JUNGLE KI KAHANIYAN
106 pages
Hindi

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JUNGLE KI KAHANIYAN , livre ebook

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Description

This book Jungle Tales for Children makes a strong case that well-chosen stories give children good role models and increase their empathy for others. It doesn''t just hand children simplistic moral precepts, but give them the opportunity to think about and discuss moral choices.

Jungle Tales for Children is a compilation of 50 one-page short stories for children. Language used is elementary and simple. Each story comes with a caricature type illustration in black & white to retain interest of young readers. The moral at the end of the story summaries precisely what the child is supposed to learn!

These stories educate children about a family, tradition, ethos, social mores or share cultural insight or a combination of all these. Thoughtful stories not only provide enjoyment, they also shape and influence lives of children.

We have published following books in this series:

* Legendary Tales for Children

*Jungle Tales for Children

*Folk Tales for Children

*Interesting Tales for Children

*Ramayana Tales for Children

These books don’t offer theoretical moral values or claim to preach to children. They show the way!!


Informations

Publié par
Date de parution 19 novembre 2013
Nombre de lectures 0
EAN13 9789352151035
Langue Hindi
Poids de l'ouvrage 1 Mo

Informations légales : prix de location à la page 0,0500€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

बच्चों के लिए
जंगल की कहानियाँ




प्रकाशक

F-2/16, अंसारी रोड, दरियागंज, नयी दिल्ली-110002 23240026, 23240027 • फैक्स: 011-23240028 E-mail: info@vspublishers.com • Website: www.vspublishers.com
क्षेत्रीय कार्यालय : हैदराबाद
5-1-707/1, ब्रिज भवन (सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया लेन के पास)
बैंक स्ट्रीट, कोटि, हैदराबाद-500015
040-24737290
E-mail: vspublishershyd@gmail.com
शाखा : मुम्बई
जयवंत इंडस्ट्रियल इस्टेट, 1st फ्लोर, 108-तारदेव रोड
अपोजिट सोबो सेन्ट्रल मुम्बई 400034
022-23510736
E-mail: vspublishersmum@gmail.com
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© कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स ISBN 978-93-505708-9-0
डिस्क्लिमर
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गई पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या संपूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
पुस्तक में प्रदान की गई सभी सामग्रियों को व्यावसायिक मार्गदर्शन के तहत सरल बनाया गया है। किसी भी प्रकार के उदाहरण या अतिरिक्त जानकारी के स्रोतों के रूप में किसी संगठन या वेबसाइट के उल्लेखों का लेखक प्रकाशक समर्थन नहीं करता है। यह भी संभव है कि पुस्तक के प्रकाशन के दौरान उद्धत वेबसाइट हटा दी गई हो।
इस पुस्तक में उल्लीखित विशेषज्ञ की राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटाकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
पुस्तक में दिए गए विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जाएगा।
मुद्रक: परम ऑफसेटर्स, ओखला, नयी दिल्ली-110020

