Hriday Rog Kya Hai
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Hindi

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Description

यह पुस्तक एक हृदय रोगी के व्यक्तिगत अनुभव का परिणाम है, जिसने अथक प्रयास के बाद अंततः बीमारी पर काबू पा लिया। उन्होंने अध्ययन किया कि दिल का दौरा क्यों होता है और कैसे स्थितियों से बचा जा सकता है। यह भी समझने की कोशिश की जब्ती के मामले में क्या सावधानियां बरतनी चाहिए, ताकि भविष्य में एक और हमला न हो।
इसके लिए, लेखक ने हृदय रोग के क्षेत्र में चल रहे शोध और अनुसंधान का विस्तार से अध्ययन किया। कई केस हिस्टरी पढ़े। कई हृदय रोगियों के साथ चर्चा की और यह भी सीखा कि कैसे फिट रहकर जीवन शैली में सुधार किया जाए।
देश के प्रख्यात हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. आरके मधोक के दिशा-निर्देशों के आधार पर, उन्होंने ऐसी सामग्री प्रदान की, जिसे अपनाने पर, हृदय रोग में विस्तार नहीं होता है और दौरे पड़ने की संभावना कम हो जाती है।
हृदय रोग वास्तव में घातक है। इसका इलाज बहुत महंगा और आम आदमी की पहुंच से बाहर माना जाता है। ऐसी स्थिति में, यह पुस्तक निश्चित रूप से दिल की बीमारी से बचने और दिल का दौरा पड़ने के बाद स्वस्थ जीवन जीने के लिए उपयोगी होगी।

Yah pustak ek hirday rogi ke vyaktigat anubhav ka parinaam hai, jisane athak prayaas ke baad, antatah beemaaree par kaaboo pa liya. Unhone adhyayan kiya ki dil ka daura kyon hota hai aur sthitiyon se kaise bacha ja sakata hai. yah bhi samajhane ki koshish ki ek jabti ke mamale mein savadhani barati jaani chaahiye, taaki bhavishy mein ek aur hamala na ho.
Isake liye, lekhak ne hirday rog ke kshetr mein chal rahe shodh aur anusandhaan ka vistaar se adhyayan kiya. kayi kes histari padhe. kayi hirday rogiyon ke saath charcha ki aur yah bhi sikha ki kaise phit rahakar jeevan shaili mein sudhaar kiya jaye.
Desh ke prakhyaat hirday rog visheshagy Dr. RK Madhok ke disha-nirdeshon ke adhar par, unhone aisi samagri pradaan ki, jise apanane par, hirday rog mein vistar nahin hota hai aur daure padane ki sambhavana kam ho jaati hai.
Hirday rog vaastav mein ghaatak hai. isaka ilaaj bahut mahanga aur aam adami ki pahunch se bahar mana jata hai. aisi sthiti mein, yah pustak nishchit roop se dil ki beemari se bachane aur dil ka daura padane ke baad svasth jeevan jeene ke liye upayogi hogi.
This book is the result of a personal experience of a heart patient who, after tireless effort, eventually overcame the disease. He went on to study why the heart attack occurs and how situations can be avoided. He also tried to understand what precautions should be taken in case of a seizure, so that another attack does not occur in future.
For this, the author studied in detail the research going on in the field of heart disease. He read many case histories, discussed with many heart patients and also learned how to improve lifestyle by keeping fit.
Based on the guidelines of Dr. RK Madhok, eminent cardiologist of the country, he provided such material which, on adoption, does not expand into heart disease and the chances of seizures are reduced.
Heart disease is indeed fatal. Its treatment is considered very expensive and out of reach of common man. In such a situation, this book will definitely be useful to avoid heart disease and lead a healthy life after heart attack.

Informations

Publié par
Date de parution 01 septembre 2015
Nombre de lectures 0
EAN13 9789352150922
Langue Hindi
Poids de l'ouvrage 1 Mo

Informations légales : prix de location à la page 0,0300€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

धर्मवीर
(आई.ए.एस)
 
 



प्रकाशक

F-2/16, अंसारी रोड, दरियागंज, नयी दिल्ली-110002 23240026, 23240027 • फैक्स: 011-23240028 E-mail: info@vspublishers.com • Website: www.vspublishers.com
क्षेत्रीय कार्यालय : हैदराबाद
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डिस्क्लिमर
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गई पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या संपूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
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इस पुस्तक में उल्लीखित विशेषज्ञ की राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटाकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
पुस्तक में दिए गए विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जाएगा।
मुद्रक: परम ऑफसेटर्स, ओखला, नयी दिल्ली-110020


