Avsar Beeta Jaye
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Avsar Beeta Jaye , livre ebook

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Description

The successful people act differently from others. Whether success is small or big, it has a special importance behind planning and working accordingly. Successful people make full use of their abilities at all times. In this book, many measures have been described for achieving success. This book is must keep from every point of view to improve life. Through the study of Swett Marden's books, Millions of people have gained self-purification, dedication to work as well as enthusiasm and inspiration in life. You too, read them, and enjoy fulfilling your wishes. The book can change your life, guiding you step by step.

Informations

Publié par
Date de parution 10 septembre 2020
Nombre de lectures 0
EAN13 9789390287031
Langue English

Informations légales : prix de location à la page 0,0132€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

अवसर बीता जाए
 

 
eISBN: 978-93-9028-703-1
© प्रकाशकाधीन
प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II
नई दिल्ली- 110020
फोन : 011-40712200
ई-मेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइट : www.diamondbook.in
संस्करण : 2020
Avsar Beeta Jaye
By - Swett Marden
अवसर बीता जाए
संसार के प्रसिद्ध विचारक और लेखक श्री स्वेट मार्डन की पुस्तकों ने करोड़ों लोगों के जीवन में क्रांति ला दी है, भटक रही मानवता को नई दिशा दी है। प्रस्तुत पुस्तक “अवसर बीता जाए” भी इसी महान विचारक की महान् कृति का हिंदी रूपान्तर है।
अनुक्रम अवसर के लिए तैयार रहो भावना और विचारों से सफलता आत्मविश्वास का प्रभाव मार्गदर्शक शक्ति क्या आप मौलिक हैं? व्यक्तित्व को केंद्रित करो अनुकूल अवसर, प्रतिकूल अवसर अवसर को पहचानिए बालों को आगे से पकड़ो उद्देश्य को पहचानिए विचारों को बदल डालो निश्चय-रूपी रसायन जीवन का मुख्य वरदान मालिक कहा करते हैं
1. अवसर के लिए तैयार रहो

