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Description
Sujets
Informations
Publié par | Diamond Books |
Date de parution | 10 septembre 2020 |
Nombre de lectures | 0 |
EAN13 | 9789390287949 |
Langue | English |
Informations légales : prix de location à la page 0,0118€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.
Extrait
मेरी प्रतिनिधि कहानियाँ
eISBN: 978-93-9028-794-9
© लेखकाधीन
प्रकाशक डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.
X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II
नई दिल्ली- 110020
फोन : 011-40712200
ई-मेल : ebooks@dpb.in
वेबसाइट : www.diamondbook.in
संस्करण : 2020
MERI PRATINIDHI KAHANIYAAN
By - Savita Chaddha
विषय सूची यादें टूटा भ्रम काली कलूटी मैजिक विडंबना प्रेम हमारी बेटी एकांतवास शोलीदा बिब्बो गांधी लौट आओ तस्वीर की आंखें मादा रबड़ प्लांट मैं यहीं रहूँगा भीष्म पितामह की बहन “प्यारी”
मेरी चर्चित और प्रतिनिधि कहानियां
न जाने कितनी कहानियां हमारे आसपास जन्म लेती हैं और पूरा होने से पहले ही समाप्त भी हो जाती हैं। कुछ कहानियां ऐसी बन जाती हैं जो लक्ष्य तक पहुंचती हैं और समाज को सार्थक संदेश देने में सफल हो जाती हैं, जिसे एक बार पढ़ने के बाद पाठक भूल नहीं पाता। ऐसी कुछ कहानियां कभी-कभी चर्चित हो जाती हैं और समाज के समक्ष प्रतिनिधि कहानियों के रूप में सामने आ जाती हैं।
एक लेखक के लिए उसकी चर्चित कहानियां उसकी प्रिय भी हो सकती हैं लेकिन किसी लेखक की प्रिय कहानियां चर्चित हों, यह अनिवार्य नहीं होता। मेरी “यादें” कहानी 1982 में “जनयुग” समाचार पत्र में प्रकाशित हुई थी। इस कहानी के नारी रूप को काफी पसंद किया गया था। ये कहानी बाद में “आज का जहर” मेरे पहले कहानी संग्रह 1984 में भी प्रकाशित हुई थी। उस दौरान एक आयोजन में मुझे एक प्रेस कांफ्रेंस में जाना पड़ा था, यह 1985 की बात है। उस प्रेस कांफ्रेंस में फिल्म उद्योग की कुछ हस्तियाँ थीं। मेरे पास उस समय कहानी संग्रह “आज का जहर” और “घटनाचक्र” था, जिसमें यह कहानी भी थी। मैंने उस समय वह सम्मानपूर्वक उस फिल्मी हस्ती को दिया था। बाद में मैंने पाया कि मेरी इस कहानी के बहुत सारे अंश उनकी एक दो फिल्मों में शामिल थे।
मैंने किसी को कुछ कहा नहीं क्योंकि शिकायत करना और लड़ना मेरे नियमों में नहीं आता। मैं मानती हूँ ईमानदार लोगों को बेशक कुछ कम नसीब होता हो पर उनको रात में नींद बहुत अच्छी आती है। इसलिए आज भी मैं उस फिल्मी हस्ती का नाम नहीं लिख रही, न ही उस फिल्म का नाम लिखना चाहती हूँ।
1982 में मेरी कहानी “टूटा हुआ भ्रम” आकाशवाणी से प्रसारित हुई थी। कहानी पर काफी प्रतिक्रिया आयी थी और उसी साल मेरी ये कहानी शिमला आकाशवाणी स्टेशन से भी प्रसारित की गई थी। उस समय मुझे शिमला से अठारह रुपए पिचहत्तर पैसे मिले थे। इस संग्रह में ये कहानी भी है। इस संग्रह में वह “काली कलूटी” कहानी भी है जिसे हिंदुस्तान टाइम्स में 1990 में प्रकाशित होने का गौरव मिला था। जब इस कहानी पर टेलीफिल्म बनी तो इसका शीर्षक रखा गया था “बू”। 1992 में जब दूरदर्शन में काली प्रसाद जी ने मेरी “काली कलूटी” कहानी को टेलीफिल्म बनाने के लिए चुना तो मैंने उन से अनुरोध किया कि मैं आपको इससे बेहतर कहानी दे सकती हूं लेकिन उन्होंने कहा कि नहीं वह इसी कहानी पर टेलीफिल्म बनाएंगे। कहानी आप खुद पढ़िए, कहानी के दो पात्र स्किडजोफ्रीनया के शिकार हैं और उनके जीवन में आने वाली समस्याओं ने उन्हें किस मोड़ तक पहुंचा दिया।
