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Description
Informations
Publié par | Random House Publishers India Pvt. Ltd. |
Date de parution | 15 mai 2015 |
Nombre de lectures | 0 |
EAN13 | 9788184006971 |
Langue | English |
Informations légales : prix de location à la page 0,0350€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.
Extrait
सीमा हिंगोरानी
डिप्रेशन से मुक्ति
डिप्रेशन से उबरने की एक संपूर्ण मार्गदर्शिका
अनुवाद डॉ.सुधीर दीक्षित
विषय-सूची
लेखिका के बारे में
समर्पण
आमुख - इंदु शाहानी
प्रस्तावना
खंड एक: डिप्रेशन के बारे में सब कुछ
डिप्रेशन क्या है ?
डिप्रेशन के कारण
डिप्रेशन के संकेत और लक्षण
डिप्रेशन के कई डरावने चेहरे
खंड दो: आप कहाँ फ़िट होते हैं?
बाल्यावस्था और किशोरावस्था का डिप्रेशन
अधेड़ावस्था का संकट
बुढ़ापे का डिप्रेशन
खंड तीन: हस्तक्षेप का समय
हस्तक्षेप
डिप्रेशन और अवसादरोधी दवाएँ
उसके बाद का जीवन
समापन
आभार
पेंगुइन को फॉलो करें
सर्वाधिकार
लेखिका के बारे में
डॉ. सीमा हिंगोरानी भारत की अग्रणी क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक औरसंबंधों व ई.एम.डी.आर. की चिकित्सक हैं। वे एकाकीपन और डिप्रेशनके साथ जूझने वाले रोगियों का उपचार करती हैं। वे विवाहित दंपतियों,बच्चों और गृहिणियों से लेकर मॉडल्स, मशहूर हस्तियों तथा शराब केलती रोगियों को परामर्श प्रदान करती हैं। सीमा फ़ेमिना मिस इंडियाकी आधिकारिक मनोविश्लेषक रही हैं, साथ ही उन्होंने सोनी टीवी केलिए बिग बॉस, बूगी वूगी और इंडियन आइडल जैसे शो का प्रबंधनकिया है। वे डी एनए, टाइम्स ऑफ़ इंडिया और मुंबई मिरर जै से अग्रणीसमाचार पत्रों में नियमित रूप से लिखती हैं तथा मनोवैज्ञानिक मुद्दों परविशेषज्ञीय सलाह देती हैं। वे मुंबई, भारत में रहती हैं। आप सीमा से seemahingorany@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।
मेरे दोनों पिताओं
स्वर्गीय श्याम हिंगोरानी
और
आनंद सीतलानी को
आमुख
मनोवैज्ञानिक विकृतियाँ वर्तमान पीढ़ी को परेशान कर रही हैं और यहसमस्या बढ़ती जा रही है। इस संदर्भ में सीमा हिंगोरानी की पुस्तकडिप्रे शन से मुक्ति सही समय पर लिखी गई है। यह डिप्रेशन के विकारोंपर एक मूल्यवान पुस्तक है। यह पुस्तक सफलतापूर्वक इस तथ्य कोउजागर करती है कि डिप्रेशन किसी व्यक्तिगत दोष की निशानी नहीं है,बल्कि एक रोग है, जिसका चिकित्सकों की मदद से इलाज होना चाहिए।डिप्रेशन के शिकार लोगों को यह जान लेना चाहिए कि यह कोई असाध्यरोग नहीं है। पारिवारिक प्रेम, चिकित्सकीय देखभाल, विश्वास बढ़ाने वालेअभ्यासों, सकारात्मक नज़रिये और स्वस्थ कार्य-जीवन संतुलन के ज़रियेइसका उपचार किया जा सकता है।
