MANORANJAK KAHANIYON SE BHARPOOR KAHAVATE
71 pages
Hindi

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MANORANJAK KAHANIYON SE BHARPOOR KAHAVATE , livre ebook

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Description

The book is a compilation of the best proverbs out of the pool of proverbs that are present in the Hindi language. The stories associated with these proverbs are entertaining and gripping, and can manage to hold the attention of both the young and old.


Informations

Publié par
Date de parution 20 octobre 2012
Nombre de lectures 0
EAN13 9789352151189
Langue Hindi
Poids de l'ouvrage 1 Mo

Informations légales : prix de location à la page 0,0500€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

मनोरंजन कहानियो से भरपूर
कहावते
(Interesting Stories to Learn Proverbs)
 
 
 
 
 
 
 



प्रकाशक

F-2/16, अंसारी रोड, दरियागंज, नयी दिल्ली-110002 23240026, 23240027 • फैक्स: 011-23240028 E-mail: info@vspublishers.com • Website: www.vspublishers.com
क्षेत्रीय कार्यालय : हैदराबाद
5-1-707/1, ब्रिज भवन (सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया लेन के पास)
बैंक स्ट्रीट, कोटि, हैदराबाद-500015
040-24737290
E-mail: vspublishershyd@gmail.com
शाखा : मुम्बई
जयवंत इंडस्ट्रियल इस्टेट, 1st फ्लोर, 108-तारदेव रोड
अपोजिट सोबो सेन्ट्रल मुम्बई 400034
022-23510736
E-mail: vspublishersmum@gmail.com
फ़ॉलो करें:
© कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स ISBN 978-93-814481-9-9
डिस्क्लिमर
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गई पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या संपूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
पुस्तक में प्रदान की गई सभी सामग्रियों को व्यावसायिक मार्गदर्शन के तहत सरल बनाया गया है। किसी भी प्रकार के उदाहरण या अतिरिक्त जानकारी के स्रोतों के रूप में किसी संगठन या वेबसाइट के उल्लेखों का लेखक प्रकाशक समर्थन नहीं करता है। यह भी संभव है कि पुस्तक के प्रकाशन के दौरान उद्धत वेबसाइट हटा दी गई हो।
इस पुस्तक में उल्लीखित विशेषज्ञ की राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटाकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
पुस्तक में दिए गए विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जाएगा।
मुद्रक: परम ऑफसेटर्स, ओखला, नयी दिल्ली-110020


अंदर के पृष्टों में
1. झूठ के पांव नहीं होते
2. वही सच्चा मित्र है जो बुरे वक्त में काम आए
3. रिश्वतखोर हमेशा के लिए बिक जाता है
4. नीम हकीम, खतरा-ए-जान
5. जल्दी का काम शैतान का
6. कानून सबके लिए एक समान होता है
7. प्रेम और जंग में सब जायज़ है
8. दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त होता है
9. सूरत से सीरत का अंदाज़ा नहीं होता
10. पहले अपने, फिर पराए
11. तेते पांव पसारिए, जेती लांबी सौर
12. सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को मत मारो
13. हर सुख की एक कीमत होती है
14. किसी को खत्म करना ही तो पहले उसे बदनाम करो
15. दीनबंधु ही ईश्वर का सच्चा सेवक होता है
16. आज को सुधारो, कल की चिंता मत करो
17. औरत का गुस्सा खुदा का उतार
18. दाढ़ी आ जाने से अक्ल आए, जरूरी नहीं
19. 'असंभव' कुछ भी नहीं
20. अच्छे काम का नतीजा अच्छा ही होता है
21. आवश्यकता अविष्कार की जननी है
22. घर का भेदी लंका ढाए
23. भूखे भजन न होय गोपाला
24. सीखने की कोई उम्र नहीं होती
25. सच्चा कलाकार हर वस्तु में सौदर्य देखता है
26. घमंडी का सिर नीचा
27. सबसे भली चुप
28. कल किसने देखा है
29. दूर के ढोल सुहावने लगते हैं
30. गुलामी की चुपड़ी रोटी से आज़ादी की सूखी रोटी भली
31. करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान
32. अपना हाथ जगन्नाथ
33. सहज पके सो मीठा होय
34. अक्ल की धार तलवार की धार से पैनी होती है
35. जैसे को तैसा
36. सत्यमेव जयते
37. एकता में बल है
38. ज्ञान सदा किताबों से ही नहीं मिलता
39. ख्याली पुलाव पकाने से भूख नहीं मिटती
40. साहसी व्यक्ति ही पुरस्कार का पात्र होता है
41. एक तीर से दो शिकार

