NIBANDH SANGRAH (Hindi)
173 pages
Hindi

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NIBANDH SANGRAH (Hindi) , livre ebook

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Description

Pustak Nibandh Sangrah sabhi vargo ke chhatra-chhatraon evan anek pratiyogi pariksha sivil service ke ummidwaron ke liye taiyar ki gai hai. Nibandh Sangrah unke liye bhi ek aadarsh hai jinhe rachnatmak nibandh lekhan ki kala sikhne me vishesh ruche hai. In nibandh me varnatmak, vivranatmak, vicharatmak aur bhavnatmak nibandh shamil hai. Chhatron ki suwidha ke liye nibandh sangrah ko vishesh khando me bata gaya hai. Jisse yeh pustak bajar me upalabdh nibandh ki anya pustko kit ulna me alag hai. Is pustak me sabhi prakar ke nibandh diye gaye hai jinme – sahitya samaj, vidhyarthi jivan, jiban mulya, atmkatha, drishvaranan, sahitya, sandeshgarbhit, rajniti, gyan-vigyan, tyohar, trasadi aur mahan vyaktitav par adharit nibandh shamil hai. Sabhi nibandh adhuniktam jankari evam nai vichardharao se paripuran hai. Nibandh ki kala ke nirantar abhyas se lekhan me prepakvta aati hai. Isliye chhatraon ko salah hai ki ve nibandh padhkar iska avashay abhyas kare. Prastut pustak me is baat ka vishesh dhyan rakha gya hai ki nibandh ki bhasha shaili saral, sahaj evam bodhgmay ho.


Informations

Publié par
Date de parution 01 juin 2015
Nombre de lectures 0
EAN13 9789350573709
Langue Hindi

Informations légales : prix de location à la page 0,0500€. Cette information est donnée uniquement à titre indicatif conformément à la législation en vigueur.

Extrait

विद्यार्थी हेतु निबन्ध-लेखन पर एक विशिष्ट पुस्तक
निबन्ध-संग्रह
सभी वर्गों के छात्र-छात्राओं एवं सभी प्रतियोगी परीक्षा के उम्मीदवारों हेतु एक अत्यंत उपयोगी पुस्तक













प्रकाशक

F-2/16, अंसारी रोड, दरियागंज, नयी दिल्ली-110002
23240026, 23240027 • फैक्स: 011-23240028
E-mail: info@vspublishers.com • Website: www.vspublishers.com

क्षेत्रीय कार्यालय : हैदराबाद
5-1-707/1, ब्रिज भवन (सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया लेन के पास)
बैंक स्ट्रीट, कोटी, हैदराबाद-500 095
040-24737290
E-mail: vspublishershyd@gmail.com

शाखा : मुम्बई
जयवंत इंडस्ट्रियल इस्टेट, 1st फ्लोर, 108-तारदेव रोड
अपोजिट सोबो सेन्ट्रल मुम्बई 400034
022-23510736
E-mail: vspublishersmum@gmail.com

