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Description
Informations
Publié par | V & S Publishers |
Date de parution | 15 janvier 2016 |
Nombre de lectures | 0 |
EAN13 | 9789350576267 |
Langue | English |
Poids de l'ouvrage | 3 Mo |
Informations légales : prix de location à la page 0,0225€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.
Extrait
प्रकाशक
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© कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स
ISBN 978-93-505762-6-7
संस्करण 2021
DISCLAIMER
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गयी पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या सम्पूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
पुस्तक में प्रदान की गयी सभी सामग्रियों को व्यावसायिक मार्गदर्शन के तहत सरल बनाया गया है। किसी भी प्रकार के उद्धरण या अतिरिक्त जानकारी के स्रोत के रूप में किसी संगठन या वेबसाइट के उल्लेखों का लेखक या प्रकाशक समर्थन नहीं करता है। यह भी संभव है कि पुस्तक के प्रकाशन के दौरान उद्धृत बेवसाइट हटा दी गयी हो।
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इस पुस्तक की सम्पूर्ण सामग्री का कॉपीराइट लेखक/प्रकाशक के पास रहेगा। कवर डिजाइन, टेक्स्ट या चित्रों का किसी भी प्रकार का उल्लंघन किसी इकाई द्वारा किसी भी रूप में कानूनी कार्रवाई को आमंत्रित करेगा और इसके परिणामों के लिए जिम्मेदार समझा जायेगा।
प्रकाशकीय
वी एण्ड एस पब्लिशर्स पिछले अनेक वर्षों से आत्मविश्वास और जनरुचि की पुस्तकें प्रकाशित करते आ रहे हैं। पुस्तक प्रकाशन की अगली कड़ी में हमने बच्चों के स्वस्थ मनोरंजन के लिए 'बच्चों की लोकप्रिय कहानियाँ' प्रकाशित किया है।
प्रस्तुत पुस्तक में जनमानस में प्रचलित कहावतों को चरितार्थ करती 20 कहानियाँ हैं। इस पुस्तक की प्रत्येक कहानी में बच्चों को एक सीख मिलती है।
हमें आशा है कि यह पुस्तक बच्चों का मनोरंजन करने के साथ बड़ों को भी अवश्य पसंद आएगी। पुस्तक में पायी गई किसी त्रुटि अथवा सुझाव के लिए पाठकों के पत्र हमारे पते या इमेल पर सादर आमंत्रित हैं।
-प्रकाशक
अंदर के पृष्ठों में
कवर
मुखपृष्ठ
प्रकाशक
प्रकाशकीय
अंदर के पृष्ठों में
1 आवश्यकता आविष्कार की जननी है
2 घर का भेदी लंका ढाए
3 भूखे भजन न होय गोपाला
4 सीखने की कोई उम्र नहीं होती
5 सच्चा कलाकार हर वस्तु में सौंदर्य देखता है
6 घमंडी का सिर नीचा
7 सबसे भली चुप
8 कल किसने देखा है
9 दूर के ढोल सुहावने लगते हैं
10 गुलामी की चुपड़ी रोटी से आजादी की सूखी रोटी भली
11 करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान
12 अपना हाथ जगन्नाथ
13 सहज पके सो मीठा होय
14 अक्ल की धार तलवार की धार से पैनी होती है
15 जैसे को तैसा
16 सत्यमेव जयते
17 एकता में बल है
18 ज्ञान सदा किताबों से ही नहीं मिलता
19 ख्याली पुलाव पकाने से भूख नहीं मिटती
20 साहसी व्यक्ति ही पुरस्कार का पात्र होता है
