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Description
Informations
Publié par | Diamond Books |
Date de parution | 10 septembre 2020 |
Nombre de lectures | 0 |
EAN13 | 9789390287147 |
Langue | English |
Informations légales : prix de location à la page 0,0158€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.
Extrait
आप भी लीडर बन सकते हैं
परिवर्तनशील दुनिया में लोगों को प्रभावित कैसे करें और सफल कैसे हों
eISBN: 978-93-9028-714-7
© प्रकाशकाधीन
प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II
नई दिल्ली- 110020
फोन : 011-40712200
ई-मेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइट : www.diamondbook.in
संस्करण : 2020
AAP BHI LEADER BAN SAKTE HAIN
By - Dale Carnegie
समर्पण
हमारे बच्चों - जेसी लेवाइन, एलिजाबेथ और निकोल क्रोम - को, जिनके पिता बहुत लंबे समय तक काम में उलझे रहे। और हमारी पत्नियों - नैन्सी क्रोम (जिसका सहयोग कभी कम नहीं हुआ) और हैरियट लेवाइन (जिसकी ऊर्जा और संगठनात्मक प्रतिभा ने इस पुस्तक को साकार करने में मदद की) को।
सफल लोगों की नजरों में यह पुस्तक
“इस पुस्तक में कुछ भी जटिल, रहस्यमय या मुश्किल नहीं है। लेकिन इसके बावजूद यह आपको इस जटिल, मुश्किल और अक्सर रहस्यमय संसार में लीडर बना सकती है। लीडरशिप सफलता की कुंजी है।”
-बर्ट मैनिंग चेयरमैन और सीईओ, जे. वाल्टर थॉमसन
“डेल कारनेगी की परंपरा पर चलते हुए यह पुस्तक बताती है कि लोगों के लिए असरदार लीडरशिप की कला विकसित करना कितना आसान है, जो ज्यादातर लोगों में जन्मजात होती है। यह पुस्तक प्रत्येक उस बिजनेसमैन को पढ़नी चाहिए, जो अनिश्चित परिस्थितियों में सफलता पाना चाहता है।”
-डॉ. इरविन एल. केलनर, चीफ इकोनॉमिस्ट केमिकल बैंकिंग कॉर्प.
“सर्वश्रेष्ठ लोगों से सीखने का अनोखा अवसर : प्रत्येक क्षेत्र के सफल व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत कहानियाँ और सफलता की अचूक रणनीतियाँ सभी को बताते हैं। मैं इस पुस्तक को 10 में से 10 नंबर देती हूँ।”
- मैरी लाउ रेटन
“लीडरशिप लोगों से विश्वास और उत्साह के साथ सही समय पर सही काम करवाने की योग्यता है। पुस्तक ‘आप भी लीडर बन सकते हैं” प्रेरक, पठनीय और बहुत उपयोगी है। पुस्तक यह सिखाती है कि आप किसी भी पद पर रहते हुए, अपनी नेतृत्व क्षमता कैसे विकसित करें।”
-लॉरेंस बॉसन, प्रेसिडेंट और सीईओ, एसजीएस-थॉमसन माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स, इंक.