फ़ॉलो करें:
© कॉपीराइट:
ISBN 978-93-505737-0-9


डिस्क्लिमर
इस पुस्तक में सटीक समय पर जानकारी उपलब्ध कराने का हर संभव प्रयास किया गया है। पुस्तक में संभावित त्रुटियों के लिए लेखक और प्रकाशक किसी भी प्रकार से जिम्मेदार नहीं होंगे। पुस्तक में प्रदान की गई पाठ्य सामग्रियों की व्यापकता या संपूर्णता के लिए लेखक या प्रकाशक किसी प्रकार की वारंटी नहीं देते हैं।
पुस्तक में प्रदान की गई सभी सामग्रियों को व्यावसायिक मार्गदर्शन के तहत सरल बनाया गया है। किसी भी प्रकार के उदाहरण या अतिरिक्त जानकारी के स्रोतों के रूप में किसी संगठन या वेबसाइट के उल्लेखों का लेखक प्रकाशक समर्थन नहीं करता है। यह भी संभव है कि पुस्तक के प्रकाशन के दौरान उद्धत वेबसाइट हटा दी गई हो।
इस पुस्तक में उल्लीखित विशेषज्ञ की राय का उपयोग करने का परिणाम लेखक और प्रकाशक के नियंत्रण से हटाकर पाठक की परिस्थितियों और कारकों पर पूरी तरह निर्भर करेगा।
पुस्तक में दिए गए विचारों को आजमाने से पूर्व किसी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है। पाठक पुस्तक को पढ़ने से उत्पन्न कारकों के लिए पाठक स्वयं पूर्ण रूप से जिम्मेदार समझा जाएगा।
मुद्रक: परम ऑफसेटर्स, ओखला, नयी दिल्ली-110020
प्रकाशकीय
निबन्ध हिन्दी गद्य जगत् की एक प्रमुख एवं उल्लेखनीय विधा है परन्तु प्रश्न यह है कि आखिरकार निबन्ध है क्या? "वह विचारपूर्ण लेख जिसमें किसी विषय का सम्यक् विवेचन किया गया हो।"
प्रस्तुत निबन्ध-संग्रह सिविल सर्विस एवं अन्य प्रतियोगी परीक्षा को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। इस पुस्तक में बारह प्रकार के निबन्ध दिये गये हैं जिनमें- समाज, विद्यार्थी जीवन, जीवन मूल्य, आत्मकथा, दृश्यवर्णन, साहित्य, संदेशगर्भित, राजनीति, ज्ञान-विज्ञान, त्योहार, त्रासदी और महान् व्यक्तित्व पर आधारित निबन्ध समाहित हैं। सभी निबन्ध आधुनिकतम जानकारी एवं नई विचारधाराओं से परिपूर्ण हैं। इन निबन्धों में वर्णनात्मक, विवरणात्मक, विचारात्मक और भावात्मक निबन्ध शामिल है।
निबन्ध की कला के निरन्तर अभ्यास से परिपक्वता आती है। इसलिए छात्रों से सलाह है कि वे निबन्ध पढ़कर इसका अभ्यास अवश्य करें। प्रस्तुत पुस्तक में इस बात का खास ध्यान रखा गया है कि निबन्ध की भाषा-शैली सरल एवं बोधगम्य हो।
हमें पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक सभी वर्गों के छात्र-छात्राओं एवं प्रतियोगी परीक्षा के विद्यार्थियों के लिए अत्यन्त लाभदायी सिद्ध होगी।


विषय-सूची
समाज
भारतीय समाज में नारी का स्थान
फैशन का भूत
समाचार-पत्र
भ्रष्टाचार के बढ़ते कदम और उसकी रोकथाम
युवा-पीढ़ी पर दूरदर्शन का प्रभाव
बाल विवाह: एक कुप्रथा
दहेज की समस्या
कमरतोड़ महँगाई, समस्या एवं समाधान
एड्स की चुनौती अथवा एड्स जानकारी ही बचाव
विज्ञापनों से घिरा मानवीय जीवन
नशाखोरी एक अभिशाप अथवा मादक द्रव्य सेवन समस्या और समाधान
मेरा गाँव या ग्राम्य जीवन
जनसंख्या और परिवार कल्याण
आधुनिक युग में खेलों का महत्त्व
भारतीय किसान
विद्यार्थी जीवन
सहशिक्षा
पुस्तकों का महत्त्व
छात्र एवं अनुशासन
विद्यार्थी जीवन
परीक्षा की तैयारी
विद्यालय और नैतिक शिक्षा
विद्यार्थी और राजनीति
नारी शिक्षा
साक्षरता
जीवन मूल्य
भाग्य और पुरुषार्थ
परोपकार
राष्ट्रीय एकता
आत्मकथा
यदि मैं अध्यापक बनूँ!
यदि मैं भारत का प्रधानमंत्री होता!
मेरा जीवन लक्ष्य
दृश्य वर्णन
बस दुर्घटना का करुण दृश्य
दिल्ली मेट्रो रेल
वर्षा का एक दिन
साहित्य
साहित्य का उद्देश्य
राष्ट्रभाषा हिन्दी
हिन्दी काव्य में प्रकृति चित्रण
मेरा प्रिय काव्य (रामचरितमानस)
आधुनिक काल की मीरा ‘महादेवी वर्मा’
संदेशगर्भित
पराधीन सपनेहुं सुख नाहीं
परहित सरिस धरम नहिं भाई
आलस्य सबसे बड़ा शत्रु
सूर-सूर तुलसी.शशि
सादा जीवन उच्च विचार
जहाँ सुमति तहाँ सम्पत्ति नाना
राजनीति
अमेरिका और आतंकवाद
समाज में भिक्षावृत्ति की समस्या
साम्प्रदायिकता और राजनीति
इक्कीसवीं सदी का भारत
ज्ञान-विज्ञान
मानव जीवन की प्रगति में कम्प्यूटर की भूमिका
अन्तरिक्ष विज्ञान और भारत
वन एवं पर्यावरण
परमाणु अस्त्रों की होड़ अथवा अणुशक्ति
विज्ञान: वरदान या अभिशाप
सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति और भारत अथवा सूचना प्रौद्योगिकी की उपलब्धियाँ
अणुशक्ति और भारत
त्योहार
स्वतन्त्रता दिवस
गणतन्त्र दिवस
दीपावली
दशहरा अथवा विजयादशमी
रक्षाबन्धन
होली
त्रासदी
सुनामी: एक भयानक त्रासदी
गुजरात में भूकम्प (भयावह त्रासदी)
महान् व्यक्तित्व
महात्मा गांधी
जवाहरलाल नेहरू
सरोजिनी नायडू
श्रीमती इन्दिरा गांधी
डा. भीमराव अम्बेडकर
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
राममनोहर लोहिया
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
प्रतिभा पाटिल
राजा राममोहन राय
अटल बिहारी वाजपेयी
सचिन तेंदुलकर
मिल्खा सिंह
मदर टेरेसा
विश्वनाथन आनंद
चन्द्रशेखर वेंकट रमन
जगदीशचन्द्र बसु
एम.एस. स्वामीनाथन
धीरूभाई अंबानी
कल्पना चावला
सुनीता विलियम्स
बिस्मिल्ला खां
एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी
पं. रविशंकर
लता मंगेशकर
रवीन्द्र नाथ टैगोर
प्रेमचंद
दादासाहब फाल्के
आर.के. नारायण
अमर्त्य कुमार सेन
जे.आर.डी. टाटा
वर्गीज़ कुरियन
नक्सलवाद और उसका निपटारा
वैश्विक मंदी
लोकपाल बिल
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और भारतीय फुटकर बाजार
एक सभ्य समाज में मृत्युदंड के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए
आई पी एल -
मुम्बई में आतंकवादी हमला
जनसंख्या वृद्धि को रोकने में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका
सूचना का अधिकार