1
झुठ के पांव नहीं होते
Don't cry wolf once too of ten
पहाड़ की तराई में स्थित किसी गांव मेँ एक लड़का रहता था। वह बहुत ही शरारती था। वह अपने मित्रों के साथ तरह-तरह की शरारतें करता था तथा उन्हें बेवकूफ़ बनाता था। वह उन्हें बनावटी कहानियां सुनाता रहता था। जब उसके मित्र उन कहानियों पर विश्वास कर लेते थे तो वह लड़का उनकी हंसी उड़ाता और कहता, “अरे मूर्खो ! यह एक झूठी कहानी थी।“

ऐसी शरारतें करना उसकी आदत बन गई थी। वह सबसे झूठ बोलता रहता था। यहां तक कि वह अपने माता-पिता से भी झूठ बोलता था। उसके माता-पिता ने उसे सुधारने के कई प्रयत्न किए परंतु उसके कानों में जूं तक नहीं रेंगी। उसके अध्यापकों ने भी उसे कई बार समझाने का प्रयत्न किया परंतु वह नहीं सुधरा।
छुट्टियां शुरू हो गईं। एक दिन उसके माता-पिता ने उससे भेडों को बाहर पहाड़ी पर ले जाकर घास चराने के लिए कहा। वह राजी हो गया। उसकी मां ने उसके लिए पोटली में भोजन बांधकर रख दिया। उस पोटली में उस लड़के ने अपनी बांसुरी, गुलेल तथा कंचे आदि रख लिए। जब वह दरवाजा खोलकर भेडों को घास चराने के लिए बाहर ले जाने लगा तो उसकी मां ने कहा, ''बेटे, अपना ध्यान रखना। पहाड़ों पर बहुत सारे भेड़िए होते हैं। वे बहुत चतुर होते हैं। कभी-कभी भेड़िए एक झुंड बनाकर आते हैं और बच्चों तथा भेडों को पकड़कर दूर ले भागते हैं। तुम्हें सावधान रहना होगा।“ उस छोटे बच्चे ने अपनी मां से चिंता न करने को कहा और वहां से चल दिया।
फिर उसने अपनी लंबी छड़ी निकाली और तरह-तरह की आवाजें निकालता हुआ उन भेड़ों को पहाड़ों की तरफ़ ले जाने लगा। शीघ्र ही वह उन भेड़ों के साथ हरी- भरी घास से भरपूर एक स्थान पर पहुंच गया। उसने सोचा कि यहां उसकी भेड़ों को भरपूर चारा खाने को मिल जाएगा। यह सोचते हुए वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया। उसको भेड़ें वहां घास चरने लगीं।
दोपहर में उसने अपना भोजन किया। फिर थोड़ी देर के लिए उसने बांसुरी बजाई। थोड़ी देर बाद वह बोर होने लगा। उसे उबासी आने लगी। तत्पश्चात् उसे एक शरारत करने को सूझी। उसके मन में एक विचार आया। उसे थोड़ी दूर पर लकड़हारों का एक समूह दिखाई दिया। वह लड़का तेजी से उनकी तरफ भागा और जोर-जोर से चिल्लाने लगा, “बचाओ ! भेड़िया आया ! भेड़िया आया ! बचाओ ! बचाओ !”
वे लकड़हारे अपनी-अपनी कुल्हाड़ियां लेकर उस लड़के को तरफ़ भागे। जब उन्होंने पूछा कि भेड़िया कहां है तो वह लड़का जोर से ठहाके मारता हुआ हंसने लगा और कहा, “यहां तो कोई भेड़िया नहीं है। मैं तो ऐसे ही मज़ाक कर रहा था, और आप सब लोग वेबकूफ़ बन गए।“ इस पर वे लकड़हारे बेहद नाराज़ हुए तथा उस लड़के को कोसते हुए वहां से चले गए।
कुछ दिनों बाद उस लड़के ने कुछ कुम्हारों को उसी जगह मिट्टी खोदते हुए देखा जहां पर वह अपनी भेडों को चराता था। उसे फिर से शरारत करने की सूझी। वह चिल्लाया, “बचाओ ! भेड़िया आया ! भेड़िया आया ! बचाओ ! बचाओ ! कुम्हार अपना सारा काम-काज छाड़कर और अपने हाथों में डंडे तथा फावड़े लहराते हुए उस लड़के की ओर दौड़ पड़े। उस लड़के तक सबसे पहले पहुंचने वाल कुम्हार ने उससे पूंछा, “कहाँ है भेड़िया?” लड़के ने उनका उपहास करते हुए कहा, ''भेड़िया ! क्या ? यहां तो कोई भेड़िया ? नहीं है। मैंने तो आप सबको बेवकूफ बनाया है।“ यह कहते हुए वह तालियां बजाकर जोर-जोर से हंसने लगा। कुम्हारों को उसकी बात पर बहुत क्रोध आया तथा उसे खूब अपशब्द कहकर वहां से चले गए।