आभार
यह पुस्तक सिर्फ एक-दो लोगों की मेहनत का नतीजा नहीं हो सकती। दरअसल, कई गुणी लोगों के उदार सहयोग की बदौलत ही यह इतनी बेहतर बन पाई है, जिनमें जे. ओलिवर क्रोम, अरनॉल्ड जे. गिटोमर, मार्क के. जनन, केविन एम. मैक्गायर, रेजिना एम. कारपेंटर, मैरी बर्टन, जीन एम. नारुकी, डियान पी. मैक्कार्थी, हेलेना स्टाल, विली जेंडर, ज्यों-सुइस वैन डॉर्ने, फ्रेडरिक डल्प. हिल्स, मार्सेला बर्गर, लॉरीन कॉनेली और एलिस हेनिकन शामिल हैं। हम इन सबके आभारी हैं।
हम पूरे डेल कारनेगी फाउंडेशन से मिले बहुत अधिक समर्थन की भी सराहना करते हैं। प्रायोजकों, मैनेजर्स, प्रशिक्षकों, कक्षा के सदस्यों और होम ऑफिस की टीम से हमें बहुत सहयोग मिला।
अंत में, यह पुस्तक दुनिया के कुछ सबसे सफल लीडर्स के असल अनुभवों पर आधारित है। ये लोग अलग-अलग क्षेत्रों के हैं, जिनमें बिजनेस, शिक्षा जगत, मनोरंजन और सरकारी क्षेत्र शामिल हैं। उन सभी ने हमें अपना समय, अपनी यादें और अपना ज्ञान उदारता से दिया। इस पुस्तक का श्रेय उन्हीं को जाता है।
विषय सूची
प्रस्तावना : लोक व्यवहार क्रांति अपने अंदर छिपे नेतृत्व की खोज संवाद से सफलता लोगों को प्रेरित करना दूसरों में सच्ची दिलचस्पी दिखाएं सामने वाले की स्थिति को समझना चाहिए दूसरे से सुनकर टीम वर्क से सफलता पायें दूसरों का सम्मान करें समान, प्रशंसा और पुरस्कार गलतियों, शिकायतों और आलोचना से कैसे निबटें लक्ष्य तय करें एकाग्रता और अनुशासन संतुलन हासिल करें सकारात्मक दृष्टि विकसित करें चिंता छोड़ें जोश की शक्ति निष्कर्ष इसे साकार करें
परिवर्तन के लिए अपने मस्तिष्क को हर समय तैयार रखें। परिवर्तन का स्वागत करें। इसे आमंत्रित करें। अपनी राय और विचारों की जाँच करने तथा बारंबार जाँच करने पर ही आप विकास कर सकते हैं।
- डेल कारनेगी
प्रस्तावना लोक व्यवहार क्रांति
भविष्य में अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए सफल संगठनों को, चाहे वे व्यवसायिक हों, सरकारी या गैर-लाभकारी हों, उन्हें भी बहुत अधिक परिवर्तन से गुजरना होगा।
इक्कीसवीं सदी में संसार में बहुत अधिक परिवर्तन हो रहे हैं। उथल-पुथल और अभूतपूर्व विकास की प्रक्रिया में कुछ ही सालों में हमने पोस्ट-इंडस्ट्रियल समाज का उदय, सूचना युग का प्रारंभ, कंप्यूटराइजेशन की दीवानगी, बायोतकनीकी का जन्म और इतना ही बड़ा परिवर्तन - लोक व्यवहार क्रांति में देखा है।
शीत युद्ध के बाद, व्यापार जगत में बहुत प्रतियोगिता हुई। प्रतियोगिता ज्यादा वैश्विक और पैनी बन चुकी है। आज तकनीकी कई गुना गति से विकास कर रही है। अब कोई भी कंपनी अपने ग्राहकों की जरूरतों को नजरअंदाज नहीं कर सकती। आज कोई मैनेजर आदेश देकर, यह उम्मीद नहीं कर सकता कि कर्मचारी बिना सोचे-विचारे उसका अनुसरण करेंगे। व्यक्तिगत संबंधों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। कंपनियाँ सुधार में थोड़ी सी भी ढील नहीं दे सकतीं। जैसा पहले मानवीय सृजनात्मकता का शोषण होता था अब बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
भविष्य में अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए सफल संगठनों को, चाहे वे व्यवसायिक हों, सरकारी या गैर-लाभकारी हों, उन्हें भी बहुत अधिक परिवर्तन से गुजरना होगा। उनमें काम करने वालों को ज्यादा तेजी से सोचना होगा, ज्यादा नये तरीके से काम करना होगा, ज्यादा बड़े सपने देखने होंगे और एक-दूसरे के साथ बहुत अलग और बेहतर तरीकों से एक साथ जुड़ना होगा।
