YOG AUR BHOJAN DWARA ROGO KA ILAJ
101 pages
Hindi

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YOG AUR BHOJAN DWARA ROGO KA ILAJ , livre ebook

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Description

The world well-known scientific fact that Yoga and Meditation techniques and balanced Diet and Nutrition will make you healthy by disease-free. This book is guaranteed to your health. Needs described in this rule, control and treatment practices to adopt.


Sujets

Informations

Publié par
Date de parution 01 juillet 2011
Nombre de lectures 0
EAN13 9789350573853
Langue Hindi
Poids de l'ouvrage 1 Mo

Informations légales : prix de location à la page 0,0500€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

लेखक
डॉ. सत्यपाल
योग विशेषज्ञ एवं प्राकृतिक चिकित्सक
 
 
 



प्रकाशक

F-2/16, अंसारी रोड, दरियागंज, नयी दिल्ली-110002 23240026, 23240027 • फैक्स: 011-23240028 E-mail: info@vspublishers.com • Website: www.vspublishers.com
क्षेत्रीय कार्यालय : हैदराबाद
5-1-707/1, ब्रिज भवन (सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया लेन के पास)
बैंक स्ट्रीट, कोटि, हैदराबाद-500015
040-24737290
E-mail: vspublishershyd@gmail.com
शाखा : मुम्बई
जयवंत इंडस्ट्रियल इस्टेट, 1st फ्लोर, 108-तारदेव रोड
अपोजिट सोबो सेन्ट्रल मुम्बई 400034
022-23510736
E-mail: vspublishersmum@gmail.com
फ़ॉलो करें:
© कॉपीराइट: वी एण्ड एस पब्लिशर्स ISBN 978-93-814485-0-2


डिस्क्लिमर
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गई पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या संपूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
पुस्तक में प्रदान की गई सभी सामग्रियों को व्यावसायिक मार्गदर्शन के तहत सरल बनाया गया है। किसी भी प्रकार के उदाहरण या अतिरिक्त जानकारी के स्रोतों के रूप में किसी संगठन या वेबसाइट के उल्लेखों का लेखक प्रकाशक समर्थन नहीं करता है। यह भी संभव है कि पुस्तक के प्रकाशन के दौरान उद्धत वेबसाइट हटा दी गई हो।
इस पुस्तक में उल्लीखित विशेषज्ञ की राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटाकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
पुस्तक में दिए गए विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जाएगा।
मुद्रक: परम ऑफसेटर्स, ओखला, नयी दिल्ली-110020

