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Description
This book Folk Tales for Children makes a strong case that well-chosen stories give children good role models and increase their empathy for others. It doesn''t just hand children simplistic moral precepts, but give them the opportunity to think about and discuss moral choices.
Folk Tales for Children is a compilation of 50 one-page short stories for children. Language used is elementary and simple. Each story comes with a caricature type illustration in black & white to retain interest of young readers. The moral at the end of the story summaries precisely what the child is supposed to learn!
These stories educate children about a family, tradition, ethos, social mores or share cultural insight or a combination of all these. Thoughtful stories not only provide enjoyment, they also shape and influence lives of children.
We have published following books in this series:
• Legendary Tales for Children
• Jungle Tales for Children
• Folk Tales for Children
• Interesting Tales for Children
• Ramayana Tales for Children
These books don’t offer theoretical moral values or claim to preach to children. They show the way!!
Informations
Publié par | V & S Publishers |
Date de parution | 19 novembre 2013 |
Nombre de lectures | 0 |
EAN13 | 9789352150175 |
Langue | Hindi |
Poids de l'ouvrage | 1 Mo |
Informations légales : prix de location à la page 0,0500€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.
Extrait
बच्चों के लिए
अनमोल कहानियाँ
प्रकाशक
F-2/16, अंसारी रोड, दरियागंज, नयी दिल्ली-110002 23240026, 23240027 • फैक्स: 011-23240028 E-mail: info@vspublishers.com • Website: www.vspublishers.com
क्षेत्रीय कार्यालय : हैदराबाद
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© कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स ISBN 978-93-505709-1-3
डिस्क्लिमर
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गई पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या संपूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
पुस्तक में प्रदान की गई सभी सामग्रियों को व्यावसायिक मार्गदर्शन के तहत सरल बनाया गया है। किसी भी प्रकार के उदाहरण या अतिरिक्त जानकारी के स्रोतों के रूप में किसी संगठन या वेबसाइट के उल्लेखों का लेखक प्रकाशक समर्थन नहीं करता है। यह भी संभव है कि पुस्तक के प्रकाशन के दौरान उद्धत वेबसाइट हटा दी गई हो।
इस पुस्तक में उल्लीखित विशेषज्ञ की राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटाकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
पुस्तक में दिए गए विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जाएगा।
मुद्रक: परम ऑफसेटर्स, ओखला, नयी दिल्ली-110020
प्रकाशकीय