प्रकाशकीय
अनेक वर्षो से जन विकास सम्बन्धी पुस्तकें प्रकाशित करने के पश्चात् वी एण्ड एस पब्लिशर्स ने बच्चों के मनोरंजन के लिए कहानियों को कुछ चुनिंदा पुस्तकें प्रकाशित करने का निश्चय किया है। ये पुस्तके बाजार में बिक रही कहानी को साधारण पुस्तकों से थोड़ी अलग हटकर है जो बच्चों का भरपूर मनोरंजन करने के साथ उनका ज्ञानवर्द्धन भी करेगी। हम गीपू बुक्स सीरीज के तहत पंचतंत्र की कहानियाँ पहले ही प्रकाशित कर चुके हैं। गीपू बुक्स को बाज़ार से भरपूर सराहना मिली है। पाठकों से मिल रही निरंतर प्रशंसा से उत्साहित होकर हम अपने पाठकों के लिए कहानियों की दूसरी विशिष्ट श्रृंखला प्रकाशित कर रहें हैं।
अनेक वर्षों से जन विकास संबन्धी पुस्तके प्रकाशित करने के पश्चात्, वी एण्ड एस पब्लिशर्स ने बच्चों के मनोरंजन के लिए कहानियों की कुछ चुनिंदा पुस्तकें प्रकाशित करने का निश्चय किया है। ये पुस्तकें बाजार में बिक रही कहानी की साधारण पुस्तकों से थोडी अलग हटकर है जो बच्चों का भरपूर मनोरंजन करने के साथ उनका ज्ञानवर्द्धन भी करेगी। हम गोपू बुक्स सीरीज के तहत पंचतंत्र की कहानियाँ पहले ही प्रकाशित कर चुके हैं। गोपू बुक्स को बाजार से भरपूर सराहना मिली है। पाठकों से मिल रही निरंतर प्रशंसा से उत्साहित होकर हम अपने पाठकों के लिए कहानियों की दूसरी विशिष्ट श्रृंखला प्रकाशित कर रहे हैं।
प्रस्तुत पुस्तक ̒बच्चों के लिए जंगल की कहानियाँ ̕ घने जंगल में रहने वाले काइयाँ मगर चतुर जानवरों के दांवपेंच की रोचक कहानियों का अनूठा संकलन है। कहानी लेखन के द्वारा लेखक ने इस बात का विशेषतौर पर ध्यान रखा है कि कोई भी कहानी एक पेज से अधिक नहीं हो। इस श्रृंखला में कहानियों की पाँच पुस्तकें हैं। सभी पुस्तकों में पचास-पचास बेजोड़ कहानियों का अनूठा संग्रह है।
पुस्तक की भाषाशैली अत्यन्त सहज तथा भावपूर्ण होने के कारण ये पुस्तके बच्चों के बीच अवश्य लोकप्रिय होगी। प्रत्येक कहानी के अन्त में कहानी से मिलने वाली सीख की जानकारी भी दी गयी है, जिसे बच्चे पढ़कर ज्ञान अर्जित कर सकते हैं।
हमें पूर्ण विश्वास है कि ये छोटी-छोटी कहानियाँ कम समय में बालमन को गुदगुदाने के साथ अभिभावकों का भी मनोरंजन करेगी।


विषय-सूची
1. कुबुद्धि का फल
2. चौधराई की खींचतान
3. सोने का घोड़ा
4. सिंह किसके जजमान
5. रहमदिल लड़का
6. दोस्त की दुश्मनी
7. सपना
8. लालच बुरी बला
9. राक्षस का अन्त
10. चूहा और बिल्ली
11. सियार की धूर्तता
12. सुन्दर बनने की चाह
13. स्वार्थी सिंह
14. भैंस की चराई
15. गीदड़ और तीतर
16. काजी करे, वही न्याय
17. एक पैसे मे हाथी
18. संगति का असर
19. रट्टू तोता
20. धूर्त लोमडी
21. विद्या का उचित उपयोग
22. शेर के चतुर साथी
23. अब पछताए होत क्या
24. बड़बोली के बोल
25. करे कोई भरे कोई
26. ठगों का जाल
27. मेहनत से जी चुराने का फल
28. नेकी और बदी
29. अनमोल सीख
30. दो फरिश्ते
31. एक से भले दो
32. अधिक लालच का फल
33. दयस्साम की जय
34. ड्रैगन का जन्म
35. अभिमान
36. नारियल के पेड़ का रहस्य
37. खुशी का राज
38. पश्चाताप
39. भगवान और देगा
40. शेखचिल्ली का इलाज
41. मुसीबत से बचा राजा
42. माँ का महत्त्व
43. अपराध-बोध
44. समस्या का हल
45. सच्चा सुनार
46. घमण्डी धनुर्धर
47. सबसे बड़ा दान
48. शिक्षा बड़ी या धन
49. छप्पर फाड़ के
50. भाग्य और पुरुषार्थ