निवेदन : लेखक की ओर से
‘योग और भोजन द्वारा रोगों का इलाज’ पुस्तक लिखने की प्रेरणा मुझे योग के साधकों ने दी, बल्कि कुछ दबाव भी डाला कि मैं इस पर प्रयास बनी, परंतु मैं इस पर कुछ ध्यान नहीं दे रहा आ, क्योंकि अकसर मेरे मन में आता कि ऐसी पुस्तक लिखकर मैं कहीं योग के ऋषि तथा योग का अपमान तो नहीं करूंगा? योग की रचना रोगों के उपचार के लिए तो हुई नहीं, यह तो वास्तविक आनंद जो मानव-जीवन का परम लक्ष्य है, को प्राप्त करने के लिए है। यह एक तप है, साधना है। कहीं मानव भटक तो नहीं जाएगा? केवल अपने रोग के इलाज तक ही उसे सीमित नहीं रखेगा? क्या इससे उसकी वास्तविकता तो नहीं खो जाएगी? आदि-आदि। बहुत से प्रश्न मन में उठते थे। इन प्रश्नों के कारण ही पुस्तक-लेखन में इतनी देरी हुई।
मुझे यह पूर्ण विश्वास है कि योग की साधना द्वारा समस्त रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है, क्योंकि यह एक वैज्ञानिक पद्धति है। ऋषि ने इसकी रचना मानव-जीवन के शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक विकास और स्वास्थ्य के लिए ही की है। रोग को दूर करना तो बहुत छोटी उपलब्धि है। रोग तो ठीक होंगे ही, इसमें कोई शक नहीं। क्योंकि जब शरीर शुद्ध व स्वस्थ होगा, मन शांत होगा, आहार सात्विक होगा, तो रोग स्वत: ही चला जाएगा, क्योंकि शरीर की रचना में पूरी व्यवस्था है, अपने को स्वस्थ रखने तथा रोगों को ठीक करने की।
आज का मानव अनेक व्याधियों से ग्रस्त है। वह यदि अपने रोग के उपचार के लिए भी योग की तरफ आकर्षित होता है और अपने रोग को ठीक कर पाता है, तो उसकी श्रद्धा रोग के प्रति हो ही जाएगी। हो सकता है कि यहीं से मानसिक विकास तथा आध्यात्मिक आनंद प्राप्त करने का मार्ग खुल जाए और योग उसके जीवन का अंग बन जाए। इसी भावना को सामने रखकर है ‘योग और भोजन द्वारा रोगों का इलाज’ पुस्तक लिखने का मन बनाया और प्रयास किया।
पाठकों को मैं यह बता देना चाहता हूं कि यदि आप केवल रोप-उपचार के लिए ही रोग को अपनाएंगे, तो आप शायद पूर्ण लाभ नहीं उठा सकेंगे, क्योंकि यह औषधि नहीं है। यह जीने को, स्वस्थ रहने की, आनंदित रहने की एक कला है। इसे जीवन का अंग बनाकर ही लाभ उठाया जा सकता है, केवल उपचार का साधन बनाकर नहीं। इसलिए प्रार्थना है कि आपका लक्ष्य भले ही अपने रोग को ठीक करना हो, परंतु योग को अपने जीवन का अंग बनाकर पूरी श्रद्धा तथा विश्वास से शुरू करें और कुछ महीनों तक (बेहतर यह होगा कि एक वर्ष तक) लगातार अभ्यास करें। तब योग अपना काम कर लेगा, आपका आत्मविश्वास जगा देगा, आपकी सोच में, आपके विचारों में आमूल परिवर्तन आ जाएगा। आपका रोग ठीक हो जाएगा। योग आपको एक सच्चा मानव बना देगा, जो दूसरों के कष्ट दूर करेगा। आप स्वस्थ होंगे, परिवार स्वस्थ होगा, पूरा मानव समाज स्वस्थ होगा, तभी योग की पूर्णता होगी।
इस पुस्तक में मैंने योगासन, प्राणायाम, ध्यान तथा शुद्धि क्रियाओं का वर्णन तो किया ही है, कुछ दूसरे प्राकृतिक उपचार भी बताए हैं। रोगी शरीर के विकार को निकालने के लिए तथा शरीर के भीतरी भाग को शुद्ध व शांत करने के लिए इनकी सहायता लेना आवश्यक है। रोग की व्यापकता के अनुसार इन उपचारों को आवश्यकता एक-दो मास के लिए ही पड़ सकती है। जब शरीर शुद्ध, स्वच्छ व शांत हो जाए, तो फिर योग का सहारा लिया जा सकता है।
यह बात ध्यान में अवश्य रखें कि बिना परहेज के, बिना आहार बदले रोग से छुटकारा पाना संभव नहीं है। इसलिए आहार की जो व्यवस्था रोग के उपचार में बताई गई है, उसे पूरी निष्ठा से लें, क्योंकि आहार ही रोग में औषधि का काम करता है।
इन शब्दों के साथ यह पुस्तक मानव-कल्याण हेतु समाज को समर्पित करता हूं और आशा करता हूं पाठक इससे लाभ उठाएंगे, क्योंकि 42 वर्षों का अनुभव इस पुस्तक के पीछे है।
—डॉ. सत्यपाल ग्रोवर रोग विशेषज्ञ और प्राकृतिक चिकित्सक जे-11, सैक्टर 12, नोएडा - उ. प्र. पीन - 201301