इसी प्रकार जब मेरी “मैजिक” कहानी कदंबिनी में छपी थी तो उस समय उस कहानी पर प्रतिक्रिया स्वरूप 200 से ज्यादा पत्र मुझे मिले थे। हर पत्र में एक जिज्ञासा की, कई प्रश्न थे। हर पत्र में कहानी के विषय में पाठकों को बांधे रखने की क्षमता थी, मेरी कहानी लेखन की विधा की बहुत खूबसूरत शब्दों में सराहना की गई थी। मैं बहुत खुश हुई थी और उन पत्रों में एक पत्र धीरज अरोड़ा जी का था जिन्होंने अपने पत्र में मेरी इस कहानी पर नाटक मंचन की अनुमति मांगी थी। जब मेरी उनसे बात हुई तो उन्होंने भी यही कहा कि उन्हें यही कहानी पसंद है और इस पर ही नाटक मंचन होगा।
जब इसके नाटक मंचन की प्रक्रिया संपूर्ण हो गई तो मैं मंडी हाउस में गई, वहां पर एक बहुत ही विशाल बैनर लगा हुआ था जिसमें विश्व के देश के प्रतिष्ठित साहित्यकारों की कहानियों पर नाटक मंचन हो रहा था, यकीन मानिए मैं उस बैनर में अपने नाम को देखकर, अपनी कहानी के शीर्षक को देखकर बहुत प्रसन्न हुई थी और जब मैं नाटक देखने गई तो उसका एक अलग अनुभव है। आप उस कहानी को पढ़िए और बताएं आपको मेरी “मैजिक” कहानी कैसी लगती है। इसी प्रकार मेरी एक और कहानी जिस पर मुंबई के आर.के. सोरल जी ने विडंबना नाम से टेलीफिल्म बनाई, उसे विस्तार दिया और उन्हें भी मैंने कहा यह कहानी बहुत पुराने समय की लिखी हुई है, जब बेटियों को लोग आदर की दृष्टि से नहीं देखते थे, लेकिन वह नहीं माने और उन्होंने मेरी इसी कहानी को फिल्म के लिए चुना। इस फिल्म में मुंबई इंडस्ट्री के बड़े-बड़े कलाकार शामिल थे।
जब मेरी कहानी “हमारी बेटी” पर दूरदर्शन द्वारा टेली फिल्म बनाए जाने की स्वीकृति मुझे मिली, मेरे लिए ये बहुत ही प्रशंसा का विषय था। आप मेरी वह कहानी भी इस संग्रह में पढ़ेंगे।
इसमें मेरी वह कहानी भी है जिसे कदंबिनी ने “शोलीदा” शीर्षक से पत्रिका में प्रकाशित किया था और उस कहानी के लिए भी मुझे बहुत सारे पत्र मिले थे। “एकांतवास” और “मैजिक” कहानी देश की कई पत्रिकाओं में लगभग 50 से अधिक बार प्रकाशित हो चुकी हैं। इसी कहानी को पढ़कर एक प्रकाशक मेरे पास आए थे और उन्होंने मेरा कहानी संग्रह प्रकाशित करने के लिए मुझ से अनुरोध भी किया था।
उन्होंने मेरा कहानी संग्रह “नारी अस्मिता और अंतर्वेदना की कहानियां” शीर्षक से प्रकाशित भी किया था। इस संग्रह की इन कहानियों को बहुत प्रेम पूर्वक स्वीकार किया गया है। इसमें आप एक और कहानी पढ़ेंगे जो ‘प्रेम’ शीर्षक से है। वह भी बहुत चर्चित हुई थी और उसके लिए भी मुझे बहुत सारे पत्र मिले थे। उसमें एक खूबसूरत पत्र यह कह रहा था कि “मैं भी विकलांग हूं और आपने इसमें विकलांग व्यक्ति को बहुत ही प्यार और आदर मिलता हुआ दिखाया है। मैं इस पर बहुत खुश हूं।” जब मेरे कहानी संग्रह “आज का जहर” पर महामहिम राष्ट्रपति आदरणीय ज्ञानी जैल सिंह का पत्र मुझे मिला तब भी मैं बहुत खुश हुई थी और जब डॉ. विंदेश्वर पाठक जी ने मुझे आशीर्वाद स्वरूप मेरे लेखन पर अपनी सकारात्मक टिप्पणी दी तो भी मेरा अंतर्मन आपके आशीर्वाद से अभिभूत हो गया था।