21 एक तीर से दो शिकार
1 आवश्यकता आविष्कार की जननी है
Necessity is the mother of invention
स न 1891 की बात है। शिकागो शहर में व्हाइटकॉम्ब एल. जडसन नामक एक सज्जन रहा करते थे। एक दिन वे सुबह जल्दी उठ गए। वे नहाकर अपने कमरे में गए तथा अलमारी के अंदर से पहनने के कपड़े निकाले। शीशे के सामने खड़े होकर वे कपड़े पहनने लगे तथा एक गाना भी गुनगुनाने लगे। फिर अपने बालों को संवारने लगे। खुद को शीशे के सामने निहारते हुए वे अपने आप से बोले, "मैं आज बहुत सुंदर लग रहा हूं।" फिर वे जूतों की अलमारी की ओर गए और अपने पहने हुए परिधान
के हिसाब से जूतों का चयन करने लगे। एक कुर्सी पर बैठकर वे जूते पहनने लगे और उसमें लगे बटनों को लगाना शुरू किया। पर यह क्या! उन्होंने देखा कि एक जूते का एक बटन नहीं था। वह कहीं खो गया था। इस पर वे बोले, “मैं वह बटन खोजकर उसमें लगा लूंगा ।" यह कहकर वे बटन को इधर- उधर घर में खोजने लगे। उन्होंने गलीचे के नीचे देखा। अलमारियों को भी ध्यानपूर्वक देखा तथा उनके नीचे भी खोजा। फिर झाड़ू देकर भी खोजने की कोशिश की, परंतु उन्हें कहीं भी वह जूते का बटन नजर नहीं आया ।
इस पर जडसन को बहुत क्रोध आया। उन्होंने उस खोए हुए बटन को बहुत कोसा। फिर अपने लिए दूसरे जूतों का चयन किया और बाद में अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए। जडसन ने अपने-आप से कहा, "उस जूते के बटन के खोने की वजह से मुझे आज बहुत परेशानी हुई। मैं उसे कभी माफ़ नहीं कर सकता। मैं उन बटनों से छुटकारा पाना चाहता हूं। इसके लिए मुझे और अच्छे विकल्प की आवश्यकता होगी, जिससे कि मैं अपने जूतों को ठीक प्रकार से पहन सकूं। "
घर लौटकर जडसन उन विकल्पों के बारे में विचार करने लगे। उनके मन में कई विचार उत्पन्न हुए। उनमें से एक विकल्प उन्हें पसंद आया। उन्होंने सोचा कि क्यों न एक ऐसा फीता तैयार किया जाए जो कि आसानी से बंद हो सके और खुल सके। ऊपर चढ़ाकर उसे बंद किया जा सके और उलटी दिशा में करने पर उसे खोला जा सके। कई कोशिशों के बाद वे अपने इस प्रयोग में सफल हो गए। उनके आविष्कार का हम आज भी अपनी जिंदगी में भरपूर प्रयोग करते हैं, जिसे हम 'प' या 'चेन' के नाम से जानते हैं ।
शिक्षा:- इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हर समस्या का कोई-न-कोई हल अवश्य होता है। अपने दृढ़ निश्चय से व्यक्ति अपनी राह में आई हर समस्या का हल निकाल सकता है। तभी तो कहते हैं— 'जहां चाह वहां राह'।
2 घर का भेदी लंका ढाए
Never a Quisling be
ए डॉल्फ हिटलर ने 1930 के दशक में जर्मनी का नेतृत्व किया था। वह जर्मनी को विश्व की सबसे बड़ी ताकत बनाना चाहता था। दूसरे देशों ने हिटलर के इस विचार का कड़ा विरोध किया, परंतु उनमें जर्मनी की सेना का सामना करने का सामर्थ्य नहीं था। कई यूरोपीय देश; जैसे – पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया, फ्रांस आदि जर्मनी के हाथों बड़ी आसानी से पराजित हो गए थे।