 
भूमिका
एक ह्रदय रोगी को इस विषय पर पुस्तक लिखने की आवश्यकता क्यों हुई, इसका पृष्ठभूमि मैं स्पष्ट करना चाहूंगा।
सन् 1973 में, जब मैं 38 साल का था, पहले-पहल खून में कोलस्ट्रोल की मात्रा की जांच हुई, जो 310 मिलीग्राम निकला। डॉक्टर ने साधारणा ढंग से बस, इतना कहा कि यह मात्रा ज्यादा है, कुछ वजन कम करे। मेरा वजन उस समय 73 किलो था। 5 फुट 4 इंच के व्यक्ति के लिए यह वजन औसत से लगभग 13 किलो ज्यादा था। मुझे यह ज्ञान था कि खून में कोलस्ट्रोल का आधिक्य ह्रदय रोग पैदा करने वाला मुख्य कारक होता है। इसलिए मैंने स्व-प्रेरणा से अपनी जीवन-शेली एवं खान-पान में परिवर्तन कारके लगभाग छ: महीने में अपना वजन 9 किलो घटा लिया, जिसके परिणामस्वरूप कोलस्ट्रोल भी 260 तक घट गया। 260 तक का कोलस्ट्रोल आम तौर पर सामान्य माना जाता है। अत: मैं लगभग चिंतामुक्त हो गया। 18 साल तक मेरा वजन 63-64 किलो एवं कोलस्ट्रोल 260 पर स्थिर रहा और कभी कोई परेशानी नहीं हुई।
फरवरी, 1991 में, 56 साल की उम्र में कुछ अस्वस्थता हुई जिसके संदर्भ में ट्रेडमिल टेस्ट किया गया तो नतीजा यह आया कि मुझे इस्कीमिया (हृदय को पूरा रक्त न मिल पाना) हो गया है। एस्कॅार्ट हार्ट इंस्टीट्यूट में एंजियोग्राफी हुई तो पता चला कि हृदय की धमनियों में तीन जगह अवरोध थे। एक अवरोध तो 90 प्रतिशत तक का या। सौभाग्य यहीं था कि मुझे उस समय तक दिल का दौरा नहीं पड़ा था। संस्थान के निदेशक डॉ नरेश त्रेहान ने बड़ी सहृदयता से मुझे मेरी स्थिति से अवगत करवाया। विचार-विमर्श के दौरान मैंने यह संकल्प प्रकट किया कि बाईपास सर्जरी की नौबत ही नहीं आने दूंगा। उन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया और राय दी कि हर छ: महीने में नियमित रूप से ट्रेडमिल टेस्ट करवाता रहूँ।
जयपुर के चिकित्सक, डॉ. आर.के.मधोक, हृदय रोग विशेषज्ञ की देखरेख में मैंने अपनी जीवनशैली मेँ और संशोधन किया, जिसके फलस्वरूप मेरा वजन छ: किलो और घट गया और कोलस्ट्रोल भी 220 से नीचे आ गया। समय-समय पर हुए ट्रेडमिल टेस्ट से प्रकट हुआ कि मेरी बीमारी में और विस्तार नहीं हुआ है, बल्कि स्थिति कुछ बेहतर ही हुई है। ईश कृपा से अब तक दिल का दौरा नहीं पड़ा है एवं बाईपास सर्जरी करवाने की नौबत नहीं आई है। यह बात अवश्य है कि मैं आज नदी किनारे के वृक्ष जैसी स्थिति में हूं, जो मिट्टी के कटाव से कभी भी धराशायी हो सकता है।
इस बीस साल के अपने जीवन पर जब मैं दृष्टि दौड़ता हूं तो दो निष्कर्ष स्पष्ट उभर कर सामने आते हैं। पहला यह कि अधिक कोलस्ट्रोल की' जानकारी होते ही जो सावधानियां मैंने बरतीं, वे यदि नहीं बरती होतीं तो 45 साल की उम्र तक मुझे प्राणघातक दिल का दौरा पड़ चुका होता। दूसरा निष्कर्ष यह कि हृदय-स्वास्थ्य के बारे में कुछ और ज्ञान प्राप्त करके, कुछ अधिक सावधानियां बरती होती तो मैं आज तक भी हृदय रोगी नहीं हुआ होता।
संतोष की बात यह है कि देर से ही सही, लेकिन सही रास्ते पर तो मैं आया। देर आयद, दुरुस्त आयद। जैसे ही मैंने अपनी बीमारी को काबू में रखने का संकल्प लिया, उसी के साथ ह्रदय रोग एवं हृदय-स्वास्थ्य के सम्बन्ध में विस्तृत अध्ययन भी प्रारम्भ कर दिया, क्योंकि जब तक दुश्मन को पूरी तरह से जानेंगे नहीं, तब तक उससे असरदार तरीके से मुकाबला नहीं किया जा सकता है। हृदय रोग के क्षेत्र में जो नवीनतम शोध एवं अध्ययन हो रहे हैं, उन पर भी नज़र रखीं। इसके साथ-साथ हृदय रोग से पीड़ित परिचितों एवं साथियों को जीवनशैली-सुधार के सम्बन्ध में अपने ढंग से परामर्श देना भी प्रारम्भ कर दिया। बहुत लोगों ने मेरी सलाह को उपयोगी पाया एवं कुछ साथियों ने सुझाव दिया कि क्यों न मैं इस विषय पर कुछ लिखूं।
