉलेज में टीचिंग का प्रशिक्षण लिया था लिहाजा मैं नाइट क्लास में वयस्कों की कक्षाओं को पढ़ा कर अपनी रोजी-रोटी चलाऊंगा। इस तरह मुझे दिन भर का खाली समय मिल सकता था, जिसमें मैं किताबें पढ़ सकता था, लेक्चर तैयार कर सकता था और उपन्यास तथा कहानियां लिख सकता था। मैं चाहता था कि ‘जिंदा रहने के लिये लिखूं और लिखने के लिए जिंदा रहूं।’
पर मैं वयस्कों को रात में कौन-सा विषय पढ़ाउंगा? जब मैंने अपने पिछले जीवन की तरफ देखा तो पाया कि कॉलेज में पढ़ाए जाने वाले किसी भी विषय से मुझे जिंदगी में कोई खास मदद नहीं मिली थी, लेकिन लोगों के सामने बोलने की कला, बिजनेस और जिंदगी में मेरे बहुत काम आई थी। इससे मेरी हिचक समाप्त हुई और मेरी हीनभावना भी। मुझ में लोगों से बात करने की हिम्मत आ गई और मेरा आत्मविश्वास भी बढ़ गया। यह भी समझ गया कि वही आदमी लीडर बनता है, जो लोगों के सामने खड़े होकर अपनी बात को प्रभावी ढंग से कह सकता है।
मैंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी-दोनों जगह रात्रिकालीन पाठ्यक्रमों में पब्लिक स्पीकिंग सिखाने के पद के लिए आवेदन दिया, लेकिन सफलता नहीं मिली। इन विश्वविद्यालयों ने फैसला किया कि वे मेरी मदद के बिना ही अपना संघर्ष जारी रख सकते हैं।
मैं निराश हुआ, पर आज मैं भगवान को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने मेरा आवेदन ठुकरा दिया, क्योंकि मैंने वाई एम. सी. ए. नाइट के स्कूल्स में पढ़ाना शुरू कर दिया, जहां मुझे ठोस परिणाम देना था और जल्दी देना था। मेरी कक्षाओं में पढ़ने वाले वयस्क, कॉलेज की डिग्री या सामाजिक प्रतिष्ठा हासिल करने के लिये नहीं आते थे। वे एक ही कारण से आते थे- अपनी समस्याओं को सुलझाने के तरीके जानने के लिए। वे बिना डर या झिझक के अपने पैरों पर खड़े होकर बिजनेस मीटिंग में कुछ शब्द बोलना चाहते थे। सेल्समैन सख्त ग्राहक के घर के तीन चक्कर काटे बिना ही उससे मिलने की हिम्मत जुटाना चाहते थे। वे आत्मविश्वास और संतुलन हासिल करना चाहते थे, बिजनेस में आगे बढ़ना चाहते थे। वे अपने परिवारों के लिए ज्यादा पैसा कमाना चाहते थे। वे अपनी फीस किस्तों में दे रहे थे, इसलिए यह बात तय थी कि अगर उन्हें परिणाम नहीं मिलेंगे, तो वे फीस देना बंद कर देंगे। मुझे तनख्वाह के बजाय मुनाफे का एक निश्चित प्रतिशत मिलता था, इसलिए मुझे अपने खाने-पीने का इंतजाम करने के लिए प्रैक्टिकल होना ही था।
उस समय मुझे ऐसा लगा जैसे इस तरह के माहौल में पढ़ाना मुश्किल था, परंतु अब मुझे अहसास होता है कि मुझे अनमोल प्रशिक्षण मिल रहा था। मुझे अपने विद्यार्थियों को प्रेरित करना था। उन्हें अपनी समस्याएं सुलझाने का रास्ता दिखाना था। हर सत्र को इतना प्रेरक बनाना था, ताकि वे अगले दिन भी आना चाहें।
यह खासा रोमांचक कार्य था। मुझे इसमें बहुत मजा आया। मैं यह देख कर हैरान था कि इन बिजनेसमैनों ने कितनी जल्दी आत्मविश्वास हासिल कर लिया, इसके परिणामस्वरूप उन्हें जल्दी ही प्रमोशन मिले तथा उनकी तनख्वाह भी बढ़ी। क्लासें मेरी उम्मीदों से ज्यादा सफल हो रही थीं। तीन सत्र के बाद वाई एम. सी. ए. जिसने शुरुआत में मुझे एक रात के लेक्चर के लिए पांच डॉलर देने से इंकार कर दिया था, अब मुझे प्रतिशत के आधार पर एक रात के 30 डॉलर दे रहा था। पहले तो मैं सिर्फ पब्लिक स्पीकिंग (Public Speaking)सिखाता था, पर कई साल बाद मुझे यह समझ में आया कि इन वयस्कों को दोस्त बनाने और लोगों को प्रभावित करने की कला सीखने की भी जरूरत थी। चूंकि मुझे मानवीय संबंधों पर एक भी पूर्ण पाठ्यपुस्तक नहीं मिली, इसलिए मैंने खुद ही उसे लिखा। पर यह सामान्य तरीके से नहीं लिखी गयी। यह इन कक्षाओं में वयस्कों के अनुभवों से बड़ी और विकसित हुई। मैंने इसका टाइटिल दिया- हाऊ टु विन फ्रेंडस एंड इन्फ्लुएंस पीपुल ।