1
कुबुद्धि का फल
रामलाल ने अपने बेटे का विवाह किया। दहेज में मिले सामान को ढोने के लिए ससुराल वालों ने कईं गधे दिये। एक गधा ऊधमी था। वह बड़ी उछल-कूद और तोड़-फोड़ करता। रामलाल ने उसे बीच रास्ते में छोड़ दिया। वह जंगल में स्वतंत्र विचरण करने लगा। एक दिन वहाँ एक गाड़ीवान आया। वृक्ष की छाँह में विश्राम के लिए उतरा। बैलों को एक पेड़ से बाँध दिया और स्वयं रसोई पकाने लगा।
गधा घूमता-फिरता उन बैलों के पास जा पहुँचा। वह बोला, ‘देखो, मेरी बात मानो तो तुम इस भार ढोने के कष्ट से मुक्त हो सकते ही।' दोनों बैलों में एक मामा था और दूसरा भानजा। मामा को गधे की बात अच्छी लगी जबकि बैल ने फटकारते हुए कहा, ‘हमारा स्वामी हमें कितना ध्यान से रखता है, यह नहीं देखते।' गधा बोला, 'आखिर हो तो परतन्त्र ही।' मामा बैल ने गधे की सिखायी बातों पर चलने की ठान ली। जैसे गाड़ी चली और मामा बैल चलते-चलते गिर पड़ा। अब वह थोडा दूर चलता और फिर गिर पड़ता। गिरते ही जोर-जोर से साँसें लेने लगता।
गाड़ीवान ने समझा बैल बीमार हो गया है। लेकिन एक बेल से गाड़ी कैसे चलती? उसने आस-पास देखा एक गधा घूम रहा था। गाड़ीवान ने आव देखा ना ताव, तुरन्त गधे को पकड़ा और गाड़ी में जोत दिया और बीमार मामा बैल को गाड़ी पर चढ़ा दिया। गधे को बैल की जगह जुतते देख भानजा बैल मुस्कराया और कहा, "कुबुद्धि सिखाने वाले के साथ यही होता है।'


2
चौधराई की खींचतान
एक जंगल था। जंगल में एक लोमडी थीं। वह खुद को बहुत होशियार समझती थी। एक बार एक खरगोश भागता हुआ उसकी खोह में आ छिपा। उसके पीछे दो बाघ दौड़ रहे थे। लोमड़ी ने पूछा, 'तुम प्राणों को हथेली पर लेकर कैसे भागते हुए आये हो?' खरगोश ने अपनी उखड़ी हुई साँसे संभाली और अपने डर को छुपाते हुए बोला, 'बहन! जंगल के सभी जानवर मिलकर मुझे चौधराई का पद देना चाहते थे। मैं इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था। इसलिए बड़ी कठिनाई से उनके चंगुल से निकल भागा हूँ।'
लोमड़ी ने कहा, 'तुम मूर्ख हो क्या? चौधराई की तो अपनी शान है, बड़ा सम्मान है। हाथ में सत्ता हो तो फिर कहना ही क्या?' खरगाश ने कहा, 'बहन फिर ऐसा करो कि यह पद तुम ही ले लो, मुझसे तो नहीं सम्भाला जाता।' लोमडी का मन ललचाया और वह चौधराई का पद लेने के लिए बाहर निकली। जैसे ही वह बाहर निकली, तो देखा बाहर दो खूँखार बाघ खरगोश के बाहर निकलने की प्रतीक्षा कर रहे थे। लोमडी को बाहर आते देख दोनों ने एक साथ झपट्टा मारा, लोमड़ी ने जैसे-तैसे अपनी जान बचायी लेकिन इस कोशिश में उसके दोनों कान बाघों के हत्थे चढ़ गये। वह वापस दौड़कर खोह में घुस गयी। कान गँवा कर लोमडी को खोह में आते देख खरगोश ने पूछा, 'क्यों बहन इतनी जल्दी वापस कैसे आ गयी?' लोमडी ने ठण्डी साँस लेते हुए कहा, 'चौधराई में कान खिंचाई की खींचतान बहुत है।' अपनी योग्यता को विकसित किये बिना शासक बनने का यत्न करने वालों के साथ अकसर यही होता है।