छोटे लड़के की यह शरारत भरी कहानी पूरे गांव में फैल गई। गांव वालों ने आपस में यह चर्चा की कि वह बहुत ही झूठा है। वह बार-बार बेवजह ही ' भेड़िया आया ! भेड़िया आया !' चिल्लाता रहता है और वहां से गुजर रहे लोगों को परेशान करता रहता है।
संयोगकश, एक दिन उस लड़के ने एक भेड़िए को लुक-छिपकर उसकी भेड़ो का शिकार करने के इरादे से उनकी ओर आते हुए देखना। यह देख वह बहुत घबरा गया। उसके पैरों के नीचे से मानो जमीन खिसक गई। उसे अपनी जान का खतरा महसूस होने लगा। उसके हाथ में एक मज़बूत लाठी थी पर उसमें उन भेड़ियों का सामना करने का साहस नहीं था। वह घबराकर जोर-जोर से चिल्लाने लगा, “बचाओ ! भेड़िया आया ! भेड़िया आया ! बचाओ ! बचाओ !” पास के ही कुछ गांववालों ने जब उसकी उसकी सुनी तो वे उसकी सहायता के लिए उठ खड़े हुए। परंतु उसी समय उन्हें याद आया कि वह लड़का तो झूठा है। उसको चीख़ सुनकर गांव के मुखिया ने कहा, "वह फिर से कोई नाटक कर रहा है। इस बार हम उसकी चाल मे फंसने वाले नहीं है।" यह कहकर वे गांववाले जंगल के दूसरी ओर चले गए।
उस छोटे लड़के को बीच रास्ते में आते देख उस भेड़िए ने उसे पर धावा बोल दिया। वह लड़का अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर जोर से भागने लगा फिर वह जल्दी से पेड़ पर चढ़ गया। उसकी भेड़ें भी अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगीं। उस भेड़िए ने एक भेड़ के बच्चे को धर दबोचा और उसे अपने मुंह में दबाकर भाग खड़ा हुआ। कुछ और भेड़िए, जो मौके की तलाश में थे, उन्होंने भी एक-एक भेड़ को धर दबोचा और मुंह में दबाकर वहां से चले गए।
शाम को वह लड़का वहुत दुखी मन से तथा घबराया हुआ घर लौटा। उसकी मां ने भेड़ों की गिनती की। उसमें चार भेड़ें कम निकलीं। यह जानकर उसने अपने बेटे से पूछ, "कहां हैं बाकी भेड़ें ?” उस लड़के ने रोते हुए बताया, "उनको भेड़िए उठाकर ले गए। मैं जोर-जोर से सहायता के लिए चिल्लाया। पास के गाँववालों ने मेरी चीख सुनी भी थी, लेकिन वे मेरी सहायता के लिए नहीं आए।“
इस पर उसकी मां ने जवाब दिया, “तुम जानते हो कि ऐसा क्यों हुआ? तुम पहले कई बार झूठ-मूठ के ही चिल्लाए थे कि ‘भेड़िया आया, भेड़िया आया' और जब तुम्हारी सहायता के लिए कोई आया तो तुमने उसका उपहास किया। इस बार चाहे तुमने सचमुच ही सहायता के लिए उनको पुकारा, परंतु इस बार वे तुम्हारी सहायता के लिए इसलिए नहीं आए, क्योंकि उन्हें लगा कि हरा बार भी तुम उनके साथ मजाक कर रहे हो। बेवकूफ लड़के ! तुम्हारे पिताजी को जब यह पता चलेगा कि तुमने उनकी चार भेड़ें खो दी हैं तो वे तुम पर बहुत ही नाराज होंगें।
वह लड़का अपनी मां के चरणों में गिरकर फूट-फूटकर रोने लगा। उसने प्रण किया कि यह भविष्य में कभी भी किसी से झूठ नहीं बोलेगा, क्योंकि वह जान गया था कि झूठ के पांव नहीं होते और झूठ का सहारा लेकर किसी का कभी भी भला नहीं हो सकता।