समय की गतिशीलता को पहचान कर मनुष्य यदि सम्मुख आए अवसर को पकड़ लेता है और अपनी योग्यता को प्रदर्शित करता है तो अवश्य ही वह अपने जीवन को संवार लेता है।
समय का कोई भी क्षण ऐसा नहीं जो भाग्य-निर्माण के लिए अवसर उपस्थित नहीं करता हो। लेकिन यदि कोई व्यक्ति अवसर के उस क्षण को न पहचान सके, ग्रहण न कर सके और वह गुजर जाय तो फिर वह हाथ नहीं आता। समय कभी ठहरता नहीं है, रुकता नहीं है, वह तो गतिशील है। समय की गतिशीलता को पहचान कर मनुष्य यदि सम्मुख आए अवसर को पकड़ लेता है और अपनी योग्यता को प्रदर्शित करता है तो अवश्य ही वह अपने जीवन को संवार लेता है।
वह एक अवसर ही तो था, बल्कि यों कहा जाय कि अवसर का एक क्षण, जिसको थाम लिया था एक बर्तन मांजने वाले लड़के एण्टोनियो ने जिसके द्वारा उसकी जीवनधारा ही बदल गई।
उस घटना का वर्णन किया है जार्ज कैरो ने जिसने लिखा है कि किसी नगर के एक संभ्रांत धनाढ्य व्यक्ति के घर पर एण्टोनियो नाम का एक लड़का बर्तन मांजने का कार्य करता था। एण्टोनियो निहायत ही परिश्रमी और मेहनती था। खाली समय को वह बेकार नहीं गंवाता था। जब भी कभी उसे बर्तन मांजने के काम से अवकाश मिलता वह खाली न बैठता बल्कि एक पत्थर की मूर्ति बनाने वाले की दुकान पर चला जाता जो उसके मालिक फैलेरा के घर के पास ही थी। पत्थरों को काट-छांट कर मूर्तियां बनाते मूर्तिकारों को वह बड़े ध्यान से देखता। यद्यपि एण्टोनियो पढ़ा-लिखा नहीं था-अनपढ़ था तो भी वह मूर्तिकारों के प्रत्येक काम को अपने जहन में उतारता जाता था और समय मिलते ही वह उस दुकान पर पत्थर काटने-छांटने का काम करने लगता था। वह जब भी किसी पत्थर को काटता, पूरी तन्मयता के साथ काटता। अपनी मेहनत और लगन से वह अपने अतिरिक्त समय में ही मूर्तियां बनाने में कुशल हो गया और अपनी बर्तन मांजने की नौकरी भी करता रहा।
उस धनी व्यक्ति फैलेरा ने एक दिन नगर के गणमान्य व्यक्तियों, संभ्रांत नागरिकों और उच्च अधिकारियों को अपने घर दावत पर आमंत्रित किया।
घर के बड़े हाल को नए ढंग से सजाया-संवारा जा रहा था। दावत का इन्तजाम इसी हाल में किया जा रहा था। एक बड़ी-सी मेज हाल के मध्य में रखी गई थी जिसे दावत के लिए विशेष तरीके से सजाया जा रहा था। मेज को आकर्षक तरीके से सजाने की जिम्मेदारी मुख्य बैरे की थी। सब कुछ सुनिश्चित ढंग से ठीक-ठाक चल रहा था। बर्तन मांजने वाला लड़का एण्टोनियो भी सजावट के छोटे-मोटे काम में हाथ बंटा रहा था और दावत की मेज को सजाते हुए मुख्य बैरे की ओर भी देखता जा रहा था। परन्तु मेज के बीचों-बीच सजावट की एक मुख्य चीज तैयार करते समय प्रधान बैरे से कुछ गलती हो गई जिस कारण वह जो बनाना चाहता था, बिगड़ गई। उधर अतिथियों के आने का समय भी हो रहा था। मुख्य बैरा जितनी बार उस चीज को बनाने का प्रयास करता वह और बिगड़ जाती, भद्दी लगने लगती। मुख्य बैरा काफी परेशान दिख रहा था। तभी एण्टोनियो उसके पास आकर बोला “मास्टर, यदि अनुमति हो तो मैं कोई मदद करूँ?” बैरा परेशान तो था ही, एक नजर एण्टोनियो पर डालता हुआ बड़े बेमन से बोला “ठीक है, करो क्या कर सकते हो।”
एण्टोनियो ने तुरन्त जमा हुआ मक्खन मंगवाया, वहां न चीजों की कोई कमी थी और न खर्च की कोई परवाह। जमे हुए मक्खन से एण्टोनियो ने शेर की एक ऐसी आकर्षक मूर्ति बना दी जिसे देख कर मुख्य बैरे का निस्तेज चेहरा खिल उठा। आमंत्रित व्यक्तियों के आने का समय हो रहा था। घर का स्वामी फैलेरा इस घटना से अनभिज्ञ हाल और दावत की मेज की सजावट से बड़ा प्रसन्न और संतुष्ट दिख रहा था। उसे क्या पता था कि किसके भाग्योदय का समय आ गया है!