मुझे यक़ीन है कि अपनी विशेषज्ञता और अनुभव से लैस सीमा हिंगोरानी इस अहम मुद्दे पर उठने वाले बहुत से सवालों के जवाब देंगी। डिप्रेशन से मुक्ति लेखिका के समर्पण को बताती है, जो डिप्रेशन में जीने वाले लोगों को स्वास्थ्य की राह दिखाती है।
डॉ. इंदु शाहानी
मुंबई की शेरिफ़,
प्राचार्य, एच.आर. कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स ऐंड इकोनॉमिक्स
सदस्य, यूजीसी, भारत सरकार
प्रस्तावना
चौदह साल पहले जब मैंने मनोविज्ञान की उपाधि लेने का निर्णय लिया, तो लोग सोचते थे कि मेरा भविष्य अंधकारमय है। रिश्तेदार मुझसे पूछते थे, ‘क्या इसमें करियर की कोई संभावना है?’ लेकिन मुझे मानव मन के अध्ययन से प्रेम था। इसके साथ ही मेरा संकल्प और सहज बोध भी था, जिसकी बदौलत मैं अपने निर्णय पर डटी रही। हम सभी जीवन में किसी न किसी उद्देश्य के साथ पैदा होते हैं और मुझे यक़ीन है कि मेरा उद्देश्य उपचार करना है।
कम उम्र में ही मैं लोगों के व्यवहार की आदतों को जानने के बारे में उत्सुक थी। मैं अक्सर हैरान होती थी कि कुछ लोग जैसा व्यवहार करते थे, वैसा क्यों करते थे। इस विचार ने मुझे बहुत सताया, जब मेरी एक प्रिय सहेली ने एक असफल संबंध की वजह से आत्महत्या कर ली। इस घटना से मैं इतनी हिल गई कि कई दिनों तक सो नहीं पाई। मैं अब भी हैरान होती हूँ कि उसने अपने क़रीबी लोगों को अपना दुख क्यों नहीं बताया या मदद क्यों नहीं माँगी। क्या यह बुरे समय की वजह से हुआ हादसा था या उसकी हरकत की जड़ डिप्रेशन के ख़तरनाक इतिहास में थी, जिसे पहचाना नहीं गया था?
लगता है कि अपनी प्रिय सहेली के चले जाने का दर्द मुझे टीस देता रहा और इसने कॉलेज में मनोविज्ञान विषय लेने के मेरे निर्णय को प्रभावित किया। तब से मैंने पलटकर नहीं देखा। मैं जानती थी कि मुझे मेरे जीवन का मनचाहा पेशा मिल गया है। इतने बरसों में मैं चुनौतीपूर्ण मामलों और मुश्किल रोगियों से निबटी हूँ, सौ अलग-अलग निदान किए हैं, रोग संबंधी बहुत से विकारों का उपचार किया है और जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों से मिली हूँ - परेशान किशोरों से सेवानिवृत्त वरिष्ठ नागरिकों तक और डिप्रेशन की शिकार गृहिणियों से विवाहित दंपतियों तक। हालाँकि ऐसा लग सकता है कि मेरी ज़िंदगी बहुत व्यस्त है, लेकिन मैं इसे बदलने की सोच भी नहीं सकती। जब रोगी मेरे क्लीनिक से ठीक होकर जाते हैं, तो इससे मुझे इतनी ख़ुशी मिलती है कि मैं ख़ुद को धन्य समझने लगती हूँ। मैं ऐसे पेशे का हिस्सा हूँ, जिसमें लोगों की ज़िंदगी बदलने की शक्ति है - मैं और क्या चाह सकती थी?