इसी दौरान दो चीजें मेरे अन्तर्मन को लगातार कुरेदती रही है। प्रथम तो यह कि उच्च बौद्धिक स्तर के लोगों में भी स्वस्थ जीवनशैली के सम्बन्ध में काफी अनभिज्ञता एवं अज्ञानता है। जिन्हें ज्ञान है, उनमें भी स्वस्थ जीवनशैली अपनाने की इच्छाशक्ति की कमी है। दूसरी बात यह कि हमारी सप्पूर्ण स्वास्थ्य एवं चिकित्सा-व्यवस्था रोग-आधारित है, रोग निरोधन-आधारित नहीं। हृदय रोग जानलेवा तो है ही, इसके साथ ही हृदय रोग चिकित्सा बहुत महंगी है और आम आदमी की सामर्थ्य से बाहर है। इसके विपरीत प्रारम्भ से ही यदि कुछ सावधानियां बरती जाएं तो हृदय रोग से बचे रहना कठिन काम नहीं हैं। डॉक्टरों को तो इलाज से ही फुरसत नहीं है। अत: हृदय रोग निरोधन चेतना का कार्य समाज के प्रबुद्ध लोगों को ही अपने हाथ में लेना होगा।
हृदय रोग निरोधन के लिए जन-चेतना जगाने का एक बृहत् कार्यक्रम मेरे दिमाग में है, जिसकी पहली कड़ी के रूप में सेवानिवृति के तुरन्त बाद मैने यह लेखन कार्य हाथ नें लिया। आशा है, हृदय-स्वास्थ्य के प्रति जागरूक पाठकगण इसे उपयोगी पाएंगे। हृदय रोग क्षेत्र में हो रहे नवीनतम शोध निष्कर्षों का उल्लेख इस पुस्तक में किया गया है ताकि हृदय रोग से बचने एवं हृदयाघात होने के पश्चात भी स्वस्थ जीवन जीने के इच्छुक पाठकों के लिए यह पुस्तक एक उपयोगी निर्देशिका सिद्ध हो सके ।
हृदय रोग आज सिर्फ अमीर वर्ग की ही बीमारी नहीं रही है, मध्यम एवं गरीब वर्ग में भी यह रोग तेजी से फैल रहा है। हिन्दी के पाठकों के लिए इस विषय पर अच्छी पुस्तको का आज भी अभाव है। मुझे आशा है कि यह पुस्तक इस अभाव को दूर करने में सफल होगी।
इस संशोधित संस्करण में एक नया अध्याय ‘शोधकार्यों की वर्तमान उपलब्धियां एवं भावी संभावनाएं' जोड़ा गया है। विशाल सूचनासामग्री को अति संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करना मेरे लिए कठिन कार्य था। आशा करता हूं कि मेरा यह प्रयास पाठकों को हृदयरोग के क्षेत्र में चल रहे शोधकार्यों की दिशा एवं उपलब्धियों से भलीभांति परिचित करवाने में सफल होगा।
पुस्तक के लिए चित्रांकन मेरी पत्नी श्रीमती सीमा एवं पुत्र लेफ्टिनेंट असीम (भारतीय नौसेना) ने किया है। उनके इस सहयोग के बिना यह कार्य पूर्ण नहीं होता। ग्रामीण विकास एवं पचायती राज विभाग में कार्यरत श्री सुमन जोशी ने साफ-सुथरा टंकन कार्य अति अल्प समय में करके अमूल्य सहयोग दिया।
मैं इन सभी का हृदय से आभारी हूं।
—धर्मवीर
अनुक्रमणिका
1. समय रहते चेतो
2. हृदय की बनावट एवं कार्य
3. हृदय की बीमारियां एवं उनके प्रकार
4. दिल का दौरा: क्या और क्यों?
5. कोलस्ट्रोल तथा वसा का कुप्रभाव
6. कोलस्ट्रोल और वसा की मात्रा घटाने के उपाय
7. दिल के चार दुश्मन
8. मानसिक भावों का हृदय पर प्रभाव
9. सौ दवाओं की एक दवा: व्यायाम
10. हृदय रोग के अन्य कारण तथा नए शोध
11. महिलाओं में हृदय रोग
12. भरपेट खाएं वजन घटाएं
13. हृदय रोग को पलटा जा सकता है
14. हृदय एवं धमनियों के लिए कुछ हितकारी पथ्य
15. हृदय रोग:
16. आपको हृदयाघात या पक्षाघात की कितनी सम्मावनाएं हैं?
17. दिल का दौरा कब पड़ता है?
18. हृदयाघात-परीक्षण एवं उपचार
19. प्राथमिक उपचार से पुनर्जीवन
20. हृदय रोग-निदान के लिए किए जाने वाले मुख्य परीक्षणों की जानकारी
21. हृदय रोग का दवाओं से उपचार
22. शल्य-क्रिया द्वारा हृदय रोग का इलाज (बाईपास सर्जरी व एनजियोप्लास्टी)
23. नवीनतम शोध की दिशाएं एवं आयाम
24. शोधकार्यों की वर्तमान उपलब्धियां एवं भावी संभावनाएं
25. सवाल-जवाब
26. तत्व बिन्दु
शब्दावली