दावत में सम्मिलित व्यक्तियों में एक मूर्तिकला का विशेषज्ञ भी था जिसकी नजर बार-बार दावत की मेज पर बनी शेर की मूर्ति पर ठहर रही थी जो बड़ी आकर्षक और सजीव जान पड़ती थी। उससे चुप न रहा गया और उसने पूछ ही लिया कि वह मूर्ति किसने बनाई है। मुख्य बैरे ने एण्टोनियो को बुला कर उसके सामने उपस्थित कर दिया। मूर्ति विशेषज्ञ ने सभी उपस्थित अभ्यागतों का ध्यान उस शेर की मूर्ति की ओर आकर्षित करते हुए बताया कि यह मूर्ति कलाकारी का एक श्रेष्ठ नमूना है। यदि इस व्यक्ति को विधिवत् मूर्तिकला की शिक्षा मिले तो एक दिन अवश्य ही यह व्यक्ति श्रेष्ठ मूर्तिकार बन सकता है। मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है।
मूर्तिकला विशेषज्ञ की बात से प्रभावित होकर एण्टोनियो के स्वामी फैलेरा ने तत्काल यह घोषणा सभी लोगों के सामने की कि मूर्तिकला के अध्ययन के लिए एण्टोनियो को वह स्वयं अपने खर्च पर जहां भी आवश्यकता होगी, भेजेगा।
अवसर कब और किन हालात में आ उपस्थित होगा, उस बर्तन मांजने वाले एण्टोनियो को क्या पता था! हाँ, उसने जो इतने दिन मेहनत की थी, अवसर उपस्थित देखकर उसने बिना किसी हिचकिचाहट के उससे लाभ उठा लिया। यदि वह लड़का अवसर को छोड़ देता तो सारी जिन्दगी बर्तन मांजने का काम ही करता रहता। आज वही बर्तन मांजने वाला एण्टोनियो संसार के शीर्षस्थ मूर्तिकारों में गिना जाता है और सारा विश्व उसे मूर्तिकार कैनोबा के नाम से जानता है।
वह समय ही तो था जिसका लाभ उठाया था एण्टोनियो ने। तो यह समय क्या है? उसका स्वरूप कैसा है?
“उसके माथे पर लहराती घुंघराली लटें हैं, उन्हें पकड़ो।”
यूनान के विश्व प्रसिद्ध मूर्तिकार लिसिपस ने इसी कविता के भावों को प्रदर्शित करती पत्थर की एक सजीव मूर्ति बनाई थी। वह मूर्तिकार सम्राट सिकन्दर का समकालीन था। उसकी बनाई इस मूर्ति का आज कहीं पता नहीं चलता, लेकिन कैलिस्ट्राटस नामक व्यक्ति ने उस मूर्ति का चित्र अवश्य देखा था। रूपक के रूप में मनुष्य के लिए जीवन का सन्देश देती उस मूर्ति के बारे में कैलिस्ट्राटस ने लिखा है-
“अवसर एक सुन्दर युवक है, उस पर चढ़ती जवानी का बसन्त छाया हुआ है। उसका माथा तेज से दमक रहा है। उसका खूबसूरत चेहरा देखते ही बनता है। उसके लम्बे बाल हवा में लहरा रहे हैं। उसके पैरों की उंगलियां और अंगूठे ही जमीन पर टिके हुए हैं। उसके पैरों में पंख लगे हुए हैं। वह इस प्रकार खड़ा है मानो अभी उड़ने वाला हो। आंखों के ऊपर, लम्बे-घुंघराले बालों का गुच्छा, भौंहों तक लहरा रहा है, परन्तु उस सुन्दर युवक के सिर के पीछे का हिस्सा गंजा है।”
उस मूर्ति का जो चित्र कैलिस्ट्राटस ने देखा था, उसका वर्णन करते हुए उसने लिखा है कि उस मूर्ति के हाथ में एक उस्तरा भी था। उसके भावों के वर्णन में उसने लिखा है कि-
“किसी ने उससे पूछा-तुम कौन हो?”
“मैं समय हूँ। मैं सबको अपने वश में कर सकता हूं।”
“पर तुम इस प्रकार पैरों की उंगलियों पर क्यों खड़े हो?”
“मैं सर्वदा गतिशील रहता हूं।”
“तुम्हारे पैरों में ये पंख कैसे लगे हैं?”
“मुझे गतिशील रहने के लिए तेज उड़ना है।”
“और तुम्हारे हाथ में यह उस्तरा क्यों है?”
“इससे लोगों को यह पता भी चलता रहता है कि मुझसे अधिक तेज धार वाला इस संसार में कोई नहीं है।”
“तुम्हारे ये बाल माथे पर क्यों लटक रहे हैं?”
“भोले व्यक्ति! जो मुझे पकड़ना चाहे, इन्हीं से पकड़ सकता है।”
“तुम्हारे सिर के पिछले भाग पर बाल क्यों नहीं हैं?”
“इसलिए कि जब मैं उड़ जाता हूं तो कोई भी मुझे पीछे से न पकड़ सके।”
“तुम्हें यह सुन्दर रूप क्यों दिया गया है?”
“भोले व्यक्ति! तेरे लिए यह एक चेतावनी है। चेतावनी देने के लिए ही मेरा यह स्वरूप तेरे द्वार पर खड़ा रहता है।”
मनुष्य के जीवन के लिए प्रेरणादायी, रूपक के रूप में मनुष्य के लिए जीवन का एक सन्देश है।