सबसे जरूरी है कि इस सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए एक बिलकुल ही नए किस्म की नेतृत्व क्षमता की जरूरत पड़ेगी, जो सबसे अलग होगा, जैसे हममें से बहुत लोग कुछ बन गए हैं। अब किसी कंपनी को सिर्फ चाबुक और कुर्सी के सहारे नहीं चलाया जा सकता था।
अपने संगठनों को वास्तविक भविष्य-दृष्टि और जीवनमूल्यों की बुनियाद भविष्य के लीडर्स को देनी होगी। इन लीडर्स को अतीत के लीडर्स के मुकाबले ज्यादा असरदार ढंग से संवाद और प्रेरित करना होगा। परिवर्तनशील स्थिति में, उन्हें अपना मस्तिष्क संतुलित रखना होगा। और इन नए लीडर्स को अपने संगठन में सेल्समैन से लेकर एक्जीक्यूटिव केबिन तक-मौजूद योग्यता और सृजनात्मकता का प्रयोग करना होगा।
जैसा कि आप जानते हैं, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ऐसी उथल-पुथल ज्यादा देखने को मिलती है। युद्ध के बाद अमेरिकी कंपनियाँ लगातार समृद्ध हुई। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि उनका प्रबंधन कैसा था।
युद्ध से यूरोप और एशिया की अर्थव्यवस्थाएँ तबाह और कमजोर हुई थीं और दुनिया के विकासशील देश तब आर्थिक दृष्टि से कोई खास महत्त्वपूर्ण नहीं बने थे। अमेरिकी कंपनियों ने बड़े मजदूर संगठनों और बड़ी सरकार की मदद से प्रत्येक किसी के लिए पैमाने तय कर दिए। इन कंपनियों का प्रबंधन बेहतरीन नहीं कहा जा सकता। लेकिन उन्हें इसकी जरूरत भी नहीं थी। उनकी प्रत्येक श्रेणीबद्धताएं उनके निश्चित कार्य विवरणों के कारण समृद्ध, खुश और ज्यादा से ज्यादा मुनाफे से भरी थीं।
बड़ी कंपनियों ने कर्मचारियों को अपने साथ रखने के लिए सुरक्षा के सपने दिखाए! अच्छे कॉरपोरेशन में नौकरी करने का मतलब था आजीवन नौकरी, जो सरकारी नौकरी से ज्यादा अलग नहीं थी। अलबत्ता उसमें तनख्वाह बेहतर और अतिरिक्त लाभ भी ज्यादा था।
छँटनी? उन लोगों की छँटनी के बारे में किसने सुना था, जो सूट जैकेट या सजीली पोशाक पहनकर नौकरी करने आये थे? फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों की छँटनी तो हो सकती थी, लेकिन मैनेजरों की कैसे हो सकती थी? लोग अक्सर “सफलता की सीढ़ी” के बारे में बात करते थे और यह भी कि वे किस तरह अपने कैरियर में एक-एक पायदान चढ़कर विकास करेंगे। उनकी विकास की रफ्तार तय थी और यह उनके ऊपर-नीचे के लोगों से न ज्यादा तेजी से हो सकती थी, न ही ज्यादा धीमी गति से। पलटकर देखने पर हम पाते हैं कि वे आसान दौलत के दिन थे, जिन्हें कभी न कभी तो खत्म होना ही था।
अमेरिका जब युद्ध के बाद युद्ध के परिणामों का आनंद ले रहा था, तब जापानी लोग भविष्य के लिए चिन्तित थे। उनकी अर्थव्यवस्था बर्बाद हो चुकी थी। उनका ज्यादातर इंफ्रास्ट्रक्चर तबाह हो चुका था। जापानियों को सबसे पहले इसी से उबरना था। इसके अलावा, जापान को अपनी उस छवि से भी उबरना था जिसके कारण उसे घटिया वस्तुओं के उत्पादन और खराब ग्राहक सेवा के लिए दुनिया भर में जाना जाता था।
जापानी लोग इतने कष्ट उठा चुके थे कि वे हर हाल में अपनी गलतियों से सीखने को पूरी तरह तैयार थे। इसलिए उन्होंने सबसे अच्छे सलाहकार खोजे। उनमें से डॉ. डब्ल्यू. एडवर्ड्स डेमिंग, युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना के गुणवत्ता नियंत्रण कार्यालय में स्टेस्टिशियन थे।