1 समय रहते चेतो
पाश्चात्य देशों में प्रतिवर्ष होने वाली मौतों में सबसे अधिक संख्या हृदयाघात अर्थात् दिल के दौरे से मरने वालों की रहती है। अमेरिका में प्रति वर्ष लगभग ढाई लाख लोग दिल के दौरे के शिकार हो जाते है। भारत में भी हृदय-रोगियों की संख्या पिछले कुछ सालों से लगातार बढ़ रही है। लगभग 24 लाख हिन्दुस्तानी प्रतिवर्ष हृदय रोगो के कारण काल के ग्रास बन जाते है। दिल के दौरे के कारण मरने वालों में अधिकांश 45 से 60 साल की उम्र के बीच के लोग होते है। चिंता की बात यह है कि कम उम्र में दिल के दौरे से मरने वाले नौजवानों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। यदि जनचेतना के माध्यम से हृदय रोगों की रोकथाम के सतत् उपाय तुरन्त ही प्रारम्भ नहीं किए गए, तो इक्कीसवीं सदी में दिल की बीमारी निश्चय ही भारत में महामारी का रूप धारण कर लेगी।
हृदय रोग का मुख्य करण होता है रक्तवाहिनी धमनियों ( Arteries ) का लचीलापन समाप्त होकर उनमें कड़ापन आ जाना एवं उनकी भीतर की परत पर चर्बी जैसे पदार्थ कोलस्ट्रोल ( Cholesterol ) का जमा हो जाना। जब यह जमाव बहुत अधिक हो जाता है, तो धमनियों के भीतर अवरोध पैदा हो जाता है, रक्त-संचार पूरी मात्रा में नहीं हो पाता। हृदय की मांसपेशियों को खून पहुंचाने वाली धमनियों में कड़ापन व चर्बीनुमा पदार्थ का जमाव यदि इतना अधिक हो जाता है कि उससे हृदय की ममपेशियों की आवश्यकता के परिमाण में खून पहुंचने में बाधा पाने लगती है, तो समझिए कि हृदय रोग का आधार बन गया। धमनियों में कोलस्ट्रोल के जमाव की प्रक्रिया को एथिरोस्किलिरोसिस ( Atherosclerosis ) कहते है। कोलस्ट्रोल का यह जमाव बढ़ते-बढ़ते हृदय में खून पहुंचाने वाली धमनी की नलिका में खून के प्रवाह को यदि पूरी तरह से बंद कर देता है, तो प्रतिफल होता है हृदयाघात ( Heart Attack ) या दिल का दौरा। दिल का दौरा अधिकांशत: सिकुंडी हुई धमनी में खून के किसी थक्के ( Blood-clot ) के अटक जाने से होता है, क्योंकि इससे भी हृदय से खून का प्रवाह बन्द हो जाता है।
धमनियों में कड़ापन आना व उनके भीतर कोलस्ट्रोल का जमाव एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसे रोका नहीं जा सकता - ठीक उसी प्रकार, जैसे कि बुढ़ापे को नहीं रोका जा सकता, परंतु सही जीवनपद्धति को अपनाकर इस प्रक्रिया को धीमा अवश्य किया जा सकता है। विज्ञान ने लगभग उन सभी कारणों का पता लगा लिया है, जो इस जमावप्रक्रिया को बढ़ाते हैं अर्थात् गति देते हैं। यदि कोई व्यक्ति सदैव ही अधिक वसायुक्त भोजन करता है व्यायाम नहीं करता, अधिक मोटा है, धूम्रपान व मदिरापान करता है किसी-न-किसी कारण से मानसिक तनाव में रहता है, तो समझ लीजिए कि उसकी धमनियों में उपर्य

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