मैं कह सकती हूं यदि किसी लेखक की कहानियां पाठक के मन अंतर्मन को छू लेती हैं तो लेखक का लेखन सार्थक हो जाता है। हालांकि कोई भी लेखक केवल लेखक मित्रों के लिए नहीं लिखता लेकिन जब आपके समकालीन लेखक भी आपकी कहानियों की प्रशंसा करते हैं तो लेखक को बहुत अच्छा लगता है। मेरी कई कहानियों को सर्वश्री विष्णु प्रभाकर, डॉ. रामदरश मिश्र, यशपाल जैन, डॉ. गोविंद चातक, जयप्रकाश भारती, डॉ. नगेंद्र, विद्यानिवास मिश्र, राजेंद्र अवस्थी, दिनेश नंदिनी डालमिया, जगदीश चतुर्वेदी, डॉ. गंगा प्रसाद विमल, राजकुमार सैनी, श्रवण कुमार, डॉ. अमर सिंह वधान डॉ. शशि भूषण सिंगल डॉ. गिरीश गांधी डॉ. राहुल, डॉ. रवि शर्मा, मुकेश मिश्रा, डॉ. ओम प्रकाश अग्रवाल, डॉ. राज कँवल और रमेश गौड़ के अलावा बहुत सारे लेखक मित्रों ने समय-समय पर मेरी कहानियों को पसंद किया है, उन पर अपने विचार प्रकट किए हैं और मुझे प्रोत्साहित किया है।
बहुत प्रसन्नता है कि मुझे जितने भी पाठक मिले हैं उन्होंने मेरी कहानियों को पसंद किया और मेरे पास आज एक बहुत बड़ा खजाना उनके पत्रों का सुरक्षित है। उन पत्रों में से तीन चार सौ पत्रों को एक पुस्तक के रूप में भी एक प्रकाशक द्वारा प्रकाशित कर सुरक्षित किया गया है जिसका शीर्षक था “पत्रों की दुनिया।” आज आप सबको मैं अपनी कुछ चर्चित कहानियों को समर्पित करते हुए बहुत प्रसन्न हूं।
मेरी कहानी “गाँधी लौट आओ” हर साल दो अक्टूबर को अलग-अलग पत्र-पत्रिकाओं में छपती रही है। जब पहली बार प्रकाशित हुई थी तो उसके कुछ दिन बाद अखबारों में ये खबर भी प्रकाशित हुई थी कि सरकारी अनाथालयों का निरीक्षण हुआ और बुराइयाँ दूर करने पर कार्रवाई की गई। एक लेखक के लिए इससे बड़ी संतुष्टि क्या हो सकती है। जब मेरी कहानी “तस्वीर की आंखें” कादिम्बनी में प्रकाशित हुई थी तब भी ये कहानी काफी चर्चित रही थी। इस संग्रह की सभी कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने पर पाठकों के दिलों पर दस्तक देने का प्रयास कर चुकी हैं।
मेरी इन चर्चित और प्रतिनिधि कहानियों को महत्त्वपूर्ण और लोकप्रिय डायमंड प्रकाशन आपके सामने लाये हैं, मैं शुक्रिया अदा करती हूँ आदरणीय नरेंद्र कुमार वर्मा जी का। ये कहानियां मेरे दिल के बहुत करीब हैं और मुझे पूरी आशा है कि आपका अमूल्य स्नेह और आशीर्वाद इन कहानियों को अवश्य मिलेगा। आप पढ़िए जरूर, बिना किसी लेखक को पढ़े आप उसके बारे में कोई भी निर्णय नहीं ले सकते।
सादर,
आपकी स्नेहाकांक्षी सविता चड्ढा 899, रानी बाग दिल्ली 110034
1. यादें