डेमिग ने जापानियों की लगातार मेहनत से प्रभावित होकर जापानियों से एक बार कहा, “बड़े अमेरिकी कॉरपोरेशन्स के जटिल तंत्रों की नकल मत करो। जापानी एक नई किस्म की कंपनी बनाएँ। ऐसी कंपनी, जो कर्मचारियों से जुड़ाव, गुणवत्ता सुधार और ग्राहक संतुष्टि के प्रति पूरी तरह समर्पित हो और सभी कर्मचारियों को इन लक्ष्यों के प्रति एकजुट होकर काम करने के लिए प्रेरित करे।”
धीरे-धीरे जापानी अर्थव्यवस्था का पुनर्जन्म हो गया। जापान तकनीकी नवाचार में अग्रणी बन गया और जापानी वस्तुओं तथा सेवाओं की गुणवत्ता आसमान पर पहुँच गई। अपने नए उत्साह की बदौलत जापानी कंपनियाँ, विदेशी कंपनियों की बराबरी तक ही नहीं पहुँचीं, कई महत्त्वपूर्ण उद्योगों में तो वे आगे भी निकल गईं। जापानियों की नई नीति को लोकप्रिय होने में ज्यादा समय नहीं लगा। यह जर्मनी, स्कैंडिनेविया, सुदूर पूर्व और पैसिफिक औरम के किनारे फैल गईं। दुर्भाग्य से, इसे अमेरिका तक पहुँचने में काफी समय लग गया और यह देर बड़ी महँगी साबित हुई।
जब दौलत की गाड़ी का पेट्रोल खत्म हुआ तो इसका किसी को एहसास तक नहीं था। 1960 और 1970 के दशकों में युद्ध के बाद की अर्थव्यवस्था का हल्ला इतना तेज था कि कभी-कभार के धमाके सुनाई ही नहीं देते थे। लेकिन परेशानियों के संकेत दिखाई देने लगे थे, जिन्हें नजरअंदाज करना दिनोंदिन मुश्किल होता जा रहा था।
मुद्रास्फीति और ब्याज दरें आसमान छूने लगीं। जिससे तेल महँगा हो गया। प्रतियोगिता सिर्फ प्रगतिशील जापानी या जर्मन कंपनियों से ही नहीं मिल रही थी। जल्द ही वे जनरल मोटर्स, जेनिथ, आईबीएम, कोडक और कई अन्य दिग्गज कंपनियों का मार्केट शेयर लूटने लगे। अर्थव्यवस्था के परिदृश्य में तिनके के बराबर दर्जनों देश अपनी नई प्रतियोगिता, योग्यताओं के दम पर अचानक तकनीकी की सरहदों पर पहुँच गए।
रियल एस्टेट सेक्टर की स्थिति बहुत खराब थी। 1980 के दशक के मध्य में इस लगातार बढ़ती हुई समस्या को रोकना मुश्किल लगने लगा। कंपनियों का कर्ज और राष्ट्रीय घाटा गुब्बारे की तरह फूल रहे थे। 1990 के दशक की शुरुआत में मंदी छा गई क्योंकि शेयर बाजार अजीब हरकतें कर रहा था। जिससे सबको साफ पता चल गया कि दुनिया कितनी बदल चुकी है।
यह परिवर्तन मिसाइल जितनी तेजी से बीच में फँसे हुए लोगों के लिए आया। अगर कंपनियाँ विलय या अधिग्रहण में नहीं जुटी थीं, तो वे रिस्ट्रक्चरिंग कर रही थीं या दिवालिएपन की अदालत में ठिठुर रही थीं। छँटनी हो रही थी। कर्मचारियों को नौकरी से निकाला जा रहा था। परिवर्तन बेरहम था। प्रोफेशनल्स और एक्लीक्यूटिब्ल को भी अपना भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा था और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें। यह बहुत तेज रफ्तार से हो रहा था। और अब यह सिर्फ मजदूरों या निचले कर्मचारियों तक ही सीमित नहीं था।
इतने बड़े और तीव्र परिवर्तन ने लोगों को अपने और अपने भविष्य के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर दिया। इसकी वजह से पूरी अर्थव्यवस्था में असंतोष और डर की अभूतपूर्व लहर पैदा हुई।
कुछ लोगों का यह विश्वास था कि दुनिया इस समस्या से उबरने का कोई तकनीकी हल जरूर खोज लेगी। और इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि बाजार की बेहतरी में तकनीकी सचमुच बहुत बड़ा योगदान दे रही है।
निजी व्यापार बैंक सॉन्डर्स कार्प एंड कंपनी के जनरल पार्टनर थॉमस ए. सॉन्डर्स तृतीय ने कहा था, “टेक्नोलॉ