3
सोने का घोड़ा
'श्योपुर गोंव में माणिक नाम का एक व्यक्ति रहता था। माणिक हर बात को लम्बी-चौड़ी करके कहता। गप्प हाँकना उसका स्वभाव बन गया था। एक दिन माणिक अपने घर के बाहर बैठा था। इतने में राजा के सिपाही कुछ ढूँढ़ते हुए उधर आये। आते ही माणिक से पूछा कि क्या उसने किसी श्वेत घोड़े को इधर से जाते हुए देखा हैं। माणिक ने अपनी आदत मुताबिक कहा कि सोने के रंग वाला घोड़ा जिसने देखा हो वह चाँदी के रंग वाले घोड़े पर क्यों ध्यान देगा? माणिक की बात सिपाहियों ने राजा तक पहुँचा दी कि एक नागरिक के पास सोने जैसे रंग का एक घोड़ा है, ऐसा घोड़ा तो राजा के पास ही शोभा पाता है।
माणिक को तुरन्त बुलावा भेजा गया। राजा ने माणिक से कहा कि तुम अपना सुनहरा घोड़ा मुझे दे दो और बदले में तुम्हें राजकोष से मुँहमाँगा सोना दे दिया जायेगा। माणिक ने अपनी आदतवश जवाब दिया कि में सोना लेकर क्या करूँगा, मैंने तो हीरों के ढेर देखें हैं। राजा ने कहा कि फिर तुम चाहो जितने हीरे ले लो, पर सुनहरा घोड़ा मुझे दे दो। माणिक की जुबान से निकला मुझे हीरों की क्या कमी, मैने तो रत्नों के भण्डार बिखरे देखें है।
राजा ने फिर कहा कि तुम चाहो जितने रत्न ले लो, पर सुनहरे रंग वाला घोड़ा मुझे दे दो। माणिक ने कहा- क्या। सोना, क्या हीरे, क्या मोती, क्या सुनहरे रंग वाला घोड़ा, मैंने तो उड़ने वाला घोड़ा देखा है। सब समझ गये कि माणिक की झूठ-मुठ लम्बी-चौड़ी हाँकने की आदत है। अन्त में राजा ने क्रोधित होते हुए कहा, "तुमने जेल की कालकोठरी देखी हैं? माणिक ने थर-थर काँपते हुम हाथ जोड़ लिये। दयावश राजा ने उसे छोड़ दिया और जान पर बनने के बाद माणिक की आदत भी छूट गयी।


4
सिंह किसके जजमान
मानसरोवर के तीर पर एक हंस रोज उड़ता हुआ आता। शान्त मानसरोवर झील में किलोलें करता और किनारे बैठकर अपने पंखो को सुखाया करता। पास में ही एक मन्दिर था। वहाँ भोला नामक श्रद्धालु भगवान के दर्शन करने आया करता था। आते-जाते वह मानसरोवर के हंस को भी प्रणाम करता। बदले में हंस उसे एक स्वर्णमुद्रा देता। यह क्रम कई दिनों तक चलता रहा एक दिन की बात है। समीप के जंगल से एक शेर मानसरोवर पर पानी पीने के लिए चला आया। उसे देखकर हंस भयभीत होकर वहॉ से उड़ गया और उसके स्थान पर एक कौआ आकर बैठ गया।
उस रोज जब भोला मन्दिर पहुंचने के बाद मानसरोवर की तरफ बढ़ रहा था कि मन्दिर के पुजारी ने उसे रोक कर पूछा, "कहॉ जा रहे हो भाई?" उसने कहा, 'मानसरोवर के तीर पर एक हंस निवास करने लगा है। मैं रोज उससे मिलने जाता हूँ। हमारा आपस में बहुत प्रेम हैं, जब तक में उसे देख नहीं लेता, मेरा मन नहीं लगता और बदले में यह मुझे एक स्वर्णमुद्रा देता हैं, जिसे मैं गरीबों में बाँट देता हूँ।'
इतनी बात सुनकर पुजारी ने ठण्डी साँस लेते हुए कहा, 'हंसा उड़ सरवर गया, काग भया प्रधान, विप्र अपने घर प्रधान, अपने घर जाइए, सिंह किसके जजमान' यानी अब मानसरोवर पर सिंह का कब्जा हो गया है, हंस के स्थान पर कौआ विराजमान हो गया से अत: अच्छा होगा कि आप उस तरफ मत जाओ, सिंह आपका प्राणान्त भी कर सकता है। भोला ने दूर से ही देखा पुजारी ठीक कह रहे थे। समय बदल चुका था और हंस के बजाए कौए की काँव-काँव मानसरोवर में गूँज रही थी। समय के बदलाव को भाँपते हुए भोला ने सीधे घर की राह पकड़ना ही उचित समझा।


5
रहमदिल लड़का
फ्रांस के एक छोटे से नगर में एक दयालु लड़का जॉन रहता था। उसे जंगली पक्षियों से बड़ा प्रेम था। वह पक्षियों की बोलीं पहचान लेता था। एक दिन जब वह कहीं

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