क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक के रूप में मैं डिप्रेशन को काफ़ी अच्छे से जानती और समझती हूँ। इसके बारे में इतनी सारी भ्रांतियाँ हैं कि मैं एक ही बार में उन सबका सफ़ाया कर देना चाहती थी। मानसिक स्वास्थ्य विकार के रूप में डिप्रेशन को हमेशा गंभीरता से नहीं लिया जाता है और प्रायः इसे मनोदशा की हल्की अशांति मानकर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। डिप्रेशन का सही ज्ञान हासिल करने के बजाय लोग कई बार बहुत-सी भ्रांतियों में डूब जाते हैं कि यह क्या, क्यों और कैसे होता है।
जीवन में उतार-चढ़ाव अवश्यंभावी हैं। हम सभी को उनसे गुज़रना होता है। कुछ लोग परिस्थितियों को झेलना सीख लेते हैं, बाक़ी दबाव तले घुटने टेक देते हैं। ‘नीचे’ रहने का समय किसी व्यक्ति की कॉग्निटिव या संज्ञानात्मक योग्यताओं में हस्तक्षेप करता है और यह अहसास करने की योग्यता को धुँधला कर देता है कि वे एक आम, लेकिन गंभीर, मनोवैज्ञानिक समस्या से कष्ट उठा रहे हो सकते हैं। डिप्रेशन के शिकार किसी व्यक्ति को जीवन एक भूलभुलैया की तरह नज़र आता है, जहाँ वह आसानी से रास्ता भटक जाता है अस्वस्थ और हानिकारक विचारों व व्यवहार की भीड़ में - एक ऐसे तरीक़े से कि सामान्य दशा तक लौटने का रास्ता खोजना मुश्किल होता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) ने भविष्यवाणी की है कि 2020 तक डिप्रेशन स्वास्थ्य संबंधी दूसरी सबसे बड़ी समस्या होगा (हृदय रोग के बाद) और संसार में अक्षमता तथा मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण भी होगा। नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेस (एन.आई. एम.एच.ए.एन.एस.), बैंगलोर के अध्ययनों के अनुसार हर पंद्रह वयस्क भारतीयों में से एक डिप्रेशन के किसी रोग से पीड़ित है। कम से कम 10 प्रतिशत जनसंख्या डिप्रेशन से पीड़ित है, जिसे पेशेवर और चिकित्सकीय सहायता की ज़रूरत है। यही नहीं, 40 प्रतिशत जनसंख्या हतोत्साहित है और उनके अपने जीवन में किसी समय पर डिप्रेशन की सीमारेखा को लाँघने की आशंका है।
ये दहशत भरे आँकड़े क्या साबित करते हैं? ये बताते हैं कि हममें से प्रत्येक अपने जीवन में किसी न किसी बिंदु पर डिप्रेशन की अवस्था में पहुँच सकता है, चाहे हमें इस बात का अहसास हो या न हो। और यही वह प्रमुख कारण है, जिसकी वजह से हमें इस रोग, इसके लक्षणों और अंततः इसके निवारण तथा उपचार के तरीक़ों के बारे में ज़्यादा जानने की ज़रूरत है।
हम इतने डिप्रेशन में क्यों रहते हैं?
क्या डिप्रेशन का मूल कारण ग़लत परवरिश है, कठोर प्रतिस्पर्धा है, यात्रा में लगने वाला लंबा समय है या अकेलापन है? या फिर यह ग़ैरवाजिब अपेक्षाओं का परिणाम है? नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एन.सी.आरबी. ) की 2009 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 15 लोग हर घंटे आत्महत्या करते हैं और हर तीन में से एक शिकार की उम्र 15 से 29 साल के बीच होती है!
हालाँकि सच्चाई यह है कि संचार के आधुनिक साधनों ने मानव संपर्क के दूसरे प्रकारों में दरअसल बाधा पहुँचाई है। यह एक वास्तविकता है कि अब हम इंटरनेट पर अजनबी लोगों के साथ चैटिंग करते हैं, लेकिन यह तक नहीं जानते हैं कि हमारे पड़ोस में कौन रह रहा है। जो लोग कहते हैं कि उनके स्वस्थ संबंध हैं, सफल विवाह हैं, संतुष्टिदायक करियर हैं और आर्थिक सुरक्षा है, वे तक स्वीकार करते हैं कि अक्सर वे ऐसे समय का सामना करते हैं, जब वे एकाकी महसूस करते हैं और बाक़ी संसार से अलग-थलग महसूस करते हैं। अकेलापन महसूस करना आज आम है, क्योंकि काम, डेडलाइनों और अन्य दैनिक चिंताओं का दबाव रहता है। अगर आप दबाव को अपने मन में जगह दे देते हैं, तो इससे आप अकेलापन महसूस कर सकते हैं और आपके स्वास्थ्य को नुक़ सान पहुँच सकता है।