दरवाजे की घंटी कई बार बज चुकी थी लेकिन ना जाने मैं किन विचारों में खोई हुई थी। बहुत देर तक जब दरवाजा नहीं खुला तो आगंतुक ने दरवाजे को जोर-जोर से थपथपाना शुरू कर दिया। मैं हड़बड़ा कर दरवाजे की और गई। शीला को सामने देखकर मुझ पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं हुई। मैंने सहज भाव में दरवाजा खोल दिया और चुपचाप एक कुर्सी पर आकर बैठ गई। शीला मेरे पीछे-पीछे कमरे में दाखिल हुई और पास आकर मेरे दाएं कंधे पर हथेली रखते हुए बोली, “कैसी हो कमला?” वह मेरे सामने एक दूसरी कुर्सी खींच कर बैठ गई और मुझे भरपूर निगाहों से देखने लगी। मेरी कनपटियों के आसपास फैलते सफेद बालों को देखते हुए वह धीरे से बोली “नाराज हो मुझसे भी, बोलती क्यों नहीं।”
“तुम देख रही हो ना! मैं कितनी खुश हूं और फिर मैं तुमसे क्यों नाराज होने लगी” मैंने उसकी बात का धीरे से जवाब दे दिया था। मैं कुछ और भी कहना चाहती थी लेकिन मुझे अपने गले में अचानक भारीपन महसूस होने लगा, जैसे गूंगी हो गई हूं और मन का सारा लावा आंखों के रास्ते बहने लगा।
बीस साल बाद आज शीला को अपने सामने पाकर जैसे मेरा विगत वर्तमान हो उठा। इतने सालों का अंतराल। उस और से कभी कोई मिलने नहीं आया। आज शीला आई है मुझे समझाने, मुझे अपने पति के पास चले जाना चाहिए उस पति के पास जिसने मुझे बीस साल पहले उमा के लिए छोड़ दिया था। उमा जो शीला की बहन थी, अब नहीं रही।
उमा और शीला ये पांच बहनें थी। शीला और उमा लगभग मेरी हम उम्र थी। उनके साथ मेरी अक्सर दोस्ताना बातें होती रहती पर उनकी छोटी तीन बहनें मुझसे उम्र में काफी छोटी थी। उमा अपनी सभी बहनों में सबसे सुंदर थी। कॉलेज के जमाने में उसकी खासे लड़कों से दोस्ती थी। उसने 3 साल कॉलेज में बिताए थे और उन दो-तीन सालों के अपने किस्से जो उसने मुझे सुनाए थे, आज भी याद हैं। उसकी एक आदत थी, वह जिस तरह भी अपना समय बिता कर आती, या जिसके साथ भी घूम फिर कर आती, उसकी सारी बात मुझे सुनाई बिना नहीं रह पाती थी। एक बार उमा ने मुझसे कहा था, “जानती हो कमला कितने ही लड़के मेरे इर्द-गिर्द चक्कर काटते हैं।” तब मुझे गुस्सा भी आया था उस पर। मैंने उमा से यूं ही पूछ लिया था “बता तो सही, तेरे पास क्या है ऐसा जो सब लड़के तेरे ही आसपास मंडराते हैं।”
तब उसने चहकते हुए कहा था “भई जहां गुड़ होगा वहीं मक्खियां भी तो आएंगी।”
जैसे लड़के उसके दोस्त ना होकर मात्र मक्खियां ही हों।
मैंने कहना चाहा था “मक्खियां गुड़ पर ही नहीं आती गंदगी पर भी आती है।” पर जाने क्या सोचकर मैंने अपनी जुबान पर आई बात को बाहर नहीं आने दिया था। एक इसी आदत ने मुझे बहुत नुकसान भी पहुंचाया है। मैं खुलकर कभी किसी को कुछ कह नहीं सकी थी।
शीला और मैं दोनों एक स्कूल में पढ़ते थे। हम दोनों ने एक साथ ही स्कूल छोड़ा था। शीला और मैं दोनों ही आगे पढ़ाई जारी नहीं रख सकी थीं। हालांकि उमा की उम्र बड़ी थी लेकिन उसने शादी के लिए साफ मना कर दिया था। हारकर मां-बाप ने शीला की ही शादी तय कर दी थी। उसके कुछ दिनों बाद मेरी शादी की बात भी चल पड़ी थी। शादी की बात याद आते ही जैसे कोई कसेली चीज मेरे मुंह में चली जाती है। आज मांग के आसपास फैलते हुए अपने सफेद बालों का भी मुझे ध्यान आ गया और साथ ही अपने मां-बाप का भी जिन्होंने मेरी शादी इतनी जल्