प्रस्तावना

शरीर का निरोगी होना धर्म-साधना का मूल आधार है। भारत के ऋषियों ने धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के पुरुषार्थों को सुव्यवस्थित तथा सुचारु रूप से पूर्ण करने हेतु आरोग्य को सर्वाधिक महत्त्व प्रदान किया है। यहां का चिंतनशील मस्तिष्क शरीर और मन को स्वस्थ बनाए रखने की दृष्टि से शोध का कार्य सदा से करता चला आया है। मनीषीगण स्वास्थ्य-रक्षा के संदर्भ में सतत जागरूक रहे हैं। 'सुभाषित रत्न' ग्रंथ का एक श्लोक उद्धृत करके मैं उस कथन को और पुष्ट कर देना चाहता हूं-
“ मस्ते दु:सहवेदना कवलित मग्ने स्वरेअन्तर्गल तप्तामा स्वर पावकेन च तत्रो तांते हषीक वणे।। इने बन्धुजने कृत प्रलयने धैर्य विधातु पुन: का शक्त: कलितामप्रशमनो वैद्यात्परों वियते।” ‘पृष्ठ-45, श्लोक-5’
अर्थात् सिर में भयंकर पीड़ा है, जबान तलवे में पहुंच चुकी है। पूरा शरीर ज्वर के ताप से जल रहा है, इंद्रियां शिथिल हो चली है, बंधु-बांधव दुखी हो रोने-पीटने लगे हैँ। ऐसे समय में फिर से धैर्य बंधाने वाला केवल वही वैद्य हो सकता है, जो रोग को शांत कर सके।
शरीर रोगी हो जाए, तो उपचार करना ही पड़ता है। उपचार की पद्धति भिन्न हो सकती है, पर क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उपचार कराने को समस्या ही सामने खड़ी न हो पाए? ऐसा अवश्य हो सकता है, बशर्तें शुरू से ही जीने की कला, खानपान, व्यवहार, विचार आदि की ओर ध्यान दिया जाए। मुझे लगता है कि "योग और भोजन द्वारा रोगों का इलाज ' पुस्तक के लेखक डॉ. सत्यपाल जी के ध्यान में यह बात विशेष रूप से सक्रिय थी। तभी तो उन्होंने इस पुस्तक में योग की विस्तृत चर्चा सर्वप्रथम करके इसे अत्यंत उपयोगी बना दिया है।
वर्तमान के उपभोक्तावादी समाज मेँ सर्वसाधारण ध्यान स्वास्थ्य और चरित्र से हटकर धन पर केन्द्रित हो गया है। जीवन के श्रेष्ठ मूल्यों का निरंतर ह्रास होता जा रहा है। समस्या विकराल है और निरंतर बढ़ती जा रही है। इस रावण अब दस सिर वाला नहीं रहा है, अपितु करोड़ों सिर वाला हो गया है। इस रावण को मारने हेतु कैसे व किस प्रकार के राम की आवश्यकता है, यह प्रश्न शायद अधिक विचारणीय है। कौन जन्म देगा ऐसे महाशक्तिशाली मेरी विनम्र प्रार्थना है कि आपका लक्ष्य भले ही अपने रोग को ठीक करना हो, परंतु योग को अपने जीवन का अंग बनाकर पूरी श्रद्धा तथा विश्वास से शुरू करें और कुछ महींनों तक बेहतर यह होगा कि एक वर्ष तक लगातार अभ्यास करें। तब योग अपना काम कर लेगा, आपका आत्मविश्वास जगा देगा, आपकी सोच में, आपके विचारों में आमूल परिवर्तन आ जाएगा। आपका रोग ठीक हो जाएगा। योग आपको एक सच्चा मानव बना देगा, जो दूसरों के कष्ट दूर करेगा। आप स्वस्थ होंगे, परिवार स्वस्थ होगा, पूरा मानव ममाज स्वस्थ होगा, तभी योग की पूर्णता होगी।
इस पुस्तक में मैंने योगासन, प्राणायाम, ध्यान तभी शुद्धि क्रियाओं का वर्णन तो किया ही है, कुछ दूसरे प्राकृतिक उपचार भी बताए हैं। रोगी शरीर के विकार को निकालने के लिए तथा शरीर के भीतरी भाग के शुध्द व शांत करने के लिए इनकी सहायता लेना आवश्यक है। रोग की व्यापकता के अनुसार इन उपचारों की आवश्यकता एक-दो मास के लिए ही पड़ सकती है। जब शरीर शुद्ध, स्वच्छ व शांत हो जाए तो फिर योग का सहारा लिया जा सकता है।
यह बात ध्यान में अवश्य रखें कि बिना परहेज के, बिना आहार बदले रोग से छुटकारा पाना संभव नहीं है। इसलिए आहार की जो व्यवस्था रोग के उपचार में बताई गई है, उसे पूरी निष्ठा से लें, क्योंकि आहार ही रोग में औषधि का काम करता है।
इन शब्दों के साथ यह पुस्तक मानव-कल्याण हेतु समाज को समर्पित करता हूं और आशा करता हूं कि पाठक इससे लाभ उठांएगे, क्योंकि 42 वर्षों का अनुभव इस पुस्तक के पीछे है।
—डॉ. सत्यपाल ग्रोवर रोग विशेषज्ञ और प्राकृतिक चिकित्सक जे-11, सैक्टर 12, नोएडा - उ. प्र. पीन - 201301
विषय सूची
1. योग विज्ञान: यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि
2. योग का वैज्ञानिक पक्ष: रीढ़, सुषुम्ना की रचना
3. रोग विज्ञान: मस्तिष्क
4. यौगिक शुद्धि क्रियाएं: नेति, कुंजल क्रिया, एनिमा, शंख प्रक्षालन, व्यायाम, कपालभाति, त्राटक
5. योग-निद्रा एवं शिथिलीकरण
6. पाचन-संस्थान और उसका कार्य: भोजन का आत्मीकरण, शरीर का रासायनिक संगठन, भोजन के आवश्यक नियम
7. विटामिन और खनिज लवण
8. रोग और उसका सही निदान
9. पाचन-संस्थान के रोग: मधुमेह, मोटापा, अजीर्ण, बवासीर, जीर्ण ब्रहद्रांत शोथ, अम्ल रोत्रा, पाकस्थली का घाव, पीलिया, यकृत प्रदाह, कब्ज, टासिंल
10. श्वास संबंधी रोग: श्वास-प्रश्वास संस्थान, नजला-जुकाम-खांसी, दमा-ब्रोंकेाइटिस
11. वात रोग: जोड़ों का दर्द, गठिया
12. हदय रोग: हृदय और उसकी संरचना, रक्तचाप, लसीका, हदय-रोग, उच्च रक्तचाप, निम्न रक्तचाप, रक्ताल्पता
13. स्नायु रोग: सिर दर्द, स्नायु दौर्बल्य, अनिद्रा, सवाईकल, तनाव, मिर्गी रोग, नपुंसकता, स्वप्नदोष
14. मूत्रवाहक यंत्रों के रोग
15. त्वचा के रोग
16. स्त्रियों के रोग: मासिक धर्म, श्वेत प्रदर, स्वस्थ बच्चे का जन्म
17. दाँतों का स्वास्थ्य
18. आंखों का स्वास्थ्य
19. मालिश विज्ञान
20. प्राणायाम
21. योगासन
22. उपचार विधि