अवसर को पकड़ो :
सम्भवतः आपने ओलबुल नामक एक विद्वान की कहानी सुनी हो। विश्व प्रसिद्ध वायलिन-वादक ओलबुल को आज सारा संसार जानता है। सम्भवतः इस बात को कोई नहीं जानता कि ओलबुल ने लोगों की आंखों से दूर रहकर एकान्त में कितना गहरा अभ्यास किया था, कितना श्रम किया था उसने अपनी कला को निखारने में। अभ्यास करते-करते उसे यह भी पता नहीं रहता था कि कब रात शुरू हो गई और कब दिन निकल आया। दुनिया से बेखबर वह तन्मयता से वायलन-वादन के अभ्यास में डूबा रहता। काफी दिनों बाद ओलबुल को कोई जानता भी नहीं था। उसके जीवन में एक अवसर आ उपस्थित हुआ जिसने उसे विश्व प्रसिद्ध वायलिन वादकों की पंक्ति में ला खड़ा किया।
नार्वे के अनजान रास्तों से गुजरती हुई मालब्रेन नाम की एक गायिका किसी समारोह में भाग लेने जा रही थी। रास्ते में उसके कानों में वायलिन की मधुर ध्वनि पड़ी। इस प्रकार का भावपूर्ण मधुर संगीत उसने अपने जीवन में पहले कभी नहीं सुना था। नार्वे का एक युवक वायलिन-वादन में तल्लीन था। संगीत की मधुर ध्वनि उसी की खिड़की से आ रही थी। मालब्रेन ने आसपास के लोगों से उस वायलिन-वादक का परिचय मालूम किया।
गायिका मालब्रेन उस संगीत ध्वनि से इतनी प्रभावित हुई कि उसने उस संगीतज्ञ से मिलने का विचार किया लेकिन जिस संगीत समारोह में भाग लेने वह जा रही थी उसका समय हो रहा था इसलिए उससे मिलने की आकांक्षा को हृदय में दबाए वह वहां से समारोह स्थल की ओर जल्दी हो चली गई। परन्तु संगीत-समारोह के आयोजकों से अनबन हो गई और उसने उस मजलिस में गाने से इंकार कर दिया। आयोजकों के सामने बड़ी कठिन परिस्थिति आ उपस्थित हुई। उनके हाथ-पांव फूल गए। परन्तु किसी एक व्यक्ति ने वायलिन-वादक ओलबुल का नाम सुन रखा था। आयोजकों के सामने और कोई विकल्प नहीं था इसलिए तुरन्त उसे ही बुलवाया गया।
नार्वे की वह मजलिस जिसमें उस अज्ञात वायलिन-वादक ने अपनी कला और प्रतिभा का प्रदर्शन किया, रंगीनियों से भर गई। ओलबुल के जीवन में यह एक अवसर ही तो था, बल्कि कहा जाय कि अवसर का एक क्षण, जिसने उसके द्वार पर आकर दस्तक दी। ओलबुल उस अवसर के लिए तैयार था। उसने उस अवसर को पकड़ लिया था।
उस रात नार्वे की उस भरी मजलिस में ओलबुल ने कई घण्टों तक वायलिन-वादन किया और कुछ ही घण्टों में जिसे कोई नहीं जानता था वही अज्ञात वायलिन-वादक ओलबुल संसार के सुप्रसिद्ध वायलिन-वादकों में गिना जाने लगा। उसने अवसर को पकड़ लिया था।
मैथ्यू ने कहा है कि बहुत कुछ सीमा तक मनुष्य अवसर का दास है। उद्देश्य की प्राप्ति की सफलता, उस व्यक्ति की क्षमता, ये सब बहुत महत्त्वपूर्ण तो है ही परन्तु इन सबसे महत्त्वपूर्ण एक और भी चीज है और वह है कि उसकी परिस्थितियों की शक्ति। परिस्थितियों की उपेक्षा करना मनुष्य के वश की बात नहीं है। अपनी इस बात को स्पष्ट करते हुए मैथ्यू ने एक घटना का वर्णन किया है।
इंग्लैंड के राजमहल में सम्राट जार्ज तृतीय अचेतावस्था में रोग-शय्या पर पड़ा था। वह बड़ा क्रोधी और अत्याचारी राजा था। उसके रोग-निदान के लिए देहात से एक चिकित्सक को बुलाया गया था। देहात के उस चिकित्सक ने अपने अनुभव और ज्ञान के अनुसार सम्राट का उपचार करने के लिए उसके शरीर से कुछ खून निकाल दिया जिससे सम्राट की बेहोशी समाप्त हो गई, उसे होश आ गया। परन्तु बेहोशी दूर होने पर राजा को जब इस बात का पता चला कि उस डाक्टर ने उसके शरीर से कुछ खून निकाला है तो एकदम वह क्रोधित हो गया और बुरी तरह से बिगड़ने लगा। चिकित्सक बड़ा धैर्यवान और व्यवहार कुशल था। वह पहले से इसके लिए तैयार था। अपनी व्यवहार कुशलता से उसने राजा को प्रसन्न कर लिया।

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