अनेक वर्षों से जन विकास संबंधी पुस्तकें प्रकाशित करने के पश्चात् वी एण्ड एस पब्लिशर्स ने बच्चों के मनोरंजन के लिए कहानियों की कुछ चुनिंदा पुस्तकें प्रकाशित करने का निश्चय किया है। ये पुस्तकें बाजार में बिक रही कहानी की साधारण पुस्तकों से थोड़ी अलग हटकर है जो बच्चों का भरपूर मनोरंजन करने के साथ उनका ज्ञानवर्द्धन भी करेगी। हम गोपू बुक्स सीरीज के तहत पंचतंत्र की कहानियाँ पहले ही प्रकाशित कर चुके हैं । गोपू बुक्स को बाजार से भरपूर सराहना मिली है। पाठकों से मिल रही निरंतर प्रशंसा से उत्साहित होकर हम अपने पाठकों के लिए कहानियों की दूसरी विशिष्ट श्रृंखला प्रकाशित कर रहे हैं ।
प्रस्तुत पुस्तक 'बच्चों के लिए अनमोल कहानियाँ' में लोक कथाओं से जुडी प्रसिद्ध कहानियों का संकलन है। कहानी लेखक के द्वारा लेखक ने इस बात का विशेषतौर पर ध्यान रखा से कि कोई भी कहानी एक पेज से अधिक नहीं हो । इस श्रृंखला में कहानियों की पाँच पुस्तकें है। सभी पुस्तकों में पचास-पचास बेजोड़ कहानियों का अनूठा संग्रह है।
पुस्तक की भाषाशैली अत्यन्त सहज तथा भावपूर्ण होने के कारण ये पुस्तकें बच्चों के बीच अवश्य लोकप्रिय होगी। प्रत्येक कहानी के अन्त में कहानी से मिलने वाली सीख की जानकारी भी दी गयी है, जिसे बच्चे पढ़कर ज्ञान अर्जित कर सकते हैं ।
हमें पूर्ण विश्वास है कि ये छोती-छोटी कहानियाँ कम समय में बालपन को गुदगुदाने के साथ अभिभावकों का भी मनोरंजन करेगी ।
विषय-सूची
1. आधे खाये की लगायी
2. अतिथि-सत्कार का फल
3. धन द्रव है
4. एक चावल की खीर
5. इस हाथ दे, उस साथ ले
6. चिंता
7. दो मीठे बोल
8. नाविक का दायित्व
9. चार पत्नियाँ
10. तेरी दुनिया बहुत निराली
11. बुद्धिराम की होशियारी
12. हुनर की सराहना
13. दूरदर्शिता
14. मित्रता
15. भाई का सच्चा प्यार
16. जीवन का अर्थ
17. किताबी ज्ञान
18. शब्दों की शक्ति
19. जो होना है सो होए
20. ज्ञानी
21. लाओ त्जु का न्याय
22. सच्चा साधु
23. ईश्वर का उपहार
24. कौन अमीर, कौन गरीब
25. मुसीबत
26. न्याय
27. मनुष्य-धर्म
28. तीन साधु
29. व्यवहार से परिवर्तन
30. राजा का त्याग
31. पर्वत झुक गया
32. दक्षिणा के मोती
33. सोने का सातवाँ घड़ा
34. लालच की परिक्रमा
35. साधु का ज्ञान
36. ज्ञान में छिपा धन
37. खुशी
38. हाथ की सुगंध
39. ढपोल शंख
40. अनमोल खजाना
41. गुस्से पर काबू
42. स्वर्ग और नरक की सैर
43. लकड़ी का बक्सा
44. लक्ष्मी को तो जाना है
45. मेहमानवाजी का कर्ज
46. ईश्वर की लीला
47. पापी का कुआँ
48. सच्चा धर्म
49. मायाराम की युक्ति
50. पदचिन्ह
1
आधे खाये की लगायी
राजस्थान में एक नगरी थी, धनपुरी। इसी नगरी में रहते थे 'जीवता' महाराज। पक्के जिमक्कड़। एक दिन जीवता महाराज को सूचना मिली कि नगरी के सेठ धन्नामल के यहाँ पौत्र-जन्म की खुशी में भोज का आयोजन है। बिना बुलावे के ही जीवता महाराज तुरन्त वहाँ जा पहुँचे। जाकर पंगत में शामिल ही गये और खाना शुरू कर दिया। एक पंगत उठी, दूसरी पंगत उठी, देखते ही देखते दस पंगत उठ गयी। लेकिन जीवता महाराज जीमते रहे। अब धन्नामल को चिंता होने लगी कि ऐसा ही चलता रहा तो दो बातें होंगी, एक तो भोजन कम पड़ जायेगा और दूसरी कहीं बुजुर्ग जीवता महाराज ‘टें' बोल गये तो जीव-हत्या का पाप लगेगा सो अलग। वे बड़ी विनम्रता से जीवता महाराज के सामने भोजन खत्म करने का संकेत कर पानी का पात्र लेकर पहुँचे और कहा, 'महाराज अब पानी पी लो।'