शिक्षा: इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती हैं कि हमें झूठ नहीं बोलना चाहिए। बात-बात पर झूठ बीलते रहे तो हम बदनाम हो जाएंगे। फिर हमारी बात का कोई विश्वास नहीं करेगा।

2
वही सच्चा मित्र है जो बुरे वक्त में काम आए
A friend in need is a friend indeed
सुदामा एक गरीब ब्राह्मण था। वह और उसका परिवार अत्यंत गरीबी तथा दुर्दशा का जीवन व्यतीत कर रहा था। कई-कई दिनों तक उसे बहुत थोड़ा खाकर ही गुजारा करना पड़ता था। कई बार तो उसे भूखे पेट भी सोना पड़ता था। सुदामा अपने तथा अपने परिवार की दुर्दशा के लिए स्वयं को दोषी मानता था। उसके मन में कई बार आत्महत्या करने का भी विचार आया। दुखी मन से वह कई बार अपनी पत्नी से भी अपने विचार व्यक्त किया करता था। उसकी पत्नी उसे दिलासा देती रहती थी। उसने सुदामा को एक बार अपने परम मित्र श्रीकृष्ण, जो उस समय द्वारका के राजा हुआ करते थे, की याद दिलाई। बचपन मेँ सुंदामा तथा श्रीकृष्ण एक साथ रहते थे तथा सांदीपन मुनि के आश्रम में दोनों ने एक साथ शिक्षा ग्रहण की थी। सुदामा की पत्नी ने सुदामा को उनके पास जाने का आग्रह किया और कहा, "श्रीकृष्ण बहुत दयावान हैं, इसलिए वे हमारी सहायता अवश्य करेंगें। “सूदामा ने संकोच-भरे स्वर में कहा, “श्रीकृष्ण एक पराक्रमी राजा हैं और मैं एक गरीब ब्राह्मण हूं। मैं कैसे उनके पास जाकर सहायता मांग सकता हूं ?” उसकी पत्नी ने तुरंत उत्तर दिया,। “तो क्या हुआ? मित्रता में किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं होता। आप उनसे अवश्य सहायता मांगें। मुझसे बच्चों की भूख-प्यास नहीं देखी जाती। “अंतत: सुदामा श्रीकृष्ण के पास जाने को राजी हो गया। उसकी पत्नी पड़ोसियों से थोड़े-से चावल मांगकर ले आई तथा सुदामा को वे चावल अपने मित्र को भेंट करने के लिए दे दिए। सुदामा द्वारका के लिए रवाना हो गया।

महल के द्वार पर पहुंचने पर वहाँ के पहरेदार ने सुदामा को महल के अंदर जाने से रोक दिया। स

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