इस तरह द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत हुई। शीघ्र ही विश्व के कई राष्ट्र युद्ध की चपेट में आ गए। सारा विश्व दो गुटों में बंट चुका था। एक गुट का नेतृत्व हिटलर तथा अक्ष देशों के हाथों में था। इस गुट के विरोध में एक अन्य गुट का नेतृत्व मित्र राष्ट्रों, अमेरिका तथा ब्रिटेन के हाथों में था।
नॉर्वे को जर्मनी की ओर से धमकी मिली थी। वहां की जनता ने इसका कड़ा विरोध किया। जर्मनी ने सोचा कि क्यों न भीतरी समर्थन को प्राप्त किया जाए। जर्मनी के प्रतिनिधियों ने इस विषय में गहन पूछताछ तथा खोजबीन शुरू की। अंततः उन्हें वह आदमी मिल ही गया जिसकी उन्हें इस काम के लिए तलाश थी। उसका नाम था विडकिन क्वीस्लिंग, जो नार्वे का एक कर्मठ नेता था ।
एक जर्मन प्रतिनिधि ने क्वीस्लिंग से किसी गुप्त स्थान पर भेंट की। दोनों ने युद्ध की रणनीति पर बातचीत की। जर्मन प्रतिनिधि ने उससे कहा, “जर्मनी के समक्ष दुनिया की कोई भी ताकत टिक नहीं सकती 1 क्या तुमने नहीं देखा कि किस तरह कि किस तरह से जर्मनी ने यूरोप के कई राष्ट्रों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया है? नॉर्वे ने भी अगर हमारे विरुद्ध जंग छेड़ी तो उसका भी वही हश्र होगा जो दूसरे देशों का हुआ है। मेरी बात मानो और जर्मनी का इस युद्ध में साथ दो। "
जर्मन प्रतिनिधि की बात सुनकर क्वीस्लिंग ने तुरंत उत्तर न देते हुए उस पर विचार करना उचित समझा। फिर उसने जर्मन प्रतिनिधि से प्रश्न किया कि इससे उसे क्या फायदा होगा। क्वीस्लिंग की बात सुनकर जर्मन प्रतिनिधि ने कहा, “सत्ता ! मेरे दोस्त, तुम्हें सत्ता प्राप्त होगी ! तुम हिटलर का विश्वास जीत सकते हो। वे तुम्हें नॉर्वे का प्रधानमंत्री नियुक्त कर देंगे। क्या तुम्हारे लिए यह किसी बड़े इनाम से कम है?"
क्वीस्लिंग ने धड़कते दिल से उससे पूछा, "क्या तुम इसका वादा करते हो? " प्रतिनिधि ने मुस्कराते हुए इसका जवाब दिया, "हां, हां, बिल्कुल! " इसके बाद क्वीस्लिंग हिटलर के हाथों की कठपुतली बन गया। वह समय-समय पर हिटलर के विरोधियों की गतिविधियों की जानकारी देता रहता था। इस वजह से नॉर्वे को हार का मुंह देखना पड़ा था। शीघ्र ही नॉर्वे का पतन हो गया तथा जर्मन सेना नॉर्वे में घुस गई। क्वीस्लिंग ने अपने-आप को तथा अपने देश को बेचकर गद्दारी का सबूत पेश किया था। उसे अपने इस कारनामे की कीमत प्राप्त हो गई। वह नॉर्वे का प्रधानमंत्री तो जरूर बन गया, परंतु साथ-ही-साथ वह हिटलर के हाथों की कठपुतली भी बन गया ।
चाहे क्वीस्लिंग ने दुश्मनों की सहायता करके अपना मकसद पूरा कर लिया हो, परंतु यह उसके देश के लिए अत्यंत ही दुर्भाग्य की बात थी कि उसे एक ऐसा गद्दार नेता मिला। उसे जिल्लत भरी मौत नसीब हुई। आज के युग में क्वीस्लिंग का नाम 'विश्वासघाती' शब्द का पर्याय बन चुका है
शिक्षा:- इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने देश और देशवासियों के प्रति सदैव वफ़ादारी निभानी चाहिए। चंद रुपयों के लालच में खुद को और अपने देशवासियों को बेचना एक जघन्य अपराध के समान है। अतः हमें ऐसा कतई नहीं करना चाहिए।