जीवता महाराज बोले- "अच्छा किया रे धन्ना जो तू पानी ले आया। चौथाई खाने के बाद मैं पानी ही पीता हूँ।' कहते हुए वे पानी गटागट पी गये। सेठ धन्नामल से रहा नहीं गया, तो पूछा, 'महाराज कित्ता खाओगे?" जीवता, महाराज ने कहा, 'जब तक रुचेगा, तब तक खाऊँगा। तू कहे तो भूखा ही उठ जाऊँ? धन्नामल क्या कहता। फिर पन्द्रह पंगतें उठ गयी, तब धन्नामल ने देखा कि जीवता महाराज वहीं लेट गये हैं। सासें धीमे चलने लगीं, बदन डोलने लगा और हाथ छाती पर आ गये। घबराया धन्नामल दौड़कर वहाँ आया और बोला, "जीवता महाराजा! जिन्दा हो?" जीभ के चटखारों के साथ जीवता महाराज की आवाज आयी, 'यह तो आधे खाये की लगायी हैं। मैं भी जीवता, तू भी जीवता रह धन्ना' धन्मामल समझ गया कि सच्चे जिमक्कड़ जीवता महाराज का भोजन अभी आधा ही हुआ है। धन्नामल ने फिर उन्हें नहीं टोका और परोसने वालों से कह दिया कि इन्हें जीभर जिमाओ, इनके जीमण के बिना पौत्र-जन्म की खुशी अधूरी हैं।
2
अतिथि-सत्कार का फल
एक गाँव में सुखिया नाम का एक गरीब आदमी रहता था। वह इतना ही कमा पाता था, जिससे उस रोज की गुजर-बसर हो सके। फिर भी उसके चेहरे पर कभी असन्तोष की रेखा किसी ने नहीं देखी। एक शाम की बात है, सुखिया अपने परिवार के साथ भोजन कर रहा था। किसी ने द्वार खटखटाया। वह कोई यात्री था, जो राह भटक कर उस गॉव में चला जाया या। सुखिया ने घर आये अनजान अतिथि का स्वागत किया और अपने साथ भोजन करने का आमन्त्रण देते हुए भोजन का अपना हिस्सा प्रेमपूर्वक अतिथि को खिला दिया। इतने पर भी अतिथि की भूख नहीं मिटी, तो सुखिया की पत्नी और बच्चों ने भी अपने हिस्से का भोजन अतिथि को अर्पित कर दिया। भरपेट खाकर तृप्त होते हुए अतिथि ने रात्रि-विश्राम की इच्छा जतायी।
सुबह उठते ही सुखिया को अतिथि की फिक्र हुई लेकिन वह बिना किसी को बताये जा चुका था। सुखिया को अतिथि का व्यवहार विचित्र तो लगा लेकिन वह अपने काम पर जाने की तैयारी करने लगा। इतने में उसके घर एक शाही बग्घी आकर रुकी। दरअसल रात को अतिथि राजा खुद थे, जो वेश बदल कर प्रजा का हाल-चल जानने के लिए घूमते थे। राजा ने बग्घी से उतर कर सुखिया को गले लगाते हुए कहा कि वे बहुत प्रसन्न है कि अपना भोजन दूसरों को देने वाले सुखिया जैसे सन्तोषी लोग उसके राज्य में है। रात के भोजन के लिए कृतज्ञता जताते हुए न केवल सुखिया के परिवार को राजमहल में भोजन का आमन्त्रण मिला बल्कि सुखिया को राजमहल में ही सेवा का अवसर भी दे दिया गया।
3
धन द्रव है
रामपुर में एक सेठ मूँजीमल रहता था। एक दिन उसके सपने में लक्ष्मी जी आयी। आते ही बोली,, 'मैं अब यहाँ नहीं रुक सकती। मुझे कल कहीं और जाना है।' व्यापारी अपने सपने से चिन्तित हो गया। उसने अपनी पत्नी से यह बात कही। पत्नी ने कहा कि दान-पुण्य ही लक्ष्मी को रोक सकते हैं। हमारे अहोभाग्य कि यह इतने समय तक हमारे पास रुकीं। मूँजीमल बड़ा कंजूस था। दान-पुण्य करना उसका स्वभाव नहीं था। उसकी इच्छा थी कि लक्ष्मी हमारे पास से रहें। उसने भी ठान लिया कि वह लक्ष्मी को अपने पास से जाने नहीं देगा।