समाज

भारतीय समाज में नारी का स्थान
भा रतीय समाज में नारियों को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यहाँ वह देवी के रूप में पूज्यनीय हैं। समाज में नारी के विभिन्न स्वरूप हैं, कहीं वह माँ के रूप में पूज्यनीय है, तो कहीं बहन के रूप में ममतामयी है। पत्नी के रूप में ‘दायाँ हाथ’ हैं और कामिनी के रूप में ‘विष की पुड़िया’ है। नारी के ये चारों ही रूप आज हमें देखने को मिल रहे हैं।
नारी के सन्दर्भ में मनु ने लिखा है कि ‘जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। भारत सदा स्त्रियों का सम्मान करता रहा है। प्राचीन काल में नारी के बिना कोई भी यज्ञ संपन्न नहीं होता था। परन्तु मध्य युग में नारियों की स्थिति काफी शोचनीय हो गयी थी। वह घर की चहारदीवारी में बन्द हो गयी। मुसलमानों ने उसे बुर्के के पीछे ढक दिया। रसोई में खाना बनाना व घर का काम करना तथा श्रृंगार ही उसकी जिन्दगी का हिस्सा बन गये। उसका शिक्षा से सम्बन्ध टूट गया। वह पुरुष की भोग्या बन कर रह गयी। मध्यकाल में नारी के बहन, माँ, पत्नी के रूप खतरे में पड़ गये। बस ‘कामिनी’ रूप ही फल-फूल रहा था। अकबर के महल में चार हज़ार सुन्दरियाँ थीं। दूसरे मुगल बादशाह भी सैकड़ों की संख्या में स्त्रियाँ रखते थे।
हालाँकि ब्रिटिश भारत में महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार आया। उन्हें शिक्षा ग्रहण करने की छूट मिली तथा बाल-विवाह और सती प्रथा बन्द हो गयी। विधवा-विवाह शुरू हुए। इन सुधारों से समाज में नारी का महत्त्व बढ़ा तथा उसका खोया हुआ सम्मान वापस लौट आया। इससे एक कदम बढ़कर उसने नौकरी और व्यवसाय के क्षेत्र में कदम रखा। फलस्वरूप वह आत्मनिर्भर होने लगी। अब वह पत्नी ही नहीं ‘चिरसंगिनी’ और पुरुष की ‘जीवन-साथी’ कहलाने लगी।
पहले की अपेक्षा आज की महिलाएँ स्वतन्त्र एवं सम्मान-पूर्वक अपना जीवन गुजार रहीं हैं। भारतीय संविधान में यह स्पष्ट शब्दों में वर्णित है कि भारत में लिंग-भेद के कारण किसी को कोई विशेष या कम स्थान नहीं होगा। परन्तु समाज की परम्पराएँ धीरे-धीरे ही बदलती हैं। पुरुष आज भी नारी को अपने हाथों की कठपुतली बना कर रखना चाहता है।
हमारे समाज में आज भी स्त्रियों की दशा में व्यापक बदलाव नहीं आया है। नारी पुरुषों के बंधन में जीवन गुजार रही हैं। मुस्लिम समाज तो मानो मध्ययुग में ही जीना चाहता है। अभी भी मुस्लिम युवक तीन बार तलाक कहकर नारी को सड़क पर खड़ा कर देने से नहीं चूकते। अतः नियमों पर कड़ा प्रतिबन्ध लगाना चाहिए।
विशेष तौर पर पुरुषों की प्रधानता होने के कारण दस्तावेजी अधिकार रहते हुए भी नारी समाज खुद को मजबूर समझती है। पुरुष-समाज पग-पग पर उसके मार्ग में रोड़े अटकाता है। यही सोचकर राजनीति में नारी को आरक्षण देने की बातें उठीं। आज नारी शोषित है। वह आठ घण्टे ऑफिस का काम करने के बावजूद घर का पूरा काम करती है। वह आराम से जीने की बात सोचती भी नहीं। शायद एक दिन वह भी एक सम्मानजनक ढंग से जिंदगी जीने की आकांक्षा पूरा कर सकेगी।