इसे सिर्फ मेरी वयस्क कक्षाओं की पाठ्यपुस्तक के रूप में लिखा गया था और मेरी लिखी चार अन्य पुस्तकों के नाम किसी ने नहीं सुने थे, इसलिये मुझे सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि यह ज्यादा बिकेगी। शायद मैं सबसे हैरान जीवित लेखकों में से एक हूं।
साल गुजरते गए और मैंने महसूस किया कि इन वयस्कों के सामने एक और बहुत बड़ी समस्या है- चिंता। मेरे ज्यादातर विद्यार्थी बिजनेसमैन थे- एग्जीक्यूटिव, सेल्समैन, इंजीनियर, अकाउंटेंट आदि - वे सभी विभिन्न व्यवसायों और वर्गों से थे - और उनमें से ज्यादातर के सामने समस्याएं थीं! मेरी क्लासों में महिलाएं भी थीं - बिजनेसवुमैन भी और घरेलू महिलाएं भी। उनके सामने भी समस्याएं थीं! जाहिर था, मुझे इस विषय पर भी एक पाठ्यपुस्तक की जरूरत थी कि चिंता को कैसे जीता जाए - लिहाजा एक बार फिर मैंने पाठ्यपुस्तक की तलाश की। मैं फिफ्थ एवेन्यू और 42 स्ट्रीट पर न्यूयॉर्क की बड़ी पब्लिक लाइब्रेरी में गया, पर मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि वहां चिंता शीर्षक पर सिर्फ 22 पुस्तकें ही थीं। मजेदार बात यह थी कि वहां कीड़े शीर्षक पर 189 पुस्तकें थीं। चिंता पर जितनी पुस्तकें थीं, उससे लगभग नौ गुना ज्यादा किताबें कीड़ों पर थीं। आश्चर्यजनक है ना? चिंता मानव जाति के सामने मौजूद सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है, इसलिए दुनिया के हर हाई स्कूल और कॉलेज में कोर्स चलाना चाहिए कि ‘चिंता को कैसे दूर किया जाए?’ दुनिया के किसी भी कॉलेज में इस विषय पर अगर कोई कोर्स चलता हो, तो मैंने तो उस कॉलेज का नाम नहीं सुना। कोई हैरानी नहीं कि डेविड सीबरी अपनी पुस्तक ‘हाऊ टु वरी सक्सेसफुली’ में कहते हैं, ‘वयस्कता तक अनुभव के दबावों को झेलने के लिए हम उतने ही कम तैयार होते हैं, जितना कोई किताबी कीड़ा बैले करने के लिए।’
परिणाम? हमारे अस्पतालों में आधे से ज्यादा बिस्तर मानसिक और भावनात्मक समस्याओं के शिकार लोगों में भरे हैं।
मैंने न्यूयॉर्क पब्लिक लाइब्रेरी के शेल्फों पर उपेक्षित पड़ी चिंता शीर्षक की इन बाईस किताबों को देखा। इसके अलावा मैंने चिंता पर वे सारी पुस्तकें खरीदी, जो मुझे मिलीं। लेकिन, एक भी ऐसी पुस्तक नहीं मिली, जिसका प्रयोग मैं वयस्कों के अपने कोर्स में पाठ्यपुस्तक के रूप में कर सकूं। इसलिए मैंने खुद ही एक पुस्तक लिखने का संकल्प किया।
मैंने सात साल पहले इस पुस्तक को लिखने के लिए खुद को तैयार करना शुरू किया। कैसे? सभी युगों के दार्शनिकों ने चिंता के बारे में जो कुछ कहा था, वह सब पढ़ कर। मैंने कन्फ्यूशियस से लेकर चर्चिल तक की सैकड़ों जीवनियां पढ़ी। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के दर्जनों प्रसिद्ध लोगों के इंटरव्यू भी लिए, जिनमें जैक डेम्सी, जनरल ओमार ब्रेडली, जनरल मार्क क्लार्क, हेनरी फोर्ड, एलीनोर रूजवेल्ट, डोरोथी डिक्स इत्यादि शामिल थे। परंतु यह तो सिर्फ शुरुआत थी।
मैंने साथ में कुछ और भी किया, जो इंटरव्यू लेने और जीवनियां पढ़ने से बहुत ज्यादा महत्त्वपूर्ण था। मैंने पांच साल तक चिंता छोड़ने की प्रयोगशाला में कार्य किया - यह प्रयोगशाला थी, हमारी वयस्कों की कक्षा। जहां तक मैं जानता हूं, यह दुनिया में अपनी किस्म की इकलौती प्रयोगशाला थी। हमने जो किया, वह यह था: हमने अपने विद्यार्थियों को चिंता दूर करने के कुछ सूत्र दिए और उनसे कहा कि वे अपने जीवन में इन्हें आजमा कर देखें। फिर इसके परिणामों के बारे में कक्षा के सामने बताएं। कई अन्य विद्यार्थियों ने उन तकनीकों के बारे में बताया, जिनका प्रयोग उन्होंने अतीत में किया था।
मैं सोचता था कि इस अनुभव के कारण मैंने ‘चिंता को कैसे जीता जाये’ विषय पर जितनी अधिक चर्चाएं सुनी हैं, उतनी दुनिया में कभी किसी ने नहीं सुनी होंगी। इसके अलावा, मैंने चिंता को कैसे जीता जाये ‘विषय पर सैकड़ों अन्य चर्चाएं