कुछ साल पहले मुझे मुंबई के एक प्रतिष्ठित स्कूल में आमंत्रित किया गया था, जहाँ मुझे परवरिश पर व्याख्यान देना था। अभिभावकों को मेरा संदेश सरल था: अपने बच्चों पर लंबे घंटों तक पढ़ने का ज़्यादा दबाव न डालें; उनका संपूर्ण विकास ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है। यह सुनकर एक माँ थोड़ी नाराज़ हो गई और उसने अशिष्टतापूर्वक मुझसे पूछा कि अगर उसके बेटे के नंबर कम आए, तो क्या मैं शीर्षस्थ कॉलेज में उसे दाख़िला दिलाने की ज़िम्मेदारी लेने को तैयार हूँ। और अगर मैं यह ज़िम्मेदारी ले लूँ, तो वह ख़ुशी-ख़ुशी उसे वीडियो गेम और क्रिकेट खेलने देगी। मैंने उसकी आवाज़ में ताने की झलक सुनी। लेकिन मैंने शांति से जवाब दिया कि भले ही मैं किसी शीर्षस्थ कॉलेज में दाख़िले की गारंटी नहीं दे सकती, लेकिन मुझे यक़ीन है कि बच्चों पर दबाव को कम करने से उनकी जान ज़रूर बच सकती है।
जब दूसरे अभिभावकों ने मेरे जवाब का तालियाँ बजाकर स्वागत किया, तो पूरी घटना से मैं यह सोचने के लिए मजबूर हो गई, ‘आगे क्या? मैं अपनी बात इन अभिभावकों के मन तक कैसे पहुँचाऊँ और उन्हें यह बताऊँ कि दबाव बनाना ही बेहतरीन अंक की गारंटी नहीं है?’ विडंबना देखें, मेरे कुछ युवा रोगी अक्सर शिकायत करते हैं कि उनसे ज़्यादा मदद की ज़रूरत तो उनकी माँ को है। जिस पल वे स्कूल से लौटते हैं, उनकी माँ यह नहीं पूछती है कि उनका दिन कैसा रहा, बल्कि यह जानने में उनकी रुचि ज़्यादा रहती है कि डिक्टेशन में कितने नंबर आए!
अभिभावक अपने बच्चों के प्रति नकारात्मक भावनाएँ प्रायः बड़ी जल्दी व्यक्त कर देते हैं, लेकिन न जाने क्यों सकारात्मक भावनाएँ उजागर करने में पीछे रह जाते हैं, जो बच्चे के मन में सकारात्मक शारीरिक छवि बनाने में अति महत्त्वपूर्ण होती है। मेरा चिकित्सकीय अनुभव ऐसे परिवारों से भरा रहा है, जो डिप्रेशन के बारे में जानकारी न होने से इसे अनजाने में ही अपने बच्चों तक पहुँचा देते हैं, जो इसे अगली पीढ़ी तक पहुँचाते हैं। यह एक ऐसा दुष्चक्र है, जो कभी नहीं रुकता है।
मेरे कई रोगियों की दिल छूने वाली कहानियाँ और जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों - भारत के भी और विदेशों के भी - के साथ मेरी बातचीत मेरे इस दृष्टिकोण की पुष्टि करेगी। साथ ही यह मदद चाहने वाले लोगों को अमूल्य मार्गदर्शन भी प्रदान करेगी। यह पुस्तक डिप्रेशन के मेरे ज्ञान से ही नहीं लिखी गई है, बल्कि मेरे दिल की गहराइयों से लिखी गई है। मैंने अपने क्लीनिक में लोगों को सुबकते, रोते, चिल्लाते और दर्द पर हिंसक रूप से प्रतिक्रिया करते देखा है। मैंने लोगों को सभी भावनाओं के प्रति चेतनाशून्य होते देखा है। मैंने लोगों को वास्तविकता से नाता तोड़ते देखा है, क्योंकि असल संसार का सामना करना उनके लिए बहुत दर्दनाक होता है। ऐसे रोगी आम तौर पर विस्मृति के शिकार होते हैं। जब उनकी विचलित करने वाली यादों के बारे में पूछा जाता है, तो वे आम तौर पर कहते हैं कि उन्हें अपने अतीत की कोई बात याद नहीं है। वैसे उनकी असहाय आँखें उनकी स्थिति के बारे में बहुत कुछ बयां कर देती हैं।
जब रोगी मेरे पास परामर्श के लिए आते हैं, तो हमेशा पूछते हैं कि क्या मेरी मनोचिकित्सा उनके मुश्किल घरेलू परिवेश को बदल देगी, क्योंकि उन्हें हर दिन लौटकर उसी कालकोठरी में जाना है। मैं उन्हें बताती हूँ कि भले ही मैं उनके परिवेश को नहीं बदल सकती, लेकिन उन्हें संकटों से जूझने की शक्ति दे सकती हूँ। मैं हमेशा अपने रोगियों को बताती ह