फैशन का भूत
फै शन वर्तमान युग का एक अभिन्न अंग बन चुका है। चाहे कॉलेज जाने वाले लड़के.लड़की हों या बाजार जाते स्त्री पुरुष हों, ऑफिस जाती महिलाएँ हों या शाम को मटरगश्ती करने वाले युवक हों सब फैशन की अदाओं के साथ घर से बाहर निकलते हैं। आज के बाजार सौन्दर्य प्रसाधनों से भरे पड़े हैं। आज सौन्दर्य प्रसाधन की दुकान पर जितनी भीड़ देखने को मिलती है इतनी भीड़ किसी अन्य दुकानों पर नहीं होती है।
वर्तमान दौर में लोग सुन्दरता एवं रख-रखाव पर काफी खर्च कर रहे हैं। आज कदम-कदम पर ब्यूटी.पार्लर खुल गये हैं। पहले दुल्हन ही सम्पूर्ण श्रृंगार करती थीं। परन्तु आज की महिलाएँ घर हो या बाहर हर वक्त सजी.सँवरी मिलती हैं।
आज का पुरुष वर्ग भी फैशन वर्ग की प्रतियोगिता में पीछे नहीं है क्योंकि पुरुष वर्ग भी नियमित रूप से बाल रँगवाने लगे हैं। आज पुरुषों के लिए भी विभिन्न प्रकार के सौन्दर्य प्रसाधन बाजार में उपलब्ध हैं।
यहाँ एक महत्त्वपूर्ण सवाल यह उत्पन्न होता है कि फैशन का यह भूत अचानक क्यों हम सभी पर हावी होने लगा है? इनके कई कारण उत्तरदायी हैं जिनमें बहुराष्ट्रीय कंपनियों और बड़े-बड़े उद्योगों में सुन्दर युवक-युवतियों को पदोन्नति मिलना तथा सुन्दर दिखने की बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा। टीवी के विज्ञापन, सौन्दर्य प्रतियोगिताओं की बढ़ती संख्या, सौन्दर्य प्रसाधनों की अधिकता तथा देश में धन-समृद्धि का बढ़ना भी इसके प्रमुख कारणों में से एक हैं।
अतः स्पष्ट रूप से यह कहा जा सकता है कि फैशन अथवा श्रृंगार में कोई बुराई नहीं है, लेकिन उसकी अधिकता बुरी होती है। आज फैशन भूत बनकर युवक-युवतियों के सिर पर नाच रहा है। लोग चरित्र पर नहीं, फैशन पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। युवकों के सुशील चरित्र का नहीं, उनकी स्मार्टनेस को तथा लड़कियों के शील को नहीं बल्कि उनके सौन्दर्य को अधिक महत्त्व प्

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