डॉ सत्यपाल का जीवन-परिचय

योग जीने की कला है और योगासन एक वैज्ञानिक पद्धति। यही एक ऐसा व्यायाम है जो हमारे आंतरिक शरीर पर प्रभाव डालता है। शरीर और मन का स्वस्थ रहना हमारे अंदर के अंगों-हृदय, फेफड़े, पाचन-संस्थान, ग्रंथियों, मस्तिष्क, नाड़ियों आदि- के स्वस्थ व सक्रिय रहने पर निर्भर करता है। यदि अंदर के अंग सक्रिय हैं, शरीर की प्रतिरोधात्मक शक्ति काम कर रही है तो दवाई से भी काम लिया जा सकता है, नहीं तो वह भी अपना बिष छोड़ जाती है और रोगी को और कई नये रोग दे जाती है।
12 जून, 1926 को लाहौर के एक संभ्रात व्यापारी परिवार में डॉ. सत्यपाल का जन्म हुआ। इनकी शिक्षा लाहौर में ही
हुई। शिक्षा के दिनों में यह अक्सर बीमार रहते थे। अत: इन्होंने स्वास्थ्य-संबंधी साहित्य का अध्ययन शुरू किया, जिससे इनकी रुचि रोग तथा प्राकृतिक चिकित्सा में

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