उसने लक्ष्मी को रोकने का एक उपाय निकाला। लक्ष्मी ने घर से जाने की बात कही थी। मूँजीमल ने एक पेड़ का तना खोखला करवाया और उसमें सोने की मोहरें-आभूषन सब भर डाले। अपनी सम्पत्ति को पेड़ के तने में भरने के बाद उसे अपने घर से बाहर रख दिया। जब पत्नी ने यह सब देखा तो कहा, 'आप कितने भी जतन कर लो लेकिन लक्ष्मी को जहाँ जाना हो, वहीं जायेगी।' सेठ ने कहा, 'जब घर में लक्ष्मी है ही नहीं, वह पेड़ के तने में हैं तो कहाँ जायेगी!,
दिन भर मूँजीमल ने तने का ध्यान रखा। आधी रात तक जागता रहा लेकिन फिर उसकी आँख लग गयी। ठीक उसी समय मूसलाधार बारिश हुई। पेड़ का तना बहता-बहता एक झोंपडी के आगे जा रुका। वहॉ गरीब 'बिरमा' रहता था। उसने सोचा कि ईश्वर ने जलाने के लिए घर बैठे ईधन भेजा है। उसने तने को झोंपडी में खींच लिया। जैसे ही तने को काटा, उसमें से सम्पत्ति का ढेर निकल पड़ा। उधर नींद खुली तो मूँजीमल भी दौड़ता हुआ आया और बदहवास-सा लक्ष्मी को ढूंढ़ने लगा। बिरमा ने सेठ को चिल्लाते हुए देखा तो उसे झोंपडी में लाकर सारी कहानी बतायी और कहा कि आप अपनी लक्ष्मी को ले जाओ।
मूँजीमल ने जब यह करिश्मा देखा, तो भगवान को हाथ जोड़ते हुए कहा, 'सच ही कहा है धन-द्रव का प्रवाह रुकता नहीं।' मूँजीमल ने तुरन्त सारी सम्पत्ति बिरमा सहित गरीबों को दान कर दी और नये सिरे से लक्ष्मी के स्वागत की तैयारी में जुट गया।
4
एक चावल की खीर
एक बार की बात है भगवान गणेश एक बालक बन गये। उनके एक हाथ में चम्मच भर दूध था और दूसरी हथेली में एक चावल। वे घर-घर जाते और कहते, 'मेरे लिए खीर बना दो।' चम्मच भर दूध और एक चावल देख कर घर की औरतों की हँसी नहीं रुकती। वे कहती-इतने में क्या खीर बनगी? बालक बालक हठ करता, तो कोई फुसला कर टाल देती तो कोई क्रोधित होकर उसे घर से निकाल देती। सुबह से शाम हो गयी, बालक के लिए खीर बनान को कोई तैयार नहीं हुआ।
साँझ पड़े बालक एक कुटिया में पहुँचा, जहाँ एक वृद्ध महिला रहती थी। बालक ने वृद्धा से भी यही विनती करते हुए कहा, "माँ मेरे लिए खीर बना दो, महल-भवन घूम आया, मेरे पास चावल भी है और दूध भी, पता नहीं खीर बनाने में कितनी मेहनत लगती है कि सामान देने के बाद भी कोई नहीं बनाता।' वृद्धा ने बालक को प्यार से पुचकारते हुए कहा, 'अरे मेरे लाडो! ला मैं बना देती तेरे लिए खीरा' वृद्धा ने अपनी बहू से कहा, 'छोटी कड़गही लाना, खीर बना।' बालक ने अब एक नयी अनूठी जिद बाँध ली कि 'घर में जो सबसे बड़ी कड़ाही हो, खीर उसी में बनाओ।' वृद्धा ने यह जिद भी मानी जोर सबसे बड़े कड़ाह में खीर बनाने की तैयारी करने लगी और बालक खेलने चल दिया।
जैसे ही कड़ाह में एक चम्मच दूध और एक चावल डाला गया। कड़ाह लबालब दूध और चावलों से भर गया। सभी अचम्भित थे। वृद्धा ने गाँव भर में दूँढा लेकिन बालक ढूंढे न मिला। बहू ने जब स्वादिष्ट खीर देखी, तो एक कटोरी भरी और भगवान का नाम लेते हुए छुपकर भोग लगा लिया। उधर वृद्धा, बालक को पुकारते हुए घूम रही थी कि एक वाणी गूँजी, 'माँ मैंने तो दरवाजे के पीछे छुपकर भोग लगा लिया है। अब खीर पूरे गाँव को खिलाओ।' पूरे गाँव को खीर का भोग करवाते हुए वृद्धा के मुँह से एक ही बात निकल रही थी, 'बनवाने की पीर! खाओ एक चावल की खीर।' एक चावल की खीर बनाना से मना